Wednesday 27 January 2016

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!

आज के दिन सभी एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये दे रहे है। आज की युवाओं की आदत है की आज सबको गणतंत्र दिवस की शुभकामना दी और अगले साल भर भूल जायेंगे। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बाते करेंगे और अगले दिन सब कुछ भूल जायेंगे। और अगली गणतंत्र दिवस आने तक प्रशासन को जी भर के कोसना।

क्यों ना हम आज के दिन कुछ अपने ने प्रण करे की अगले एक साल तक प्रशासन को कोसने के बजाये हम अपने अकेले के तौर पर जो बदल सकते है बदले जैसे की:
हम महिलाओं का अपमान नहीं करेंगे।
हम अपने आस पास गन्दा नहीं फ़ैलाएँगे।
हम कानून का पालन करेंगे।
हम कूड़ा को कूड़ेदान में डालेंगे।
हम उनकी सहायता करेंगे जिन्हें उसकी जरुरत होगी।
हम दुर्घटना में घायल लोगो को नजदीक के अस्पताल में पहुंचाएंगे।
सड़क के नियमो का पालन करेंगे।

जय हिन्द जय भारत!

Sunday 24 January 2016

कर्पूरी ठाकुर जी और उनके वारिस

#समस्तीपुर #बिहार जननायक कर्पूरी ठाकुर की 92वीं जयंती रविवार को पूरे राजकीय समारोह के साथ समस्तीपुर में मनाया गया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जननायक कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव पितौझिया कर्पूरी ग्राम पहुंचे. मुख्यमंत्री ने कहा की जननायक कर्पूरी ठाकुर समाजवादी नेता थे आज सभी उन्हीं के बताये रास्ते पर चलते हुए उनके आदर्शो को अपनाते हुए बिहार में न्याय के साथ विकास कर रहे है. बिहार के प्रमुख नेताओं- लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और नीतीश कुमार उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

24 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की 92वीं जयंती मनाने के लिए बिहार की राजनीति में होड़ लगी हुई है. जनता दल यूनाइटेड-राजद गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी, दोनों ही खेमे कर्पूरी जयंती को बड़े पैमाने पर मनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत पर दावेदारी के बारे में उनके बेटे और जनता दल यूनाइटेड से राज्यसभा के सदस्य रामनाथ ठाकुर की अपनी राय है. वो कहते हैं, “कर्पूरी ठाकुर हमेशा जनता की मांग पर ध्यान देने वाले नेता रहे।”


वहीं बिहार में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता नंद किशोर यादव कहते हैं, “कर्पूरी जी जीवन भर गैर कांग्रेसवाद के नारे को बुलंद करते रहे. कांग्रेस के वंशवाद के ख़िलाफ़ और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लगातार लड़ते रहे. आज वही लोग जो कर्पूरी जी को अपना नेता मानते हैं, कांग्रेस की गोद में चले गए.” इतना ही नहीं, नंद किशोर यादव ये भी दावा करते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ही कर्पूरी की असली वारिस है. वो कहते हैं, "कर्पूरी जी सर्वोच्च पद पर पिछड़ा समुदाय का व्यक्ति देखना चाहते थे, जिसकी वजह से भाजपा ने नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया है और गैर कांग्रेसवाद का झंडा हमने ही बुलंद किया हुआ है, तो हम ही उनके असली वारिस हो सकते हैं."

ऐसे में बड़ा सवाल ये उभरता है कि आखिर बिहार में जिस समाज की आबादी दो फ़ीसदी से कम है, उस समाज के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत के लिए इतनी हाय तौबा उनके निधन के 28 साल बाद क्यों मच रही है?

मंडल कमीशन लागू होने से पहले कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में वहां तक पहुंचे जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के लिए पहुँचना लगभग असंभव ही था. 24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्में कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे. 1952 के बाद बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे. राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए.

जब करोड़ो रूपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता. उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं. उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा. उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए. उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए.”

एक दूसरा उदाहरण है, कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखना नहीं भूले. इस ख़त में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना. कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना. मेरी बदनामी होगी.”

रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का फ़ायदा भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया. उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा. बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा. हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं."

हालांकि बिहार की राजनीति में उनपर दल बदल करने और दबाव की राजनीति करने का आरोप भी ख़ूब लगाया जाता रहा है. लेकिन कर्पूरी बिहार की परंपरागत व्यवस्था में करोड़ों वंचितों की आवाज़ बने रहे. कांग्रेस विरोधी राजनीति के अहम नेताओं में कर्पूरी ठाकुर शुमार किए जाते रहे. इंदिरा गांधी अपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें गिरफ़्तार नहीं करवा सकीं थीं. पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला हुआ था और उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया.

1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में आरक्षण लागू करने के चलते वो हमेशा के लिए सर्वणों के दुश्मन बन गए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे. वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी. उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का काम किया. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.

युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि एक कैंप आयोजित कर 9000 से ज़्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दे दी. इतने बड़े पैमाने पर एक साथ राज्य में इसके बाद आज तक इंजीनियर और डॉक्टर बहाल नहीं हुए. मुख्यमंत्री के तौर पर महज ढाई साल के वक्त में गरीबों के लिए उनकी कोशिशें की ख़ासी सराहना हुई.
दिन रात राजनीति में ग़रीब गुरबों की आवाज़ को बुलंद रखने की कोशिशों में जुटे कर्पूरी की साहित्य, कला एवं संस्कृति में काफी दिलचस्पी थी. वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी. वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे. यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी.

उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश के पिछड़ इलाकों में कई स्कूल और कॉलेज उनके नाम पर खोले गए। समाजवादी नेता होने के नाते कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण के काफी करीबी थे। ठाकुर को दलितों और गरीबों का मसीहा माना जाता है। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए 1978 में सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जाती के लोगों के लिए आरक्षण लागू किया।

सौजन्य: इंटरनेट पर उपलब्ध लेखो के आधार पर लिखा गया, यह लेख किसी प्रकार की व्यक्तिगत श्रेय का दावा नहीं करता है।

Saturday 16 January 2016

सामाजिक समरसता

अगर आज का भारत गाँधी जी जहाँ कही होंगे अगर देख रहे होंगे तो यह सोच के रो रहे होंगे क्या मैंने इसी भारत की तस्वीर देखी थी। अगर यही होना था तो क्यों ना अखंड भारत का सपना देखा।

दादरी उत्तर प्रदेश, मालदा पश्चिम बंगाल, पूर्णिया बिहार, फतेहपुर उत्तर प्रदेश, हरदा मध्य प्रदेश में अगर होने वाली घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है हम कितने असहिष्णु हो गए है। कहा गयी वो सामाजिक समरसता जब हमें अपने बचपन में कभी यह पता नहीं चला की हम कहाँ है और किसके साथ है। कभी हमारी माओं ने ये चिंता नहीं की, शाम हो गयी है मेरा बेटा कहाँ है और खाया या नहीं। लेकिन आज माओं को इस चिंता के बजाये इस बात की चिंता होती है की क्या हुआ होगा वो सही सलामत तो होगा, क्यों क्योंकि आज हमे अपने पड़ोसियों तक पर भरोसा नहीं रहा। क्योंकि हमारी वो जो आपस की एक अनजान डोरी हुआ करती थी जो हमे आपस में एक दूसरे से बांधे रखती थी वो कही टूटती सी नजर आती है। लेकिन मैं कहूँगा नहीं, ये हमारी सामाजिक समरसता आज भी है जो एक हिन्दू बेटी की शादी में एक मुस्लिम परिवार का कोई युवा अपना योगदान देता नजर आता है और कोई मुस्लिम परिवार की बेटी की शादी में हिन्दू युवा अपना योगदान देता नजर आता है। तो आखिर ऐसा क्यों है की वह अनजान धागा टूटता नजर आता है। ये सिर्फ और सिर्फ हमारे राजनितिक आकाओं की उपज है। क्यों, क्योंकि वे ये नहीं चाहते है की हम एक रहे क्योंकि इससे उनकी दूकान बंद होने का खतरा है।


