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Saturday, 22 June 2019

मुज़फ़्फ़रपुर एक घटना या सरकारी उदासीनता

बड़े दुःख की बात है हम 21वी सदी में है और चांद पर पैर रखने वाले है। लेकिन जो भविष्य है, आज भी बेमौत मर रहे है किस वजह से वह भी एक मामूली सा बुखार से जिसकी रोकथाम में अहम योगदान जागरूकता का भी हो सकता है। हर वर्ष जब एक ही समय में सालों से यह दस्तक दे और सरकारों को यह भी पता हो कि इसकी जागरूकता से इसपर काबू किया जा सकता है फिर सरकारे ऐसा लगता है सोई रहती है इस तरह के किसी बड़ी घटना के घटने के इंतजार में।

हम सभी को पता है कि कुपोषित और कमज़ोर शरीर में बीमारियों का आक्रमण आसानी से होता है। दो भोजन के बीच 4 घंटे से अधिक के गैप से कमज़ोर शरीर और अधिक कमज़ोर हो जाता है। ऐसे में इस तरह के बुखार आने की सम्भावना बढ़ जाती है। "इसके आक्रमण से 4-6 घंटे में सर में एक द्रव्य जमा होने लगता है जिससे मस्तिष्क पर प्रेशर बढ़ता है और वहाँ से होने वाला सारे शरीर का कंट्रोल बंद होने लगता है।" यह किसी रिपोर्ट में पढ़ा था।

शरीर में बुखार से पहले सोडियम कम होता है। नमक में सोडीयम है और चीनी में शुगर जो घरेलू ओआरएस का घोल है जो वास्तव में यही घरेलू और प्राथमिक उपचार है। ऐसे में यदि किसी भी बुखार पीड़ित को प्रारम्भिक उपचार मिले तो वो या तो ठीक हो जाएगा या फिर अस्पताल ले जाने तक वह जीवन से लड़ता हुआ पायेगा।

यह समस्या क्या और कितनी बड़ी है, हम इसमें कितना योगदान दे सकते हैं यह सोचने के साथ साथ सहायता करने की भी जरूरत है। सवाल उठता है की हमें करना क्या चाहिए? सबसे पहले तो अभी चल रहे सारे प्रयास जारी रहना चाहिए चाहे वो सरकारी हो गैर सरकारी हो। हमें यह मानकर चलना चाहिए की हर घर सेवा पहुँचाना सम्भव नहीं है लेकिन सरकारी मदद की दरकार अवश्य है जिसके बिना यह संभव नही। ऐसे मामलों में जागरूकता बढ़ा रही संस्थाएँ सबसे अधिक कारगर होंगी जो ऐसे मामलों में सबसे बड़ी वजह भी होती है तो हमे लोगों में बीमारी और उससे बचने की सूचना पहुँचा कर जागरूकता बढ़ाना चाहिए। हम लोगों को बताएँ की नमक और चीनी नामक रामबाण इलाज उनके घर में ही है। वो बच्चों के खाने के बीच अधिक समय का गैप न दें। खुली और साफ़ हवा देकर या गिली पट्टी कर बुखार को बढ़ने से रोके। साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखते हुए मरीज़ को जल्द से जल्द अस्पताल ले जाएँ। जगह जगह पर्चे बाँट कर या लगाकर भी ऐसा कर सकते है। छोटे माइक लेकर लोगों को जमा कर उन्हें रिकॉर्डिंग सुना सकते हैं या नुक्कड़ सभा कर जागरूकता फैला सकते हैं।

ऐसे में यह भी ध्यान रहे की हम कोई ग़लत सूचना न फैलाएँ। UNICEF की टीम वहाँ काम कर रही है और वे लोग 2012 से ही इस पर काम भी कर रहे हैं। तकनीकी बातें वे बेहतर समझते है।

शुरुआती दौर में सोने के बाद प्रशासन अब क्रियाशील हुए है इसकी कई वजहें हैं जैसे सवयंसेवी संस्थाओं, सरकार और मीडिया का दबाव। प्रशासन को सहयोग करना सभी स्वयंसेवी संस्थाओं का काम है और वो कर भी रहे हैं।

हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए की सीमित संसाधनों के रहते अचानक से आये महामारी को सम्भालना आसान नहीं। याद करिये जब अचानक से दिल्ली में डेंगू और चिकुनगुनिया के मामले बढ़ने लगते है तब यही विश्वस्तरीय दिल्ली उसको संभालने में नाकाम दिखने लगती है। सरकारों द्वारा संसाधन को जनसंख्या के अनुपात में नही बढ़ाने और कारगर तरीके से काम नही करने का दोषी अवश्य ठहराए जाने चाहिए। ये ग़लत समय और मौका होगा की डॉक्टर या अस्पताल पर सवाल उठाने का, क्योंकि उन्हें जो मिलता है उसी संसाधनों में काम करने होते है यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि एक ही समय हर वर्ष एक तरीके से आपदा एक ही क्षेत्र के आस पास दस्तक दे तो यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि इसके बारे में जनता के बीच जागरूकता फैलाये और अस्पताल में उसी तरीके से तैयारी किये जाय। मेरी समझ से डॉक्टरों को दोषी ठहराने से हम उनकी कार्यक्षमता को और कम करेंगे। हमें उन पत्रकारों की भी भर्त्सना करनी चाहिए जो बिना ICU में जाने की तैयारी किये बिना माइक लेकर डॉक्टरों से सवाल करते है। उन्हें डॉक्टरों से सवाल के विपरीत अस्पताल प्रशासन या सरकारी तंत्र से ये बाते पूछनी चाहिए। इसको पत्रकारिता तो नही ही कहेंगे यह कुछ लोगो के लिए साहसिक काम लग सकता है लेकिन यह उससे बड़ा मूर्खतापूर्ण कार्य भी है।

हम सरकारों से सवाल तभी पूछते है जब ऐसी घटनाएं होती है। चाहे मुजफ्फपुर में AES (Acute Encephalitis Syndrome) से हो रही मौते हो या गोरखपुर में हो रही मौते हो या दिल्ली जैसे शहर में डेंगू या चिकुनगुनिया से हो रही मौते हो। हम कुछ दिनों बाद सब कुछ भुल जाते है तो सरकारे भी भूल जाती है। जबकि यह सारे मुद्दे तबतक जीवित रहने चाहिए जबतक इसका पूर्णरूपेण समाधान ना हो जाये। यह सारे मुद्दे कही ना कही स्वास्थ्य, पर्यावरण और कुपोषण से जुड़े मुद्दे है जो हमारे चुनावो में ये मुद्दे नही होते है। अब समय आ गया है कि ऐसे मुद्दे उठाए जाएं और बार बार उठाये जाय।

Saturday, 16 February 2019

पुलवामा हमले के बाद भारत को क्या करना चाहिए?

पुलवामा हमले के बाद भारत को क्या करना चाहिए?

पुलवामा हमले में हुई क्षति के लिए हमारी संवेदना उन परिवारों के साथ है जिन्होंने अपनो को खोया है। कोई भी शब्द इसकी भरपाई नही कर सकता है।

पुलवामा हमले में भारतीय जवानों के ऊपर हुई कार्यवाही को कायराना माना जायेगा। देश मे उपजे आक्रोश को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नही की लोगो को एकमात्र उपाय आर या पार ही दिख रहा है। क्या यही एक उपाय है मेरे ख्याल से शायद नही? क्योंकि इसके अलावा और भी कदम है जिसको भारत सरकार उठा सकती है जिससे सरहद पार देश को सोचना पड़ेगा। मैं निम्नलिखित बातों पर अमल करने के केंद्र सरकार से अपेक्षा करता हूँ:-
१) MFN का दर्जा समाप्त (कर दिया गया)।
२) भारतीय राजदूत को ना कि सिर्फ बुलाया जाय बल्कि भारतीय उच्चायोग को तब तक बंद कर देना चाहिए जबतक पाकिस्तान की तरफ आगे कोई हमला नही होने का संयुक्त राष्ट्र में लिखित आश्वासन ना मिल जाय।
३) रेल सेवा के साथ साथ बस सेवा को भी बंद कर देना चाहिए।
४) भारत का हवाई क्षेत्र को पाकिस्तान से उड़ने वाले या पाकिस्तान को जाने वाले सभी हवाई उपयोग के लिए प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
५) संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के पक्ष को मजबूती से बार बार उठाना चाहिए।
६) बलोचिस्तान को खुलकर कूटनीतिक समर्थन देना शुरू करना चाहिए।
७) अफगानिस्तान के पूर्वी सीमा जो पाकिस्तान को लगती है वहाँ पर काम करने के क्षेत्र को बढ़ाना चाहिए।
८) भारत के अंदर किसी भी भारतीय द्वारा पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे नारे को पूर्णतः प्रतिबंधित कर देना चाहिए कोई भी ऐसा करते हुए पकड़ा जाएगा तो उसको IPC के तहत कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
९) कश्मीर के लिए अलग से नीति बननी चाहिए जो भारत को मानेगा उससे बात होगी जो उसकी आजादी की बात करेगा उससे बात नही होगी साथ मे उसपर कानूनी कार्यवाही भी होगी।
१०) सेना को पाकिस्तानी सीमा पर लगातार कुछ ना कुछ करते रहने चाहिए ताकि पाकिस्तान कुछ ऐसा करे जिससे उसकी संयुक्त राष्ट्र में छवि को सबके सामने पेश किया जा सके। अगर इधर एक गोला गिरे तो उधर चार गिरने चाहिए और लगातार होते रहने चाहिए।
११) घुसपैठ शब्द को आतंकवाद शब्द से बदल देना चाहिए। हमे अपने संविधान में सीमापार से हुए किसी भी तरह की घुसपैठ को आतंकवाद कहा जायेगा। कोई अच्छा या बुरा आतंकवाद नही हम सिर्फ आतंकवाद को मानेंगे और उसी के हिसाब से हम अपनी प्रतिक्रिया देने को स्वतंत्र होंगे।
१२) किसी भी तरह के व्यापार पर प्रतिबंध।
१३) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर जगह पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग थलग करने की कोशिश जारी करनी चाहिए।
१४) पाकिस्तान से कोई भी सांस्कृतिक आदान प्रदान के नाम पर किसी भी तरह रिश्ता नही रखेगा चाहे वो फिल्मकार हो साहित्यकार हो या राजनेता।
१५) पाकिस्तान के साथ लगने वाले सभी बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद कर देने चाहिए।
१६) किसी भी तरीक़े की राजनैतिक बातचीत तबतक नही होगी जबतक पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में लिखित में इस बात का आश्वासन ना दे दे कि अब उनकी जमीन भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए उपयोग नही होगी।

धन्यवाद।

Saturday, 8 September 2018

सोशल मीडिया का मकरजाल

जिंदगी कितनी खुबसूरत होती है, जब आप किसी राजनैतिक पार्टी की ना तो तरफदारी करते है, ना ही विरोध करते है। खासकर तब जब आप ना तो कोई टीवी डिबेट देखते है और ना ही सोशल मीडिया पर दोस्तों का टाइमलाइन देखते है। और तो और किसी भी पेपर को पढने के बाद उसकी किसी बात को दिल पे ना लेते हुए उसको एक जानकारी का साधन समझते हुए पढ़ जाते है। किसी नेता को फॉलो करने के बाद भी उसके किसी बात पर कोई टिपण्णी नहीं करते है तो वाकई में लगता है जिंदगी कितनी खुबसूरत है। अपने में मग्न, क्या करना है और क्यों करना है ऐसी बातो पर बहस। जब ना तो सरकारे बदलती है ना सरकारों के काम करने का तरिका तो क्यों ना चुपचाप अपनी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने की कोशिश की जाए।
क्यों ना किसी गरीब की किसी प्रकार से सहायता के बारे में सोचना चाहिए। सरकारे आती जाती रहती है उसके काम करने का तरीका नहीं बदलता है, क्योंकि उनके रिसोर्स तो वही रहते है तो कैसे कोई सरकार बदल जाए कोई घोटाले करने में मस्त है फिर भी हम बुद्धिजीवी बने अपने शब्दों के जाल में एक आम आदमी को भटकाए रहते है। उसने तुम्हारे लिए क्या किया था/है हमने तो तुम्हारे लिए ये किया था/है सरकारे बदलती है सोच तो बदलती नहीं क्योंकि सोच तो वही है जिसको हम नौकरशाह कहते है। बुद्धिजीवी वही है जो कल भी वही थे आज भी वही है बस उनके शब्दों का जाल थोडा सीधा/उल्टा हो गया है।

