Tuesday 3 October 2017

Remove decimal value product price Magento (Technical)

Remove decimal value product price Magento

Price of product is : 135.00USD => 135USD
How to remove decimal value from product price in magento?
In order to remove decimal digits in price of product magento, we need to custom some code :Go to this file : app/code/core/Mage/Directory/Model/Currency.php
Open app/code/core/Mage/Directory/Model/Currency.php Find the following code on line no 195 :-
Find this code:
public function format($price, $options=array(), $includeContainer = true, $addBrackets = false)
{
return $this->formatPrecision($price, 2, $options, $includeContainer, $addBrackets);
}
and replaced it with this:
public function format($price, $options=array(), $includeContainer = true, $addBrackets = false)
{
return $this->formatPrecision($price, 0, $options, $includeContainer, $addBrackets);
}
Due to the nature of free and open-source software and the ubiquity of its components, each and every component of the Magento stack is very well tested regarding performance and security and there is an abundance of experienced contractors to do the tailoring respectively the system administration. There is also a constant development going on.

Copied URLhttps://www.shashidharkumar.com/remove-decimal-value-product-price-magento/

Sunday 3 September 2017

Redirect from non-www to www in CakePHP

How to redirect from non-www to www in CakePHP?
Put the following code into .htaccess in main directory
 mod_rewrite.c>
  RewriteCond %{HTTPS} !=on
  RewriteCond %{HTTP_HOST} !^www\..+$ [NC]
  RewriteCond %{HTTP_HOST} !=localhost [NC]
  RewriteCond %{HTTP_HOST} !=127.0.0.1
  RewriteRule ^ http://www.%{HTTP_HOST}%{REQUEST_URI} [R=301,L]


 mod_rewrite.c>
   RewriteEngine on
   RewriteRule    ^$ app/webroot/    [L]
   RewriteRule    (.*) app/webroot/$1 [L]
Copied URL: https://www.shashidharkumar.com/redirect-non-www-www-cakephp/

Wednesday 16 August 2017

वास्तविक स्वतंत्रता या क्षद्म आज़ादी

स्वतंत्रता दिवस की सभी को शुभकामना!

आज की दिन 1947 की मध्य रात्रि को जब भारत आज़ाद हुआ था तो कितने बलिदानियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए हुए यज्ञ में अपनी अपनी आहुति दी थी इसका अंदाज़ा हमे नही हो सकता है क्योंकि हम स्वतंत्र भारत मे पैदा हुए बांस की कलम से लिखना शुरू कर आज पार्कर तक पहुंच गए। गिल्ली डंडा खेलते हुए आज कंप्यूटर पर हाई फाई गेम खेल लेते है। हमे आज़ादी और गुलामी में फर्क कहाँ पता। क्योंकि हम आजाद भारत में पैदा हुए ना। तो क्या आज के दिन का हमारे लिए कोई मायने नही रखता है। आज़ादी के 70 सालो बाद भी भले देश ने चांद की उचाईयों को आत्मसात किया हो। भले ही देश ने परमाणु सम्पन्न देश होने का गौरव हासिल किया हो। भले ही देश आज पूरे दुनिया मे कंप्यूटर के बेहतरीन दिमागों को एक्सपोर्ट करता हो। भले ही हमे संविधान ने बोलने की आज़ादी दी हुई हो लेकिन उस बोलने की आज़ादी में शब्दों को सूंघने का प्रयास बारंबार नही होता है, और लेकिन क्या हम उस बोलने की आज़ादी का दुरुपयोग करते हुए नज़र नही आते है।

भले ही देश हर पल आगे बढ़ने का दंभ भरता हो। लेकिन वाकई में क्या हमारा देश आजाद है या हम आजाद है?

