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Friday, 28 February 2020

चिड़चिड़ापन-एक अभिशाप


मानव स्वभाव के दुर्गुणों में चिड़चिड़ापन आन्तरिक मन की दुर्बलता का सूचक है। सहिष्णुता के अभाव में मनुष्य बात बात में चिढ़ने लगता है, नाक भौं सिकोड़ता है, प्रायः गाली गलौज देता है। मानसिक दुर्बलता के कारण वह समझता है कि दूसरे उसे जान बूझकर परेशान करना चाहते हैं, उसके दुर्गुणों को देखते है, उनका मजाक उड़ाते हैं। किसी पुरानी कटु अनुभूति के फलस्वरूप वह अत्यधिक संवेदनशील हो उठता है और उसकी भावना ग्रन्थियाँ उसकी गाली गलोज या बेढंगे व्यापारों में प्रकट होती हैं।

चिड़चिड़ेपन के रोगी में चिंता तथा शक शुवे की आदत प्रधान है। कभी-2 शारीरिक कमजोरी के कारण, कब्ज, परिश्रम से थकान, सिरदर्द, नपुँसकता के कारण आदमी तिनक उठता है। अपनी कठिनाइयों तथा समस्याओं को उद्दीप्त होकर देखते देखते उसे गहरी निराशा हो जाती है। चिड़चिड़ापन एक पेचीदा मानसिक रोग है। अतः प्रारम्भ से ही इसके विषय में हमें सावधान रहना चाहिए।

जिस व्यक्ति में चिड़चिड़ेपन की आदत है, वह सदा दूसरों के दोष ढूंढ़ता रहता है। वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की दृष्टि में तो बुरा होता ही है, स्वयं भी एक अव्यक्त मानसिक उद्वेग का शिकार रहता है। उसके मन में एक प्रकार का संघर्ष चला करता है। वह भ्रमित कल्पनाओं का शिकार रहता है। उसके संशय ज्ञान तन्तुओं पर तनाव डालते हैं। भ्रम बढ़ता रहता है और वह मन ही मन ईर्ष्या की अग्नि में दग्ध होता रहता है। वह क्रोधित, भ्रान्त, दुःखी सा नजर आता है। तनिक सी बात में उसकी उद्विग्नता का पारावार नहीं रहता। गुप्त मन पर प्रारंभ में जैसे संस्कार जम जाते हैं, उनके फलस्वरूप ऐसा होता है। यह आदत से पड़ने वाला एक संस्कार है।

रोग से मुक्ति के साधन
मन में दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि चिड़चिड़ापन बुरा है। हम उसे अपने स्वभाव में से निकालना चाहते हैं। हम दूसरों के बोलने, हंसने, मजाक, या कामों से नहीं चिढ़ेंगे। हम उनकी परवा न करेंगे। अपने स्वभाव में मृदुता लायेंगे, सरल बनेंगे, सहिष्णु बनेंगे।

मनुष्य के मन में सत तथा असत् दोनों प्रकार के विचारों का क्रम चला करता है। हमें अपने दुर्बल विचारों के प्रति बड़ा सतर्क रहना चाहिए। जब कोई चिंता, या निराशाजनक बात मन में आवे, आप उसके प्रतिकूल भावना का उद्रेक कीजिये। चिड़चिड़ेपन के दमन के लिए मृदुता, प्रसन्नता, सहानुभूति की भावना अत्यन्त लाभदायक है। प्रबलता से मन में शुभ संकल्प जाग्रत कीजिए।

जब कभी आपको क्रोध आवे तो आप मन ही मन कहिए, “दूसरों से गलती हो ही जाती है। मुझे दूसरों की गलतियों पर क्रुद्ध नहीं होना चाहिए। यदि दूसरे गलती करते हैं, तो उसका यह मतलब नहीं कि मैं और भी बड़ी गलती कर उसका प्रतिशोध लूँ। मैं शुभ संकल्प वाला साधक हूँ। शुभ संकल्प के फलित होने के लिए उद्विग्न मन होना उचित नहीं। हम सहिष्णु बनेंगे। दूसरे स्वयं अपनी गलती का अनुभव करेंगे। हम धैर्य धारण करें।”

जितना ही आप विचारों को ऊपर लिखित भावनाओं पर एकाग्र करेंगे, उतना ही बल आपको मिलेगा। पुनः पुनः दृढ़ता से उन में रमण करने से स्वभाव बदल जायगा, प्रकृति मधुर बन जायगी। आवेश को रोकने से मन को बल मिलेगा।

अपने दैनिक व्यवहार में प्रेमी, सहानुभूतिपूर्ण, सौम्य और प्रसन्नमुद्रा से काम लीजिये। इस मधुर स्वभाव का प्रभाव आपके कुटुम्ब तथा समाज पर बहुत अच्छा पड़ेगा। सुख−शांति से जीवन व्यतीत करने के लिए मिष्ट भाषी और मधुर स्वभाव सर्वोत्तम तत्व हैं। मधुरता का प्रवाह तुम्हारे इर्द गिर्द वातावरण में फैल जायगा। चिड़चिड़ा होना आपकी एक बड़ी कमजोरी है, मधुरता से, सरसता और प्रसन्नता से उसे ठीक कर लीजिये। ऐसे मधुर वचन बोलिये कि छोटे बच्चे आपकी ओर आकर्षित होकर चले आयें, पत्नी प्रसन्न हो उठे, नौकर भी प्रसन्नता से आपकी आज्ञा बजा लायें। संकल्प की दृढ़ता, आवेश को रोकने तथा मधुर आदर्श सामने रखने से निश्चय ही आप चिड़चिड़ेपन से छुटकारा पा सकेंगे।

Thursday, 30 January 2020

खुदा की राह पर


दुनिया में दो तरह के मनुष्य होते आये हैं। एक वे जो अपनी राह पर संसार में-चलते हैं और दूसरे वे जो प्रेम पथ के पथिक बन प्रभु की राह में चलते हैं। अपनी राह में चलने वाले ऐश व आराम तलब होते हैं और उनका ध्येय साँसारिक आराम की खोज ही में अपने अमूल्य जीवन को बिता देना है। पर जो खुदा की राह पर चलते हैं उन्हें पग पग पर विघ्नों का सामना करना पड़ता है। लोग इन्हें निखट्ट और अकर्मण्य कहा करते हैं पर उस पथिक को इन बातों को अनसुनी कर आगे बढ़ना पड़ता है। अगर वे लोगों की परवाह करने लगे वे न घर के रहे और न बाहर के।

हाँ तो खुदा की राह में चलने वाले प्रेम पथ के पथिक को धैर्यपूर्वक जो भी विपत्तियाँ सामने आवें उनको सहन करना पड़ेगा। अगर बीच में हिमालय भी आ पड़े तो उसको भी हंसते 2 पार करना पड़ेगा। गरज कि उसे किसी हालत में पीछे पैर नहीं देना होगा। सम्भव है आगे बढ़ने का रास्ता दिखाई न दे पर इससे खौफ खाने की कोई बात नहीं। प्रेम के मार्ग में तो काँटे मिलते ही हैं। इश्क के रास्ते में तो रोड़े अटकाये जाते ही हैं पर प्रेमी इन अड़चनों से नहीं घबड़ाता। आशिक इन तकलीफों में विचलित नहीं होता। भला जिसने अपने सर को ऊखल के हवाले कर दिया है वह मूसल की चोट से कब तक डरता रहेगा।

खुदा की राह कठिन तो अवश्य है पर दुःसाध्य नहीं है। अगर दृढ़ संकल्प से इस रास्ते में कदम बढ़ाया जाये तो एक न एक दिन प्रीतम के दरबार में पहुँच ही जाता है। माशूक का दीदार हो ही जाता है। प्रीतम के प्रेम का पुजारी अपने प्रीतम से कब तक अलग रखा जा सकता है? भला अग्नि की गरमी को आग से कब तक अलग किया जा सकता है। चन्द्रमा से चाँदनी की चोरी और सूर्य से धूप की चोरी के कितने दिन तक सम्भव है? जिसके हृदय में प्रीतम के मिलने की आग धधक रही है और उससे मिलने के लिये उसकी राह में चल पड़ा है उसको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। कोई भी शक्ति उसको उस पथ से गुमराह नहीं कर सकती। वह अपने विचार में अटल है। संकल्प कच्चा धागा नहीं। वह इस बात को जानता है- कि अगर वह एक डग आगे बढ़ेगा तो परमात्मा दो डग उसको अपने प्रभू के महल तक पहुँचा देगा। उसे मालूम है कि इसी रास्ते से बड़े लोग गये हैं। और उसे भी मार्ग का अनुसरण करना चाहिये।

ऐसे व्यक्तियों के लिये समुद्र गो-खुर के समान हो जाता है, अग्नि अपनी दाहक शक्ति छोड़ देती है, हिमालय राह दे देता है और शत्रु भी मित्र सा बर्ताव करने लगता है। उसके लिये सारा संसार ही कुटुम्ब हो जाता है। वह जहाँ निकल जाता है वहाँ शीतल, मन्द सुगन्ध हवा चलने लगती है। उसकी जहाँ 2 पदधूलि पहुँचती है वह स्थान तीर्थ बन जाता है। पशु पक्षी भय त्याग उसके इर्द गिर्द चक्कर काटने लगते हैं और उसके बदन से अपनी खुजलाहट मिटाते हैं

कोई विरला ही माई का लाल इस रास्ते में चलता है और चल कर भी वापस नहीं लौटता। होता तो यह है कि कुछ अभागे इस रास्ते चलने को राजी भी होते हैं तो जहाँ दिक्कतों को सामना करना पड़ा बस फौरन वापस चले आते हैं। थोड़ी दूर जरूर तरह-2 के विघ्न बाधायें हैं पर आगे चलकर तो रास्ता बिलकुल सहल और राजकीय पथ के समान है। भला कहीं खुदा की राह में भी दुःख हो सकता है।

Thursday, 13 June 2019

Multi Level Marketing

Is Multi Level Marketing (MLM) for You?

Who doesn't care for the idea of having a couple of additional bucks available? The majority of us attempt to consider elective techniques other than our employments and calling to gain some additional cash so as to have the option to understand our since quite a while ago esteemed objectives and wishes. This happens to the vast majority of us. While some who have an eye for numbers will in general float towards financial exchanges, many consider taking up a moment occupation and work increasingly number of hours. At that point there are the individuals who take up MLM movement and focus on structure a system dependent on their family, companions, contacts, partners and others.

Despite the fact that there are a few alternatives that one can consider as extra or substitute work, it is imperative to give every one of the business thoughts an intensive idea to check whether it suits you in all regards and in the event that you will most likely be fruitful in the equivalent. After all everyone won't be fit to a wide range of business or deals and bad habit e-versa.

Almost certainly, you will be welcome to a gathering or one of your companions or colleagues will drop in with an arrangement to meet you and discussion about the MLM opportunity.

A glance at the promoting plan, selling ideas and the salary creating plan will leave you overpowered with such a large number of inquiries. You will normally think about whether MLM truly works and if there is such an extensive amount cash to be made as appeared in the arrangement. You will ponder about the item and develop such a large number of inquiries in your psyche. You will likewise think about whether you can truly make this work and last yet not the least you will ponder with respect to what your companions and partners will consider you. Now you are probably going to be under slight strain to join as a merchant as your support would catch up with you. You are presently required to take a choice. Be that as it may, at that point how would you approach deciding regarding whether you need to begin with MLM or not?

On the off chance that the above sounds commonplace, there is no compelling reason to freeze. Continuously recall that the chance to join the MLM system will dependably be accessible and there is no requirement for you to seize it before being readied and prepared for it. In the event that you do happen to take it up and find that you aren't prepared to take it ahead, no issues. You won't lose anything in light of the fact that the business opportunity doesn't cost you any venture.

The main purpose of thought of joining a MLM system must be YOU. You should plunk down and thoroughly consider the whole proposition to perceive how you are most appropriate to take this up. Does it oblige your long haul targets that you have for yourself? Do you have that sort of time and vitality to concentrate on enlisting and building distributer arranges reliably over some stretch of time? Is it true that you will make penance of your time with your family, social exercises just as your own opportunity to put into this business? Shouldn't something be said about selling aptitudes? Do you have great relational abilities and do you like moving toward known and obscure individuals and discussing MLM business coordinate with them? Every one of these inquiries would need to be replied by only you.

