Saturday, 13 April 2019

व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व

व्यक्ति का समाज के प्रति वही दायित्व है जो अंगों का सम्पूर्ण शरीर के प्रति। यदि शरीर के विविध अंग किसी प्रकार स्वार्थी अथवा आत्मास्तित्व तक ही सीमित हो जायें तो निश्चय ही सारे शरीर के लिए एक खतरा पैदा हो जाए। सबसे पहले भोजन मुँह में आता है। यदि मुँह स्वार्थी बन कर उस भोजन को अपने तक ही सीमित रख कर उसका स्वाद लेता रहे और जब इच्छा हो उसे थूक कर फेंक दे, तो उसके इस स्वार्थ का परिणाम बड़ा भयंकर होगा। जब मुँह का चबाया हुआ भोजन पेट को न जाएगा तो कहाँ से उसका रस बनेगा और कहाँ से रक्त माँस, मज्जा आदि? इस क्रिया के बन्द हो जाने पर शरीर के दूसरे अंगों और अवयवों को तत्व मिलना बन्द हो जाएगा। वे क्षीण और निर्बल होने लगेंगे और धीरे-धीरे पूरी तरह अस्वस्थ होकर सदा-सर्वदा के लिए निर्जीव हो जायेंगे। पूरा शरीर टूट जाएगा और शीघ्र ही जीवन हीन होकर मिट्टी में मिल जाएगा। यह सब अनर्थ, एक मुँह के स्वार्थ-परायण हो जाने से घटित होगा।

व्यक्ति की स्वार्थपरता सामाजिक जीवन के लिए विष के समान घातक है। जो व्यक्ति सामूहिक दृष्टि से न सोच कर केवल अपने स्वार्थ, अपने व्यक्तिवाद में लगे रहते हैं, वे सम्पूर्ण समाज को एक प्रकार से विष देने का पाप करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा कभी भी शांत और सुखी नहीं रह सकती। शीघ्र ही उसका लोक तो बिगड़ ही जाता है, परलोक बिगड़ने की भूमिका भी तैयार हो जाती है। समाज में व्यक्तिगत भाव का कोई स्थान नहीं है। जिसने शक्ति, समृद्धि, सम्पन्नता अथवा पद प्रतिष्ठा के क्षेत्र में उन्नति तो कर ली है, किन्तु अपनी इन सारी उपलब्धियों को रखता अपने तक ही सीमित है, किसी भी रूप में समाज को उसका लाभ नहीं पहुँचता तो उसकी सारी उपलब्धियां, समृद्धियाँ और सफलताएँ हेय हैं। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति का कोई विवेकशील व्यक्ति तो आदर की दृष्टि से देखेगा नहीं, मूढ़ और मतिमन्द लोग भले ही उसको आदर, सम्मान देते रहें।
यदि देश का युवा जागरूक बनेगा तो देश को आगे बढने से कोई रोक नहीं सकता। समुदाय के विकास में भी युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शासन द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जो विकास का अध्याय लिखने का प्रयास हैं, वह तभी सम्भव हैं जब युवा ऐसे हितग्राहियों तक इन योजनाओं को लेकर जाए जिन्हें इनकी जानकारी नहीं मिल पाती है। युवाओं में नेतृत्व के गुण होना आवश्यक है और वे प्रशिक्षण के माध्यम से वे नेतृत्व के गुण सिखेंगे जिसका लाभ समाज को और देश को प्राप्त होगा। जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए और उस लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से जुटना चाहिए। हम तभी सामाजिक नेता बन सकते हैं जब हमारे मन में समाज के प्रति कुछ करने का भाव हो। युवा देश की ताकत है तथा इस ताकत का यदि सदुपयोग किया जाये तो देश की दिशा और दशा बदल सकती है। देश के विकास में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो तभी देश आगे बढ सकता है।

यह आम धारणा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को न्याय नहीं मिलता तथा पैसे वाले ही न्याय प्राप्त कर पाते हैं यह धारणा सही नहीं है। देश में राष्ट्रीय स्तर से लेकर तहसील स्तर तक विधिक सेवा प्राधिकरण बना हुआ है जिसके माध्यम से गरीबों को भी नि:शुल्क विधिक सेवा मिल सकती है तथा वे भी न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारी युवाओं को गांव तक पहुंचाना चाहिए ताकि ऐसे लोग भी इस सेवा का लाभ प्राप्त कर सकें जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है। व्यवसाय बारे में हमारा नजरिया सकारात्मक होना चाहिए तो हम हर क्षेत्र में आगे बढ सकते हैं व्यवसाय में भी नजरिया बहुत महत्वपूर्ण हैं। असफलताऐं हमें बहुत कुछ सिखाती और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। सोशल मीडिया ने देश में क्रांति ला दी है यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो इसका काफी लाभ भी हो सकता हैं वहीं इसका दुरूपयोग करने का दुष्परिणाम भी भुगतना पडता है। युवाओं को इसके सम्बंध में जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे इस नई तकनीक से वाकिफ होकर इसका लाभ प्राप्त कर सकें।

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