वैसे तो भारत आज़ाद है लेकिन हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जब तक इस देश का कोई भी बच्चा फुटपाथ पर सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी बच्चा ट्रैफिक पर भीख मांगता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक एक भी बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी नागरिक भूखा सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक एक भी व्यक्ति खुले में सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित रह जाता है।

इसका हल क्या है क्या उपरोक्त सभी चीजों का हल निकालने की ज़िम्मेदारी से छुटकारा दिलाना सरकार का काम है शायद नही। तो क्या हम व्यक्तिगत तौर पर हम किसी भी प्रकार अपने सरकार या समाज की मदद कर सकते है। उसके लिए हमें अपनी अपनी व्यक्तिगत/सामाजिक ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ेगा। तभी हम अपने देश को विकासशील से विकसित की तरफ ले जाने में सहायक सिद्ध हो सकते है।

Friday 14 July 2017

पढ़े लिखे लोगो का समाजवाद या ढोंग

मुझे आश्चर्य होता है जब प्रतिष्टित कहे जाने जैसे संस्थानों में पढ़े लिखे लोग बड़ी ही सावधानी से गरीब गुरबों की आवाज उठाने के नाम पर लालू यादव जैसे नेता का महिमामंडन करते है। जी हाँ ये वही लोग है जब लालू प्रसाद का बिहार की राजनीति में उदय हुआ तो इनलोगो ने कहा देखो इस व्यक्ति को कोई जानता तक नही था और आज मुख्यमंत्री है। लेकिन कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बिहार सदन के नेता चुने गए और मुख्यमंत्री बनाये गए। अगर उस समय किसी समुदाय ने इसका विरोध किया तो यही समुदाय था कहते नही थकते थे कि इस आदमी को बोलने तक नही आता है और यह बिहार की मुख्यमंत्री बना बैठा है। इन सबके बावजूद लालू प्रसाद ने अपने अस्तितव को बचाने के लिए पिछड़े वर्ग की राजनीति शुरू की। याद रखिये यह वही दौर था जब बी पी मंडल का मंडल आयोग आया जिसका पूरे देश मे विरोध किया गया। और लालू प्रसाद के उस समय शुरू की गई पिछडो की राजनीति ने जो बिहार में पिछड़ो को आवाज दी और बिहार में एक नई राजनीतिक धुर्वीकरण का प्रादुर्भाव हुआ जिसने बिहार के साथ साथ देश के दो बड़े राज्यो में राजनीति की दिशा ही बदल दी। और यही से शुरू हुआ कहावतों का दौर जिसमे यह कहा जाने लगा कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तबतक रहेगा बिहार में लालू। और यह कतई नही भूलना चाहिए कि बिहार में लगातार दो बड़ी विजय क्यों मिली क्योंकि बिहार के पिछड़े जिनके पास आवाज तक नही थी उनको लालू प्रसाद ने आवाज दी और राजनीति में उनके लिए दरवाजे खोल दिये। ध्यान रहे यही से शुरू हुआ लालू प्रसाद का नैतिक पतन जहाँ उन्होंने पिछड़ो की राजनीति के अलावा यादवों और मुस्लिमों की राजनीति शुरू की और दूसरी पिछड़ी जातियाँ जो उनको मसीहा समझ रहे थे, अपने आप को ठगा हुआ समझने लगे थे। यही से निरंकुशता शासन की तरफ से इस कदर बढ़ गयी जहाँ सिर्फ जाती देखकर सारे काम होने लग गए। सड़को का खस्ताहाल शुरू हो गया। शिक्षा में नैतिक पतन शुरू हुआ क्योंकि शिक्षकों को समय पर वेतन नही मिलने से वे ठगा सा महसूस करने लग गए थे। सबसे बुरा दौर तब शुरू हुआ जब मौत और अपहरण का तथाकथित उद्योग शुरू हुआ जिसने बिहार को सबसे ज्यादा बदनाम किया। और बाहर रहने वाले बिहारियों को बिहारी गाली लगना शुरू हुआ। सबसे बड़ा टैग तो पटना उच्च न्यायालय ने जंगल राज कह कर कोई कसर नही छोड़ी। पढ़े लिखे लोगो का पलायन जो तब शुरू हुआ जो बदस्तर आज भी जारी है। और उनलोगों ने तब यह कहना शुरू कर दिया था कि अब बिहार रहने लायक नही रहा और वे जब तब अपने आप को बिहारी कहने से अलग रखने लगे। यही नीतीश कुमार का प्रादुर्भाव हुआ, और जो दूसरी पिछड़ी जातियाँ लालू प्रसाद से अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे, नीतीश कुमार जी मे नई आशा की किरण की झलक दिखाई दी। जिसका फल यह हुआ कि नीतीश कुमार जी को नई आशा के साथ प्रदेश की बागडोर दी और पहले दो बार चुनाव जीतकर लोगो के भरोसे को कायम रखकर जिस तरह का जिन्न लगा होता था बिहारियों के सिर पर नीतीश जी ने उसको बहुत हद तक धोने का काम किया।