As the colloquialism goes, No Pain No Gain. Along these lines MLM can be an extraordinary open door for you to fabricate another pay age stream gave you have the vitality, center, range of abilities and frame of mind to deal with this idea for a significant lot. It calls for adjusting your life, your needs and duties alongside taking up and start another and extra vocation with MLM selling.

Saturday, 13 April 2019

व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व

व्यक्ति का समाज के प्रति वही दायित्व है जो अंगों का सम्पूर्ण शरीर के प्रति। यदि शरीर के विविध अंग किसी प्रकार स्वार्थी अथवा आत्मास्तित्व तक ही सीमित हो जायें तो निश्चय ही सारे शरीर के लिए एक खतरा पैदा हो जाए। सबसे पहले भोजन मुँह में आता है। यदि मुँह स्वार्थी बन कर उस भोजन को अपने तक ही सीमित रख कर उसका स्वाद लेता रहे और जब इच्छा हो उसे थूक कर फेंक दे, तो उसके इस स्वार्थ का परिणाम बड़ा भयंकर होगा। जब मुँह का चबाया हुआ भोजन पेट को न जाएगा तो कहाँ से उसका रस बनेगा और कहाँ से रक्त माँस, मज्जा आदि? इस क्रिया के बन्द हो जाने पर शरीर के दूसरे अंगों और अवयवों को तत्व मिलना बन्द हो जाएगा। वे क्षीण और निर्बल होने लगेंगे और धीरे-धीरे पूरी तरह अस्वस्थ होकर सदा-सर्वदा के लिए निर्जीव हो जायेंगे। पूरा शरीर टूट जाएगा और शीघ्र ही जीवन हीन होकर मिट्टी में मिल जाएगा। यह सब अनर्थ, एक मुँह के स्वार्थ-परायण हो जाने से घटित होगा।

व्यक्ति की स्वार्थपरता सामाजिक जीवन के लिए विष के समान घातक है। जो व्यक्ति सामूहिक दृष्टि से न सोच कर केवल अपने स्वार्थ, अपने व्यक्तिवाद में लगे रहते हैं, वे सम्पूर्ण समाज को एक प्रकार से विष देने का पाप करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा कभी भी शांत और सुखी नहीं रह सकती। शीघ्र ही उसका लोक तो बिगड़ ही जाता है, परलोक बिगड़ने की भूमिका भी तैयार हो जाती है। समाज में व्यक्तिगत भाव का कोई स्थान नहीं है। जिसने शक्ति, समृद्धि, सम्पन्नता अथवा पद प्रतिष्ठा के क्षेत्र में उन्नति तो कर ली है, किन्तु अपनी इन सारी उपलब्धियों को रखता अपने तक ही सीमित है, किसी भी रूप में समाज को उसका लाभ नहीं पहुँचता तो उसकी सारी उपलब्धियां, समृद्धियाँ और सफलताएँ हेय हैं। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति का कोई विवेकशील व्यक्ति तो आदर की दृष्टि से देखेगा नहीं, मूढ़ और मतिमन्द लोग भले ही उसको आदर, सम्मान देते रहें।
यदि देश का युवा जागरूक बनेगा तो देश को आगे बढने से कोई रोक नहीं सकता। समुदाय के विकास में भी युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शासन द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जो विकास का अध्याय लिखने का प्रयास हैं, वह तभी सम्भव हैं जब युवा ऐसे हितग्राहियों तक इन योजनाओं को लेकर जाए जिन्हें इनकी जानकारी नहीं मिल पाती है। युवाओं में नेतृत्व के गुण होना आवश्यक है और वे प्रशिक्षण के माध्यम से वे नेतृत्व के गुण सिखेंगे जिसका लाभ समाज को और देश को प्राप्त होगा। जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए और उस लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से जुटना चाहिए। हम तभी सामाजिक नेता बन सकते हैं जब हमारे मन में समाज के प्रति कुछ करने का भाव हो। युवा देश की ताकत है तथा इस ताकत का यदि सदुपयोग किया जाये तो देश की दिशा और दशा बदल सकती है। देश के विकास में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो तभी देश आगे बढ सकता है।

यह आम धारणा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को न्याय नहीं मिलता तथा पैसे वाले ही न्याय प्राप्त कर पाते हैं यह धारणा सही नहीं है। देश में राष्ट्रीय स्तर से लेकर तहसील स्तर तक विधिक सेवा प्राधिकरण बना हुआ है जिसके माध्यम से गरीबों को भी नि:शुल्क विधिक सेवा मिल सकती है तथा वे भी न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारी युवाओं को गांव तक पहुंचाना चाहिए ताकि ऐसे लोग भी इस सेवा का लाभ प्राप्त कर सकें जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है। व्यवसाय बारे में हमारा नजरिया सकारात्मक होना चाहिए तो हम हर क्षेत्र में आगे बढ सकते हैं व्यवसाय में भी नजरिया बहुत महत्वपूर्ण हैं। असफलताऐं हमें बहुत कुछ सिखाती और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। सोशल मीडिया ने देश में क्रांति ला दी है यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो इसका काफी लाभ भी हो सकता हैं वहीं इसका दुरूपयोग करने का दुष्परिणाम भी भुगतना पडता है। युवाओं को इसके सम्बंध में जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे इस नई तकनीक से वाकिफ होकर इसका लाभ प्राप्त कर सकें।

Saturday, 16 February 2019

पुलवामा हमले के बाद भारत को क्या करना चाहिए?

पुलवामा हमले के बाद भारत को क्या करना चाहिए?

पुलवामा हमले में हुई क्षति के लिए हमारी संवेदना उन परिवारों के साथ है जिन्होंने अपनो को खोया है। कोई भी शब्द इसकी भरपाई नही कर सकता है।

पुलवामा हमले में भारतीय जवानों के ऊपर हुई कार्यवाही को कायराना माना जायेगा। देश मे उपजे आक्रोश को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नही की लोगो को एकमात्र उपाय आर या पार ही दिख रहा है। क्या यही एक उपाय है मेरे ख्याल से शायद नही? क्योंकि इसके अलावा और भी कदम है जिसको भारत सरकार उठा सकती है जिससे सरहद पार देश को सोचना पड़ेगा। मैं निम्नलिखित बातों पर अमल करने के केंद्र सरकार से अपेक्षा करता हूँ:-
१) MFN का दर्जा समाप्त (कर दिया गया)।
२) भारतीय राजदूत को ना कि सिर्फ बुलाया जाय बल्कि भारतीय उच्चायोग को तब तक बंद कर देना चाहिए जबतक पाकिस्तान की तरफ आगे कोई हमला नही होने का संयुक्त राष्ट्र में लिखित आश्वासन ना मिल जाय।
३) रेल सेवा के साथ साथ बस सेवा को भी बंद कर देना चाहिए।
४) भारत का हवाई क्षेत्र को पाकिस्तान से उड़ने वाले या पाकिस्तान को जाने वाले सभी हवाई उपयोग के लिए प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
५) संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के पक्ष को मजबूती से बार बार उठाना चाहिए।
६) बलोचिस्तान को खुलकर कूटनीतिक समर्थन देना शुरू करना चाहिए।
७) अफगानिस्तान के पूर्वी सीमा जो पाकिस्तान को लगती है वहाँ पर काम करने के क्षेत्र को बढ़ाना चाहिए।
८) भारत के अंदर किसी भी भारतीय द्वारा पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे नारे को पूर्णतः प्रतिबंधित कर देना चाहिए कोई भी ऐसा करते हुए पकड़ा जाएगा तो उसको IPC के तहत कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
९) कश्मीर के लिए अलग से नीति बननी चाहिए जो भारत को मानेगा उससे बात होगी जो उसकी आजादी की बात करेगा उससे बात नही होगी साथ मे उसपर कानूनी कार्यवाही भी होगी।
१०) सेना को पाकिस्तानी सीमा पर लगातार कुछ ना कुछ करते रहने चाहिए ताकि पाकिस्तान कुछ ऐसा करे जिससे उसकी संयुक्त राष्ट्र में छवि को सबके सामने पेश किया जा सके। अगर इधर एक गोला गिरे तो उधर चार गिरने चाहिए और लगातार होते रहने चाहिए।
११) घुसपैठ शब्द को आतंकवाद शब्द से बदल देना चाहिए। हमे अपने संविधान में सीमापार से हुए किसी भी तरह की घुसपैठ को आतंकवाद कहा जायेगा। कोई अच्छा या बुरा आतंकवाद नही हम सिर्फ आतंकवाद को मानेंगे और उसी के हिसाब से हम अपनी प्रतिक्रिया देने को स्वतंत्र होंगे।
१२) किसी भी तरह के व्यापार पर प्रतिबंध।
१३) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर जगह पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग थलग करने की कोशिश जारी करनी चाहिए।
१४) पाकिस्तान से कोई भी सांस्कृतिक आदान प्रदान के नाम पर किसी भी तरह रिश्ता नही रखेगा चाहे वो फिल्मकार हो साहित्यकार हो या राजनेता।
१५) पाकिस्तान के साथ लगने वाले सभी बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद कर देने चाहिए।
१६) किसी भी तरीक़े की राजनैतिक बातचीत तबतक नही होगी जबतक पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में लिखित में इस बात का आश्वासन ना दे दे कि अब उनकी जमीन भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए उपयोग नही होगी।

धन्यवाद।

Saturday, 18 August 2018

अटल बिहारी वाजपेयी को अश्रुपूरित श्रधांजली

भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी जिन्होंने १६ अगस्त २०१८ को अपनी अंतिम सांस ली। जो एक प्रखर वक्ता, एक कवि, एक सुलझे हुए व्यक्ति, संवेदनशीलता का जीता जागता समुन्द्र जो हर दिल अजीज थे। आज यानी १७ अगस्त २०१८ को पंचतत्व में विलीन हो गए। पंचतत्व में विलीन तो उनका दैहिक शरीर हुआ है लेकिन उनकी वाणी, उनकी पंक्तिया, उनका जीवन सन्देश हम सबके बीच है और हमेशा रहेंगी। ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताएँ जितनी जीवंत लगती है उतनी ही जिंदगी से जुड़ी हुई भी लगती है। इसी का जीता जागता उदहारण है कविता "गीत नया गाता हूं" जिसकी पंक्तियाँ "हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं" जन जन को याद है।

उनके प्रखर वक्ता होने के कई प्रमाण है जो उन्हें ऐसा साबित करते है जैसे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर पुरे विश्व में अपना लोहा मनवाया हो या संसद में विश्वास मत के दौरान जवाब देते हुए यह कहना की "सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए...इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए....", यह साबित करता है उनकी देश के प्रति प्यार को। जो भी उनको करीब से जानते है सबका कहना है उनके लिए सर्वप्रथम देश है उसके बाद कुछ और चाहे वह अपनी पार्टी की सरकार हो या पार्टी। १० बार लोकसभा के सांसद और 2 बार राज्यसभा के सांसद उनकी जनता के बीच लोकप्रियता को दर्शाता है। उसके बाद भी उनके पास कोई अकूत संपत्ति नहीं है उनकी सार्वजानिक जीवन में इमानदारी को दर्शाता है। हमारे समय के बच्चे जिन्होंने गलियों में लाउडस्पीकर पर सांसद और विधायक के चुनाव का प्रचार देखा है जहाँ नेताओ को नेता मतलब बईमान कहकर पुकारा जाता था और अटल जी का नाम आते ही कीचड़ में कमल को खिलने वाला बताकर उनकी सत्यनिष्ठा और इमानदारी की दुहाई दी जाती रही है। तो उनकी शख्सियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही कारण है की १७ अगस्त २०१८ को उनकी आखिरी यात्रा में शामिल लोगो के हुजूम से साबित होता है इतनी लोकप्रियता इनसे पहले अगर किसी नेता के लिए दिल्ली की सड़को पर देखा गया तो वे राजीव गाँधी जी थे।