यही एक भ्रमजाल है जिसके अन्दर हमें एक ऐसे चक्रव्यूह में डाल दिया जाता है। जिसके अन्दर हम अभिमन्यु की तरह लड़ते लड़ते आखिर में अपना दम तोड़ देते है और डालने वाले कौन होते है यही चंद राजनेता, यही चंद बुद्धिजीवी तथा यही चंद नौकरशाह नामक दुर्योधन, कृपाचार्य और कर्ण नाम के योधाओ के मध्य अभिमन्यु की तरह मारे जाते है। जिसे यह भान/खुशफहमी होता है की वह यह जाल तो तोड़ ही देगा और इसी भ्रम में इनके चक्रव्यूह में एक बार घुस गए तो हम भी उसी अभिमन्यु की तरह आखिरकार वीरगति को प्राप्त हो जाते है। और हमारी वीरगति के बाद हमें ऐसे दफनाया/जलाया जाता है जैसे हमने कोई ऐसा काम किया है जिसको आजतक किसी ने नहीं किया है। लेकिन वही जब यह युद्ध ख़त्म होता है तो हमारे बारे में किसी को पता तक नहीं होता है। आखिरकार कौन बचता है वही नौकरशाह नमक कृपाचार्य, नेता नमक दुर्योधन तथा बुद्धिजीवी नामक कर्ण के पुतले लगते है और इन्ही की किताब छपती है जिससे ये पैसे भी कमाते है और बाद में शौर्य पुरष्कार या कोई नागरिक पुरस्कार देकर इनको इतिहास में नाम दे दिया जाता है।

बेहतर है अपने में खुश रहिये अपने आस पास देखिये सबको खुश तो नहीं किया जा सकता है लेकिन सबके साथ खुश जरुर रहा जा सकता है।
धन्यवाद

Saturday, 18 August 2018

अटल बिहारी वाजपेयी को अश्रुपूरित श्रधांजली

भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी जिन्होंने १६ अगस्त २०१८ को अपनी अंतिम सांस ली। जो एक प्रखर वक्ता, एक कवि, एक सुलझे हुए व्यक्ति, संवेदनशीलता का जीता जागता समुन्द्र जो हर दिल अजीज थे। आज यानी १७ अगस्त २०१८ को पंचतत्व में विलीन हो गए। पंचतत्व में विलीन तो उनका दैहिक शरीर हुआ है लेकिन उनकी वाणी, उनकी पंक्तिया, उनका जीवन सन्देश हम सबके बीच है और हमेशा रहेंगी। ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताएँ जितनी जीवंत लगती है उतनी ही जिंदगी से जुड़ी हुई भी लगती है। इसी का जीता जागता उदहारण है कविता "गीत नया गाता हूं" जिसकी पंक्तियाँ "हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं" जन जन को याद है।

उनके प्रखर वक्ता होने के कई प्रमाण है जो उन्हें ऐसा साबित करते है जैसे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर पुरे विश्व में अपना लोहा मनवाया हो या संसद में विश्वास मत के दौरान जवाब देते हुए यह कहना की "सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए...इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए....", यह साबित करता है उनकी देश के प्रति प्यार को। जो भी उनको करीब से जानते है सबका कहना है उनके लिए सर्वप्रथम देश है उसके बाद कुछ और चाहे वह अपनी पार्टी की सरकार हो या पार्टी। १० बार लोकसभा के सांसद और 2 बार राज्यसभा के सांसद उनकी जनता के बीच लोकप्रियता को दर्शाता है। उसके बाद भी उनके पास कोई अकूत संपत्ति नहीं है उनकी सार्वजानिक जीवन में इमानदारी को दर्शाता है। हमारे समय के बच्चे जिन्होंने गलियों में लाउडस्पीकर पर सांसद और विधायक के चुनाव का प्रचार देखा है जहाँ नेताओ को नेता मतलब बईमान कहकर पुकारा जाता था और अटल जी का नाम आते ही कीचड़ में कमल को खिलने वाला बताकर उनकी सत्यनिष्ठा और इमानदारी की दुहाई दी जाती रही है। तो उनकी शख्सियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही कारण है की १७ अगस्त २०१८ को उनकी आखिरी यात्रा में शामिल लोगो के हुजूम से साबित होता है इतनी लोकप्रियता इनसे पहले अगर किसी नेता के लिए दिल्ली की सड़को पर देखा गया तो वे राजीव गाँधी जी थे।

आज उनको अंतिम श्रधांजलि के फुल अर्पित करते विपक्षी दलो के नेताओ को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था की ये वही अटल जी जो भाजपा से प्रधानमन्त्री चुने गए थे। जिससे उनकी सार्वभौमिकता सभी राजनैतिक दलों में साबित करता है। शायद उनकी सभी पार्टियों में लोकप्रियता का इस वजह से भी थी क्योंकि वे बड़ी से बड़ी बात बड़ी आसानी से चुटकियों में हास्य स्वरुप में कह डालते थे। अगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखना हो तो कारगिल युद्ध के समय उनकी एक प्रेस वार्ता को देखकर उनके भावो को पढ़ा जा सकता है। एक य्युग पुरुष को कैसे कुछ शब्दों में बांधा जा सकता है वे अटल है अमर है अजर है। उनकी वाकपटुता को उनके ही एक वक्तव्य से जाना जा सकता है की "मैं पत्रकार होना चाहता था, बन गया प्रधानमंत्री, आजकल पत्रकार मेरी हालत खराब कर रहे हैं, मैं बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मैं पहले यह कर चुका हूं..."। वो भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री हुए जिन्होंने ५ वर्ष कर कार्यकाल पूरा किया और देश को कांग्रेस के आगे भी भारत का भविष्य देखने का सपना दिखाया। एक शिखर राजनैतिक पुरुष जिन्होंने भारत को विश्व पटल पर लाने में प्रमुखता से भूमिका निभाई उनकी दरियादिली इस बात से साबित होती है की लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल युद्ध में मुशर्रफ का हाथ होने के बाद भी उन्होंने मुशर्रफ से आगरा में शिखर वार्ता किया वे सिर्फ दरियादिल ही नहीं थे। वे मजबूत इच्छाशक्ति के साथ साथ मजबूत शख्सियत के भी धनी व्यक्ति थे क्योंकि उनके द्वारा 13 महीने की सरकार रहते १९९८ में पोखरण में परमाणु परिक्षण कर अपनी दृढ इच्छाशक्ति दिखाई।

एक ऐसी शख्सियत जो एक ओजस्वी कवि, एक संवेदनशील व्यक्ति तथा एक वक्ता जो अपनी वाणी से किसी का भी दिल जीत लेने की क्षमता रखता हो, उनकी जिंदगी अपने आप में एक ग्रंथ है आप चाहे तो उनकी जिंदगी का कोई भी हिस्सा एक अध्याय समझ कर पढ़ लीजिये आपको कुछ ना कुछ अवश्य मिलेगा सिखने को।

श्रधांजली देने की एक छोटी सी कोशिश ऐसे शख्स को जो खुद कलम का सिपाही हो और वाकपटुता में माहिर हो।

अगर कुछ गलती हुई हो तो माफ़ी चाहता हूँ।
धन्यवाद।।।

Friday, 14 July 2017

पढ़े लिखे लोगो का समाजवाद या ढोंग

मुझे आश्चर्य होता है जब प्रतिष्टित कहे जाने जैसे संस्थानों में पढ़े लिखे लोग बड़ी ही सावधानी से गरीब गुरबों की आवाज उठाने के नाम पर लालू यादव जैसे नेता का महिमामंडन करते है। जी हाँ ये वही लोग है जब लालू प्रसाद का बिहार की राजनीति में उदय हुआ तो इनलोगो ने कहा देखो इस व्यक्ति को कोई जानता तक नही था और आज मुख्यमंत्री है। लेकिन कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बिहार सदन के नेता चुने गए और मुख्यमंत्री बनाये गए। अगर उस समय किसी समुदाय ने इसका विरोध किया तो यही समुदाय था कहते नही थकते थे कि इस आदमी को बोलने तक नही आता है और यह बिहार की मुख्यमंत्री बना बैठा है। इन सबके बावजूद लालू प्रसाद ने अपने अस्तितव को बचाने के लिए पिछड़े वर्ग की राजनीति शुरू की। याद रखिये यह वही दौर था जब बी पी मंडल का मंडल आयोग आया जिसका पूरे देश मे विरोध किया गया। और लालू प्रसाद के उस समय शुरू की गई पिछडो की राजनीति ने जो बिहार में पिछड़ो को आवाज दी और बिहार में एक नई राजनीतिक धुर्वीकरण का प्रादुर्भाव हुआ जिसने बिहार के साथ साथ देश के दो बड़े राज्यो में राजनीति की दिशा ही बदल दी। और यही से शुरू हुआ कहावतों का दौर जिसमे यह कहा जाने लगा कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तबतक रहेगा बिहार में लालू। और यह कतई नही भूलना चाहिए कि बिहार में लगातार दो बड़ी विजय क्यों मिली क्योंकि बिहार के पिछड़े जिनके पास आवाज तक नही थी उनको लालू प्रसाद ने आवाज दी और राजनीति में उनके लिए दरवाजे खोल दिये। ध्यान रहे यही से शुरू हुआ लालू प्रसाद का नैतिक पतन जहाँ उन्होंने पिछड़ो की राजनीति के अलावा यादवों और मुस्लिमों की राजनीति शुरू की और दूसरी पिछड़ी जातियाँ जो उनको मसीहा समझ रहे थे, अपने आप को ठगा हुआ समझने लगे थे। यही से निरंकुशता शासन की तरफ से इस कदर बढ़ गयी जहाँ सिर्फ जाती देखकर सारे काम होने लग गए। सड़को का खस्ताहाल शुरू हो गया। शिक्षा में नैतिक पतन शुरू हुआ क्योंकि शिक्षकों को समय पर वेतन नही मिलने से वे ठगा सा महसूस करने लग गए थे। सबसे बुरा दौर तब शुरू हुआ जब मौत और अपहरण का तथाकथित उद्योग शुरू हुआ जिसने बिहार को सबसे ज्यादा बदनाम किया। और बाहर रहने वाले बिहारियों को बिहारी गाली लगना शुरू हुआ। सबसे बड़ा टैग तो पटना उच्च न्यायालय ने जंगल राज कह कर कोई कसर नही छोड़ी। पढ़े लिखे लोगो का पलायन जो तब शुरू हुआ जो बदस्तर आज भी जारी है। और उनलोगों ने तब यह कहना शुरू कर दिया था कि अब बिहार रहने लायक नही रहा और वे जब तब अपने आप को बिहारी कहने से अलग रखने लगे। यही नीतीश कुमार का प्रादुर्भाव हुआ, और जो दूसरी पिछड़ी जातियाँ लालू प्रसाद से अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे, नीतीश कुमार जी मे नई आशा की किरण की झलक दिखाई दी। जिसका फल यह हुआ कि नीतीश कुमार जी को नई आशा के साथ प्रदेश की बागडोर दी और पहले दो बार चुनाव जीतकर लोगो के भरोसे को कायम रखकर जिस तरह का जिन्न लगा होता था बिहारियों के सिर पर नीतीश जी ने उसको बहुत हद तक धोने का काम किया।

वाकई में लालू प्रसाद जी ने गरीब गुरबों को आवाज दी लेकिन उसकी कीमत चुकानी पड़ी बिहार को। उसकी भरपाई करने आगे आये नीतीश जी मे एक साफ स्वच्छ और सुलझे हुए नेता ने बिहार को कुछ कदम आगे ले जाने में सहायक सिद्ध हुए। लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते हुए महागठबंधन ने बिहार की जनता के मन मे एक बार फिर संशय पैदा किया जिसकी वजह से नीतीश जी को पिछले चुनाव से कम सीट मिली।