अब आप सोचेंगे ऐसा मैं कैसे कह सकता हूँ। आप सोचे अगर किसी भी असेम्बली में सारे समुदाय एक मत से इस बात पर तैयार होते है की कोई उम्मीदवार हमारे लायक नहीं है और हम पूरी तरह चुनाव का बहिस्कार करेंगे तो क्या आज की तारीख में वहाँ पर सारे उम्मीदवारों को हटाकर दुबारा से चुनाव नहीं कराया जायेगा। तो सिर्फ इस एक उदाहरण के तौर आप सोच सकते है की ये राजनेता ही है जो ऐसा काम करते है।

जरुरी है राजनेता संभल जाये ऐसे कर्तव्यों से और ऐसे वक्तव्यों को देने से बचे वरना उनकी साख तो जायेगी ही साथ में उनकी अपनी पार्टी की भी साख जाती नजर आएँगी। यहाँ पर कुछ राजनेता जो कुछ ना कुछ हमेशा बोलते रहते है और जब भी बोलते है उससे आपस के समुदायो में तनाव बढ़ता है। लेकिन जब तक इन राजनेताओ को हम अपना मसीहा समझते रहेंगे तब तक ये हमारा इसी तरह फायदा उठाते रहेंगे। ये नेता कभी हिन्दू-मुस्लिम कह के डराते है कभी मुस्लिम-हिन्दू कह के डराते है, कभी ईसाइ-हिन्दू कह के डराते है कभी हिंदु-ईसाई कह के डराते है। जरा सोचिये इनके हाथ में पुरे राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होती और ऐसे कैसे एक जगह कुछ लाख या कुछ हज़ार लोग अचानक जमा हो जाते है और ऐसा कुछ कर जाते है जो मानवता के नाम पर कलंक है। क्या कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की नहीं है? कभी आपने सोचा है की किसी राजनेता के किसी रैली में ऐसी घटनाये क्यों नहीं होती है। कभी कोई राजनेता किसी बम्ब ब्लास्ट में नहीं मरता। क्योंकि जहाँ ये राजनेता होते है वहां की सुरक्षा चाक चौबंद होती है। जरा सोचिए हम राजनेता से है या राजनेता हमसे है। तो आखिर मरता कौन है आम आदमी कोई राजनेता क्यों नहीं। हमारे चुने हुए नेता को हमसे क्या खतरा जो हमसे ही नहीं मिलते चुनाव के बाद। चुनाव के पहले तक तो इनको जहाँ चाहो बिठा लो कोई फर्क नहीं परता, चुनाव जितने के बाद ही ये भीआईपी हो जाते है। मैं यहाँ छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा की मेरे क्षेत्र का सांसद कभी मेरे गाँव नहीं आता चुनाव जितने के बाद लेकिन चुनाव से पहले कई दफा मैंने उन्हें अपने गाँव में देखा है खड़े खड़े बात करते हुए किसी भी अनजान व्यक्ति से, मोटरसाइकिल पर भ्रमण करते हुए कई बार गुफ्तगू करने का भी मौका लगा लेकिन अगर मैं दिल्ली में उनसे मिलना चाहू तो शायद यह संभव नहीं क्योंकि दिल्ली आते ही वे एक भीआईपी हो जाते है। शायद संसद में वे सोनिया गांधी जी के बगल में हमेशा बैठे नजर आते है शायद नहीं भी। और आज तक कभी एक सवाल करते नहीं देखा और ना ही सुना। मैं यह नहीं कहता की आप सोनिया गांधी जी के बगल में ना बैठे लेकिन कम से कम अपने राजनितिक धर्म का तो पालन करे संसद में। अगर किन्ही राजनेताओं को सही मे खतरा है तो आप उन्हें सुरक्षा दीजिये लेकिन बांकी जनता के साथ तो ऐसा ना करे उनसे राजनेता मिले बात करे तभी उन्हें पता चल पायेगा की क्षेत्र में क्या कमी है जिसे दूर करने का प्रयास किया जाये। बात करने से बात बनती है।