आज उनको अंतिम श्रधांजलि के फुल अर्पित करते विपक्षी दलो के नेताओ को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था की ये वही अटल जी जो भाजपा से प्रधानमन्त्री चुने गए थे। जिससे उनकी सार्वभौमिकता सभी राजनैतिक दलों में साबित करता है। शायद उनकी सभी पार्टियों में लोकप्रियता का इस वजह से भी थी क्योंकि वे बड़ी से बड़ी बात बड़ी आसानी से चुटकियों में हास्य स्वरुप में कह डालते थे। अगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखना हो तो कारगिल युद्ध के समय उनकी एक प्रेस वार्ता को देखकर उनके भावो को पढ़ा जा सकता है। एक य्युग पुरुष को कैसे कुछ शब्दों में बांधा जा सकता है वे अटल है अमर है अजर है। उनकी वाकपटुता को उनके ही एक वक्तव्य से जाना जा सकता है की "मैं पत्रकार होना चाहता था, बन गया प्रधानमंत्री, आजकल पत्रकार मेरी हालत खराब कर रहे हैं, मैं बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मैं पहले यह कर चुका हूं..."। वो भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री हुए जिन्होंने ५ वर्ष कर कार्यकाल पूरा किया और देश को कांग्रेस के आगे भी भारत का भविष्य देखने का सपना दिखाया। एक शिखर राजनैतिक पुरुष जिन्होंने भारत को विश्व पटल पर लाने में प्रमुखता से भूमिका निभाई उनकी दरियादिली इस बात से साबित होती है की लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल युद्ध में मुशर्रफ का हाथ होने के बाद भी उन्होंने मुशर्रफ से आगरा में शिखर वार्ता किया वे सिर्फ दरियादिल ही नहीं थे। वे मजबूत इच्छाशक्ति के साथ साथ मजबूत शख्सियत के भी धनी व्यक्ति थे क्योंकि उनके द्वारा 13 महीने की सरकार रहते १९९८ में पोखरण में परमाणु परिक्षण कर अपनी दृढ इच्छाशक्ति दिखाई।

एक ऐसी शख्सियत जो एक ओजस्वी कवि, एक संवेदनशील व्यक्ति तथा एक वक्ता जो अपनी वाणी से किसी का भी दिल जीत लेने की क्षमता रखता हो, उनकी जिंदगी अपने आप में एक ग्रंथ है आप चाहे तो उनकी जिंदगी का कोई भी हिस्सा एक अध्याय समझ कर पढ़ लीजिये आपको कुछ ना कुछ अवश्य मिलेगा सिखने को।

श्रधांजली देने की एक छोटी सी कोशिश ऐसे शख्स को जो खुद कलम का सिपाही हो और वाकपटुता में माहिर हो।

अगर कुछ गलती हुई हो तो माफ़ी चाहता हूँ।
धन्यवाद।।।

Tuesday, 25 April 2017

​सुकमा में हुए नक्सली घटना में शहीद हुए हमारे सैनिको को श्रद्धांजलि।

सुकमा में हुए नक्सली घटना में शहीद हुए हमारे सैनिको को श्रद्धांजलि। 

ऐसा लगता यह सरकार सिर्फ कड़ी निंदा के लिए जानी जाएगी और वह किसी भी तरह की निंदा की बात की करेगी जैसे कठोर निंदा, घोर निंदा या कड़ी निंदा। पहले भी ऐसा होता रहा है। पहले की सरकारें भी ऐसी ही कड़ी निंदा करती रही है। अगर सरकार चाहे तो कुछ भी हो सकता है, क्योंकि नक्सली बहुल इलाकों में केंद्र और राज्य सरकारें अगर तालमेल बिठाकर चले तो ऐसी घटनाएं कभी हो ही नहीं। लेकिन ऐसा लगता है राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियाँ है जिसके चलते वे भी कोई कड़ा कदम नही उठाते है और किसी को ठेस ना पहुंचे उसके बाद यह कहना चाहूँगा की वे ऐसा चाहते है कि होते रहे और उनकी दुकानें चलती रहे। सरकारें आती जाती है लेकिन ऐसा लगता है की सरकारी कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिससे वहाँ पर बैठने वालों का चरित्र वैसा ही हो जाता है जैसा एक निवर्तमान मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि इस कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिसपर बैठते ही लोग एक ही तरीके से व्यवहार करने लग जाते है।

सही कहा था किसी ने, सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन यह मुल्क मेरे बाद भी रहेगा और मेरे कई पुस्तों के बाद भी रहना चाहिए। आइए सब मिलकर आवाज उठाएं की अब सरकारों को आम जनता की भावनाओं से खिलवाड़ ना करके उनकी भावनाओं के साथ न्याय करना चाहिए। हम गूंगी बहरी सरकार को जगा सकते है। हमे अपनी आवाज उन तक पहुंचानी है ताकि सरकारी तंत्र में बैठे लोग यह समझे कि हमारी भावनाएं क्या है और हम क्या चाहते है। हम एक एक कर मारे जा रहे है और हम इंतज़ार कर रहे ही कि कोई ऐसी घटना हो जिससे सारा संसार हमारी काबिलियत पर उंगली उठाने लग जाये। 

उठो जागो और बता दो हम क्या चाहते है और ऐसे हैवानियत के पुजारियों को जो खाद पानी शहरों में बैठकर दे रहे है उन्हें भी हमारी आवाज सुननी होगी कि वे सिर्फ एकतरफ़ा बाते नही कर सकते है। वे सिर्फ यहां पर एसी कमरों में बैठकर गरीबों के हितों की बात ना करे। हमने गरीबी देखी है और अगर वाकई में देखनी है तो चले हमारे साथ हम दिखाएंगे की गरीबी क्या होती है। फिर देखते है किस तरह के गरीबों के हितों की बात करते है। ब्रांडेड कुर्ता, जीन्स और चप्पलें पहनने वाले गरीबो के हितों की बात करते है। खोखली मानसिकता के पुजारी ये सिर्फ हल्ला कर सकते है और कुछ नही।

धन्यवाद। 

जयहिन्द, जय भारत।

नोट: यह पोस्ट राजनीति से प्रेरित नही इसीलिए अगर किन्ही को राजनीतिक कमेंट करना है तो वे ना करे।

Sunday, 13 November 2016

भारतीय नोटों का विमुद्रिकरण

indian-rupee-symbolमुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब हमारे सोशल मीडिया के बुद्धिजीवी कह रहे है कि 500 और 1000 के नोट पर बैन से लोगो को तकलीफ हो रही है। तो मैं आपको सही करने की कोशिश करता हूँ क्योंकि यहाँ पर आप तकनिकी तौर पर कतई सही नहीं है क्योंकि 500 और 1000 के नोट बैन नहीं हुए है सरकार आपसे कह रही है कि आप इसको नए नोट के साथ बदले। इसको अर्थशास्त्र की भाषा में विमुद्रिकरण कहते है। क्यों बदलना है क्योंकि सरकार को लगता है जो 500 और 1000 के नोटों के रूप में जो नकली नोट मार्किट में हर दिन भेजा जाता है आतंकवादी संगठनों और नशे के व्यापारियों द्वारा अगले कुछ सालों तक उसपर लगाम लगी रहेगी। वैसे भी अम्बेडकर साहेब कह गए की हर दसवें साल हमें अपनी मुद्रा जो सबसे ज्यादा प्रचलन में हो उसे बदल देना चाहिए।

यह नोट को बदलवाने की प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है। कोई कहेंगे की बैंक इसको अपनी तरफ से लगातार इस बात को करके भी कर सकते थे, क्यों अचानक से यह किया गया। अगर बैंक लगातार इस कोशिश को करती शायद मुमकिन है जिनके पास बिना मूल्यांकन वाली आय है उस पैसे को भी बदल दिया जाता।

यह कोई आज लिया गया फैसला नहीं कह सकते है बातो में तह पर जाने की कोशिश करे फिर पता चलेगा कि बात कहाँ से शुरू होकर यहाँ तक पहुंची है।

१) सबसे पहले जन धन योजना लागू कर उनलोगों को अर्थशास्त्र की मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश।

२) उसके बाद सारे सब्सिडी को बैंक अकाउंट और आधार कार्ड के साथ लिंक करना।

३) उसके बाद ITR को पैन के साथ साथ आधार या पासपोर्ट के साथ लिंक करना।

४) उसके बाद का यह कदम साबित करता है सरकार ने इस कदम को उठाने दो साल पहले से तैयारी शुरू कर दी थी।

लेकिन इस विमुद्रिकरण को और सही तरीके से लागू किया जा सकता था। जिसको आप सरकार की गलती के तौर पर देख सकते है। जो मेरे ख्याल से निम्न उपाय किये जा सकते थे:

१) 1 महीने पहले से ATM में 100 के नोट डालने थे 500 और 1000 के नोट को कम करते जाना था दिन ब दिन।

२) RBI को 1000 और 500 के नोट वापस लेते रहने चाहिए थे ताकि मार्किट में 1000 और 500 का नोटों का व्यवहार कम होता जाता।

३) RBI को 100 के नोट का सही व्यवहार में आने का इंतज़ार करते रहना चाहिए था। हो सके तो और 100 के नोटों को छापकर मार्किट में डालते रहना चाहिए था ताकि 500 और 1000 के नोट के वापस लेते रहने से मार्किट में पैसे की कमी से निपटा जा सकता था।

४) 1 महीने पहले से ATM का अपग्रेड शुरू कर देना चाहिए था।

धन्यवाद।

Friday, 4 November 2016

छठ महापर्व या प्रकृति का सम्मान

wp-1478252870556.pngछठ महापर्व सिर्फ लोक आस्था का पर्व नहीं है यह एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति में आस्था को जागृत करता है और मनुष्य का प्रकृति के प्रति आगाध प्रेम को दर्शाता है। मैं तो इससे ज्यादा ऊपर जाकर यह कहूंगा कि यह एक मात्र हिन्दू पर्व है जिसमे किसी भी तरह की प्राकृतिक क्षति को व्यवहार में नहीं लाकर प्रकृति के प्रेम को दर्शाया जाता है जो किसी और हिन्दू पर्व में नहीं है।

छठ महापर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी आस्था और और अपने विश्वास के साथ साथ लोग अपनी कृतज्ञता दर्शाते है जो किसी और पर्व में नहीं। सूर्य को अर्घ्य तो हिन्दू लोग रोज़ देते है लेकिन छठ महापर्व की खासियत यह है कि आपको नदी या तालाब में जाकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है। अगर आप नजदीक से छठ पूजा में उपयोग होने वाले प्रसाद के रूप में या किसी भी तरह उपयोग होने वाले सामानों का प्रकृति से गहरा नाता होता है जो यह साबित करता है कि इस पर्व को मनाने वाले व्रतियों का प्रकृति के प्रति सम्मान दर्शाता है।

हम जो वाकई में प्रकृति का सम्मान करना भूल गए है यह महापर्व हमें उसके प्रति जागरूक करता है चाहे वह सामाजिक साफ सफाई की बात हो या लोगो का आपस में घाटो पर विचारो का आदान प्रदान जिसकी हमें आज के आधुनिक और डिजिटल युग में बहुत ही जरुरत है उससे रूबरू करवाता है।

आशा करते है हम जितना सम्मान इस पर्व के दौरान लोगो के साथ साथ प्रकृति का करते है उतना ही सम्मान महापर्व के ख़त्म होने के बाद भी करेंगे। यह हमारे लिए सालों भर एक प्रकार होना चाहिए तभी वाकई में सूर्य या प्रकृति के प्रति हमारी सच्ची अर्घ्य होगी।

आप सभी को एक बार फिर से छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और आशा करते है यह महापर्व आपके और आपके पूरे परिवार को मानसिक शांति के साथ साथ आने साल में सुख और समृद्धि प्रदान करे।

Wednesday, 19 October 2016

​देशभक्ति या कुछ और...