जो बचपन से बाहर रहकर पढ़ लिख लिए औऱ बड़े संस्थानों में पढ़ने के बाद उनकी एक अलग विचारधारा बन जाती है जिसको पूरे संसार मे नकारा जा चुका है। और उन्हें जब अपनी जमीन खिसकती नजर आती है तो कभी कॉग्रेस के साथ कभी क्षेत्रीय पार्टियों से मिलकर अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए तथा इन पढ़े लिखे लोगो का सहारा लेकर बड़े बड़े लेख लिखकर लोगो को गुमराह किया जाता है। ये जो साल में एक आध बार गाँव चले जाते है तफरीह के लिए उन्हें क्या पता जो गरीब लालू प्रसाद के शासन के समय बिहार में रहने को मजबूर थे, उन्होंने देखी है शासन की भयावहता। अगर किन्ही को नही मालूम तो वे कृपया मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया में रहने वाले लोगो से पता करे कि कैसी नारकीय जीवन व्यतीत की है। इन जिले के लोगो से व्यक्तिगत लगाव रहा है इसीलिए बेहतर तरीके से जानता हूँ। तो अगर आपको बुद्धिजीवी होने के नाते लगता है कि लालू प्रसाद जी, नीतीश कुमार जी से बड़े नेता है तो हाँ वे है क्योंकि वाकई में उनका जनाधार नही घटा लेकिन उनकी साख को जो धक्का पहुँचा है उसकी भरपाई होगी या नही आने वाला चुनाव बताएगा। मैं व्यक्तिगत तौर पर किसी का समर्थक नही रहा हूँ लेकिन नीतीश जी ने कुछ ऐसे फैसले लिए, जब बिहारी अपने अस्तित्व की लड़ाई रहे रहे थे तब एक चिराग दिखाई दिया था अंधेरे में। अगर आपको बुद्धिजीवी होने के नाते यह पता नही चारा घोटाला जो उस समय की सबसे बड़ी मानी जा रही थी। उनको भी आप हो सकता है भूल जाये तो क्या अगर कोई यह सवाल करता है कि 32 साल पहले सरकारी निवास में रहने वाला नेता हजारों करोड़ की संपत्ति का मालिक कहाँ से बन गया। तो आप इसको भी राजनैतिक साज़िश कहने में लगे हुए है। तो मुझे तो आपकी पढ़ाई पर शक होता है जो एक भ्रस्टाचारी या एक साफ सुथरी छवि के नेता में अंतर समझ नही पाता है। सनद रहे लालू प्रसाद जी को उच्चतम न्यायालय ने कोई भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया हुआ है। नीतीश कुमार जी की सहयोगियों पर भले ही कई भ्रस्टाचार के आरोप लगे हो लेकिन उनपर व्यक्तिगत तौर पर कोई भ्रस्टाचार का आरोप नही।
बेहतर है थोड़ा पढ़े लिखे होने का परिचय दे ताकि पढ़े लिखे लोग आपको सम्मान की नजर से देखे। आजकल सभी पढ़ लिख रहे है सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे है उन्हें आता है आप जैसे लोगो की प्रोफाइल चेक करना और आपके बारे में अपने मस्तिष्क में आपका चेहरा बना लेते है कि कही आप कोई छुपा हुआ एजेंडा तो थोप नही रहे है। अब वो जमाना नही रहा कि आप जो कहे अक्षरशः सही मान लेंगे वे उनकी पड़ताल करना जानते है कि कब आप ऐसे भ्रस्टाचारियों के पैर छूकर प्रणाम करते है और कब सेना को रेप करने वाला बताते है। और 40 साल की उम्र में ऐसे संस्थानों में मुफ्त की पढ़ाई करने वाले रोजगार को लेकर अचानक से सरकार के खिलाफ बोलने लग जाते है तो सवाल यह भी उठेंगे की जब लालू प्रसाद के समय बिहार में सभी तरह का ह्रास हो रहा था तो आपके मुँह से एक शब्द नही निकलता था। तो जनाब यह आज का दौर है जहाँ सबकुछ एक क्लिक पर उपलब्ध है तो थोड़ा संभल के रहिये, संभल के बोलिये, संभल के लिखिए।

जय भारत।
जय प्रजातंत्र।

Sunday, 13 November 2016

भारतीय नोटों का विमुद्रिकरण

indian-rupee-symbolमुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब हमारे सोशल मीडिया के बुद्धिजीवी कह रहे है कि 500 और 1000 के नोट पर बैन से लोगो को तकलीफ हो रही है। तो मैं आपको सही करने की कोशिश करता हूँ क्योंकि यहाँ पर आप तकनिकी तौर पर कतई सही नहीं है क्योंकि 500 और 1000 के नोट बैन नहीं हुए है सरकार आपसे कह रही है कि आप इसको नए नोट के साथ बदले। इसको अर्थशास्त्र की भाषा में विमुद्रिकरण कहते है। क्यों बदलना है क्योंकि सरकार को लगता है जो 500 और 1000 के नोटों के रूप में जो नकली नोट मार्किट में हर दिन भेजा जाता है आतंकवादी संगठनों और नशे के व्यापारियों द्वारा अगले कुछ सालों तक उसपर लगाम लगी रहेगी। वैसे भी अम्बेडकर साहेब कह गए की हर दसवें साल हमें अपनी मुद्रा जो सबसे ज्यादा प्रचलन में हो उसे बदल देना चाहिए।

यह नोट को बदलवाने की प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है। कोई कहेंगे की बैंक इसको अपनी तरफ से लगातार इस बात को करके भी कर सकते थे, क्यों अचानक से यह किया गया। अगर बैंक लगातार इस कोशिश को करती शायद मुमकिन है जिनके पास बिना मूल्यांकन वाली आय है उस पैसे को भी बदल दिया जाता।

यह कोई आज लिया गया फैसला नहीं कह सकते है बातो में तह पर जाने की कोशिश करे फिर पता चलेगा कि बात कहाँ से शुरू होकर यहाँ तक पहुंची है।

१) सबसे पहले जन धन योजना लागू कर उनलोगों को अर्थशास्त्र की मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश।

२) उसके बाद सारे सब्सिडी को बैंक अकाउंट और आधार कार्ड के साथ लिंक करना।

३) उसके बाद ITR को पैन के साथ साथ आधार या पासपोर्ट के साथ लिंक करना।

४) उसके बाद का यह कदम साबित करता है सरकार ने इस कदम को उठाने दो साल पहले से तैयारी शुरू कर दी थी।

लेकिन इस विमुद्रिकरण को और सही तरीके से लागू किया जा सकता था। जिसको आप सरकार की गलती के तौर पर देख सकते है। जो मेरे ख्याल से निम्न उपाय किये जा सकते थे:

१) 1 महीने पहले से ATM में 100 के नोट डालने थे 500 और 1000 के नोट को कम करते जाना था दिन ब दिन।

२) RBI को 1000 और 500 के नोट वापस लेते रहने चाहिए थे ताकि मार्किट में 1000 और 500 का नोटों का व्यवहार कम होता जाता।

३) RBI को 100 के नोट का सही व्यवहार में आने का इंतज़ार करते रहना चाहिए था। हो सके तो और 100 के नोटों को छापकर मार्किट में डालते रहना चाहिए था ताकि 500 और 1000 के नोट के वापस लेते रहने से मार्किट में पैसे की कमी से निपटा जा सकता था।

४) 1 महीने पहले से ATM का अपग्रेड शुरू कर देना चाहिए था।

धन्यवाद।

Friday, 4 November 2016

छठ महापर्व या प्रकृति का सम्मान

wp-1478252870556.pngछठ महापर्व सिर्फ लोक आस्था का पर्व नहीं है यह एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति में आस्था को जागृत करता है और मनुष्य का प्रकृति के प्रति आगाध प्रेम को दर्शाता है। मैं तो इससे ज्यादा ऊपर जाकर यह कहूंगा कि यह एक मात्र हिन्दू पर्व है जिसमे किसी भी तरह की प्राकृतिक क्षति को व्यवहार में नहीं लाकर प्रकृति के प्रेम को दर्शाया जाता है जो किसी और हिन्दू पर्व में नहीं है।

छठ महापर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी आस्था और और अपने विश्वास के साथ साथ लोग अपनी कृतज्ञता दर्शाते है जो किसी और पर्व में नहीं। सूर्य को अर्घ्य तो हिन्दू लोग रोज़ देते है लेकिन छठ महापर्व की खासियत यह है कि आपको नदी या तालाब में जाकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है। अगर आप नजदीक से छठ पूजा में उपयोग होने वाले प्रसाद के रूप में या किसी भी तरह उपयोग होने वाले सामानों का प्रकृति से गहरा नाता होता है जो यह साबित करता है कि इस पर्व को मनाने वाले व्रतियों का प्रकृति के प्रति सम्मान दर्शाता है।

हम जो वाकई में प्रकृति का सम्मान करना भूल गए है यह महापर्व हमें उसके प्रति जागरूक करता है चाहे वह सामाजिक साफ सफाई की बात हो या लोगो का आपस में घाटो पर विचारो का आदान प्रदान जिसकी हमें आज के आधुनिक और डिजिटल युग में बहुत ही जरुरत है उससे रूबरू करवाता है।

आशा करते है हम जितना सम्मान इस पर्व के दौरान लोगो के साथ साथ प्रकृति का करते है उतना ही सम्मान महापर्व के ख़त्म होने के बाद भी करेंगे। यह हमारे लिए सालों भर एक प्रकार होना चाहिए तभी वाकई में सूर्य या प्रकृति के प्रति हमारी सच्ची अर्घ्य होगी।

आप सभी को एक बार फिर से छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और आशा करते है यह महापर्व आपके और आपके पूरे परिवार को मानसिक शांति के साथ साथ आने साल में सुख और समृद्धि प्रदान करे।

Tuesday, 23 February 2016

अभिव्यक्ति की आज़ादी या देशभक्ति या कुछ और

कुछ लोग कहते है की अगर आपने एक पार्टी के विरोध में कुछ बोला नहीं की आप देशद्रोही हो गए और दूसरी तरफ दूसरे लोग यही बात कहते है अगर आपने एक पार्टी के विरोध में बोला नहीं की आपको भक्त करार दिया जायेगा। जैसे अगर किसी ने आज की तारीख में यह बोल दिया की JNU में देशद्रोही नारे लगे तो बीजेपी वाले लोगो की नज़र में आप देशभक्त होते है या नहीं लेकिन दूसरी तरफ वाले आपको मोदी भक्त या आरएसएस का एजेंट या कट्टर हिंदूवादी या भक्त जरूर कहते नज़र आ जाएंगे। अब इसी का दूसरा पहलु देखते है अगर किसी ने यह कह दिया JNU में जो नारे लगे वह देशद्रोही तो है लेकिन....? तो आपको जो कल तक मोदी भक्त कहते हुए नज़र आ रहे थे आज आपको देश का सच्चा देशभक्त कहता हुआ नज़र आएगा और दूसरी तरफ वाला आपको देशद्रोही, पाकिस्तानी समर्थक, वामपंथी कहता हुआ नज़र आएगा। आखिर आम आदमी जाये तो जाये कहाँ। इसी वजह से बहुत सारे लोग खुल के यह बात कह नहीं पाते है उनके मन में क्या है। तो यही वजह है की कुछ लोग इन झमेलों से अपने आप को दूर रखने की यथासंभव कोशिश कर रहे है।

सबसे ज्यादा तो तरस आता है पढ़े लिखे नौजवानो पर जो की जीवन में किसी ना किसी तरह एक खास राजनितिक आइडियोलॉजी को सपोर्ट करते है, और किसी राजनैतिक आइडियोलॉजी का समर्थन करना गलत नहीं है।