तो जरुरत है हमे जागने की हम क्या है और हमे क्या चाहिए। जरुरत है हमे यह समझने की कौन सही है कौन गलत। कभी य राजनेताे बोलेंगे जोर जोर से जैसे इनका कोई सगा मर गया हो कभी यह चुपचाप परे रहते है एक शब्द मुँह से नहीं निकालते, क्यों क्योंकि वोट की राजनीती जो ठहरी। तो मतलब है इन्हें और इनकी मानसिकता को समझने की तभी हम इनके खिलाफ खड़े हो पाएंगे।  कुछ लोग दादरी पर चिल्ला चिल्ला के बहुत कुछ बोल गए लेकिन मालदा और पूर्णिया जैसी घटनाओं के बारे में कुछ नहीं बोला। जिन लोगों ने मालदा और पूर्णिया की घटनाओं पे गला फाड़ के चिल्लाये वे कभी दादरी और हरदा जैसी घटनाओ पर चुप्पी साध ली। क्या हम इतने बेवकूफ है हमे समझ नहीं आता की कौन क्या कह रहा है कैसे कह रहा है। या हम सुनना नहीं चाहते है। मुझे नहीं लगता है की हम ऐसे हो गए है की हम यही सुनना चाहते हो। या कुछ और है जिसकी वजह से हम चुप रहते है।

तो मैं यही कहना चाहता हूँ की आप अफवाहों पर ध्यान ना दे जबतक आपको विश्वस्त सूत्रो से पता ना चले। आप राजनेताओ की बात माने लेकिन उससे पहले अपने विवेक का उपयोग अवश्य करे। मैं अपने पढ़े लिखे युवा मित्रो से कहूँगा की आप भी किसी भी बात को फैलाने से पहले उसके बारे में कुछ जांच पड़ताल अवश्य करे। आज का जमाना इतना मॉडर्न है की आप एक क्लिक से किसी भी न्यूज़ के बारे में तुरंत पता लगा सकते है। तो कही भी शेयर करने से पहले उस न्यूज़ के इम्पैक्ट के बारे में अवश्य सोचे, क्योंकि आपके एक शेयर करने से जाने अनजाने में आप कई लाख नहीं तो कई हजार लोगो तक अपनी बात पहुँचाने में सक्षम है। आप पढ़े लिखे है आपसे उम्मीद की जाती है की आप अपने समाज को दिशा दिखाए और सही दिशा दिखाए, ताकि उनके जीवन में सुधार हो सके। आप इस बात से कतई इनकार नहीं कर सकते की आप अकेले के करने से क्या होता है आप करे तो सही। और आपकी समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है उसका अवश्य निर्वाह करे। चाहे जैसे करे अवश्य करे हर एक बात को सरकार के सिर पे छोड़ देना सही नहीं है। आप अपने आँख और कान हमेशा खुले रखे की आस पास क्या हो रहा है अगर गलत हो रहा है तो पूछे जरूर, पूछने में क्या जाता है।
जय हिन्द जय भारत।

Thursday 7 January 2016

आतंकवाद और भारत

2 जनवरी 2016 तड़के सुबह जब कुछ लोगो की नए साल की पार्टी खत्म भी नहीं हुई होगी हमारे जवान सरहद पार से आये कुछ ऊँगली में गिने जाने वाले कुख्यात मुठ्ठी भर आतंकवादियों से लोहा ले रहे थे। 72 घंटे से भी ज्यादा चली इस मुठभेड़ में 7 सैनिको का शहीद होना हमारे सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती है। ये चुनौती इसीलिए भी है क्योंकि जब सामने वाला अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस हो और आप एक राइफल ले के लड़े तो चुनौती तो होगी ही। पिछले कई सालो से हम जितने आतंकवादी हमले हमने देखे है उसमे एक समानता है वे हमेशा आते है पूरी तैयारी के साथ और साथ में लाते है मानव विध्वंसक यन्त्र जिससे वे पलक झपकते अनगिनत मासूमो का जान ले सकते है।