देशभक्ति एक ऐसा शब्द है आज की तारीख में आपने अगर बोल दिया तो आप भक्त कहलायेंगे ना की देशभक्त।
 तो देशभक्त के मायने क्या है क्या उसको किसी दायरे में बाँधा जा सकता है। शायद नहीं क्योंकि देशभक्ति कोई चीज नहीं जिसको किसी राजनितिक पार्टी की दूकान से ख़रीदा जा सके, लेकिन ऐसा भी नहीं जिसे किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ाया जा सके। तो आखिर इसका पैमाना क्या हो कैसे पता चले की कौन देशभक्त है कौन नहीं। 

देशभक्ति एक ऐसा जज्बा है जो आपके सामने झंडे के आते ही आपके अंदर से आवाज़ निकलनी चाहिये ना की किसी के कहने पर। देशभक्ति ऐसा जज्बा है जो राष्ट्रगान बजते ही आपके अंदर से आवाज़ आनी चाहिये ना की किसी के कहने पर। देशभक्ति ऐसा जज्बा है जब देश के ऊपर किसी बाहरी शक्तियों द्वारा हमला करने या हमला होने की स्थिति में अंदर से आवाज़ निकलनी चाहिए। देशभक्ति एक ऐसा जज्बा है जो सैनिको के कुछ अच्छे काम करने को लेकर आपके अंदर पैदा उत्साह को देशभक्ति के साथ जोड़कर देख सकते है। तबतक जबतक आप ऐसे किसी भी सैनिक कार्यवाही को बिना किसी लेकिन किन्तु परंतु के बिना इसको राष्ट्र के साथ जोड़कर देखते है। जैसे ही आप इसको किन्तु परंतु के साथ जोड़ते है फिर आपको खुद सोचना पड़ेगा की आप क्या चाहते है। सीमा पर सैनिक है तभी आप सुरक्षित है यह ध्यान रखना आवश्यक है। ऐसा नहीं है अगर आपके अंदर कोई ऐसा है जो आपको अंदर से कमजोर कर रहा है कोशिश कर रहा जो किसी भी तरह से सामाजिक ताना- बाना को क्षति पहुंचाने की कोशिश करता है तब आप अगर उसमें किन्तु परंतु लगाते है तो वह फिर सोचने के काबिल है। 

कहने का मतलब साफ है की ऐसा कोई भी काम जो समाजहित में या देशहित में है या उस फैसले से समाज पर असर पड़ने वाला है या समाज की भलाई होने वाली है उसके ऊपर ऊँगली उठाना एक तरह से आपको अपने ऊपर सोचने की जरुरत है। किसी एक व्यक्ति का विरोध करने के लिए सिर्फ किसी भी काम का विरोध करना देशहित के फैसलों पर कतई सही नहीं है।

Tuesday, 16 August 2016

असली स्वतंत्रता या नकली स्वतंत्रता

Happy Independence Dayआज 15 अगस्त को हर कोई सोशल मीडिया पर अपनी अपनी देशभक्ति प्रदर्शित करने में लगा हुआ है अपने अपने तरीके से। हर किसी के प्रोफाइल को देखकर ऐसा लगता है जैसे अगर आज अँगरेज़ होते तो सोशल मीडिया के वीर उन्हें कुछ ही मिनटों में निकाल बाहर फेंकते।

क्या वाक़ई में यही स्वतंत्रता है?

हमे वाक़ई में स्वतंत्रता चाहिए तो हमें अपने अंदर कुछ बदलावों को तवज्जो देनी चाहिए ताकि हम बदल सके और अपने समाज के अंदर बदलाव ला सके और मेरे ख्याल से वाक़ई में वही स्वतंत्रता होगी। तो अब सवाल उठता है ऐसे कौन से बदलाव लाये जाये अपने अंदर ताकि हमें सच्ची स्वतंत्रता मिल सके।


मेरे ख्याल से निम्न बातो पर हम ख्याल रखे तो शायद हम सच्ची स्वतंत्रता को हासिल कर सकते है:

१) आप शिक्षित बनिए।
२) आप दूसरों को शिक्षित बनने के लिए प्रेरित कीजिये।
३) पानी का सदुपयोग करे, इसे बेवजह बर्बाद ना करे। जैसे कही टूटी से पानी टपक रहा हो तो आप उसको बंद कर सकते है। घर में पानी का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्वक करे।
4) घर में कूड़ेदान का प्रयोग करे और कूड़ा फेंकते वक़्त सही जगह का ध्यान रखे।
५) नदियों में पूजा सामग्री को प्रवाहित ना करे।
६) अपने आसपास के स्थानों को स्वच्छ रखने में मदद करे।
७) कभी भी राह चलते यहाँ वहाँ कूड़ा ना फेंके।
८) अपने बच्चों के अंदर स्वक्षता को लेकर जागरूकता फैलाये।
९) प्रकृति के सहायक बनने में सहायता करे।
१०) जितने बच्चे उतने पेड़ अवश्य लगाए।
११) बिजली का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्वक करे, जहाँ जरुरत हो वही जलाये।
१२) लोगो को उनके अधिकारों के बारे में बताये
इत्यादि।

ऐसे बहुतेरे उदहारण से हम अपने आप को साबित तो करेंगे ही की जिन्होंने अपने सीने पर गोली खाकर हमे इस बहुमूल्य आज़ादी दिलवाई है उनके प्रयासों को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

आइये हम सब मिलकर आज यह कसम ले हमसे अकेले जो हो पायेगा हमसब मिलकर करेंगे ताकि अपने आने वाले भविष्य को कुछ दे सके।

धन्यवाद।

Wednesday, 13 April 2016

दोहरे मापदंड का शिकार कौन?

अगर आप यह कहते है की JNU में जो हुआ वह बोलने की आज़ादी थी तो NIT श्रीनगर में जो हुआ वह क्या था देश द्रोह, कहाँ गए वे बुद्धिजीवी जो एक लाल सलाम का नाटक करने वाला जिसकी पीएचडी का मुख्य विषय ही अफ्रीकन पढ़ाई पर शोध करना हो और वह अफ्रीका के किसी देश में ना जाकर यही देश के अंदर नारा लगाने वाले को अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में नहीं दिखती। कहाँ गए वे बुद्धिजीवी जो हिन्दुओ को गाली देना धरनिर्पेक्षतावाद समझते है। कहाँ गए वे बड़े बड़े बुद्धिजीवी जो टीवी स्क्रीन को काला करके अपने मन की भड़ास निकालते है। कहाँ गए वे जो स्टूडियो में बैठकर दूसरे पर चिल्लाकर अपनी बात कहलवाना चाहते है। कहाँ गए वे लोग जो देशभक्ति के नाम पर झंडा लेकर दुसरो की पिटाई कर रहे थे। आज भी किन्ही बुद्धिजीवी को एक कौम एक राज्य में खतरे में नहीं नज़र आती है। क्योंकि यही वह कौम है जो 90 के दशक में अपने घरो से खदेड़कर उन्हें अपने ही देश नहीं अपने ही राज्य में निर्वाषित जीवन जीने पर मजबूर किया गया। लेकिन एक व्यक्ति जो 10 व्यक्तियों की ग़लतियो की सजा भुगतता है तो इन बुद्धिजीवियों को उस व्यक्ति की कौम खतरे में नज़र आने लगती है।


फिर भी लोग मौन है क्यों।

हमे अपनी बात कहने का हक़ उतना ही है जितना इन बुद्धिजीवियों को। हमे अपनी आवाज़ उठानी है इन तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के खिलाफ़ जो अपने अवसरवादिता के तहत ये अपनी तथाकथित बुद्धिजीविता हमारे ऊपर थोपते रहते है। बस थोड़ा समय चाहिए और थोड़ा तार्किक शक्ति का परिचय दे, फिर आप इनके ही मुँह पर इनकी बात थोप सकते है। ये सारे टीवी पर बैठने वालो को गौर से देखे यह करते क्या है इनका ज्यादातर समय सरकार की कमियाँ निकालने में चली जाती है अच्छी न्यूज़ तो कोई दिखाना ही नहीं चाहता है। अगर इन सब से थोड़ा फुरसत मिल भी जाये तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की न्यूज़ के साथ अपना मिलान करके आपको बेब्कुफ़ बनाते है ताकि आपको लगे की ये भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की न्यूज़ एजेंसी है, जबकि आप नज़र डालेंगे तो आपको पता चल जायेगा इनके पास दिखाने को अपने यहाँ के न्यूज़ की वीडियो तक नहीं होती है, ये पैसा देकर न्यूज़ वीडियो लेकर अपने चैनल पर चलाते रहेंगे। तो आप खुद सोच सकते है इनकी सार्वभौमिकता और इनका प्रसारण क्षेत्र कितना बड़ा है। सोचना चाहिए हमे की हम किनके पीछे जा रहे है न्यूज़ के लिए। इनका काम सिर्फ और सिर्फ आपकी भावनाओं को भड़काकर आपके सोच को खोखला करना है ना की आपको न्यूज़ के बारे में या उसकी गहराईओं के बारे में बताना। यह आपके दिमाग पर हावी होना चाहते है ताकी इनके पीछे का सच आप ना कभी जान सके और ना ही कभी समझ सके। इतने घोटाले होते है कभी इनमे से किसी के नाम को देखा है शायद नही एक आध आ भी गए तो अपनी पहुँच से छुट जाते है। कभी आपने यह सोचा है इनके मालिक कुछ ही सालो में इतने बड़े रसूखदार कैसे बन जाते है।

ज़रा सोचिये छात्रों को देश का भविस्य बताने वाले कुछ राजनेता कुछ ही दिनों में आपको नंगे नज़र नहीं आते जब दूसरे किसी भी छात्र जो इनकी मानसिकता को समर्थन नहीं देते है तो आपको इनके व्यवहार पर ऊँगली उठाने का पूरा हक़ है। उदाहरण के तौर पर राजनेता यह कहते है आप क्या खाये , क्या पिए यह सरकार निर्देशित नहीं कर सकती है। मैं शराब को प्रतिबंधित करने को गलत नही ठहरा रहा हूँ।  लेकिन अचानक से पुरे राज्य में शराब प्रतिबंधित कर देना क्या वही सोच नहीं दर्शाता। क्या आप आमजन के बारे में यह निर्णय नहीं ले रहे है की आप यह नहीं पी सकते, तो अगर कोई दूसरी सरकार खाने पर प्रतिबन्ध लगाती है तो आपको आपत्ति हो जाती है। यह आपका दोहरा चरित्र दिखाता है। एक दूसरा उदाहरण लेते है अभी अभी इसी राज्य के मुख्यमंत्री को एक राष्ट्रीय पार्टी का अध्य्क्ष चुना गया, तो आप उस पद को सहर्ष स्वीकार कर लेते है लेकिन दूसरी पार्टी का कोई नेता यही करे तो गलत। यह आम आदमी को समझना होगा की वह कीनको आदर्श मानते है, एक ऐसा व्यक्ति जो दोहरे चरित्र जीकर आपको ठगने की कोशिश कर रहा है। चाहे वे राजनेता हो या कोई टीवी पत्रकार।
धन्यवाद।

Tuesday, 23 February 2016

अभिव्यक्ति की आज़ादी या देशभक्ति या कुछ और

कुछ लोग कहते है की अगर आपने एक पार्टी के विरोध में कुछ बोला नहीं की आप देशद्रोही हो गए और दूसरी तरफ दूसरे लोग यही बात कहते है अगर आपने एक पार्टी के विरोध में बोला नहीं की आपको भक्त करार दिया जायेगा। जैसे अगर किसी ने आज की तारीख में यह बोल दिया की JNU में देशद्रोही नारे लगे तो बीजेपी वाले लोगो की नज़र में आप देशभक्त होते है या नहीं लेकिन दूसरी तरफ वाले आपको मोदी भक्त या आरएसएस का एजेंट या कट्टर हिंदूवादी या भक्त जरूर कहते नज़र आ जाएंगे। अब इसी का दूसरा पहलु देखते है अगर किसी ने यह कह दिया JNU में जो नारे लगे वह देशद्रोही तो है लेकिन....? तो आपको जो कल तक मोदी भक्त कहते हुए नज़र आ रहे थे आज आपको देश का सच्चा देशभक्त कहता हुआ नज़र आएगा और दूसरी तरफ वाला आपको देशद्रोही, पाकिस्तानी समर्थक, वामपंथी कहता हुआ नज़र आएगा। आखिर आम आदमी जाये तो जाये कहाँ। इसी वजह से बहुत सारे लोग खुल के यह बात कह नहीं पाते है उनके मन में क्या है। तो यही वजह है की कुछ लोग इन झमेलों से अपने आप को दूर रखने की यथासंभव कोशिश कर रहे है।

सबसे ज्यादा तो तरस आता है पढ़े लिखे नौजवानो पर जो की जीवन में किसी ना किसी तरह एक खास राजनितिक आइडियोलॉजी को सपोर्ट करते है, और किसी राजनैतिक आइडियोलॉजी का समर्थन करना गलत नहीं है।


तरस इसीलिए भी आता है क्योंकि उनकी वजह से ये राजनितिक पार्टी अपने आईटी सेल के द्वारा इन चीजो को देखती परखती है की उनके बारे में युवाओ की क्या सोच है और उसी के तहत आगे की रणनीति तय करते है। और युवाओं का जोश तो देखते बनता है कैसे कैसे शेयर और like होती रहती है सोशल मीडिया पर लेखो का, रिट्वीट और ट्रॉल्लिंग होती रहती है। दुःख तो तब होता है जब बिना कुछ जाँचे परखे शेयर और like करना शुरू कर देते है, वे ऐसा क्यों करते है क्योंकि यह उनकी आइडियोलॉजी जो किसी एक खास राजनीती से मिलती है इसीलिए ऐसा करते है। और बिना जाँचे परखे शेयर, like या ट्वीट करना सही नहीं है क्योंकि कभी कभी इससे गलत सन्देश पहुँच जाता है। और बुद्धिमत्ता का परिचय तो देखिये सिर्फ like या चुपचाप शेयर कर देंगे, ना ही कोई कमेंट ना ही अपना विचार, तो फिर शेयर करने का मतलब क्या हुआ। आप पढ़े लिखे है समझदार है, आपको यह भी पता है कोई भी राजनैतिक पार्टी परफेक्ट नहीं है फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे लोग उनका इस तरह समर्थन करेंगे तो क्या होगा इस देश का, देशहित में सोचे क्या सही है क्या नहीं।