तरस इसीलिए भी आता है क्योंकि उनकी वजह से ये राजनितिक पार्टी अपने आईटी सेल के द्वारा इन चीजो को देखती परखती है की उनके बारे में युवाओ की क्या सोच है और उसी के तहत आगे की रणनीति तय करते है। और युवाओं का जोश तो देखते बनता है कैसे कैसे शेयर और like होती रहती है सोशल मीडिया पर लेखो का, रिट्वीट और ट्रॉल्लिंग होती रहती है। दुःख तो तब होता है जब बिना कुछ जाँचे परखे शेयर और like करना शुरू कर देते है, वे ऐसा क्यों करते है क्योंकि यह उनकी आइडियोलॉजी जो किसी एक खास राजनीती से मिलती है इसीलिए ऐसा करते है। और बिना जाँचे परखे शेयर, like या ट्वीट करना सही नहीं है क्योंकि कभी कभी इससे गलत सन्देश पहुँच जाता है। और बुद्धिमत्ता का परिचय तो देखिये सिर्फ like या चुपचाप शेयर कर देंगे, ना ही कोई कमेंट ना ही अपना विचार, तो फिर शेयर करने का मतलब क्या हुआ। आप पढ़े लिखे है समझदार है, आपको यह भी पता है कोई भी राजनैतिक पार्टी परफेक्ट नहीं है फिर भी आप जैसे पढ़े लिखे लोग उनका इस तरह समर्थन करेंगे तो क्या होगा इस देश का, देशहित में सोचे क्या सही है क्या नहीं।

आजकल सोशल मीडिया पर दो ही बाते चलती है या तो आप विपक्ष के साथ खड़े नज़र आते है या सत्ता पक्ष के साथ। आपकी अपनी कोई आइडियोलॉजी नही है। आप निष्पक्ष बात नहीं रख सकते है, क्योंकि ऐसा लगता है जैसे आपको कोई हक़ नहीं है ऐसा करने का। सबसे बड़ी बात है विरोध करना है, करे लेकिन आप एक दूसरे के मौलिक अधिकारो का हनन करते हुए विरोध नहीं कर सकते है। अगर आप किसी के ऊपर उंगली उठाएंगे तो आपके ऊपर भी कोई उठाएगा।

उदाहरण के तौर पर NDTV, INDIA TODAY कहता है TIMESNOW और ZEENEWS एकतरफा न्यूज़ दिखाता है यही बात दूसरी पार्टी कह रही है। तो सवाल उठता है एकतरफा कैसे हो गया। आप कहते है आप एकतरफा है तो दूसरी पार्टी वही कह रही है। तो बात संतुलन की हुई नहीं ना। आप अपने स्टूडियो में एक्सपर्ट को बुलाते है कहते है वीडियो सही नहीं है है और वही दूसरी तरफ दूसरी पार्टी इसके उलट कह रही है। हद तो तब हो जाती है जब एक न्यूज़ चैनल किसी को देशद्रोही साबित करने पर लगा हुआ है तो दूसरे न्यूज़ चैनल देशद्रोही नही साबित करने पर तुले हुए है। और दोनों तरफ के लोग यह कहते हुए नज़र आते है की मीडिया ट्रायल बंद होना चाहिए। कैसे बंद हो दोनों तरफ तो एक ही बात चल रही है एक साबित करना चाहता है देशद्रोही है दूसरा करना चाहता है देशद्रोही नहीं है। बात निष्पक्ष कहाँ रह गयी। तो फैसला कैसे हो की सही कौन कह रहा है। फैसला तो न्यायालय में ही हो सकता है और जब न्यायालय तक बात पहुँचती है तो दोनों तरफ के लोग जल्दी फैसले के लिए धरने प्रदर्शन शुरू कर देते है, जल्दी फैसला दो, जल्दी फैसला दो। अगर जल्दी आ गयी तो जिनके पक्ष में फैसला नहीं आया वे कहेंगे फेयर ट्रायल नहीं था और अगर देरी से फैसला आया तो यह कहेंगे की सरकारी पक्ष के लोग दवाब बना रहे है अदालत पर। उसके बाद भी अगर फैसला पक्ष में नहीं आता है तो कहेंगे की अदालत का फैसला प्रभावित था। एक तरफ आप कहते है फैसला अदालत में होनी चाहिए ना की सड़क या स्टूडियो में बैठकर, आप करे तो ठीक हम करे तो गलत ये कैसा पक्ष है। दूसरी तरफ आप कहते है 3-4 जज मिलके यह फैसला नहीं कर सकते। आप खुद ही सोचिये आप कहना क्या चाहते है। अगर जज फैसला नहीं करेंगे तो कौन करेंगे, आम आदमी अगर आम आदमी करेंगे तो सोचिये क्या होगा देश का यह सभ्य समाज नहीं रह जायेगा, यह एक जंगल कहलायेगा जंगल। अनुशासन जरुरी है देश को, विचार को, अभिव्यक्ति की आज़ादी को आगे बढ़ाने के लिए, और अनुशासन के लिए कानून जरुरी है। एक तरफ आप कहते है ज्यूडिशियरी पर पूरा भरोषा है तो आपको उनका सम्मान करना सीखना होगा, एक तरफ आप कहते है आपको संविधान पर पूरा भरोषा है तो उसका सम्मान करना सीखना होगा, ना की अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर उसको कोसना। आपको अभिव्यक्ति की आज़ादी इसीलिए मिली है ताकि कुछ सिस्टम से गलत हो ना हो जाये, अगर कुछ गलत होता है तो उसके बारे में उसे बताया जाय ताकि सुधार हो सके। एक छोटी सी वीडियो क्लिप देख रहा था उसपर किसी ने लिखा था संघी और तथाकथित रक्षा विशेसज्ञ, और वे थे आर्मी के एक सेवानिवृत अधिकारी, जिस व्यक्ति के बारे में यह बोला गया कल तक यही व्यक्ति NDTV पर रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर आता रहा है और आज संघी हो गया। तो सोचिये आप कहना क्या चाहते है।

मेरा सिर्फ यह कहना है की बात द्विपक्षीय होनी चाहिए, युवाओ को संविधान और कानून को सम्मान करना सीखना होगा। आपको पता है हर कार्यालय में एक समय निर्धारित होता है की आप समय पर आये और अपना काम समय पर करे। और हम सब इसका पालन करते है। आप स्कूल में हो या कॉलेज में हो या यूनिवर्सिटी में हो हर जगह एक समय निर्धारित होता है की उस वर्ग में जितने बच्चे है सबको एक सामान शिक्षा मिल सके, अगर ऐसा नही होगा तो सोचिये क्या होगा। तो अनुशासन जरुरी है अपने से बड़ो का सम्मान जैसे जरुरी है वैसे ही देश का संविधान और न्याय व्यवस्था का सम्मान भी जरुरी है। अभिव्यक्ति की आज़ादी भी द्विपक्षीय होनी चाहिए ना की एकपक्षीय, क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब भी यही होता है अगर आप अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सिर्फ अपनी ही बात कहते चले जायेंगे तो यह सही मायने में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है।

अंत में अपने सभी युवा साथियों से अनुरोध करूँगा की वे सोचे देश के लिए, इतनी सारी समस्याएं है जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। दुनिया सिर्फ सोशल मीडिया या आपके इर्द गिर्द घूमने वाली चीजो के साथ नहीं है, गाँव जाये असली भारत वही बसता है, जहाँ आज़ादी के 65 साल बाद भी लोग एक अदद रोड, एक अदद हैंडपंप, एक अदद बिजली के खम्भे के लिए तरसते है, शिक्षा तो दूर की बात है। आपके अंदर अपार ऊर्जा है जिसका संचालन आप ही कर सकते है सही दिशा में करे, हम कामयाब होंगे, और जरूर होंगे।
धन्यवाद!

Saturday, 20 February 2016

JNU के माननीय सदस्यों से अपील

StandWithJNU कुछ लोग इस शब्द को लगता है फैशन स्टेटमेंट की तरह लेने लगे है, वैसे ही जैसे कुछ पत्रकार यह कहने लगे है मैं देशद्रोही हूँ। ऐसे शब्दों का चुनाव करने वालो को देखकर ऐसा लगता है जैसे एक ऐसे मुद्दे को भटकाने की कोशिश में लगे है जो वाकई में एक सभ्य समाज के लिए खतरनाक है। अंग्रेजी में पढ़ने और लिखने वाले अपने को छोड़कर किसी और की बुद्धिमत्ता को कमतर आंकते है या उन्हें किसी खास एक पार्टी के विचारधारा से मिलाकर देखते है।

JNU को भारत में सर्वश्रेष्ठ भारत के विद्यार्थियों ने बनाया और इसमें किसी एक व्यक्ति का योगदान नहीं माना जा सकता है और यह एक दिन की मेंहनत नहीं है।

JNU एक विश्वविद्यालय ही नही है, यह एक जज्बा है, यह एक परंपरा है, यह एक शान है, जो कभी भी एक झटके में खत्म नहीं हो सकता है। यह जैसे आपकी शान है हमारी भी शान है और हम भी गर्व से कहते है, JNU हमारे देश में है। लेकिन जो अभद्र भाषा का उपयोग किया गया देश के लिए क्या वह सही है।


मेरे कुछ व्यक्तिगत सवाल है जो मेरे मन में उमड़ घुमड़ रहे है। कृपया कर सीधा उत्तर दे, ना की किसने किया क्या, क्या नहीं किया। कोई पोलिटिकल करेक्ट जवाब नही चाहिए। अगर आप जवाब देते है तो ठीक है नहीं देते है तो भी ठीक है चुनाव आपका है:
1) क्या भारत की बर्बादी का नारा लगाना सही है?
2) क्या कश्मीर लड़ के लेंगे का नारा लगाना सही है?
3) क्या इंडिया गो बैक का नारा लगाना सही है?
4) क्या संविधान के प्रति सम्मान व्यक्त करके सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बोलना सही है?
5) क्या भारत में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाना सही है?
6) क्या भारत के संविधान को गाली देना सही है?
7) क्या भारत के संविधान के खिलाफ बोलना सही है?
8) क्या भारत की सेना के खिलाफ बोलना सही है?
9) क्या विचार का विरोध करते-करते व्यक्ति विशेष् का विरोध करना सही है?
10) क्या भारत सरकार की खिलाफत करते-करते उसी भारत सरकार के सब्सिडी पर विश्वविद्यालय में पढ़ना सही है?

आप भले सरकार की खिलाफत करे आपको हक़ है लेकिन आप सोचियेगा आप ऐसी हरकते कर भारत की जनता तक क्या सन्देश पहुँचाना चाहते है।

आप कहते है कुछ एक लोगो की गलत हरकतों की सजा एक संस्थान नहीं भुगत सकता। आप कहते है कुछ एक लोगो की वजह से पुरे संस्थान को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। एकदम सही बात है। लेकिन कुछ ऐसे लोग पनपे कैसे आप जैसे बुद्दिजीवियों के बीच, आपको ही सोचना होगा। और इस गंदगी को साफ़ भी आप सबको मिल के करना होगा, क्योंकि अगर एक दुश्मन हो तो उसे सजा देकर ख़त्म किया जा सकता है लेकिन ऐसा लगता है यह शारीरिक दुश्मन नहीं है यह वैचारिक दुश्मन है। और वैचारिक दुश्मनी विचार से ही ख़त्म हो सकता है। और आप माने या माने लेकिन यह एक दिन की बात नहीं है क्योंकि विचार कभी एक दिन में तैयार नहीं होता है इसमें बरसों लगता है।

अगर आपलोग सही में JNU को बचाना चाहते है तो अंदर हो रही ऐसी हरकतों पर लगाम लगाये। क्योंकि यह आपका कर्त्तव्य भी है और साथ में आपका धर्म भी है।