वाकई में लालू प्रसाद जी ने गरीब गुरबों को आवाज दी लेकिन उसकी कीमत चुकानी पड़ी बिहार को। उसकी भरपाई करने आगे आये नीतीश जी मे एक साफ स्वच्छ और सुलझे हुए नेता ने बिहार को कुछ कदम आगे ले जाने में सहायक सिद्ध हुए। लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते हुए महागठबंधन ने बिहार की जनता के मन मे एक बार फिर संशय पैदा किया जिसकी वजह से नीतीश जी को पिछले चुनाव से कम सीट मिली।

जो बचपन से बाहर रहकर पढ़ लिख लिए औऱ बड़े संस्थानों में पढ़ने के बाद उनकी एक अलग विचारधारा बन जाती है जिसको पूरे संसार मे नकारा जा चुका है। और उन्हें जब अपनी जमीन खिसकती नजर आती है तो कभी कॉग्रेस के साथ कभी क्षेत्रीय पार्टियों से मिलकर अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए तथा इन पढ़े लिखे लोगो का सहारा लेकर बड़े बड़े लेख लिखकर लोगो को गुमराह किया जाता है। ये जो साल में एक आध बार गाँव चले जाते है तफरीह के लिए उन्हें क्या पता जो गरीब लालू प्रसाद के शासन के समय बिहार में रहने को मजबूर थे, उन्होंने देखी है शासन की भयावहता। अगर किन्ही को नही मालूम तो वे कृपया मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया में रहने वाले लोगो से पता करे कि कैसी नारकीय जीवन व्यतीत की है। इन जिले के लोगो से व्यक्तिगत लगाव रहा है इसीलिए बेहतर तरीके से जानता हूँ। तो अगर आपको बुद्धिजीवी होने के नाते लगता है कि लालू प्रसाद जी, नीतीश कुमार जी से बड़े नेता है तो हाँ वे है क्योंकि वाकई में उनका जनाधार नही घटा लेकिन उनकी साख को जो धक्का पहुँचा है उसकी भरपाई होगी या नही आने वाला चुनाव बताएगा। मैं व्यक्तिगत तौर पर किसी का समर्थक नही रहा हूँ लेकिन नीतीश जी ने कुछ ऐसे फैसले लिए, जब बिहारी अपने अस्तित्व की लड़ाई रहे रहे थे तब एक चिराग दिखाई दिया था अंधेरे में। अगर आपको बुद्धिजीवी होने के नाते यह पता नही चारा घोटाला जो उस समय की सबसे बड़ी मानी जा रही थी। उनको भी आप हो सकता है भूल जाये तो क्या अगर कोई यह सवाल करता है कि 32 साल पहले सरकारी निवास में रहने वाला नेता हजारों करोड़ की संपत्ति का मालिक कहाँ से बन गया। तो आप इसको भी राजनैतिक साज़िश कहने में लगे हुए है। तो मुझे तो आपकी पढ़ाई पर शक होता है जो एक भ्रस्टाचारी या एक साफ सुथरी छवि के नेता में अंतर समझ नही पाता है। सनद रहे लालू प्रसाद जी को उच्चतम न्यायालय ने कोई भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया हुआ है। नीतीश कुमार जी की सहयोगियों पर भले ही कई भ्रस्टाचार के आरोप लगे हो लेकिन उनपर व्यक्तिगत तौर पर कोई भ्रस्टाचार का आरोप नही।
बेहतर है थोड़ा पढ़े लिखे होने का परिचय दे ताकि पढ़े लिखे लोग आपको सम्मान की नजर से देखे। आजकल सभी पढ़ लिख रहे है सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे है उन्हें आता है आप जैसे लोगो की प्रोफाइल चेक करना और आपके बारे में अपने मस्तिष्क में आपका चेहरा बना लेते है कि कही आप कोई छुपा हुआ एजेंडा तो थोप नही रहे है। अब वो जमाना नही रहा कि आप जो कहे अक्षरशः सही मान लेंगे वे उनकी पड़ताल करना जानते है कि कब आप ऐसे भ्रस्टाचारियों के पैर छूकर प्रणाम करते है और कब सेना को रेप करने वाला बताते है। और 40 साल की उम्र में ऐसे संस्थानों में मुफ्त की पढ़ाई करने वाले रोजगार को लेकर अचानक से सरकार के खिलाफ बोलने लग जाते है तो सवाल यह भी उठेंगे की जब लालू प्रसाद के समय बिहार में सभी तरह का ह्रास हो रहा था तो आपके मुँह से एक शब्द नही निकलता था। तो जनाब यह आज का दौर है जहाँ सबकुछ एक क्लिक पर उपलब्ध है तो थोड़ा संभल के रहिये, संभल के बोलिये, संभल के लिखिए।