आजकल सोशल मीडिया पर दो ही बाते चलती है या तो आप विपक्ष के साथ खड़े नज़र आते है या सत्ता पक्ष के साथ। आपकी अपनी कोई आइडियोलॉजी नही है। आप निष्पक्ष बात नहीं रख सकते है, क्योंकि ऐसा लगता है जैसे आपको कोई हक़ नहीं है ऐसा करने का। सबसे बड़ी बात है विरोध करना है, करे लेकिन आप एक दूसरे के मौलिक अधिकारो का हनन करते हुए विरोध नहीं कर सकते है। अगर आप किसी के ऊपर उंगली उठाएंगे तो आपके ऊपर भी कोई उठाएगा।

उदाहरण के तौर पर NDTV, INDIA TODAY कहता है TIMESNOW और ZEENEWS एकतरफा न्यूज़ दिखाता है यही बात दूसरी पार्टी कह रही है। तो सवाल उठता है एकतरफा कैसे हो गया। आप कहते है आप एकतरफा है तो दूसरी पार्टी वही कह रही है। तो बात संतुलन की हुई नहीं ना। आप अपने स्टूडियो में एक्सपर्ट को बुलाते है कहते है वीडियो सही नहीं है है और वही दूसरी तरफ दूसरी पार्टी इसके उलट कह रही है। हद तो तब हो जाती है जब एक न्यूज़ चैनल किसी को देशद्रोही साबित करने पर लगा हुआ है तो दूसरे न्यूज़ चैनल देशद्रोही नही साबित करने पर तुले हुए है। और दोनों तरफ के लोग यह कहते हुए नज़र आते है की मीडिया ट्रायल बंद होना चाहिए। कैसे बंद हो दोनों तरफ तो एक ही बात चल रही है एक साबित करना चाहता है देशद्रोही है दूसरा करना चाहता है देशद्रोही नहीं है। बात निष्पक्ष कहाँ रह गयी। तो फैसला कैसे हो की सही कौन कह रहा है। फैसला तो न्यायालय में ही हो सकता है और जब न्यायालय तक बात पहुँचती है तो दोनों तरफ के लोग जल्दी फैसले के लिए धरने प्रदर्शन शुरू कर देते है, जल्दी फैसला दो, जल्दी फैसला दो। अगर जल्दी आ गयी तो जिनके पक्ष में फैसला नहीं आया वे कहेंगे फेयर ट्रायल नहीं था और अगर देरी से फैसला आया तो यह कहेंगे की सरकारी पक्ष के लोग दवाब बना रहे है अदालत पर। उसके बाद भी अगर फैसला पक्ष में नहीं आता है तो कहेंगे की अदालत का फैसला प्रभावित था। एक तरफ आप कहते है फैसला अदालत में होनी चाहिए ना की सड़क या स्टूडियो में बैठकर, आप करे तो ठीक हम करे तो गलत ये कैसा पक्ष है। दूसरी तरफ आप कहते है 3-4 जज मिलके यह फैसला नहीं कर सकते। आप खुद ही सोचिये आप कहना क्या चाहते है। अगर जज फैसला नहीं करेंगे तो कौन करेंगे, आम आदमी अगर आम आदमी करेंगे तो सोचिये क्या होगा देश का यह सभ्य समाज नहीं रह जायेगा, यह एक जंगल कहलायेगा जंगल। अनुशासन जरुरी है देश को, विचार को, अभिव्यक्ति की आज़ादी को आगे बढ़ाने के लिए, और अनुशासन के लिए कानून जरुरी है। एक तरफ आप कहते है ज्यूडिशियरी पर पूरा भरोषा है तो आपको उनका सम्मान करना सीखना होगा, एक तरफ आप कहते है आपको संविधान पर पूरा भरोषा है तो उसका सम्मान करना सीखना होगा, ना की अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर उसको कोसना। आपको अभिव्यक्ति की आज़ादी इसीलिए मिली है ताकि कुछ सिस्टम से गलत हो ना हो जाये, अगर कुछ गलत होता है तो उसके बारे में उसे बताया जाय ताकि सुधार हो सके। एक छोटी सी वीडियो क्लिप देख रहा था उसपर किसी ने लिखा था संघी और तथाकथित रक्षा विशेसज्ञ, और वे थे आर्मी के एक सेवानिवृत अधिकारी, जिस व्यक्ति के बारे में यह बोला गया कल तक यही व्यक्ति NDTV पर रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर आता रहा है और आज संघी हो गया। तो सोचिये आप कहना क्या चाहते है।

मेरा सिर्फ यह कहना है की बात द्विपक्षीय होनी चाहिए, युवाओ को संविधान और कानून को सम्मान करना सीखना होगा। आपको पता है हर कार्यालय में एक समय निर्धारित होता है की आप समय पर आये और अपना काम समय पर करे। और हम सब इसका पालन करते है। आप स्कूल में हो या कॉलेज में हो या यूनिवर्सिटी में हो हर जगह एक समय निर्धारित होता है की उस वर्ग में जितने बच्चे है सबको एक सामान शिक्षा मिल सके, अगर ऐसा नही होगा तो सोचिये क्या होगा। तो अनुशासन जरुरी है अपने से बड़ो का सम्मान जैसे जरुरी है वैसे ही देश का संविधान और न्याय व्यवस्था का सम्मान भी जरुरी है। अभिव्यक्ति की आज़ादी भी द्विपक्षीय होनी चाहिए ना की एकपक्षीय, क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब भी यही होता है अगर आप अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सिर्फ अपनी ही बात कहते चले जायेंगे तो यह सही मायने में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है।

अंत में अपने सभी युवा साथियों से अनुरोध करूँगा की वे सोचे देश के लिए, इतनी सारी समस्याएं है जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। दुनिया सिर्फ सोशल मीडिया या आपके इर्द गिर्द घूमने वाली चीजो के साथ नहीं है, गाँव जाये असली भारत वही बसता है, जहाँ आज़ादी के 65 साल बाद भी लोग एक अदद रोड, एक अदद हैंडपंप, एक अदद बिजली के खम्भे के लिए तरसते है, शिक्षा तो दूर की बात है। आपके अंदर अपार ऊर्जा है जिसका संचालन आप ही कर सकते है सही दिशा में करे, हम कामयाब होंगे, और जरूर होंगे।
धन्यवाद!

Monday, 15 February 2016

बोलने की आज़ादी या राजनीती

ऐसा लगता है जैसे हमारे यहाँ बोलने की आज़ादी का मतलब होता है अगर आप सरकार में है विरोध सहना और विपक्ष में है तो सरकार को पानी पी पी के कोसना। वही हाल कुछ घटनाओ को लेकर भी राजनितिक पार्टियां ऐसे रियेक्ट करती है जैसे ऐसा पहले कभी हुआ ही नहीं। यहाँ पर राजनितिक पार्टियां किसी भी घटने को हमेशा अपने नफे नुक्सान के लिए देखती है चाहे उसमे जनता का कितना नुक्सान ही क्यों ना हुआ हो।

ऐसा लगता है अगर आप स्कॉलर हो तो भारत में आपको कुछ भी बोलने का अधिकार हो जाता है और आम आदमी को एक शब्द भी बोलना भारी परता है सिस्टम या न्यायालय के खिलाफ़। क्योंकि हाल के दिनों जगजाहिर स्कॉलर ने उच्चतम न्यायलय के फैसलो के विरुद्ध भी बाते कही है। क्या वे न्यायालय की अवमानना नहीं थी? मुझे नहीं लगता कोई आम आदमी ऐसी हिमाकत कर सकता है। क्या कोई उन्हें समझायेगा की अगर आपको बोलने की आज़ादी है तो इसका मतलब ये नहीं की आप देश के विरुद्ध बोलते रहे और देश को शर्मशार करते रहे।


आम आदमी बेचारा सिर्फ देखने और सुननेे के अलावा कुछ नहीं कर सकता है। क्योंकि आम आदमी को तो रोजी रोटी से ही फुरसत नहीं है, वह सिर्फ अपने घर में बैठ की सिस्टम को गाली दे सकता है वह भी चुपके चुपके ताकि कोई सुन ना ले।

शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है, शिक्षण संस्थानों में राजनीती का हस्तक्षेप हो रहा है, अगर शिक्षण संस्थानों में छात्र संगठन होगा तो थोड़ी बहुत राजनीती तो होगी ही। लेकिन अगर कोई देशद्रोह की बात करता है तो क्या उसके आगे या पीछे ये राजनेता लेकिन, किन्तु, परंतु लगाते है, क्या यह सही है? सोचना आपको है क्योंकि आप किसी ना किसी तरह से इन संस्थानों में आपकी गाढ़ी कमाई का पैसा जरूर जाता है। और आपकी कमाई के पैसो से हमारे देश के कुछ अच्छे दिमाग को चुना जाता है इन संस्थानों में पढाई के लिए। ताकि आगे चल कर यही दिमाग भविष्य को तैयार करने में सहायक हो। लेकिन कुछ लोग कहते है की किसी को फाँसी हो गयी वह सही ट्रायल नहीं था तो आप न्यायालय में जाये फिर से री-पेटिशन डाले और बहस करे की, जो उन जजों ने किया है गलत किया है। जहाँ तक मेरी जानकारी है हमेशा भारत में कोई भी केस निचली अदालत से आगे बढ़कर ऊपरी अदालत तक जाती है और सर्वोच्च न्यायालय तक जाता उसके बाद भी आप रिव्यु पेटिशन डाल सकते है, उसके बाद भी आप राष्ट्रपति के पास जा सकते है। जिस केस की यह लोग बात कर रहे है उसका सारा ट्रायल 2007 में ख़त्म हो गया था और 2007 से ही दया याचिका राष्ट्रपतिजी के पास थी और अभी निवर्तमान राष्ट्रपतिजी ने माफीनामा क़बूल नहीं की तो उसके बाद भी आप कहते है फेयर ट्रायल नहीं था। 3 जज मिल के किसी के बारे यह फैसला नहीं ले सकते है की कौन आतंकवादी है कौन नहीं तो क्या इस देश की 125 करोड़ जनता करेगी। अगर ऐसा होता है तो यह काफी शर्मनाक सवाल है एक PhD के स्टूडेंट का। अगर 125 करोड़ जनता करेगी, तो आप भी अपने आरोपो को लेकर 125 करोड़ जनता के बीच में जाए ना की उन्ही 3 जजों की खंडपीठ में, फिर शायद आपको पता चल जायेगा, लेकिन नही जब अपने पर बात आती है तो लोग उसी कानून का दरवाजा खटखटाते है जिसकी वे भर्त्सना करते दीखते है । कानून क्या संवेदनाओ पर फैसला सुनाती है या साक्ष्यों के आधार पर। तो क्या देश की पूरी जनता यह फैसला करेगी की कौन आतंकवादी है कौन नहीं। अगर ऐसा है तो आपका फैसला भी वही जनता करेगी बस एक बार आप बाहर तो निकले। अगर आपका फैसला जनता नही वही 3 जज करेंगे तो आप अपने वक्तव्य में झांक के देखिये की आप क्या कह रहे है। मतलब साफ़ है आप एक राजनितिक महत्वाकांक्षा के तहत यह सारा हथकंडा अपना रहे है। लेकिन मुझे आश्चर्य होता है अपने कुछ राजनेताओ पर वे कहते है इससे उन्हें इमरजेंसी की याद आ रही है, कुछ कह रहे है बिना शर्त उन्हें सारे आरोप वापस लेने चाहिए, वे कहते है निर्दोषो को बंद नही करना चाहिए, वे कहते है विद्यार्थी है उन्हें बंद नहीं करना चाहिए। माफ़ कीजियेगा की अगर यही व्यक्ति कल को आपकी बेटी के साथ बलात्कार के जुर्म में पकड़ा जाता है तब भी क्या आप यही कहेंगे। अगर यही व्यक्ति पार्लियामेंट में घुसकर किसी राजनेता को मार देता है क्या तब भी आप यही कहेंगे। अगर यही व्यक्ति किसी राजनेता पर पथ्थर मारता है तब भी आप यही कहेंगे, क्योंकि जो व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का विरोध फांसी के 2 साल बाद करता है तो वह कुछ भी कर सकता है। आपको यह कहते हुए नहीं लगता है आप दोहरापन भरी बाते करते है। एक PhD का स्टूडेंट इस तरह के नारे लगाएगा तो आम आदमी से क्या अपेक्षा कर सकते है। यह तो वही बात हो गयी की अगर आपने किसी का बलात्कार किया और वह गर्भवती हो गयी तो भी आप बच्चे है क्योंकि आपकी उम्र 16 साल से कम है, अरे एक बच्चे को इस दुनिया में लाने का सहभागी बच्चा कैसे हो गया। हमारे यहाँ PhD आखिरी योग्यता मानी जाती है शैक्षणिक स्तर पर, आप कहते है विद्यार्थी है, अगर विद्यार्थी है तो विद्यार्थी शब्द को साबित करे पहले। लेकिन जो व्यक्ति शैक्षणिक स्तर पर आखिरी पायदान पर पढाई कर रहा हो वह ऐसी बाते करेगा समझ से परे है। कुछ लोग कहते है इंडिया गो बैक क्या मतलब, क्या इंडिया ने जबरदस्ती कब्ज़ा किया हुआ है JNU पर, अगर नहीं तो इस नारे का क्या मतलब है।