JNURow - खोखली बुद्धिमत्ता या अतिदेशभक्ति

ये कहाँ थे जब मालदा और पूर्णिया में लोकतंत्र का मखौल उड़ाया गया। तब इनकी बुद्धिजीविता विदेश भ्रमण को गयी थी। अगर सरकार और उसके खिलाफ कुछ बोलना है बोले आपको पूरा हक़ है लेकिन देश के टुकड़े हज़ार करके के आप क्या साबित करना चाहते है। सरकार के खिलाफ आपको बोलने में डर लगता है। हम बड़ी जल्दी भूल जाते है मुम्बई एक लड़के को कार्टून बनाने के चक्कर में देशद्रोह का मुकदमा लगाया गया था तब किसी ने नहीं बोला क्यों क्योंकी वह आम आदमी था। क्या मुझे यही नारे लगाने की आज़ादी मिलेगी सड़को पर शायद नही। मेरा सिर्फ एक ही कहना है अगर एक बात कहने की आज़ादी लेखक, बुद्धिजीवी, नेताओ, विद्यार्थियों को है तो आम आदमी को क्यों नहीं। मतलब साफ़ है सरकार कोई भी हो वह सिर्फ दमन कर सकती है आवाज़ों को जो आम जनता से उठती है क्यों क्योंकि वहाँ उसके सपोर्ट में कोई खड़ा नहीं होना चाहता है। मुझे तरस आता है अपने आप पर लोग जो लोग राजनीती भविस्य की आड़ में देश की जनता की भावनाओ से खिलवाड़ करते है। अपने हिसाब से चीजो को इन्टरप्रेट करता है। हर व्यक्ति को है आपको भी है मुझे भी है लेकिन देश के टुकड़े हज़ार होंगे, हमे चाहिए आज़ादी। कौन सी आज़ादी की बात कर रहे है। JNU में पढ़ने वाले 30-40% विद्यार्थी स्नातक के क्या किसी ने उन्हें देखा किसी प्रोटेस्ट नहीं क्योंकि यही बड़े भाई बनते है उनको बोलते है अपने रूम में जाओ तुम्हारा पढ़ने का टाइम है। 10 बजे के बाद कोई भी स्नातक का विद्यार्थी ढाबे पर नहीं दीखता है क्या यह आज़ादी है।

अगर आप इतने बुद्धिजीवी है तो थोड़ा बुद्धिजीविता का परिचय दीजिये और मुखर हो के बोले की JNU में यह देश विरोधी नारे लगे। आप ऐसा कैसे कह सकते है तथाकथित देश विरोधी नारे। शब्दों का हेर फेर मुझे भलीभाँति समझ आता है भले कुछ लोग ना समझ पाये।

तो मेरा सवाल साफ़ है की अगर देशद्रोह है तो देशद्रोह है इसमें किंतु और परंतु कहाँ से आता है। क्या एक आम आदमी यही नारे लगाएगा तब क्या आप यही कहेंगे। अगर कोई राजनेता, विद्यार्थी, लेखक पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगेगा तो किस पर लगेगा, आम आदमी पर। क्या आम आदमी की यह औकात है की ऐसा वह बोल पाये। तो सोचना आपको और हमको है की इन चंद वोट के लुटेरो से देश को बचाना है या यु ही घूंट घूंट कर जीने देना है देश को जहाँ एक तरफ हमारे जवान सीमाओं की सुरक्षा के लिए जीते और मरते है दूसरी तरफ ये चंद लोग इस देश की सहिष्णुता और एकता को खंडित करने की कोशिश कर रहे है।

कोई नहीं आया एक आम आदमी ही था मुम्बई का असीम त्रिवेदी, अख़लाक़ का क्या हुआ आम आदमी ही था, मालदा में क्या हुआ आम आदमी ही थे, पूर्णिया में क्या हुआ आम आदमी ही थे। जनाब आम आदमी के साथ कोई खड़ा नहीं होता और ना होगा क्योंकी वह आम आदमी जो ठहरा। ये सिर्फ बुद्दिजीवियों के लिए है, लेखको के लिए है, ये सिर्फ राजनेताओ के लिए है, ये सिर्फ पत्रकारो के लिए है। आम आदमी के लिए कुछ नहीं है कोई नहीं लड़ता। एक आम आदमी ही है जिसने तमिलनाडु सरकार के खिलाफ एक लोकगीत गाया और जेल में है।

सोचना आपको है क्योंकि आप किसी ना किसी तरह से इन संस्थानों में आपकी गाढ़ी कमाई का पैसा जरूर जाता है। और आपकी कमाई के पैसो से हमारे देश के कुछ अच्छे दिमाग को चुना जाता है इन संस्थानों में पढाई के लिए चुना जाता है ताकि आगे चल कर यही दिमाग भविष्य को तैयार करने में सहायक हो।

Monday, 15 February 2016

बोलने की आज़ादी या राजनीती

ऐसा लगता है जैसे हमारे यहाँ बोलने की आज़ादी का मतलब होता है अगर आप सरकार में है विरोध सहना और विपक्ष में है तो सरकार को पानी पी पी के कोसना। वही हाल कुछ घटनाओ को लेकर भी राजनितिक पार्टियां ऐसे रियेक्ट करती है जैसे ऐसा पहले कभी हुआ ही नहीं। यहाँ पर राजनितिक पार्टियां किसी भी घटने को हमेशा अपने नफे नुक्सान के लिए देखती है चाहे उसमे जनता का कितना नुक्सान ही क्यों ना हुआ हो।

ऐसा लगता है अगर आप स्कॉलर हो तो भारत में आपको कुछ भी बोलने का अधिकार हो जाता है और आम आदमी को एक शब्द भी बोलना भारी परता है सिस्टम या न्यायालय के खिलाफ़। क्योंकि हाल के दिनों जगजाहिर स्कॉलर ने उच्चतम न्यायलय के फैसलो के विरुद्ध भी बाते कही है। क्या वे न्यायालय की अवमानना नहीं थी? मुझे नहीं लगता कोई आम आदमी ऐसी हिमाकत कर सकता है। क्या कोई उन्हें समझायेगा की अगर आपको बोलने की आज़ादी है तो इसका मतलब ये नहीं की आप देश के विरुद्ध बोलते रहे और देश को शर्मशार करते रहे।


आम आदमी बेचारा सिर्फ देखने और सुननेे के अलावा कुछ नहीं कर सकता है। क्योंकि आम आदमी को तो रोजी रोटी से ही फुरसत नहीं है, वह सिर्फ अपने घर में बैठ की सिस्टम को गाली दे सकता है वह भी चुपके चुपके ताकि कोई सुन ना ले।

शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है, शिक्षण संस्थानों में राजनीती का हस्तक्षेप हो रहा है, अगर शिक्षण संस्थानों में छात्र संगठन होगा तो थोड़ी बहुत राजनीती तो होगी ही। लेकिन अगर कोई देशद्रोह की बात करता है तो क्या उसके आगे या पीछे ये राजनेता लेकिन, किन्तु, परंतु लगाते है, क्या यह सही है? सोचना आपको है क्योंकि आप किसी ना किसी तरह से इन संस्थानों में आपकी गाढ़ी कमाई का पैसा जरूर जाता है। और आपकी कमाई के पैसो से हमारे देश के कुछ अच्छे दिमाग को चुना जाता है इन संस्थानों में पढाई के लिए। ताकि आगे चल कर यही दिमाग भविष्य को तैयार करने में सहायक हो। लेकिन कुछ लोग कहते है की किसी को फाँसी हो गयी वह सही ट्रायल नहीं था तो आप न्यायालय में जाये फिर से री-पेटिशन डाले और बहस करे की, जो उन जजों ने किया है गलत किया है। जहाँ तक मेरी जानकारी है हमेशा भारत में कोई भी केस निचली अदालत से आगे बढ़कर ऊपरी अदालत तक जाती है और सर्वोच्च न्यायालय तक जाता उसके बाद भी आप रिव्यु पेटिशन डाल सकते है, उसके बाद भी आप राष्ट्रपति के पास जा सकते है। जिस केस की यह लोग बात कर रहे है उसका सारा ट्रायल 2007 में ख़त्म हो गया था और 2007 से ही दया याचिका राष्ट्रपतिजी के पास थी और अभी निवर्तमान राष्ट्रपतिजी ने माफीनामा क़बूल नहीं की तो उसके बाद भी आप कहते है फेयर ट्रायल नहीं था। 3 जज मिल के किसी के बारे यह फैसला नहीं ले सकते है की कौन आतंकवादी है कौन नहीं तो क्या इस देश की 125 करोड़ जनता करेगी। अगर ऐसा होता है तो यह काफी शर्मनाक सवाल है एक PhD के स्टूडेंट का। अगर 125 करोड़ जनता करेगी, तो आप भी अपने आरोपो को लेकर 125 करोड़ जनता के बीच में जाए ना की उन्ही 3 जजों की खंडपीठ में, फिर शायद आपको पता चल जायेगा, लेकिन नही जब अपने पर बात आती है तो लोग उसी कानून का दरवाजा खटखटाते है जिसकी वे भर्त्सना करते दीखते है । कानून क्या संवेदनाओ पर फैसला सुनाती है या साक्ष्यों के आधार पर। तो क्या देश की पूरी जनता यह फैसला करेगी की कौन आतंकवादी है कौन नहीं। अगर ऐसा है तो आपका फैसला भी वही जनता करेगी बस एक बार आप बाहर तो निकले। अगर आपका फैसला जनता नही वही 3 जज करेंगे तो आप अपने वक्तव्य में झांक के देखिये की आप क्या कह रहे है। मतलब साफ़ है आप एक राजनितिक महत्वाकांक्षा के तहत यह सारा हथकंडा अपना रहे है। लेकिन मुझे आश्चर्य होता है अपने कुछ राजनेताओ पर वे कहते है इससे उन्हें इमरजेंसी की याद आ रही है, कुछ कह रहे है बिना शर्त उन्हें सारे आरोप वापस लेने चाहिए, वे कहते है निर्दोषो को बंद नही करना चाहिए, वे कहते है विद्यार्थी है उन्हें बंद नहीं करना चाहिए। माफ़ कीजियेगा की अगर यही व्यक्ति कल को आपकी बेटी के साथ बलात्कार के जुर्म में पकड़ा जाता है तब भी क्या आप यही कहेंगे। अगर यही व्यक्ति पार्लियामेंट में घुसकर किसी राजनेता को मार देता है क्या तब भी आप यही कहेंगे। अगर यही व्यक्ति किसी राजनेता पर पथ्थर मारता है तब भी आप यही कहेंगे, क्योंकि जो व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का विरोध फांसी के 2 साल बाद करता है तो वह कुछ भी कर सकता है। आपको यह कहते हुए नहीं लगता है आप दोहरापन भरी बाते करते है। एक PhD का स्टूडेंट इस तरह के नारे लगाएगा तो आम आदमी से क्या अपेक्षा कर सकते है। यह तो वही बात हो गयी की अगर आपने किसी का बलात्कार किया और वह गर्भवती हो गयी तो भी आप बच्चे है क्योंकि आपकी उम्र 16 साल से कम है, अरे एक बच्चे को इस दुनिया में लाने का सहभागी बच्चा कैसे हो गया। हमारे यहाँ PhD आखिरी योग्यता मानी जाती है शैक्षणिक स्तर पर, आप कहते है विद्यार्थी है, अगर विद्यार्थी है तो विद्यार्थी शब्द को साबित करे पहले। लेकिन जो व्यक्ति शैक्षणिक स्तर पर आखिरी पायदान पर पढाई कर रहा हो वह ऐसी बाते करेगा समझ से परे है। कुछ लोग कहते है इंडिया गो बैक क्या मतलब, क्या इंडिया ने जबरदस्ती कब्ज़ा किया हुआ है JNU पर, अगर नहीं तो इस नारे का क्या मतलब है।

आप जिस सिस्टम को इतना गाली देते है उसी सिस्टम ने आपको JNU जैसे संस्थानों में कुछ एक सौ रुपैये में विश्व स्तरीय पढाई का मौका देती है। आप अपने अंदर जज्बा पैदा करे सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने की, बहुत सारे तरीके है लेकिन नही। अगर कोई आतंकवादियों के पक्ष में नही है तो नारे क्यों लगे, अगर लगे तो क्यों लगे, किसने लगाये जिसने भी लगाये, उसके खिलाफ बांकी स्टूडेंट का क्या कर्त्तव्य होता है उसके खिलाफ कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए थी। दिक्कत यह है की ज्यादातर लोग वहाँ पढ़ने जाते है और कुछ लोग इसका उपयोग करने जाते है, जो पढ़ने जाते है वे यह कहके चुप रह जाते है छोड़ो पुलिस तो आती नही कैंपस के अंदर तो शिकायत करके क्या फायदा। यही वजह है ऐसे कुछ लोग इसका फायदा उठाते है। अगर किसी की सहमति नही थी तो क्या किसी के फांसी को शहीद बोलना कानून का उल्लंघन नहीं है अगर है तो आपको सजा मिलनी चाहिए या नही। सोचना आपको है किसी एक विचारो का विरोध करने के लिए आप अगर एक फांसी, सजायाफ्ता मुजरिम को आगे रखेंगे तो कोई आम जनता माफ़ नहीं करेगी भले ही आप न्यायालय से बरी क्यों ना हो जाये।