जय भारत।
जय प्रजातंत्र।

Tuesday 25 April 2017

​सुकमा में हुए नक्सली घटना में शहीद हुए हमारे सैनिको को श्रद्धांजलि।

सुकमा में हुए नक्सली घटना में शहीद हुए हमारे सैनिको को श्रद्धांजलि। 

ऐसा लगता यह सरकार सिर्फ कड़ी निंदा के लिए जानी जाएगी और वह किसी भी तरह की निंदा की बात की करेगी जैसे कठोर निंदा, घोर निंदा या कड़ी निंदा। पहले भी ऐसा होता रहा है। पहले की सरकारें भी ऐसी ही कड़ी निंदा करती रही है। अगर सरकार चाहे तो कुछ भी हो सकता है, क्योंकि नक्सली बहुल इलाकों में केंद्र और राज्य सरकारें अगर तालमेल बिठाकर चले तो ऐसी घटनाएं कभी हो ही नहीं। लेकिन ऐसा लगता है राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियाँ है जिसके चलते वे भी कोई कड़ा कदम नही उठाते है और किसी को ठेस ना पहुंचे उसके बाद यह कहना चाहूँगा की वे ऐसा चाहते है कि होते रहे और उनकी दुकानें चलती रहे। सरकारें आती जाती है लेकिन ऐसा लगता है की सरकारी कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिससे वहाँ पर बैठने वालों का चरित्र वैसा ही हो जाता है जैसा एक निवर्तमान मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि इस कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिसपर बैठते ही लोग एक ही तरीके से व्यवहार करने लग जाते है।

सही कहा था किसी ने, सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन यह मुल्क मेरे बाद भी रहेगा और मेरे कई पुस्तों के बाद भी रहना चाहिए। आइए सब मिलकर आवाज उठाएं की अब सरकारों को आम जनता की भावनाओं से खिलवाड़ ना करके उनकी भावनाओं के साथ न्याय करना चाहिए। हम गूंगी बहरी सरकार को जगा सकते है। हमे अपनी आवाज उन तक पहुंचानी है ताकि सरकारी तंत्र में बैठे लोग यह समझे कि हमारी भावनाएं क्या है और हम क्या चाहते है। हम एक एक कर मारे जा रहे है और हम इंतज़ार कर रहे ही कि कोई ऐसी घटना हो जिससे सारा संसार हमारी काबिलियत पर उंगली उठाने लग जाये। 

उठो जागो और बता दो हम क्या चाहते है और ऐसे हैवानियत के पुजारियों को जो खाद पानी शहरों में बैठकर दे रहे है उन्हें भी हमारी आवाज सुननी होगी कि वे सिर्फ एकतरफ़ा बाते नही कर सकते है। वे सिर्फ यहां पर एसी कमरों में बैठकर गरीबों के हितों की बात ना करे। हमने गरीबी देखी है और अगर वाकई में देखनी है तो चले हमारे साथ हम दिखाएंगे की गरीबी क्या होती है। फिर देखते है किस तरह के गरीबों के हितों की बात करते है। ब्रांडेड कुर्ता, जीन्स और चप्पलें पहनने वाले गरीबो के हितों की बात करते है। खोखली मानसिकता के पुजारी ये सिर्फ हल्ला कर सकते है और कुछ नही।

धन्यवाद। 

जयहिन्द, जय भारत।

नोट: यह पोस्ट राजनीति से प्रेरित नही इसीलिए अगर किन्ही को राजनीतिक कमेंट करना है तो वे ना करे।

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