आप जिस सिस्टम को इतना गाली देते है उसी सिस्टम ने आपको JNU जैसे संस्थानों में कुछ एक सौ रुपैये में विश्व स्तरीय पढाई का मौका देती है। आप अपने अंदर जज्बा पैदा करे सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने की, बहुत सारे तरीके है लेकिन नही। अगर कोई आतंकवादियों के पक्ष में नही है तो नारे क्यों लगे, अगर लगे तो क्यों लगे, किसने लगाये जिसने भी लगाये, उसके खिलाफ बांकी स्टूडेंट का क्या कर्त्तव्य होता है उसके खिलाफ कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए थी। दिक्कत यह है की ज्यादातर लोग वहाँ पढ़ने जाते है और कुछ लोग इसका उपयोग करने जाते है, जो पढ़ने जाते है वे यह कहके चुप रह जाते है छोड़ो पुलिस तो आती नही कैंपस के अंदर तो शिकायत करके क्या फायदा। यही वजह है ऐसे कुछ लोग इसका फायदा उठाते है। अगर किसी की सहमति नही थी तो क्या किसी के फांसी को शहीद बोलना कानून का उल्लंघन नहीं है अगर है तो आपको सजा मिलनी चाहिए या नही। सोचना आपको है किसी एक विचारो का विरोध करने के लिए आप अगर एक फांसी, सजायाफ्ता मुजरिम को आगे रखेंगे तो कोई आम जनता माफ़ नहीं करेगी भले ही आप न्यायालय से बरी क्यों ना हो जाये।

तो मेरा सवाल साफ़ है की अगर देशद्रोह है तो देशद्रोह है इसमें किंतु और परंतु कहाँ से आता है। क्या एक आम आदमी यही नारे लगाएगा तब क्या आप यही कहेंगे। मैं मानता हूँ की हमारे यहाँ एक स्तर सिद्ध है JNU जैसे संस्थानों का, आग्रह करता हूँ की उसकी गरीमा ना गिराये। अगर कोई राजनेता, विद्यार्थी, लेखक पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगेगा तो किस पर लगेगा, आम आदमी पर। क्या आम आदमी की यह औकात है की ऐसा वह बोल पाये। और अगर बोल भी दिया तो क्या होगा इसका जीता जगता उदाहरण है मुम्बई का वह नौजवान जिसपर एक कार्टून बनाने पर देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल भेजा गया। तो सोचना आपको और हमको है की इन चंद वोट के लुटेरो से देश को बचाना है या यु ही घूंट घूंट कर जीने देना है देश को जहाँ एक तरफ हमारे जवान सीमाओं की सुरक्षा के लिए जीते और मरते है दूसरी तरफ ये चंद लोग इस देश की सहिष्णुता और एकता को खंडित करने की कोशिश कर रहे है।

पूर्व सैनिको ने भी कह दिया है अगर इन घर में छुपे बेवकूफ लोगो को समेटा नहीं गया तो वे भी अपनी डिग्रियां JNU को लौटा देंगे और सोचिये क्या होगा फिर इस देश का। माफ़ी चाहता हूँ अगर किन्ही की भावनाओ को कोई आहत पहुंची हो तो क्योंकि मैं मानता हूँ हर कोई मेरे विचार से सहमत हो जरुरी नहीं लेकिन आप सोचियेगा जरूर की क्या घर में घर का आदमी घर के बारे में यह बोले की जब तक यह घर टूट ना जाये तब तक लड़ते रहेंगे तो सोचिये घर का मुखिया क्या करेगा।

और सबसे बड़ी बात है राजनेताओ की जो इतनी जल्दी ट्वीट कर देते है लगता है जैसे पूरी घटना की जानकारी इनको पहले से हो और ट्विटर पर ही फैसला सुना देते है, तो फिर न्यायालय किस लिये है आप लोग कानून लाओ और सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था का विघट्न कर दो। आगे से आपलोग ही फैसला सुनाओगे की ये हुआ था जी वो भी ट्विटर पर तो लोगो को कम से न्यायालय के चक्कर से छुटकारा मिल जायेगा और पैसे भी बच जायेंगे। ऐसे नेतागण कैसे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से इतनी जल्दी पहुँच भी जाते है लेकिन कुछ जगह जहाँ अचानक से लाखो लोग जमा हो जाते है और सरकारी तंत्र को नष्ट और आग के हवाले कर देते है तब ये नेतागण ये कहते नज़र आते है की कानून अपना काम करेगा, क्या वहाँ पर मरने वाले लोग इंसान नहीं थे? कुछ तो शर्म कर लो इतने सारे काम है करने को उस पर तो ध्यान नही जाता है उसके बारे में इतना नहीं चिल्लाते। साफ़ दिख रहा है आपको उन बातो को उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं है जो बहुत सारे लोगो की भलाई के लिए होगा। कोई यह नही कहता की शिक्षा में सुधार करो, कोई ये नहीं कहता की कैसे समाज के निचले तबके तक फायदा पहुंचे। सोचिएगा जरा ईमानदारी से, की आप समाज को किस धारा की ओर ले जा रहे है और ले जाना चाहते है।

आप सभी आम आदमी के साथ साथ हमारे यहाँ की राजनितिक पार्टियों से अनुरोध है की अपने बोलने की प्रवृति का अनुशासन से पालन करना चाहिए। क्योंकि कभी कभी आप ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते है जो कही से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सही ठहराया जा सकता है। आप सभी लोगो का सरकार में बैठे लोगो की आलोचना अवश्य करे लेकिन कम से कम अगर आप सार्वजानिक जीवन में जीने वाले लोग है तो आपको कुछ बातो का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।

Wednesday, 27 January 2016

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!

आज के दिन सभी एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये दे रहे है। आज की युवाओं की आदत है की आज सबको गणतंत्र दिवस की शुभकामना दी और अगले साल भर भूल जायेंगे। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बाते करेंगे और अगले दिन सब कुछ भूल जायेंगे। और अगली गणतंत्र दिवस आने तक प्रशासन को जी भर के कोसना।

क्यों ना हम आज के दिन कुछ अपने ने प्रण करे की अगले एक साल तक प्रशासन को कोसने के बजाये हम अपने अकेले के तौर पर जो बदल सकते है बदले जैसे की:
हम महिलाओं का अपमान नहीं करेंगे।
हम अपने आस पास गन्दा नहीं फ़ैलाएँगे।
हम कानून का पालन करेंगे।
हम कूड़ा को कूड़ेदान में डालेंगे।
हम उनकी सहायता करेंगे जिन्हें उसकी जरुरत होगी।
हम दुर्घटना में घायल लोगो को नजदीक के अस्पताल में पहुंचाएंगे।
सड़क के नियमो का पालन करेंगे।

जय हिन्द जय भारत!

Sunday, 24 January 2016

कर्पूरी ठाकुर जी और उनके वारिस

#समस्तीपुर #बिहार जननायक कर्पूरी ठाकुर की 92वीं जयंती रविवार को पूरे राजकीय समारोह के साथ समस्तीपुर में मनाया गया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जननायक कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव पितौझिया कर्पूरी ग्राम पहुंचे. मुख्यमंत्री ने कहा की जननायक कर्पूरी ठाकुर समाजवादी नेता थे आज सभी उन्हीं के बताये रास्ते पर चलते हुए उनके आदर्शो को अपनाते हुए बिहार में न्याय के साथ विकास कर रहे है. बिहार के प्रमुख नेताओं- लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और नीतीश कुमार उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

24 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की 92वीं जयंती मनाने के लिए बिहार की राजनीति में होड़ लगी हुई है. जनता दल यूनाइटेड-राजद गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी, दोनों ही खेमे कर्पूरी जयंती को बड़े पैमाने पर मनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत पर दावेदारी के बारे में उनके बेटे और जनता दल यूनाइटेड से राज्यसभा के सदस्य रामनाथ ठाकुर की अपनी राय है. वो कहते हैं, “कर्पूरी ठाकुर हमेशा जनता की मांग पर ध्यान देने वाले नेता रहे।”


वहीं बिहार में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता नंद किशोर यादव कहते हैं, “कर्पूरी जी जीवन भर गैर कांग्रेसवाद के नारे को बुलंद करते रहे. कांग्रेस के वंशवाद के ख़िलाफ़ और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लगातार लड़ते रहे. आज वही लोग जो कर्पूरी जी को अपना नेता मानते हैं, कांग्रेस की गोद में चले गए.” इतना ही नहीं, नंद किशोर यादव ये भी दावा करते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ही कर्पूरी की असली वारिस है. वो कहते हैं, "कर्पूरी जी सर्वोच्च पद पर पिछड़ा समुदाय का व्यक्ति देखना चाहते थे, जिसकी वजह से भाजपा ने नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया है और गैर कांग्रेसवाद का झंडा हमने ही बुलंद किया हुआ है, तो हम ही उनके असली वारिस हो सकते हैं."

ऐसे में बड़ा सवाल ये उभरता है कि आखिर बिहार में जिस समाज की आबादी दो फ़ीसदी से कम है, उस समाज के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत के लिए इतनी हाय तौबा उनके निधन के 28 साल बाद क्यों मच रही है?

मंडल कमीशन लागू होने से पहले कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में वहां तक पहुंचे जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के लिए पहुँचना लगभग असंभव ही था. 24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्में कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे. 1952 के बाद बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे. राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए.

जब करोड़ो रूपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता. उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं. उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा. उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए. उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए.”

एक दूसरा उदाहरण है, कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखना नहीं भूले. इस ख़त में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना. कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना. मेरी बदनामी होगी.”

रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का फ़ायदा भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया. उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा. बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा. हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं."

हालांकि बिहार की राजनीति में उनपर दल बदल करने और दबाव की राजनीति करने का आरोप भी ख़ूब लगाया जाता रहा है. लेकिन कर्पूरी बिहार की परंपरागत व्यवस्था में करोड़ों वंचितों की आवाज़ बने रहे. कांग्रेस विरोधी राजनीति के अहम नेताओं में कर्पूरी ठाकुर शुमार किए जाते रहे. इंदिरा गांधी अपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें गिरफ़्तार नहीं करवा सकीं थीं. पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला हुआ था और उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया.

1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में आरक्षण लागू करने के चलते वो हमेशा के लिए सर्वणों के दुश्मन बन गए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे. वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी. उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का काम किया. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.

युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि एक कैंप आयोजित कर 9000 से ज़्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दे दी. इतने बड़े पैमाने पर एक साथ राज्य में इसके बाद आज तक इंजीनियर और डॉक्टर बहाल नहीं हुए. मुख्यमंत्री के तौर पर महज ढाई साल के वक्त में गरीबों के लिए उनकी कोशिशें की ख़ासी सराहना हुई.
दिन रात राजनीति में ग़रीब गुरबों की आवाज़ को बुलंद रखने की कोशिशों में जुटे कर्पूरी की साहित्य, कला एवं संस्कृति में काफी दिलचस्पी थी. वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी. वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे. यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी.

उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश के पिछड़ इलाकों में कई स्कूल और कॉलेज उनके नाम पर खोले गए। समाजवादी नेता होने के नाते कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण के काफी करीबी थे। ठाकुर को दलितों और गरीबों का मसीहा माना जाता है। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए 1978 में सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जाती के लोगों के लिए आरक्षण लागू किया।

सौजन्य: इंटरनेट पर उपलब्ध लेखो के आधार पर लिखा गया, यह लेख किसी प्रकार की व्यक्तिगत श्रेय का दावा नहीं करता है।

Saturday, 16 January 2016

सामाजिक समरसता

अगर आज का भारत गाँधी जी जहाँ कही होंगे अगर देख रहे होंगे तो यह सोच के रो रहे होंगे क्या मैंने इसी भारत की तस्वीर देखी थी। अगर यही होना था तो क्यों ना अखंड भारत का सपना देखा।

दादरी उत्तर प्रदेश, मालदा पश्चिम बंगाल, पूर्णिया बिहार, फतेहपुर उत्तर प्रदेश, हरदा मध्य प्रदेश में अगर होने वाली घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है हम कितने असहिष्णु हो गए है। कहा गयी वो सामाजिक समरसता जब हमें अपने बचपन में कभी यह पता नहीं चला की हम कहाँ है और किसके साथ है। कभी हमारी माओं ने ये चिंता नहीं की, शाम हो गयी है मेरा बेटा कहाँ है और खाया या नहीं। लेकिन आज माओं को इस चिंता के बजाये इस बात की चिंता होती है की क्या हुआ होगा वो सही सलामत तो होगा, क्यों क्योंकि आज हमे अपने पड़ोसियों तक पर भरोसा नहीं रहा। क्योंकि हमारी वो जो आपस की एक अनजान डोरी हुआ करती थी जो हमे आपस में एक दूसरे से बांधे रखती थी वो कही टूटती सी नजर आती है। लेकिन मैं कहूँगा नहीं, ये हमारी सामाजिक समरसता आज भी है जो एक हिन्दू बेटी की शादी में एक मुस्लिम परिवार का कोई युवा अपना योगदान देता नजर आता है और कोई मुस्लिम परिवार की बेटी की शादी में हिन्दू युवा अपना योगदान देता नजर आता है। तो आखिर ऐसा क्यों है की वह अनजान धागा टूटता नजर आता है। ये सिर्फ और सिर्फ हमारे राजनितिक आकाओं की उपज है। क्यों, क्योंकि वे ये नहीं चाहते है की हम एक रहे क्योंकि इससे उनकी दूकान बंद होने का खतरा है।


अब आप सोचेंगे ऐसा मैं कैसे कह सकता हूँ। आप सोचे अगर किसी भी असेम्बली में सारे समुदाय एक मत से इस बात पर तैयार होते है की कोई उम्मीदवार हमारे लायक नहीं है और हम पूरी तरह चुनाव का बहिस्कार करेंगे तो क्या आज की तारीख में वहाँ पर सारे उम्मीदवारों को हटाकर दुबारा से चुनाव नहीं कराया जायेगा। तो सिर्फ इस एक उदाहरण के तौर आप सोच सकते है की ये राजनेता ही है जो ऐसा काम करते है।

जरुरी है राजनेता संभल जाये ऐसे कर्तव्यों से और ऐसे वक्तव्यों को देने से बचे वरना उनकी साख तो जायेगी ही साथ में उनकी अपनी पार्टी की भी साख जाती नजर आएँगी। यहाँ पर कुछ राजनेता जो कुछ ना कुछ हमेशा बोलते रहते है और जब भी बोलते है उससे आपस के समुदायो में तनाव बढ़ता है। लेकिन जब तक इन राजनेताओ को हम अपना मसीहा समझते रहेंगे तब तक ये हमारा इसी तरह फायदा उठाते रहेंगे। ये नेता कभी हिन्दू-मुस्लिम कह के डराते है कभी मुस्लिम-हिन्दू कह के डराते है, कभी ईसाइ-हिन्दू कह के डराते है कभी हिंदु-ईसाई कह के डराते है। जरा सोचिये इनके हाथ में पुरे राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होती और ऐसे कैसे एक जगह कुछ लाख या कुछ हज़ार लोग अचानक जमा हो जाते है और ऐसा कुछ कर जाते है जो मानवता के नाम पर कलंक है। क्या कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की नहीं है? कभी आपने सोचा है की किसी राजनेता के किसी रैली में ऐसी घटनाये क्यों नहीं होती है। कभी कोई राजनेता किसी बम्ब ब्लास्ट में नहीं मरता। क्योंकि जहाँ ये राजनेता होते है वहां की सुरक्षा चाक चौबंद होती है। जरा सोचिए हम राजनेता से है या राजनेता हमसे है। तो आखिर मरता कौन है आम आदमी कोई राजनेता क्यों नहीं। हमारे चुने हुए नेता को हमसे क्या खतरा जो हमसे ही नहीं मिलते चुनाव के बाद। चुनाव के पहले तक तो इनको जहाँ चाहो बिठा लो कोई फर्क नहीं परता, चुनाव जितने के बाद ही ये भीआईपी हो जाते है। मैं यहाँ छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा की मेरे क्षेत्र का सांसद कभी मेरे गाँव नहीं आता चुनाव जितने के बाद लेकिन चुनाव से पहले कई दफा मैंने उन्हें अपने गाँव में देखा है खड़े खड़े बात करते हुए किसी भी अनजान व्यक्ति से, मोटरसाइकिल पर भ्रमण करते हुए कई बार गुफ्तगू करने का भी मौका लगा लेकिन अगर मैं दिल्ली में उनसे मिलना चाहू तो शायद यह संभव नहीं क्योंकि दिल्ली आते ही वे एक भीआईपी हो जाते है। शायद संसद में वे सोनिया गांधी जी के बगल में हमेशा बैठे नजर आते है शायद नहीं भी। और आज तक कभी एक सवाल करते नहीं देखा और ना ही सुना। मैं यह नहीं कहता की आप सोनिया गांधी जी के बगल में ना बैठे लेकिन कम से कम अपने राजनितिक धर्म का तो पालन करे संसद में। अगर किन्ही राजनेताओं को सही मे खतरा है तो आप उन्हें सुरक्षा दीजिये लेकिन बांकी जनता के साथ तो ऐसा ना करे उनसे राजनेता मिले बात करे तभी उन्हें पता चल पायेगा की क्षेत्र में क्या कमी है जिसे दूर करने का प्रयास किया जाये। बात करने से बात बनती है।

तो जरुरत है हमे जागने की हम क्या है और हमे क्या चाहिए। जरुरत है हमे यह समझने की कौन सही है कौन गलत। कभी य राजनेताे बोलेंगे जोर जोर से जैसे इनका कोई सगा मर गया हो कभी यह चुपचाप परे रहते है एक शब्द मुँह से नहीं निकालते, क्यों क्योंकि वोट की राजनीती जो ठहरी। तो मतलब है इन्हें और इनकी मानसिकता को समझने की तभी हम इनके खिलाफ खड़े हो पाएंगे।  कुछ लोग दादरी पर चिल्ला चिल्ला के बहुत कुछ बोल गए लेकिन मालदा और पूर्णिया जैसी घटनाओं के बारे में कुछ नहीं बोला। जिन लोगों ने मालदा और पूर्णिया की घटनाओं पे गला फाड़ के चिल्लाये वे कभी दादरी और हरदा जैसी घटनाओ पर चुप्पी साध ली। क्या हम इतने बेवकूफ है हमे समझ नहीं आता की कौन क्या कह रहा है कैसे कह रहा है। या हम सुनना नहीं चाहते है। मुझे नहीं लगता है की हम ऐसे हो गए है की हम यही सुनना चाहते हो। या कुछ और है जिसकी वजह से हम चुप रहते है।

तो मैं यही कहना चाहता हूँ की आप अफवाहों पर ध्यान ना दे जबतक आपको विश्वस्त सूत्रो से पता ना चले। आप राजनेताओ की बात माने लेकिन उससे पहले अपने विवेक का उपयोग अवश्य करे। मैं अपने पढ़े लिखे युवा मित्रो से कहूँगा की आप भी किसी भी बात को फैलाने से पहले उसके बारे में कुछ जांच पड़ताल अवश्य करे। आज का जमाना इतना मॉडर्न है की आप एक क्लिक से किसी भी न्यूज़ के बारे में तुरंत पता लगा सकते है। तो कही भी शेयर करने से पहले उस न्यूज़ के इम्पैक्ट के बारे में अवश्य सोचे, क्योंकि आपके एक शेयर करने से जाने अनजाने में आप कई लाख नहीं तो कई हजार लोगो तक अपनी बात पहुँचाने में सक्षम है। आप पढ़े लिखे है आपसे उम्मीद की जाती है की आप अपने समाज को दिशा दिखाए और सही दिशा दिखाए, ताकि उनके जीवन में सुधार हो सके। आप इस बात से कतई इनकार नहीं कर सकते की आप अकेले के करने से क्या होता है आप करे तो सही। और आपकी समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है उसका अवश्य निर्वाह करे। चाहे जैसे करे अवश्य करे हर एक बात को सरकार के सिर पे छोड़ देना सही नहीं है। आप अपने आँख और कान हमेशा खुले रखे की आस पास क्या हो रहा है अगर गलत हो रहा है तो पूछे जरूर, पूछने में क्या जाता है।
जय हिन्द जय भारत।

Thursday, 7 January 2016

आतंकवाद और भारत

2 जनवरी 2016 तड़के सुबह जब कुछ लोगो की नए साल की पार्टी खत्म भी नहीं हुई होगी हमारे जवान सरहद पार से आये कुछ ऊँगली में गिने जाने वाले कुख्यात मुठ्ठी भर आतंकवादियों से लोहा ले रहे थे। 72 घंटे से भी ज्यादा चली इस मुठभेड़ में 7 सैनिको का शहीद होना हमारे सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती है। ये चुनौती इसीलिए भी है क्योंकि जब सामने वाला अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस हो और आप एक राइफल ले के लड़े तो चुनौती तो होगी ही। पिछले कई सालो से हम जितने आतंकवादी हमले हमने देखे है उसमे एक समानता है वे हमेशा आते है पूरी तैयारी के साथ और साथ में लाते है मानव विध्वंसक यन्त्र जिससे वे पलक झपकते अनगिनत मासूमो का जान ले सकते है।

लेकिन हालिया किये गए हमलो से ये साफ़ पता चलता है की अब उनका टारगेट सशत्र बलों का नुकसान पहुँचाना। चाहे वो गुरदासपुर की घटना हो या पठानकोट का हमला। वे आते तो है मुठ्ठी भर के लेकिन कोशिश करते है ज्यादा से ज्यादा हानि पहुँचाने की। लेकिन हमारे सुरक्षा तंत्रो को सोचना है की वे बार-बार क्यों संघर्ष करते है इन मुठ्ठी भर आतंकवादियों से। अगर हम ध्यान करे तो पाएंगे की ये चंद मुठ्ठी भर आतंकवादी हमारे घर में ही आ के हमे चुनौती देते है और हम कई कई दिनों तक संघर्ष करते है इनका सफाया करने के लिए। ये कितने भी सख्त ट्रेनिंग ले के क्यों ना आये हो लेकिन हमारे पास हमारे घर में लड़ने का फायदा होता है फिर भी हम संघर्ष करते है। पठानकोट जैसे हमले जो वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है सामरिक दृष्टि से भारत के लिए फिर भी भारत सरकार को एनएसजी भेजना परे तो मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।


लेकिन 24 घंटे पहले पंजाब पुलिस के एक एसपी का अपहरण कर लिया जाता है तो इसका अंदेशा तभी सुरक्षा कर्मियों को लगा लेनी चाहिए। कोई आम आदमी ऐसी घटना को अंजाम नहीं दे सकता ये तो कोई साधारण सा व्यक्ति भी बता सकता है।

जब से बीजेपी सत्ता में आई है ऐसा लगता है ऐसी घटनाये बढ़ गयी है। ऐसा भी हो सकता है की बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उन्हें एहसास हो गया है की भारत का पाकिस्तान का रिश्ता कितना नाजुक है। या उन्हें अब तक ये समझ नहीं आया है की पाकिस्तान के साथ रिश्ते को कैसे निभाया जाये। एक कारण ये भी हो सकता है की बीजेपी में सत्ता का केंद्र अलग अलग जगह होने से फैसला लेने में देरी की वजह से ऐसी घटनाये बार बार हो रही है। यह वैसे ही सिर्फ कोरा कयास ही हो सकता है जैसे की ये कहा गया की प्रधानमंत्री जी लाहौर गए और सुषमा जी को पता ही नहीं था।