तो मेरा सवाल साफ़ है की अगर देशद्रोह है तो देशद्रोह है इसमें किंतु और परंतु कहाँ से आता है। क्या एक आम आदमी यही नारे लगाएगा तब क्या आप यही कहेंगे। मैं मानता हूँ की हमारे यहाँ एक स्तर सिद्ध है JNU जैसे संस्थानों का, आग्रह करता हूँ की उसकी गरीमा ना गिराये। अगर कोई राजनेता, विद्यार्थी, लेखक पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगेगा तो किस पर लगेगा, आम आदमी पर। क्या आम आदमी की यह औकात है की ऐसा वह बोल पाये। और अगर बोल भी दिया तो क्या होगा इसका जीता जगता उदाहरण है मुम्बई का वह नौजवान जिसपर एक कार्टून बनाने पर देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल भेजा गया। तो सोचना आपको और हमको है की इन चंद वोट के लुटेरो से देश को बचाना है या यु ही घूंट घूंट कर जीने देना है देश को जहाँ एक तरफ हमारे जवान सीमाओं की सुरक्षा के लिए जीते और मरते है दूसरी तरफ ये चंद लोग इस देश की सहिष्णुता और एकता को खंडित करने की कोशिश कर रहे है।

पूर्व सैनिको ने भी कह दिया है अगर इन घर में छुपे बेवकूफ लोगो को समेटा नहीं गया तो वे भी अपनी डिग्रियां JNU को लौटा देंगे और सोचिये क्या होगा फिर इस देश का। माफ़ी चाहता हूँ अगर किन्ही की भावनाओ को कोई आहत पहुंची हो तो क्योंकि मैं मानता हूँ हर कोई मेरे विचार से सहमत हो जरुरी नहीं लेकिन आप सोचियेगा जरूर की क्या घर में घर का आदमी घर के बारे में यह बोले की जब तक यह घर टूट ना जाये तब तक लड़ते रहेंगे तो सोचिये घर का मुखिया क्या करेगा।

और सबसे बड़ी बात है राजनेताओ की जो इतनी जल्दी ट्वीट कर देते है लगता है जैसे पूरी घटना की जानकारी इनको पहले से हो और ट्विटर पर ही फैसला सुना देते है, तो फिर न्यायालय किस लिये है आप लोग कानून लाओ और सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था का विघट्न कर दो। आगे से आपलोग ही फैसला सुनाओगे की ये हुआ था जी वो भी ट्विटर पर तो लोगो को कम से न्यायालय के चक्कर से छुटकारा मिल जायेगा और पैसे भी बच जायेंगे। ऐसे नेतागण कैसे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से इतनी जल्दी पहुँच भी जाते है लेकिन कुछ जगह जहाँ अचानक से लाखो लोग जमा हो जाते है और सरकारी तंत्र को नष्ट और आग के हवाले कर देते है तब ये नेतागण ये कहते नज़र आते है की कानून अपना काम करेगा, क्या वहाँ पर मरने वाले लोग इंसान नहीं थे? कुछ तो शर्म कर लो इतने सारे काम है करने को उस पर तो ध्यान नही जाता है उसके बारे में इतना नहीं चिल्लाते। साफ़ दिख रहा है आपको उन बातो को उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं है जो बहुत सारे लोगो की भलाई के लिए होगा। कोई यह नही कहता की शिक्षा में सुधार करो, कोई ये नहीं कहता की कैसे समाज के निचले तबके तक फायदा पहुंचे। सोचिएगा जरा ईमानदारी से, की आप समाज को किस धारा की ओर ले जा रहे है और ले जाना चाहते है।

आप सभी आम आदमी के साथ साथ हमारे यहाँ की राजनितिक पार्टियों से अनुरोध है की अपने बोलने की प्रवृति का अनुशासन से पालन करना चाहिए। क्योंकि कभी कभी आप ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते है जो कही से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सही ठहराया जा सकता है। आप सभी लोगो का सरकार में बैठे लोगो की आलोचना अवश्य करे लेकिन कम से कम अगर आप सार्वजानिक जीवन में जीने वाले लोग है तो आपको कुछ बातो का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।

Wednesday, 27 January 2016

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!

आज के दिन सभी एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये दे रहे है। आज की युवाओं की आदत है की आज सबको गणतंत्र दिवस की शुभकामना दी और अगले साल भर भूल जायेंगे। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बाते करेंगे और अगले दिन सब कुछ भूल जायेंगे। और अगली गणतंत्र दिवस आने तक प्रशासन को जी भर के कोसना।

क्यों ना हम आज के दिन कुछ अपने ने प्रण करे की अगले एक साल तक प्रशासन को कोसने के बजाये हम अपने अकेले के तौर पर जो बदल सकते है बदले जैसे की:
हम महिलाओं का अपमान नहीं करेंगे।
हम अपने आस पास गन्दा नहीं फ़ैलाएँगे।
हम कानून का पालन करेंगे।
हम कूड़ा को कूड़ेदान में डालेंगे।
हम उनकी सहायता करेंगे जिन्हें उसकी जरुरत होगी।
हम दुर्घटना में घायल लोगो को नजदीक के अस्पताल में पहुंचाएंगे।
सड़क के नियमो का पालन करेंगे।

जय हिन्द जय भारत!

Saturday, 16 January 2016

सामाजिक समरसता

अगर आज का भारत गाँधी जी जहाँ कही होंगे अगर देख रहे होंगे तो यह सोच के रो रहे होंगे क्या मैंने इसी भारत की तस्वीर देखी थी। अगर यही होना था तो क्यों ना अखंड भारत का सपना देखा।

दादरी उत्तर प्रदेश, मालदा पश्चिम बंगाल, पूर्णिया बिहार, फतेहपुर उत्तर प्रदेश, हरदा मध्य प्रदेश में अगर होने वाली घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है हम कितने असहिष्णु हो गए है। कहा गयी वो सामाजिक समरसता जब हमें अपने बचपन में कभी यह पता नहीं चला की हम कहाँ है और किसके साथ है। कभी हमारी माओं ने ये चिंता नहीं की, शाम हो गयी है मेरा बेटा कहाँ है और खाया या नहीं। लेकिन आज माओं को इस चिंता के बजाये इस बात की चिंता होती है की क्या हुआ होगा वो सही सलामत तो होगा, क्यों क्योंकि आज हमे अपने पड़ोसियों तक पर भरोसा नहीं रहा। क्योंकि हमारी वो जो आपस की एक अनजान डोरी हुआ करती थी जो हमे आपस में एक दूसरे से बांधे रखती थी वो कही टूटती सी नजर आती है। लेकिन मैं कहूँगा नहीं, ये हमारी सामाजिक समरसता आज भी है जो एक हिन्दू बेटी की शादी में एक मुस्लिम परिवार का कोई युवा अपना योगदान देता नजर आता है और कोई मुस्लिम परिवार की बेटी की शादी में हिन्दू युवा अपना योगदान देता नजर आता है। तो आखिर ऐसा क्यों है की वह अनजान धागा टूटता नजर आता है। ये सिर्फ और सिर्फ हमारे राजनितिक आकाओं की उपज है। क्यों, क्योंकि वे ये नहीं चाहते है की हम एक रहे क्योंकि इससे उनकी दूकान बंद होने का खतरा है।


अब आप सोचेंगे ऐसा मैं कैसे कह सकता हूँ। आप सोचे अगर किसी भी असेम्बली में सारे समुदाय एक मत से इस बात पर तैयार होते है की कोई उम्मीदवार हमारे लायक नहीं है और हम पूरी तरह चुनाव का बहिस्कार करेंगे तो क्या आज की तारीख में वहाँ पर सारे उम्मीदवारों को हटाकर दुबारा से चुनाव नहीं कराया जायेगा। तो सिर्फ इस एक उदाहरण के तौर आप सोच सकते है की ये राजनेता ही है जो ऐसा काम करते है।

जरुरी है राजनेता संभल जाये ऐसे कर्तव्यों से और ऐसे वक्तव्यों को देने से बचे वरना उनकी साख तो जायेगी ही साथ में उनकी अपनी पार्टी की भी साख जाती नजर आएँगी। यहाँ पर कुछ राजनेता जो कुछ ना कुछ हमेशा बोलते रहते है और जब भी बोलते है उससे आपस के समुदायो में तनाव बढ़ता है। लेकिन जब तक इन राजनेताओ को हम अपना मसीहा समझते रहेंगे तब तक ये हमारा इसी तरह फायदा उठाते रहेंगे। ये नेता कभी हिन्दू-मुस्लिम कह के डराते है कभी मुस्लिम-हिन्दू कह के डराते है, कभी ईसाइ-हिन्दू कह के डराते है कभी हिंदु-ईसाई कह के डराते है। जरा सोचिये इनके हाथ में पुरे राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होती और ऐसे कैसे एक जगह कुछ लाख या कुछ हज़ार लोग अचानक जमा हो जाते है और ऐसा कुछ कर जाते है जो मानवता के नाम पर कलंक है। क्या कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की नहीं है? कभी आपने सोचा है की किसी राजनेता के किसी रैली में ऐसी घटनाये क्यों नहीं होती है। कभी कोई राजनेता किसी बम्ब ब्लास्ट में नहीं मरता। क्योंकि जहाँ ये राजनेता होते है वहां की सुरक्षा चाक चौबंद होती है। जरा सोचिए हम राजनेता से है या राजनेता हमसे है। तो आखिर मरता कौन है आम आदमी कोई राजनेता क्यों नहीं। हमारे चुने हुए नेता को हमसे क्या खतरा जो हमसे ही नहीं मिलते चुनाव के बाद। चुनाव के पहले तक तो इनको जहाँ चाहो बिठा लो कोई फर्क नहीं परता, चुनाव जितने के बाद ही ये भीआईपी हो जाते है। मैं यहाँ छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा की मेरे क्षेत्र का सांसद कभी मेरे गाँव नहीं आता चुनाव जितने के बाद लेकिन चुनाव से पहले कई दफा मैंने उन्हें अपने गाँव में देखा है खड़े खड़े बात करते हुए किसी भी अनजान व्यक्ति से, मोटरसाइकिल पर भ्रमण करते हुए कई बार गुफ्तगू करने का भी मौका लगा लेकिन अगर मैं दिल्ली में उनसे मिलना चाहू तो शायद यह संभव नहीं क्योंकि दिल्ली आते ही वे एक भीआईपी हो जाते है। शायद संसद में वे सोनिया गांधी जी के बगल में हमेशा बैठे नजर आते है शायद नहीं भी। और आज तक कभी एक सवाल करते नहीं देखा और ना ही सुना। मैं यह नहीं कहता की आप सोनिया गांधी जी के बगल में ना बैठे लेकिन कम से कम अपने राजनितिक धर्म का तो पालन करे संसद में। अगर किन्ही राजनेताओं को सही मे खतरा है तो आप उन्हें सुरक्षा दीजिये लेकिन बांकी जनता के साथ तो ऐसा ना करे उनसे राजनेता मिले बात करे तभी उन्हें पता चल पायेगा की क्षेत्र में क्या कमी है जिसे दूर करने का प्रयास किया जाये। बात करने से बात बनती है।

