Saturday 29 July 2023

तुम चुप क्यों रहे केदार

यह मेरे लेख का शीर्षक नही, यह एक किताब का नाम है जो 2013 केदारनाथ में हुई घटना को लेकर हृदयेश जोशी जी की है। हृदयेश जोशी जी लगातार पर्यावरण से संबंधित विषयों पर हमेशा सक्रिय होकर लिखते और बोलते रहते है। यह किताब उनके एक चैनल के साथ रहने के दौरान पत्रकारिता करते हुए इस घटना के साथ साथ और कई घटनाओं पर उन्होंने प्रकाश डालता है।


यह किताब आप जब पढ़ना शुरू करते है तो आपको गुस्सा आता है आप किस दुनिया में जी रहे है। इसको पढ़ने के बाद अंदाज़ा लग पाता है आप पर्यावरण के प्रति खासकर जो पहाड़ों से संबंधित है आप कुछ भी नही जानते है। अगर आप बहुत सी किताबें पढ़ ले तो भी क्योंकि जितना इन पहाड़ों में बसे लोग इन पहाड़ों को और इसकी पहचान तथा इसके बनावट को पहचान पाते है उतना शायद ही कोई पहचान पायेगा। इसीलिए हृदयेश जोशी जी की यह किताब पढ़नी आवश्यक हो जाती है क्योंकि वे खुद पहाड़ से आते है और मैं उनकी पर्यावरण के प्रति कई रिपोर्टों का कायल रहा हूँ। इस किताब में ऐसा क्या है जो हम जैसों को पढ़ना चाहिए। इस किताब में हर वह बात है जो एक घटना को पुनर्जीवित करती है शब्दों के माध्यम से और इस किताब से आप समझ सकते है कि गलती कहाँ और कितनी हुई है और कितनी हो रही है साथ में सरकार की योजना और उसके बारे में विशेषज्ञों की राय और सरकारी नीतियों के बारे में भी। उस नीतियों के बारे में भी जो वे लोग आमतौर पर बराबर गलती करते हुए आ रहे है। यह किताब पर्यावरण के प्रति जागरूक व्यक्ति के लिए अहम पड़ाव हो सकती है खासकर पहाड़ों की स्थिति जानने के लिए।

केदारनाथ की घटना के बाद सबसे बड़ी घटना 2021 में चमोली में हुई घटना थी जिसने ऋषिगंगा को पूरी तरह बर्बाद कर दिया और एक हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का भी पूरी तरह सफाया कर दिया और धौलीगंगा में एनटीपीसी के प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ा। इस बाढ़ में आये पत्थर और गाद ने लगभग 200 लोगो के जान ले ली। अभी जब मैं यह लिख रहा हूँ तो लगभग भारत के हर हिस्से में बारिश की तबाही दिख रही है हर नदी पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है और नदियों के अपने बहाव क्षेत्र में लोगों ने इस तरह अतिक्रमण किया हुआ है की हर बड़े शहरों के नदी किनारे पर यही हाल है जिसकी वजह से इस साल लगता है नदी अपने पुराने रास्तों में बहना चाहती है यही वजह है कि कई बड़े शहरों में लोगो को स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। यह सिर्फ इसीलिए नही हो रहा है क्योंकि पहाड़ों पर भारी बारिश हो रही है बल्कि प्रकृति जलवायु में सबसे बड़े परिवर्तन की ओर ईशारा कर रही है। और शायद हम समझने को नाकाम हो रहे है। अभी हृदयेश जोशी जी की बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन से हुए विस्थापितों को लेकर एक रिपोर्ट आयी थी जिसको देखने के बाद आप प्रकृति में हुए बदलावों से परिचित हो पाएंगे। उस वीडियो को आप यहाँ https://youtu.be/fP-nwyGrn6M देख पाएंगे। दिल्ली में यमुना का पिछले तीन दशक बाद इस तरह के बाढ़ का दर्शन होना भी पहले से ही सुनिश्चित था इसपर भी आप हृदयेश जोशी जी की वीडियो देख https://youtu.be/TvANdIyrOns सकते है। दिल्ली में आये यमुना के बाढ़ पर मेरा लेख यहाँ https://shashidharkumar.blogspot.com/2023/07/yamuna-flood-delhi.html पढ़ सकते है। 

