आजकल जो भारत में हो रहा है ऐसा लगता है लोग अपने आपको बचाने में लगे हुए है। आप लिस्ट कीजिये ऐसे लोगों को कौन किस बात पर विरोध कर रहा है अंदाजा लग जायेगा। मैं बारंबार कहता रहा हूँ हर बात का विरोध संभव नही खासकर आज के जमाने मे क्योंकि आपकी कही हर बात लोगों तक चाहे तोड़-मरोड़कर पहुँचे या अक्षरसः लेकिन बात मिनटों में लाखों तक पहुँचती है। इसीलिए किसी भी बात का प्रभाव कितनी तीव्र गति से जनमानस पर पड़ता है कैसे लोगो प्रतिउत्तर में जवाब देते है इसका जीता जागता उदाहरण हाल में एक ज्वैलरी से संबंधित विज्ञापन का हाल देखकर अंदाजा लाग्या जा सकता है।
लोग ब खुद यह फैसला करते है उनके लिए क्या अच्छा है क्या खराब है उसपर तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देता है वह पहले की तरह रात 9 बजे न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम या उनके पसंदीदा अखबार की सुबह की संपादकीय में क्या लिखा जाएगा उसका इंतजार नही करता है। अब वो जमाना नही रहा जब परंपरागत मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है आज की तारीख में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सोशल मीडिया हो गया है क्योंकि यहाँ हर व्यक्ति अपने हिसाब से अपनी संपादकीय लिख रहा है। अपनी बात करना चाहता है अपने क्षेत्र के बारे में बात करना चाहता है। अपने नेता के बारे में बात करना चाहता है कि उसका नेता कैसा हो उसे अपने नेता से क्या क्या अपेक्षा है।
इसी सोशल मीडिया की वजह से लोग अलग अलग विचारधाराओं के बारे में जानते है अगर उन्हें किसी की बात में संदेह नजर आता है तो वह उसपर रिसर्च करता है फिर फैसला लेता है कि फलां व्यक्ति का यह कहना कितना जायज है। अब किसी ने किसी की भी महापुरुष के किसी वकतव्य को अगर अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर पेश करता है तो वह तुरंत उसी का रिफरेन्स उठाकर सामने रख देता है। और आपने सालों पहले क्या कहा था किसी भी मुद्दे पर वह भी उसके हाथ मे मौजूद है।
अभी तक जितनी बातें ऊपर कही है ऐसा लगता है सोशल मीडिया में सबकुछ सही है होता है ऐसा नही है कुछ गलत लोग इसका गलत तरीके से भी इस्तेमाल करते है जैसे फेक न्यूज़ अगर एक बड़े ग्रुप द्वारा फैलाया जाता है वह भी उतनी ही तेजी से फैलता है और वह बड़ा असर डालती है समाज पर खासकर सामाजिक मुद्दों को लेकर भले उनके लिए बाद में सार्वजनिक तौर पर माफ़ी क्यों ना माँगनी पड़ी हो। बस हम सबको मिलकर सोचना है कि सोशल मीडिया पर वोकल किस तरह का होना है।
हाँ मैंने बात शुरू की थी लोग चुप क्यों है क्यों नही लोग देश के मुद्दे पर भी उतने ही वोकल दिखते है जितने सामाजिक मुद्दों को लेकर। लेकिन जो वर्ग चुप है वह इसीलिए नही बोल पा रहा है क्योंकि उसे अपने और अपने परिवार की चिंता है। एक निरपराध कार्टून बनाने वाला इसी देश मे गिरफ्तार किया जाता है वही एक व्यक्ति पर लगे अपराध को एक तरह से लोकतंत्र के इसी चौथे के एक वर्ग द्वारा उसका महिमामंडन किया जाता है दूसरे वर्ग को किसी राजनैतिक पार्टी का पिछलग्गू कहा जाता है । इसीलिए आम मध्यमवर्ग चुप है क्योंकि वह इस खेल को जानता है और समझता है उसे अपने परिवार की चिंता है। यह वही वर्ग है जो चुपचाप अपना ITR समय से पहले इसी डर से भरता है कि कल उसे नोटिस ना आ जाये। उसे अपनी चिंता इसीलिए करनी पड़ती है क्योंकि उसके लिए जब उसके साथ अन्याय होगा कोई खड़ा नही होगा चाहे वह नेता हो या कोई बुद्धिजीवी जबतक उसे आपकी जरूरत है आपके बारे में अपने अपने दोस्ताना व्यवहार वाले वर्ग के साथ आपकी बातों को उठाएंगे लेकिन जैसे ही उनका उल्लू सीधा हो जाएगा वह आपको दूध में पड़े मख्खी की तरह निकाल फेकेगा। इस चुप्पी साधे वर्ग को हमेशा राजनीति कुछ इस प्रकार दिखती है:
दोस्ती हो या दुश्मनी सलामी दूर से अच्छी लगती हैं,
राजनीति में कोई सगा नहीं ये बात भी सच्ची लगती है।
इस देश मे दो वर्ग सुरक्षित महसूस करता रहा है हमेशा जिसके लिए कार्यपालिका हमेशा खड़ी रहती है वह है गरीब और दूसरा धनाढ्य जिसके चलते पूरी अर्थव्यवस्था चलती है। इसीलिए यह आम मध्यम वर्ग चुप रहता है। फर्क नही पड़ता है यह देश किस राजनीति पार्टी का है उसे इतना पता है यह देश इतना आजाद मुखर नही हुआ कि एक आम मध्यमवर्ग की बात को सुनी जाय और उसे अमल में लाने के बारे में सोचा जाय। यही वजह है जब चुनाव होता है तो सबसे पहले यही वर्ग चुनाव में वोट डालने से कतराता है। हर जगह यही वर्ग अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है। इस वर्ग से साल में एक बार इनसे राय ली जाती है जब बजट संसद में पेश किया जाता है कि यह आम मध्यम वर्ग के लिए बजट कैसा है वह क्या सोचता है उसके बाद साल के 364 दिन वह अपने अपने परिवार को ऊपर उठाने की जद्दोजहद में लगा हुआ रहता है वह क्या प्रतिक्रिया देगा किसी भी बात पर। उसके लिए ना तो बुद्धिजीवी खड़ा होता है ना उसके लिए किसी अर्थशास्त्री के कॉलम में उसके लिए जगह बन पाती है ना ही राजनेताओं के वोट बैंक में वह शामिल होता है ना ही किसी सरकार के उत्थान किये जाने वाले लिस्ट में शामिल होता है।
आखिर में दो लाइन लिखकर अपनी बात खत्म करना चाहूँगा।
भारतीय राजनीति ,एक नए मोड़ में
कौन कितना गिरे,सब लगे होड़ में
धन्यवाद।
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Sunday, 18 October 2020
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