लेकिन हालिया किये गए हमलो से ये साफ़ पता चलता है की अब उनका टारगेट सशत्र बलों का नुकसान पहुँचाना। चाहे वो गुरदासपुर की घटना हो या पठानकोट का हमला। वे आते तो है मुठ्ठी भर के लेकिन कोशिश करते है ज्यादा से ज्यादा हानि पहुँचाने की। लेकिन हमारे सुरक्षा तंत्रो को सोचना है की वे बार-बार क्यों संघर्ष करते है इन मुठ्ठी भर आतंकवादियों से। अगर हम ध्यान करे तो पाएंगे की ये चंद मुठ्ठी भर आतंकवादी हमारे घर में ही आ के हमे चुनौती देते है और हम कई कई दिनों तक संघर्ष करते है इनका सफाया करने के लिए। ये कितने भी सख्त ट्रेनिंग ले के क्यों ना आये हो लेकिन हमारे पास हमारे घर में लड़ने का फायदा होता है फिर भी हम संघर्ष करते है। पठानकोट जैसे हमले जो वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है सामरिक दृष्टि से भारत के लिए फिर भी भारत सरकार को एनएसजी भेजना परे तो मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।


लेकिन 24 घंटे पहले पंजाब पुलिस के एक एसपी का अपहरण कर लिया जाता है तो इसका अंदेशा तभी सुरक्षा कर्मियों को लगा लेनी चाहिए। कोई आम आदमी ऐसी घटना को अंजाम नहीं दे सकता ये तो कोई साधारण सा व्यक्ति भी बता सकता है।

जब से बीजेपी सत्ता में आई है ऐसा लगता है ऐसी घटनाये बढ़ गयी है। ऐसा भी हो सकता है की बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उन्हें एहसास हो गया है की भारत का पाकिस्तान का रिश्ता कितना नाजुक है। या उन्हें अब तक ये समझ नहीं आया है की पाकिस्तान के साथ रिश्ते को कैसे निभाया जाये। एक कारण ये भी हो सकता है की बीजेपी में सत्ता का केंद्र अलग अलग जगह होने से फैसला लेने में देरी की वजह से ऐसी घटनाये बार बार हो रही है। यह वैसे ही सिर्फ कोरा कयास ही हो सकता है जैसे की ये कहा गया की प्रधानमंत्री जी लाहौर गए और सुषमा जी को पता ही नहीं था।

जहाँ तक इस तरह के आतंकवादियों घटनाओ से निपटने के तरीको को सोचने की बात है और गंभीरता से सोचने की जरुरत है। कुछ लोग कहते है हमे हमला कर देना चाहिए, जरा सोचिये क्या यह व्यवहारिक है, नहीं, क्योंकि पाकिस्तान नामक कोढ़ वैसे ही जैसे ब्रेन में कैंसर का होना। हम बांकी जगह के कैंसर से लड़ तो सकते है पर ब्रेन के कैंसर से नहीं लड़ सकते। हमे यह बात कतई नहीं भूलनी चाहिए की हमारा पड़ोसी परमाणु बम से सुसज्जित है, क्योंकि अगर एक उद्ददण्ड बच्चे के हाथ में चाकू लग जाये तो चलता है लेकिन अगर बन्दुक लग जाये तो मुश्किल है उसे संभालना। वैसे ही कुछ हालात पाकिस्तान के है। हमे ये कभी नहीं भूलना चाहिए की वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति और सैनिक तानाशाह ने यहाँ तक कह दिया की हमने क्या परमाणु बम सब-बे-बारात में फोरने के लिए रखे तो हमे इस बाद का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए की ये इतना आसान नहीं है। वैसे भी ये तो सबको पता है वहाँ पर सत्ता का केंद्र सिर्फ नवाज शरीफ़ जी के पास नहीं है।