तो जरुरत है हमे जागने की हम क्या है और हमे क्या चाहिए। जरुरत है हमे यह समझने की कौन सही है कौन गलत। कभी य राजनेताे बोलेंगे जोर जोर से जैसे इनका कोई सगा मर गया हो कभी यह चुपचाप परे रहते है एक शब्द मुँह से नहीं निकालते, क्यों क्योंकि वोट की राजनीती जो ठहरी। तो मतलब है इन्हें और इनकी मानसिकता को समझने की तभी हम इनके खिलाफ खड़े हो पाएंगे।  कुछ लोग दादरी पर चिल्ला चिल्ला के बहुत कुछ बोल गए लेकिन मालदा और पूर्णिया जैसी घटनाओं के बारे में कुछ नहीं बोला। जिन लोगों ने मालदा और पूर्णिया की घटनाओं पे गला फाड़ के चिल्लाये वे कभी दादरी और हरदा जैसी घटनाओ पर चुप्पी साध ली। क्या हम इतने बेवकूफ है हमे समझ नहीं आता की कौन क्या कह रहा है कैसे कह रहा है। या हम सुनना नहीं चाहते है। मुझे नहीं लगता है की हम ऐसे हो गए है की हम यही सुनना चाहते हो। या कुछ और है जिसकी वजह से हम चुप रहते है।

तो मैं यही कहना चाहता हूँ की आप अफवाहों पर ध्यान ना दे जबतक आपको विश्वस्त सूत्रो से पता ना चले। आप राजनेताओ की बात माने लेकिन उससे पहले अपने विवेक का उपयोग अवश्य करे। मैं अपने पढ़े लिखे युवा मित्रो से कहूँगा की आप भी किसी भी बात को फैलाने से पहले उसके बारे में कुछ जांच पड़ताल अवश्य करे। आज का जमाना इतना मॉडर्न है की आप एक क्लिक से किसी भी न्यूज़ के बारे में तुरंत पता लगा सकते है। तो कही भी शेयर करने से पहले उस न्यूज़ के इम्पैक्ट के बारे में अवश्य सोचे, क्योंकि आपके एक शेयर करने से जाने अनजाने में आप कई लाख नहीं तो कई हजार लोगो तक अपनी बात पहुँचाने में सक्षम है। आप पढ़े लिखे है आपसे उम्मीद की जाती है की आप अपने समाज को दिशा दिखाए और सही दिशा दिखाए, ताकि उनके जीवन में सुधार हो सके। आप इस बात से कतई इनकार नहीं कर सकते की आप अकेले के करने से क्या होता है आप करे तो सही। और आपकी समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है उसका अवश्य निर्वाह करे। चाहे जैसे करे अवश्य करे हर एक बात को सरकार के सिर पे छोड़ देना सही नहीं है। आप अपने आँख और कान हमेशा खुले रखे की आस पास क्या हो रहा है अगर गलत हो रहा है तो पूछे जरूर, पूछने में क्या जाता है।
जय हिन्द जय भारत।

Thursday, 7 January 2016

आतंकवाद और भारत

2 जनवरी 2016 तड़के सुबह जब कुछ लोगो की नए साल की पार्टी खत्म भी नहीं हुई होगी हमारे जवान सरहद पार से आये कुछ ऊँगली में गिने जाने वाले कुख्यात मुठ्ठी भर आतंकवादियों से लोहा ले रहे थे। 72 घंटे से भी ज्यादा चली इस मुठभेड़ में 7 सैनिको का शहीद होना हमारे सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती है। ये चुनौती इसीलिए भी है क्योंकि जब सामने वाला अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस हो और आप एक राइफल ले के लड़े तो चुनौती तो होगी ही। पिछले कई सालो से हम जितने आतंकवादी हमले हमने देखे है उसमे एक समानता है वे हमेशा आते है पूरी तैयारी के साथ और साथ में लाते है मानव विध्वंसक यन्त्र जिससे वे पलक झपकते अनगिनत मासूमो का जान ले सकते है।

लेकिन हालिया किये गए हमलो से ये साफ़ पता चलता है की अब उनका टारगेट सशत्र बलों का नुकसान पहुँचाना। चाहे वो गुरदासपुर की घटना हो या पठानकोट का हमला। वे आते तो है मुठ्ठी भर के लेकिन कोशिश करते है ज्यादा से ज्यादा हानि पहुँचाने की। लेकिन हमारे सुरक्षा तंत्रो को सोचना है की वे बार-बार क्यों संघर्ष करते है इन मुठ्ठी भर आतंकवादियों से। अगर हम ध्यान करे तो पाएंगे की ये चंद मुठ्ठी भर आतंकवादी हमारे घर में ही आ के हमे चुनौती देते है और हम कई कई दिनों तक संघर्ष करते है इनका सफाया करने के लिए। ये कितने भी सख्त ट्रेनिंग ले के क्यों ना आये हो लेकिन हमारे पास हमारे घर में लड़ने का फायदा होता है फिर भी हम संघर्ष करते है। पठानकोट जैसे हमले जो वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है सामरिक दृष्टि से भारत के लिए फिर भी भारत सरकार को एनएसजी भेजना परे तो मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।


लेकिन 24 घंटे पहले पंजाब पुलिस के एक एसपी का अपहरण कर लिया जाता है तो इसका अंदेशा तभी सुरक्षा कर्मियों को लगा लेनी चाहिए। कोई आम आदमी ऐसी घटना को अंजाम नहीं दे सकता ये तो कोई साधारण सा व्यक्ति भी बता सकता है।

जब से बीजेपी सत्ता में आई है ऐसा लगता है ऐसी घटनाये बढ़ गयी है। ऐसा भी हो सकता है की बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उन्हें एहसास हो गया है की भारत का पाकिस्तान का रिश्ता कितना नाजुक है। या उन्हें अब तक ये समझ नहीं आया है की पाकिस्तान के साथ रिश्ते को कैसे निभाया जाये। एक कारण ये भी हो सकता है की बीजेपी में सत्ता का केंद्र अलग अलग जगह होने से फैसला लेने में देरी की वजह से ऐसी घटनाये बार बार हो रही है। यह वैसे ही सिर्फ कोरा कयास ही हो सकता है जैसे की ये कहा गया की प्रधानमंत्री जी लाहौर गए और सुषमा जी को पता ही नहीं था।

जहाँ तक इस तरह के आतंकवादियों घटनाओ से निपटने के तरीको को सोचने की बात है और गंभीरता से सोचने की जरुरत है। कुछ लोग कहते है हमे हमला कर देना चाहिए, जरा सोचिये क्या यह व्यवहारिक है, नहीं, क्योंकि पाकिस्तान नामक कोढ़ वैसे ही जैसे ब्रेन में कैंसर का होना। हम बांकी जगह के कैंसर से लड़ तो सकते है पर ब्रेन के कैंसर से नहीं लड़ सकते। हमे यह बात कतई नहीं भूलनी चाहिए की हमारा पड़ोसी परमाणु बम से सुसज्जित है, क्योंकि अगर एक उद्ददण्ड बच्चे के हाथ में चाकू लग जाये तो चलता है लेकिन अगर बन्दुक लग जाये तो मुश्किल है उसे संभालना। वैसे ही कुछ हालात पाकिस्तान के है। हमे ये कभी नहीं भूलना चाहिए की वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति और सैनिक तानाशाह ने यहाँ तक कह दिया की हमने क्या परमाणु बम सब-बे-बारात में फोरने के लिए रखे तो हमे इस बाद का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए की ये इतना आसान नहीं है। वैसे भी ये तो सबको पता है वहाँ पर सत्ता का केंद्र सिर्फ नवाज शरीफ़ जी के पास नहीं है।

हमे उनसे बातचीत जारी रखनी चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमे कुछ ना बोल पाये और हमारे ऊपर किसी तरह का फालतू दवाब ना हो। दूसरी तरफ हमे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये सबूत देते रहने चाहिए ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति के मामले में भी हम उनसे दो कदम आगे रहे। हमे अपने फौजी ताकतों को भी धीरे धीरे बढ़ाते रहने चाहिए। हमे अपने फौजियों को भी आधुनिक हथियारों से लैस करना चाहिए ताकि वे भी आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए सक्षम हो सके। जैसे आतंकवादी आते है AK47 लेकर और हमारे जवान राइफल से उनका सामना करने को मजबूर है। हमे हमारे जवानो को अच्छी बुलेट प्रूफ जैकेट देनी चाहिए ताकि के निडर हो के दुश्मनो का सामना कर सके। ये कुछ बेसिक जरूरते है जो हमे अपने जवानो को मुहैया करानी चाहिए। मुझे व्यक्तिगत तौर पे ये भी लगता है की ऐसी घटनाओ के मामले मे हमे कुछ कानून में बदलाव कर सैनिको को कुछ अतिरिक्त शक्ति देनी चाहिए।

Sunday, 20 December 2015

आज की राजनीति दशा और दिशा

माना जाता है की कांग्रेस ने आज़ादी से आज तक जब भी सत्ता में रही उन्होंने बहुत कुछ दिया देश को, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन हम अगर अपने समकक्ष आज़ाद हुए देशो की तुलना अपने देश से करे, अपने कुछ एक परोसी देश को छोड़ के, हम आम आदमी के विकाश में कही पीछे रह गए है। तो हमे उन देशो के साथ हमे ये देखना होगा ही हम ऐसे कैसे पीछे रह गए। क्या हमारे यहाँ इच्छाशक्ति की कमी है नहीं, हमारे यहाँ युवाओं की कमी है नहीं, क्या हमारे यहाँ स्किल्ड युवाओ की कमी है नहीं। फिर ऐसी क्या बात है जो हम पीछे रह गए सिर्फ और सिर्फ राजनितिक दूरदर्शिता जो देश के भविष्य को नहीं सोच के, वे सिर्फ अपने भविष्य को सोच रहे है।


तो प्रश्न उठता है किसने किया ये और किसकी गलती थी की हम पीछे रह गए?
सीधी सी बात है जिसने राज किया देश पे उनकी गलती थी फिर इस बात को सिद्ध करने के लिए हमे कुछ उदाहरण देने होंगे जो निम्नलिखित है:
१) राजनितिक सत्ता पाने के लिए हमने ऐसे अनावश्यक तत्वों को राजनीती में शामिल किया जो कही से भी समाज से बाहर रहने लायक है।
२) केंद्र की राजनीती का राज्य स्तर पर विकेंद्रीकरण होना।
३) राज्य स्तर की पार्टियों का केंद्र की राजनीति में शामिल होना।
४) राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों का राज्य स्तर पे भूमिका कम होना।
५) राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों का विश्वास कम हो जाना।
६) कुछ ऐसे निर्णय जिनके लागु होने में देरी।
७) कुछ ऐसे निर्णय जिनका सही तरह से पालन ना होना।
८) चाहे कोई कानून कितना ही महत्वपूर्ण क्यों ना हो देश के लिए, हमे खिलाफ में ही बोलना है जैसी सोच विपक्ष के सांसदों का।
९) देश की जांच एजेंसियों का राजनितिक विद्वेष के लिए उपयोग करना।
१०) राजनीतिज्ञों की भाषा की शालीनता का क्षय होना।
और भी कुछ लाइने जुड़ सकती है इसमें। उपरोक्त पंक्तियाँ गिनाने के लिए छोटी है लेकिन इनके आशय बड़े है हमे इनको समझने की कोशिश करनी होगी।

मुझे अब भी याद है की जब वी पी सिंह की सरकार बनी थी तो उस समय चुनावो में जनता पार्टी ने ये नारा दिया था "गली गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है।" क्या यह नारा सही था? क्या यह नारा कही से राजीव गांधी जी को गलत नहीं लगा होगा? क्या राजीव गांधी जी को ये नहीं लगा होगा की ये मानहानि की बात है। बिना किसी पर्याप्त सबूतो के इस तरह का नारा देना कहा तक सही था? लेकिन अगर आज कोई इस तरह की बात करे तो दो बाते आएँगी:
१) ये राजनितिक साजिश है।
२) इनके पास बोलने के लिये कुछ नहीं है इसीलिए ऐसी अनर्गल बात कर रहे है।
३) हम इन्हें कोर्ट में चुनौती देंगे।
४) हम तत्काल इनका इस्तीफा मांगते है।
५) हमने कोई घोटाला नहीं किया ये अपना घोटाला छुपाने के लिए ऐसा कह रहे है।
६) हम आंदोलन करेंगे, हम इन्हें बेनकाब कर के रहेंगे इत्यादि।

