Thursday 7 January 2016

आतंकवाद और भारत

2 जनवरी 2016 तड़के सुबह जब कुछ लोगो की नए साल की पार्टी खत्म भी नहीं हुई होगी हमारे जवान सरहद पार से आये कुछ ऊँगली में गिने जाने वाले कुख्यात मुठ्ठी भर आतंकवादियों से लोहा ले रहे थे। 72 घंटे से भी ज्यादा चली इस मुठभेड़ में 7 सैनिको का शहीद होना हमारे सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती है। ये चुनौती इसीलिए भी है क्योंकि जब सामने वाला अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस हो और आप एक राइफल ले के लड़े तो चुनौती तो होगी ही। पिछले कई सालो से हम जितने आतंकवादी हमले हमने देखे है उसमे एक समानता है वे हमेशा आते है पूरी तैयारी के साथ और साथ में लाते है मानव विध्वंसक यन्त्र जिससे वे पलक झपकते अनगिनत मासूमो का जान ले सकते है।

लेकिन हालिया किये गए हमलो से ये साफ़ पता चलता है की अब उनका टारगेट सशत्र बलों का नुकसान पहुँचाना। चाहे वो गुरदासपुर की घटना हो या पठानकोट का हमला। वे आते तो है मुठ्ठी भर के लेकिन कोशिश करते है ज्यादा से ज्यादा हानि पहुँचाने की। लेकिन हमारे सुरक्षा तंत्रो को सोचना है की वे बार-बार क्यों संघर्ष करते है इन मुठ्ठी भर आतंकवादियों से। अगर हम ध्यान करे तो पाएंगे की ये चंद मुठ्ठी भर आतंकवादी हमारे घर में ही आ के हमे चुनौती देते है और हम कई कई दिनों तक संघर्ष करते है इनका सफाया करने के लिए। ये कितने भी सख्त ट्रेनिंग ले के क्यों ना आये हो लेकिन हमारे पास हमारे घर में लड़ने का फायदा होता है फिर भी हम संघर्ष करते है। पठानकोट जैसे हमले जो वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है सामरिक दृष्टि से भारत के लिए फिर भी भारत सरकार को एनएसजी भेजना परे तो मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।


लेकिन 24 घंटे पहले पंजाब पुलिस के एक एसपी का अपहरण कर लिया जाता है तो इसका अंदेशा तभी सुरक्षा कर्मियों को लगा लेनी चाहिए। कोई आम आदमी ऐसी घटना को अंजाम नहीं दे सकता ये तो कोई साधारण सा व्यक्ति भी बता सकता है।

जब से बीजेपी सत्ता में आई है ऐसा लगता है ऐसी घटनाये बढ़ गयी है। ऐसा भी हो सकता है की बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उन्हें एहसास हो गया है की भारत का पाकिस्तान का रिश्ता कितना नाजुक है। या उन्हें अब तक ये समझ नहीं आया है की पाकिस्तान के साथ रिश्ते को कैसे निभाया जाये। एक कारण ये भी हो सकता है की बीजेपी में सत्ता का केंद्र अलग अलग जगह होने से फैसला लेने में देरी की वजह से ऐसी घटनाये बार बार हो रही है। यह वैसे ही सिर्फ कोरा कयास ही हो सकता है जैसे की ये कहा गया की प्रधानमंत्री जी लाहौर गए और सुषमा जी को पता ही नहीं था।

जहाँ तक इस तरह के आतंकवादियों घटनाओ से निपटने के तरीको को सोचने की बात है और गंभीरता से सोचने की जरुरत है। कुछ लोग कहते है हमे हमला कर देना चाहिए, जरा सोचिये क्या यह व्यवहारिक है, नहीं, क्योंकि पाकिस्तान नामक कोढ़ वैसे ही जैसे ब्रेन में कैंसर का होना। हम बांकी जगह के कैंसर से लड़ तो सकते है पर ब्रेन के कैंसर से नहीं लड़ सकते। हमे यह बात कतई नहीं भूलनी चाहिए की हमारा पड़ोसी परमाणु बम से सुसज्जित है, क्योंकि अगर एक उद्ददण्ड बच्चे के हाथ में चाकू लग जाये तो चलता है लेकिन अगर बन्दुक लग जाये तो मुश्किल है उसे संभालना। वैसे ही कुछ हालात पाकिस्तान के है। हमे ये कभी नहीं भूलना चाहिए की वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति और सैनिक तानाशाह ने यहाँ तक कह दिया की हमने क्या परमाणु बम सब-बे-बारात में फोरने के लिए रखे तो हमे इस बाद का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए की ये इतना आसान नहीं है। वैसे भी ये तो सबको पता है वहाँ पर सत्ता का केंद्र सिर्फ नवाज शरीफ़ जी के पास नहीं है।

हमे उनसे बातचीत जारी रखनी चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमे कुछ ना बोल पाये और हमारे ऊपर किसी तरह का फालतू दवाब ना हो। दूसरी तरफ हमे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये सबूत देते रहने चाहिए ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति के मामले में भी हम उनसे दो कदम आगे रहे। हमे अपने फौजी ताकतों को भी धीरे धीरे बढ़ाते रहने चाहिए। हमे अपने फौजियों को भी आधुनिक हथियारों से लैस करना चाहिए ताकि वे भी आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए सक्षम हो सके। जैसे आतंकवादी आते है AK47 लेकर और हमारे जवान राइफल से उनका सामना करने को मजबूर है। हमे हमारे जवानो को अच्छी बुलेट प्रूफ जैकेट देनी चाहिए ताकि के निडर हो के दुश्मनो का सामना कर सके। ये कुछ बेसिक जरूरते है जो हमे अपने जवानो को मुहैया करानी चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौर पे ये भी लगता है की ऐसी घटनाओ के मामले मे हमे कुछ कानून में बदलाव कर सैनिको को कुछ अतिरिक्त शक्ति देनी चाहिए।

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