हमे उनसे बातचीत जारी रखनी चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमे कुछ ना बोल पाये और हमारे ऊपर किसी तरह का फालतू दवाब ना हो। दूसरी तरफ हमे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये सबूत देते रहने चाहिए ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति के मामले में भी हम उनसे दो कदम आगे रहे। हमे अपने फौजी ताकतों को भी धीरे धीरे बढ़ाते रहने चाहिए। हमे अपने फौजियों को भी आधुनिक हथियारों से लैस करना चाहिए ताकि वे भी आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए सक्षम हो सके। जैसे आतंकवादी आते है AK47 लेकर और हमारे जवान राइफल से उनका सामना करने को मजबूर है। हमे हमारे जवानो को अच्छी बुलेट प्रूफ जैकेट देनी चाहिए ताकि के निडर हो के दुश्मनो का सामना कर सके। ये कुछ बेसिक जरूरते है जो हमे अपने जवानो को मुहैया करानी चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौर पे ये भी लगता है की ऐसी घटनाओ के मामले मे हमे कुछ कानून में बदलाव कर सैनिको को कुछ अतिरिक्त शक्ति देनी चाहिए।

Tuesday 5 January 2016

सरकार और भ्रष्टाचार

twitterकांग्रेस की सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ गया था। अपने काम के लिए किसी भी दफ़्तर में गए तो बिना पैसा दिए जनता का काम ही नहीं हो रहा था। बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण महंगाई भी बढ़ गई थी। देश की जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त हो गई थी। भ्रष्टाचार को रोके बिना देश की प्रगति को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि भ्रष्टाचार ही है जो विकास की गति को आगे बढ़ने से रोकती है।

देश के बढते भ्रष्टाचार को रोकना जरूरी है। यह जनता की मन से इच्छा है क्योंकि जनता ही है जो सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से ग्रषित है। 2011 में अन्ना का आंदोलन सिर्फ अन्ना और सरकार के बीच आंदोलन नहीं रह गया था। इसके लिए पूरे देश की जनता खड़ी हो गई थी। खास तौर पर युवाओ के योगदान की सराहना करनी होगी। जो बड़े पैमाने पर रास्ते पर उतर आई थी। देश के हर राज्य में, हर जिले यहाँ तक की गांव स्तर पर यह आंदोलन का रूप लेना, जनता का गुस्सा दर्शाता है भ्रष्टाचार के खिलाफ। आजादी के बाद पहली बार देश में इतना बड़ा आंदोलन जनता ने किया था। और ऐसा पहली बार हुआ जो इतना बड़ा आंदोलन बिना किसी हिंसा के संपन्न हुआ, ये जनता की सहिष्णुता दर्शाता है। आजकल कोई एक राजनितिक पार्टी बता दे जिसके आंदोलन में हिंसा ना हो।


बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता कांग्रेस सरकार से नाराज हो गई थी। ऐसी स्थिति में जब देश में 2014 में लोकसभा का चुनाव आया और बीजेपी ने जनता को आश्वासन दिया कि, हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो हम भ्रष्टाचार के विरोध की लड़ाई को प्राथमिकता देंगे। जनता ने बीजेपी पर विश्वास किया, और जनता ने बीजेपी की सरकार बनवाई। लेकिन आज भी कहीं पर भी बिना पैसा दिए जनता का काम नहीं होता है। न ही महंगाई कम हुई है। कांग्रेस सरकार और बीजेपी की सरकार में विशेष तौर पर भ्रष्टाचार के बारे में कोई फर्क दिखाई नहीं देता है। लोकसभा का पूरा का पूरा सत्र झगड़े में जा रहा है। जनता का करोडों रुपया बर्बाद हो रहा है।

बीजेपी ने जनता को यह भी आश्वासन दिया था कि, हमारे देश का काला धन जो विदेशों में छुपा है, उसको हमारी पार्टी के सत्ता में आने पर 100 दिन के अंदर देश में वापस लाएंगे और हर व्यक्ति के बैंक अकाउंट में 15 लाख रुपया जमा करेंगे। उस से देश का भ्रष्टाचार कम होगा। लेकिन आज तक किसी व्यक्ती के बैंक अकाउंट में 15 लाख तो क्या 15 पैसे भी जमा नहीं हुए है।

बीजेपी की सरकार को सत्ता में आ कर डेढ साल से ज़्यादा समय हो चुका है। लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो लोकपाल और लोकायुक्त कानून बना है, उस पर न तो सरकार कुछ बोलती हैं और न ही उस पर अमल करती हैं। हम उम्मीद लगाए हुए है कि कभी मन की बात में लोकपाल और लोकायुक्त के विषय पर प्रधानमंत्री जी कुछ ना कुछ बोलेंगे। क्यों कि भ्रष्टाचार के विरोध की लडाई को प्राथमिकता देने की बात देश की जनता से बीजेपी ने ही कही थी।