मैंने भी कई वर्ष दिल्ली में गुजारे है इसी वजह से दिल्ली से एक लगाव सा हो गया और यही वजह है की मैंने यमुना के बाढ़ पर एक कविता लिख डाली। 

समस्या सिर्फ सरकारें पैदा नही कर रही है जितना सरकारें जिम्मेदार है उससे कही ज्यादा हम जिम्मेदार है इस तरह के प्राकृतिक आपदाओं के लिए। हम प्रकृति में हो रहे बदलावों को स्वीकार नही कर पा रहे है और ना ही उसके बारे में गंभीर है।


इस किताब के माध्यम से आप पहाड़ो की पारिस्थितिकी को जान पाएंगे कि विकास के नाम पर जो पहाड़ो में लगातार विस्फोट और पहाड़ों को काटा जा रहा है इसके बारे में पर्यावरणविदों ने हर तरह से सरकारों को आगाह करने का प्रयास किया है लेकिन सरकार जैसे अपने अलग धुन में चली जा रही है और ऐसा अंग्रेजों के जमाने से ही चला आ रहा है कि वे ना तो पर्यावरणविदों की सुनते है और ना ही स्थानीय निवासियों की सुनते है जो अपने जंगलों पहाड़ों को बचाने के लिये कभी कुली बेगार आंदोलन तो कभी तिलाड़ी विद्रोह तो कभी सल्ट और सालम की क्रांति तो कभी हिमालय बचाओ आंदोलन तो कभी चिपको आंदोलन तो कभी झपटों छीनों आंदोलन तो कभी टिहरी बाँध के खिलाफ तो कभी केदार घाटी बचाओ आंदोलन के नाम पर आम जनजीवन इसके खिलाफ खड़ी भी होती है और कभी कभी सरकारों को इनके आगे झुकना पड़ा है। लेकिन हम जैसे मैदानी इलाकों के लोगो के लिए पहाड़ सिर्फ खूबसूरती का नज़ारा देखने भर के लिए होता है हमें इन आंदोलनों से कोई मतलब नही होता है लेकिन शायद हम भूल जाते है की पूरे भारत का पर्यावरण संतुलन हिमालय पर टिका हुआ है। हम मैदानी इलाके वाले यह तक समझने में नाकाम है कि हमारे मैदानी इलाकों में बहने वाली ज्यादातर नदियां इन्हीं हिमालयी क्षेत्रो से निकलती है। इसके बावजूद हम इन नदियों की ना तो रक्षा कर पा रहे है और ना ही इन संतुलन बनाये रखने का कोई प्रयास

मैं विकास का विरोधी नही लेकिन पहाड़ों के अस्तित्व को खतरे में डालकर तो कतई नही। और कुछ महीने पहले ही जोशीमठ में जो लगातार पहाड़ दरकने की घटना हुई और अब भी हो रही है शायद सरकार इससे भी सबक नही ले पा रही है कि पहाड़ का विकास पहाड़ों के अस्तित्व को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है। जोशीमठ पर लिखे मेरे लेख को आप यहाँ https://shashidharkumar.blogspot.com/2023/01/Joshimath-Natural-or-human-error.html पढ़ सकते है। लेखक या रिपोर्टर के तौर पर हृदयेश जोशी जी की तारीफ कर सकता हूँ और इस किताब के माध्यम से पहाड़ियों की लड़ाई को उन्होंने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई बताई है तो इसी जल, जंगल और जमीन की लड़ाई तो आदिवासी भी लड़ रहे है तो उन्हें क्यों नक्सली कहा जा रहा है, क्या इसीलिए की पहाड़ियों की लड़ाई हिंसक नही रही और नक्सलियों की लड़ाई हिंसक रही है। यह मेरा सिर्फ एक सवाल है और मुझे जानने की इच्छा है। हो सकता है मैं गलत हूँ शायद पूरे परिदृश्य को सही से नही समझ पाया हूँ।