जहाँ तक इस तरह के आतंकवादियों घटनाओ से निपटने के तरीको को सोचने की बात है और गंभीरता से सोचने की जरुरत है। कुछ लोग कहते है हमे हमला कर देना चाहिए, जरा सोचिये क्या यह व्यवहारिक है, नहीं, क्योंकि पाकिस्तान नामक कोढ़ वैसे ही जैसे ब्रेन में कैंसर का होना। हम बांकी जगह के कैंसर से लड़ तो सकते है पर ब्रेन के कैंसर से नहीं लड़ सकते। हमे यह बात कतई नहीं भूलनी चाहिए की हमारा पड़ोसी परमाणु बम से सुसज्जित है, क्योंकि अगर एक उद्ददण्ड बच्चे के हाथ में चाकू लग जाये तो चलता है लेकिन अगर बन्दुक लग जाये तो मुश्किल है उसे संभालना। वैसे ही कुछ हालात पाकिस्तान के है। हमे ये कभी नहीं भूलना चाहिए की वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति और सैनिक तानाशाह ने यहाँ तक कह दिया की हमने क्या परमाणु बम सब-बे-बारात में फोरने के लिए रखे तो हमे इस बाद का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए की ये इतना आसान नहीं है। वैसे भी ये तो सबको पता है वहाँ पर सत्ता का केंद्र सिर्फ नवाज शरीफ़ जी के पास नहीं है।

हमे उनसे बातचीत जारी रखनी चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमे कुछ ना बोल पाये और हमारे ऊपर किसी तरह का फालतू दवाब ना हो। दूसरी तरफ हमे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये सबूत देते रहने चाहिए ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति के मामले में भी हम उनसे दो कदम आगे रहे। हमे अपने फौजी ताकतों को भी धीरे धीरे बढ़ाते रहने चाहिए। हमे अपने फौजियों को भी आधुनिक हथियारों से लैस करना चाहिए ताकि वे भी आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए सक्षम हो सके। जैसे आतंकवादी आते है AK47 लेकर और हमारे जवान राइफल से उनका सामना करने को मजबूर है। हमे हमारे जवानो को अच्छी बुलेट प्रूफ जैकेट देनी चाहिए ताकि के निडर हो के दुश्मनो का सामना कर सके। ये कुछ बेसिक जरूरते है जो हमे अपने जवानो को मुहैया करानी चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौर पे ये भी लगता है की ऐसी घटनाओ के मामले मे हमे कुछ कानून में बदलाव कर सैनिको को कुछ अतिरिक्त शक्ति देनी चाहिए।

Tuesday, 5 January 2016

सरकार और भ्रष्टाचार

twitterकांग्रेस की सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ गया था। अपने काम के लिए किसी भी दफ़्तर में गए तो बिना पैसा दिए जनता का काम ही नहीं हो रहा था। बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण महंगाई भी बढ़ गई थी। देश की जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त हो गई थी। भ्रष्टाचार को रोके बिना देश की प्रगति को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि भ्रष्टाचार ही है जो विकास की गति को आगे बढ़ने से रोकती है।

देश के बढते भ्रष्टाचार को रोकना जरूरी है। यह जनता की मन से इच्छा है क्योंकि जनता ही है जो सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से ग्रषित है। 2011 में अन्ना का आंदोलन सिर्फ अन्ना और सरकार के बीच आंदोलन नहीं रह गया था। इसके लिए पूरे देश की जनता खड़ी हो गई थी। खास तौर पर युवाओ के योगदान की सराहना करनी होगी। जो बड़े पैमाने पर रास्ते पर उतर आई थी। देश के हर राज्य में, हर जिले यहाँ तक की गांव स्तर पर यह आंदोलन का रूप लेना, जनता का गुस्सा दर्शाता है भ्रष्टाचार के खिलाफ। आजादी के बाद पहली बार देश में इतना बड़ा आंदोलन जनता ने किया था। और ऐसा पहली बार हुआ जो इतना बड़ा आंदोलन बिना किसी हिंसा के संपन्न हुआ, ये जनता की सहिष्णुता दर्शाता है। आजकल कोई एक राजनितिक पार्टी बता दे जिसके आंदोलन में हिंसा ना हो।


बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता कांग्रेस सरकार से नाराज हो गई थी। ऐसी स्थिति में जब देश में 2014 में लोकसभा का चुनाव आया और बीजेपी ने जनता को आश्वासन दिया कि, हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो हम भ्रष्टाचार के विरोध की लड़ाई को प्राथमिकता देंगे। जनता ने बीजेपी पर विश्वास किया, और जनता ने बीजेपी की सरकार बनवाई। लेकिन आज भी कहीं पर भी बिना पैसा दिए जनता का काम नहीं होता है। न ही महंगाई कम हुई है। कांग्रेस सरकार और बीजेपी की सरकार में विशेष तौर पर भ्रष्टाचार के बारे में कोई फर्क दिखाई नहीं देता है। लोकसभा का पूरा का पूरा सत्र झगड़े में जा रहा है। जनता का करोडों रुपया बर्बाद हो रहा है।

बीजेपी ने जनता को यह भी आश्वासन दिया था कि, हमारे देश का काला धन जो विदेशों में छुपा है, उसको हमारी पार्टी के सत्ता में आने पर 100 दिन के अंदर देश में वापस लाएंगे और हर व्यक्ति के बैंक अकाउंट में 15 लाख रुपया जमा करेंगे। उस से देश का भ्रष्टाचार कम होगा। लेकिन आज तक किसी व्यक्ती के बैंक अकाउंट में 15 लाख तो क्या 15 पैसे भी जमा नहीं हुए है।

बीजेपी की सरकार को सत्ता में आ कर डेढ साल से ज़्यादा समय हो चुका है। लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो लोकपाल और लोकायुक्त कानून बना है, उस पर न तो सरकार कुछ बोलती हैं और न ही उस पर अमल करती हैं। हम उम्मीद लगाए हुए है कि कभी मन की बात में लोकपाल और लोकायुक्त के विषय पर प्रधानमंत्री जी कुछ ना कुछ बोलेंगे। क्यों कि भ्रष्टाचार के विरोध की लडाई को प्राथमिकता देने की बात देश की जनता से बीजेपी ने ही कही थी।

हो सकता है, उन बातों का शायद आपको विस्मरण हो गया हो, इसलिए आपको फिर से याद दिलाना आवश्यक है की हमने करोड़ों की संख्या में लोकपाल और लोकायुक्त के लिए देश में आंदोलन किया था। आश्वासन दे कर उस पर  अमल नहीं करना यह, उन देशवासियों का अपमान है।

भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए और भी कई आश्वासन दिए थे। लेकिन उनकी पूर्ति नहीं हुई है। कृषि-प्रधान देश के किसानों को बीजेपी ने आश्वासन दिया था कि, किसान खेती में पैदावारी के लिए जो खर्चा करता है, उसका डेढ़ गुना मूल्य किसानों को अपनी खेती की पैदावारी से मिलेगा। लेकिन आज भी खेती माल को सही दाम ना मिलने के कारण देश का किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है। देश की जनता की भलाई के लिए और देश के उज्जवल भविष्य, देश के विकास के लिए किसानो के हितो की रक्षा करना आवश्यक हो गया है।

सरकार में आते ही कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे जैसे अरुण जेटली जी पर डीडीसीए में हेर फेर का आरोप, राजस्थान की मुख्यमंत्री पर ललित मोदी से सांठ गाँठ का आरोप, सुषमा स्वराज पर ललित मोदी का सहायता करने का आरोप और भी कई मंत्रियों पर छोटे मोठे आरोपो का लगना।

दिल्ली की मुख्यमंत्री की बात करे तो उनके कई मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनमे से कई तो आज कल जेल में है।अरविंद केजरीवाल के ही शब्दों में राजनीती एक कीचड़ है जिसमे जाने के बाद कोई भी साफ़ नहीं रह सकता है। और भी कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों पर।

बिहार के मुख्यमंत्री की बात करते है उनके ऊपर भी भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर सरकार बनाने का आरोप लगा, कुछ हद तक ये सही भी है। क्योंकि जिन्होंने 90 का दशक जिया है बिहार में वे वाकिफ़ है इस बात से की किस कदर भ्रष्टाचार चरम पर था, बिहार में।

अगर हम सारे मुख्यमंत्रियों की बात करे तो लगभग सभी पर किसी ना किसी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप लगा ही है। इन लिस्ट में कुछ मुख्यमंत्री ऐसे है जो निर्विवाद रूप से किसी भी पार्टी के नेता उन्हें ईमानदार मानते ही है, चाहे कितनी प्रतिद्वंद्विता क्यों ना हो। कुल मिलाकर हम ये कह सकते है कोई भी सरकार हो शासन में आते आरोपो का लगना जैसे आम बात हो गयी है।

तो भ्रष्टाचार और सरकार का हमेशा से चोली दामन का साथ रहा है। कोई ऐसी सरकार नहीं जिसने कोई ऐसा फैसला लिया हो जो पूरी तरह जनता के हक़ में हो कही ना कही किसी ना किसी तरह से हर फ़ैसला प्रेरित रहा है। अगर जनता को इससे छुटकारा नहीं मिलता है तो वो दिन दूर नहीं जब भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहावत सिद्ध होती नज़र आएगी। सारे राजनितिक दल एक कोने में बैठे नज़र आएंगे और राष्ट्रपति जी का शासन हो रहा होगा क्योंकि किसी को आम जनता बहुमत ही नहीं देगी।

ये 65 सालो का भ्रष्टाचार कुछ दिन खत्म नहीं हो पायेगा, इसे मिटाने के लिए काफी मेहनत और काफी समय की जरुरत होगी और हमे देना होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार हमारे खून में है। इसको बार बार डायलिसिस की जरुरत है। जनता समय देने के लिए तत्पर है लेकिन कोई सरकार इस ओर कदम तो बढ़ाये ईमानदारी से।

Thursday, 31 December 2015

नया साल मुबारक 2016

happy-new-year-2016आने वाला समय नए साल का स्वागत और पुराने साल की अच्छे से विदाई कहने का वक़्त है। यह समय है पुराने समय की अच्छी बातो को याद करके उसके सहारे आगे बढ़ने की और बुरे समय को भूलने। यह समय है जीवन में कुछ नयी शुरुआत करने का। नया साल हमेशा सबके लिए कुछ ना कुछ सन्देश ले के आता है। हम सबको इस बात को समझना चाहिए जो कुछ भी गलत हुआ पिछले साल में उसके पीछे कोई ना कोई वजह रही होगी और उन गलत बातों को भूल के आगे बढ़ना चाहिए।

नए साल की शुरुआत लोगो को नए साल की मुबारकवाद से करे। साल २०१५, साल २०१६ के लिए बाहें फैलाएं खड़ा है और हमसे कह रहा है उठो, जागो, देखो और सीखो पिछले साल की गयी गलतियों से और नए साल का स्वागत करो नयी खुशियों और उम्मीदों से।


एक पुरानी कहावत है "हमे उन बातों पे रोना नहीं चाहिए जो बीत चूका है और हमे खुश होना चाहिए की ऐसा हो चूका है"। ये उसी तरह से व्यर्थ है जैसे ज़मीन पर बिखरे हुए दूध पे रोना। आप बीत गए समय को कभी वापस नहीं ला सकते लेकिन आप उसमे सुधार तो अवश्य कर सकते है। नया साल नयी ऊंचाइयों को छूने का है नयी शुरुवात करने का है। आये शपथ ले किसी की मुस्कराहट लाने का, किसी को खुशियाँ देने का। इस तरह आप दोनों खुशियाँ देख पाएंगे अपनी अपनी जिंदगियों में।

इसीलिए नया साल जैसे ही अपने आने की घोसना करे सबसे पहले आप अपने करीबियों को नए साल की मुबारकवाद दे और उन्हें बताएं आप उनसे कितना प्रेम करते और उनकी आपकी जिंदगी में क्या अहमियत है।

इन्ही शब्दों के साथ आप सभी के लिए आने वाले साल में धन, बल, सुख और शांति की कामना करते है।
जय हिन्द, जय भारत।

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