हो सकता है, उन बातों का शायद आपको विस्मरण हो गया हो, इसलिए आपको फिर से याद दिलाना आवश्यक है की हमने करोड़ों की संख्या में लोकपाल और लोकायुक्त के लिए देश में आंदोलन किया था। आश्वासन दे कर उस पर  अमल नहीं करना यह, उन देशवासियों का अपमान है।

भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए और भी कई आश्वासन दिए थे। लेकिन उनकी पूर्ति नहीं हुई है। कृषि-प्रधान देश के किसानों को बीजेपी ने आश्वासन दिया था कि, किसान खेती में पैदावारी के लिए जो खर्चा करता है, उसका डेढ़ गुना मूल्य किसानों को अपनी खेती की पैदावारी से मिलेगा। लेकिन आज भी खेती माल को सही दाम ना मिलने के कारण देश का किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है। देश की जनता की भलाई के लिए और देश के उज्जवल भविष्य, देश के विकास के लिए किसानो के हितो की रक्षा करना आवश्यक हो गया है।

सरकार में आते ही कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे जैसे अरुण जेटली जी पर डीडीसीए में हेर फेर का आरोप, राजस्थान की मुख्यमंत्री पर ललित मोदी से सांठ गाँठ का आरोप, सुषमा स्वराज पर ललित मोदी का सहायता करने का आरोप और भी कई मंत्रियों पर छोटे मोठे आरोपो का लगना।

दिल्ली की मुख्यमंत्री की बात करे तो उनके कई मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उनमे से कई तो आज कल जेल में है।अरविंद केजरीवाल के ही शब्दों में राजनीती एक कीचड़ है जिसमे जाने के बाद कोई भी साफ़ नहीं रह सकता है। और भी कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों पर।

बिहार के मुख्यमंत्री की बात करते है उनके ऊपर भी भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर सरकार बनाने का आरोप लगा, कुछ हद तक ये सही भी है। क्योंकि जिन्होंने 90 का दशक जिया है बिहार में वे वाकिफ़ है इस बात से की किस कदर भ्रष्टाचार चरम पर था, बिहार में।

अगर हम सारे मुख्यमंत्रियों की बात करे तो लगभग सभी पर किसी ना किसी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप लगा ही है। इन लिस्ट में कुछ मुख्यमंत्री ऐसे है जो निर्विवाद रूप से किसी भी पार्टी के नेता उन्हें ईमानदार मानते ही है, चाहे कितनी प्रतिद्वंद्विता क्यों ना हो। कुल मिलाकर हम ये कह सकते है कोई भी सरकार हो शासन में आते आरोपो का लगना जैसे आम बात हो गयी है।

तो भ्रष्टाचार और सरकार का हमेशा से चोली दामन का साथ रहा है। कोई ऐसी सरकार नहीं जिसने कोई ऐसा फैसला लिया हो जो पूरी तरह जनता के हक़ में हो कही ना कही किसी ना किसी तरह से हर फ़ैसला प्रेरित रहा है। अगर जनता को इससे छुटकारा नहीं मिलता है तो वो दिन दूर नहीं जब भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहावत सिद्ध होती नज़र आएगी। सारे राजनितिक दल एक कोने में बैठे नज़र आएंगे और राष्ट्रपति जी का शासन हो रहा होगा क्योंकि किसी को आम जनता बहुमत ही नहीं देगी।

ये 65 सालो का भ्रष्टाचार कुछ दिन खत्म नहीं हो पायेगा, इसे मिटाने के लिए काफी मेहनत और काफी समय की जरुरत होगी और हमे देना होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार हमारे खून में है। इसको बार बार डायलिसिस की जरुरत है। जनता समय देने के लिए तत्पर है लेकिन कोई सरकार इस ओर कदम तो बढ़ाये ईमानदारी से।

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