लेकिन इस किताब के बारे में अवश्य कह सकता हूँ कि पढ़ने लायक है और आप पहाड़ों में घूमने के शौकीन है तो आपको यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए क्योंकि यह किताब आपको पहाड़ों के प्रति जिम्मेदार महसूस कराती है। 
जिम्मेदार बनिये और सशक्त बनिये।
धन्यवाद।
✍️©️ शशि धर कुमार

Sunday 16 July 2023

यमुना बाढ़ दिल्ली २०२३

दिल्ली में मानसून के साथ इस बार बाढ़ की 
घटना ने पूरे भारत का दिल दहला दिया तो सोचिये यमुना किनारे रहने वालों के मन में क्या चल रहा होगा। यमुना में बाढ़ की कहानी कोई नई नही है लेकिन हाल के वर्षों तक एक पीढ़ी ने इस तरह का बाढ़ नही देखा था कहा जा रहा है इससे पहले १९७८ में ऐसी ही बाढ़ आई थी लेकिन इतना पानी तब भी नही आया था। इस बाढ़ ने दिल्ली जो देश की राजधानी है उसका नुकसान बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। इस बाढ़ के कारण लोगों को बहुत परेशानी और संकट का सामना करना पड़ रहा है।


बाढ़ के मौसम के दौरान यमुना नदी में पानी में वृद्धि  अमूमन होती ही  है और हर साल बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो ही जाती है। इस बार मानसून के आगमन के साथ ही भारी वर्षा के कारण यमुना का जलस्तर बढ़ गया और नदी जो पहले सालों साल पहाड़ी राज्यों से गाद लाकर मैदानी इलाकों में छोड़ती रही है जिसकी वजह से इसकी पानी वहन करने की क्षमता में साल दर साल काफी गिरावट आई है। इससे दिल्ली में यमुना का पानी बहकर यमुना के आस पास के कई इलाकों में घुस गया है। बाढ़ के कारण घरों, गलियों और सड़कों में भी बहुत सारा कीचड़ गाद के रूप में हर तरफ फैलेगा। लोगों को इस स्थिति से निपटना मुश्किल हो जाएगा और उन्हें अपने घरों से बाहर निकलने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

यमुना के इस ऐतिहासिक बाढ़ से प्राकृतिक नुकसान बहुत अधिक हुआ है। प्राकृतिक जीव जंतुओं के साथ मानव और पालतू पशु पक्षियों पर भी इस पर्यावरणीय आपदा का असर पड़ा है। इस स्थिति में अपने घर और भोजन के लिए आम आदमी को जद्दोजहद करना पड़ रहा है।

इस बाढ़ ने दिल्ली में यमुना के अपने प्रवाह क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण की स्थिति को काफी हद तक उजागर किया है। यमुना के इस बाढ़ से सिर्फ यमुना या इसके आस पास के इलाकों में ही नही इससे बाहर हुए दशकों पहले आधिकारिक अतिक्रमण को भी उजागर किया है और प्रकृति के रूप में यमुना ने इस बाढ़ से यह बताने की कोशिश भी की है। इसी का नतीजा है सिविल लाइन्स हो या दिल्ली सचिवालय हो या ITO वाला क्षेत्र हो या राजघाट वाला क्षेत्र हर क्षेत्र में लगभग ३-४ फूट पानी का बहना इसी अतिक्रमण का नतीजा है। इसी अतिक्रमण के चलते सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंच रहा है और इस क्षति का अंदाजा शायद बाढ़ के नीचे होने पर ही पता चल पाएगा। सरकारी भवनों, औद्योगिक क्षेत्रों, खेती वाली भूमि और बांधों के नजदीकी क्षेत्रों में बाढ़ का नुकसान को भरना बहुत ही मुश्किल होगा।

इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा शायद कोई नही क्योंकि दिल्ली में राजनैतिक रस्सा कस्सी के बीच आम जनता को इस बाढ़ से दिल्ली देश की राजधानी होते हुए जितना जल्दी राहत मिलना चाहिए उतना जल्दी मिल नही पाया। आपस में अलग अलग प्रशासनिक विभागों की कमजोरियां भी खुल कर नज़र आई और लोग एक दूसरे को कोसते नज़र आ रहे है। हर बार जब बाढ़ आती है तो नागरिक निकाय पर प्रश्नचिन्ह उठते है इसबार भी उठा लेकिन बाढ़ की वजह हथनी कुंड बैराज पर फोकस कर दिया गया। राजनीति के काम करने की नीयत से राजनीति का स्तर पता चलता है लेकिन यहाँ सभी राजनैतिक पार्टियों ने एक दूसरे पर दोषारोपण करने का प्रयास किया और जो सबसे अहम सवाल था कि आम आदमी को फौरी तौर पर कैसे राहत पहुंचाया जाए वह कहीं ना कही पीछे नजर आया। दिल्ली का सीवेज सिस्टम भी कहा जा रहा है कि वह काफी पुराना है और जिस अनुपात में राजधानी की जनसंख्या में वृद्धि हुई है उस के अनुसार सीवेज सिस्टम का अपग्रेडेशन नही हो पाया यह भी एक वजह है जब हर बार यमुना में बाढ़ आती है तो मयूर विहार जैसे निचले इलाके से यमुना में गिरने वाला गंदे नाले का पानी रिवर्स में जाने लगता है और मयूर विहार और आस पास के इलाके में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दिल्ली में जब भी बाढ़ आती है और पानी से सड़कों पर जाम की स्थिति उत्पन्न होती है तो हर बार नागरिक निकाय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने नालों की सफाई समय पर नही की जिसकी वजह से आज हमें यह दिन देखना पड़ रहा है। तो मेरे कुछ सवाल है जो प्रशासन में बैठे लोगों से पूछे जाने चाहिए:
१) नागरिक निकाय हर साल बारिश से पहले नालों की सफाई क्यों नही करती है?
२) नागरिक निकाय सीवेज सिस्टम को अपग्रेड क्यों नही कर पा रही है?
३) सरकार का शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली में रहते इसके बारे में क्यों नही सोच पा रही है?
४) दिल्ली में बहती यमुना के 25 किमी क्षेत्र में इतने बाँध का क्या औचित्य है, क्या इसके रख रखाव के बारे में सोचा नही जाना चाहिए था?
५) बाँध के फाटक नही खुलने की वजह के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
६) पूरे भारत मे नदियों के किनारे हो रहे अतिक्रमण को लेकर सरकार की क्या नीति है?
७) पूरे भारत मे नदियों में गाद जमा होने से नदियों के पानी वहन की हो रही क्षमता को लेकर सरकार क्या सोचती है? क्यों नही आज तक ऐसी कोई योजना के बारे में विचार किया गया जबकि हर साल अरबों रुपैये की संपत्ति का नुकसान बिहार के लोगों को कोशी दे जाती है?
८) नदियों की वास्तविक बहाव क्षेत्र को संरक्षित करने की किसी भी प्रकार की योजना पर काम क्यों नही हो रहा है?
९) क्यों नही नदियों के वास्तविक बहाव क्षेत्र के आस पास के कुछ हिस्सों को पेड़ों से आच्छादित करने की योजना बने ताकि इससे नदी के साथ कटाव होने की समस्या को कम किया जा सके?
१०) क्यों नही नदियों के लिए पूरे भारत मे एक समान नीति निर्धारण किये जाय ताकि नदियों के संरक्षण को लेकर एक समान नीति पर काम हो?
ऐसे कई और मुद्दे हो सकते है नदियों को लेकर जिसकी चर्चा करने पर ही समाधान की तरफ बढ़ा जा सकता है साथ में राजनैतिक दृढ़ इच्छाशक्ति की भी जरूरत है।

इस घटना के समय सरकारी अधिकारियों को तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता होती है और जनता को बचाव और उपयुक्त सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए संबंधित एजेंसियों के साथ सहयोग करना चाहिए। लोगों को जागरूक करने और उन्हें बाढ़ के खतरों से बचाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए। इस प्रकार से एकजुट होकर हम बाढ़ और मौसम की आपदा पर विजय प्राप्त कर सकते है और अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और वर्धन कर सकते हैं।
✍️©शशि धर कुमार

Featured Post

Katihar - कटिहार

कटिहार अक्टूबर महीना म अस्तित्व म पचास साल पहले अइले छेलै, मतलब दु अक्टूबर के पचासवाँ स्थापना दिवस मनैलके। कटिहार र साहित्य, संस्कृति आरू इत...