क्या ये राजनितिक असहिष्णुता है, कही से नहीं। राजनितिक असहिष्णुता तो तब हो जब आपको ये समझ आये की ये राजनीती है इसीलिए ये बाते तो होती रहती है बेहतर हो इन राजनितिक आक्षेपो का राजनितिक जवाब दिया जाये ना की व्यक्तिगत आक्षेप लगाया जाये। कहने की बात सिर्फ ये है की अगर आप राजनीती में होते है तो इन छोटे बड़े आक्षेपो को राजनितिक जवाब देने आना चाहिए।

लेकिन लग नहीं रहा है आज के राजनेताओ को ये कला सही से आती है क्योंकि वे बड़ी जल्दी होश खो देते है क्या ये राजनितिक सहिष्णुता का परिचय है यहाँ पे कुछ उदाहरण देना आवश्यक है
१) राकेश कुमार जी के सीबीआई जाँच पे अरविन्द केजरीवाल जी का माहात्म्य।
२) नेशनल हेराल्ड वाले केस में राहुल गांधी जी का ये कहना की इस केस के बारे में सबको पता है किसका हाथ है और राजनितिक बदले की साजिश बोलना।
३) नितीश कुमार जी का डीएनए वाली बात को पुरे बिहार वासियो का डीएनए से तुलना करना और कुछ लोगो का डीएनए रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय भेजना।
४) बार बार बीजेपी के प्रवक्ताओ का ये कहना की कांग्रेस को जनता ने नकार दिया है, ये सही है नकार दिया है आप भी इस मुगालते में ना रहे ५ साल बाद आपकी भी छुट्टी हो सकती है थोड़ा अहं कम कर ले और जनता के लिए काम करे।

क्या ये राजनितिक असहिष्णुता नहीं है? जब हम राजीव गांधी जी के ज़माने का आज से तुलना करते है तो इसका मतलब है आप अपनी राजनितिक असहिष्णुता की तुलना करे की तब क्या थी आज क्या है।

संसद के शीतकालीन सत्र को देख कर तो ऐसा ही लगता है क्योंकि एक राजनितिक पार्टी के ऊपर केस में कोर्ट में पेशी को लेकर इतना हाय तौबा मचा की सत्र का १० दिन पूरी तरह धूल गया। क्या यह राजनितिक अदूरदर्शिता या राजनितिक असहिष्णुता है? आप कुछ भी मान सकते है ये आपकी सोच पे निर्भर करता है। क्या हम कभी जागेंगे की हमने इन्हें इसी तरह से संसद में व्यवहार करने के लिए चुना है। ५४५ सांसद में से कुछ एक ४५-५० सांसदों ने पूरी तरह संसद को चलने नहीं दिया। एक और उदाहरण हम ले सकते है एक सांसद महोदय ने एक पत्रिका के लेख के आधार पे संसद में ये कह देना की देश कुछ एक सौ सालो बाद हिन्दू कट्टरपंथी शासक आया है और उसके कुछ घंटे बाद उस पत्रिका ने अपने उस खेद जताया लेकिन हमारे सांसद महोदय ने कुछ नहीं कहा, क्या सांसद महोदय को भी माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए थी। आपको जनता ने जिम्मेदारी पूर्वक बात करने के लिए संसद में भेजा है।

इसी सत्र में संसद में असहिष्णुता को लेकर बहस होना तय हुआ क्योंकि देश के कुछ राजनितिक पार्टियां ऐसा चाहती थी। क्योंकि उन्हें चेन्नई जैसे शहर का १०० सालो में सबसे बुरा हाल रहा दिखाई नहीं दिया, उन्हें देश में मर रहे किसानो का हाल दिखाई नहीं दिया। और जब संसद में असहिष्णुता पर बहस शुरू हुई तो कई सांसद संसद से नदारद नजर आये। कुछ ने तो अपने भाषणों में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जो कही से आम बोलचाल की भाषा में उपयुक्त नहीं ठहराई जा सकती, ये सुन के सिर्फ ये कहा जा सकता है की ये सिर्फ राजनितिक विद्वेष के लिए कही गई बाते है और ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कुछ माननीय कहे जाने वाले सांसदों ने उठाया। संसद में किसी बात पे बहस क्यों होती है और क्यों होनी चाहिए, अगर आसान शब्दों में समझा जाये तो ये कहा जायेगा की किसी भी मुद्दे पे सांसदों की राय जानना लेकिन यहाँ पे लगता है आपको अपने पार्टी की तरफ से बोलना होता है चाहे वो मुद्दा उस सांसद और उसके क्षेत्र के लिये कितना ही महत्वपूर्ण क्यों ना हो।

Saturday, 19 April 2014

Dance of Democracy 2014

Author never endorse any political party and not supported by any political parties. Views written in this article is his own. Said article never claimed that the views of all 3 parties has been draw in their own manifesto are as the same.

BJP:
Does Narendra Modi actually have a great Gujarat model, or just well packaged hype? Critics say that Gujarat has grown fast, but some others have grown faster.

Gujarat is the best state in pendency of corruption cases, and in the proportion of non-violent crime. It is close to the top in completion of police investigations. It scores poorly in judicial vacancies and recovery of stolen property.

It’s quality of government spending is high: it has the lowest ratio of administrative GDP to total GDP. Spending is focused on infrastructure rather than staff. Modi’s repeated state election victories show that his approach produces high voter satisfaction. It has large, expanding public sector companies, and substantial taxes on capital and commodities.

It has many subsidies, though fewer than in other states. Still, business thrives in its business-friendly climate. It always take more than six months and several visits (and payments) to ministries for industrial approval. But in Gujarat, the ministry concerned called him the day before his appointment, asking for details of his proposal. Next day, he found the bureaucracy had in advance prepared plans of possible locations for his project, and settled the matter on the spot. This was unthinkable elsewhere, and showed both efficiency and honesty. Corruption has not disappeared in Gujarat, but is muted.

Congress:
"History will be kinder to me than the contemporary media," Manmohan Singh told reporters at a press conference earlier this year. Sanjaya Baru's book 'The Accidental Prime Minister: The Making and Unmaking of Manmohan Singh' isn't a revisionist exercise that will change public opinion about the PM who abdicated. In fact, it only reinforces the image of a 'puppet PM'. But it does paint a portrait of an earnest, hard-working PM who let his loyalty — "misplaced and unrewarded" — to the Gandhi family get the better of his judgment. Baru, who was media advisor to the PM between 2004 and 2008 written in his book. Later after Baru's release there was another socking release for Honorable Prime Minister Mr Manmohan Singh that let down his chair and more than his chair the institution on he sat for 10yrs in a row. But in my thought these books saved Mr Manmohan Singh rather than harm his public figure. Because these books says that he has nothing to do so he can say India that I don't have anything in my hand to do, so whatever has been done in last 10yrs it was the agenda of one family.

AAP:
History has been made in country a year old party came into force in power, but much hyped government showed that they feel lack of experience in governing the government. But in my opinion it could be better and they can learn if they continue the government instead of leaving the people of Delhi in dilemma. In later Convenor of party said that it was wrong decision to do the same. So we can say that they gradually become experienced in Indian politics. With doing you can’t be experienced. So I can say that “Failure is the pillar of success”, so they must continue with governance to deal with these kind of in-experience

Comparison of Manifesto among BJP/Congress/AAP:

Governance
BJP: Set up an effective Lokpal institution; committed to strengthen self-Governance at the local level and will empower Panchayati Raj Institutions with extensive devolution of the 3Fs – Functions, Functionaries and Funds; governance policies will be people-centric, policy-driven, and delivered in a timely fashion. The focus will be on minimum government and maximum governance.
Congress: Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission-II will be continued with the aim of providing more funding and more powers to local governments to strengthen human and institutional capabilities, local planning and improvement in governance; ensure the enactment of the Judicial Appointments Bill; pass the Right of Citizens for Time Bound Delivery of Goods and Services & Redressal of their Grievances Bill; ensure passage of anti-corruption bills including the Prevention of Corruption (Amendment) Bill.
AAP: Pass the Jan Lokpal Bill as well as the Swaraj Bill; create a Judicial Appointments Commission both at the State & National level; set up fast track courts at all levels of judiciary; double the number of courts and judicial strength at subordinate level in 5 years; improve infrastructure in courts via computerization; bring down minimum age to contest elections to 21 from 25; implement Supreme Court judgments on police reform; introduce electoral reform via the “Right to Reject” and “Right to Recall” option; internal functioning of political parties to be regulated and accounts scrutinized by CAG approved auditors.

Infrastructure
BJP: Launch an integrated public transport project, which will include roadways, waterways, and railways; expedite work on freight and industrial corridors, connect all villages through all-weather roads; National Highway construction projects will be expedited, especially Border and Coastal highways; set up gas grids, implement a low-cost housing program and set up a National Optical-Fiber Network up to village level; modernize railways and invest in port and airport construction & development.
Congress: Connect all the million-plus cities of the country by High Speed Rail; independent regulator to monitor the allocation of natural resources; development of Regional Rapid Transit Systems; invest close to $1 trillion in infrastructure over the next decade in partnership with PPP (Public Private Partnership) models; 100% electricity access in urban areas and 94% in rural areas; new infrastructure for air travel across the country and upgrade logistics and infrastructure of ports.
AAP:  Create world-class infrastructure in both urban and rural areas; participation of private sector in infrastructure development.

Business/ Industry
BJP:  Ensure a conducive, enabling environment for ‘doing business’ in India; focus on cutting the red tape, simplifying the procedures and removing the bottlenecks; ensure logistics infrastructure, including stable power; move towards a single-window system of clearances both at the Centre & State.
Congress: Implement the National Manufacturing Policy on priority basis to enhance the share of manufacturing in GDP to 25% by 2022; creation of a patent pool, which will ensure that small medium Indian enterprises are able to access world-class technology at affordable cost.
AAP: Create an eco-system where every enterprising citizen or community has access to capital, information, infrastructure, such that innovative and productive entrepreneurship becomes the new engine for accelerating growth in India; encourage active participation of private sector to allow enterprises to thrive and create jobs.

Internal Security
BJP: Revive anti-terror mechanism, strengthen the role of the National Investigation Agency (NIA) and put a system in place for swift and fair trial of terror-related cases; reform the National Security Council.
Congress: Equip police force with modern weapons and technology; state resources will be mobilised to maintain law and order; security forces posted in LWE (Left Wing Extremists) affected areas will be strengthened; development agenda to empower people in LWE affected areas, deployment of specialist battalions and recruitment of additional personnel.
AAP: Review and reform laws like the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) to make them time-bound and humane; zero-tolerance towards cross-border terrorism especially in areas like Kashmir; naxalite issue to be approached in terms of multi-lateral dialogue, social and economic development, and effective political decentralization in addition to modernization of security forces.

Foreign Policy
BJP: Pursue friendly relations in the neighborhood however, where required, will not hesitate from taking “strong stand and steps”; work towards strengthening regional forums like South Asian Association for Regional Cooperation (SAARC) and Association of Southeast Asian Nations (ASEAN); continue dialogue, engagement, and cooperation with global forums like BRICS, G20, IBSA, SCO, and ASEM.
Congress: Work towards improving relations with Pakistan while stressing on the need to act against the perpetrators of 26/11; continue to extend all possible aid to rehabilitate Sri Lankan Tamils. Work with China to resolve differences of perception over Indian borders and the Line of Actual Control; mobilize support for India’s permanent membership in the UN Security Council.
AAP: Coordinate bilateral and multilateral efforts to prosecute terrorists and for better border management; reduce political hostilities in our immediate neighborhood through confidence building, and providing development and relief assistance to our neighbors; develop border areas as zones of high economic engagement to create a larger constituency for peace on both sides and tackle illegal immigration; supplement India’s meaningful engagement with the US, with that of other blocks such as the BRICS, and IBSA; advocate UN oversight of all global commons and promote its legitimacy and power.

Education
BJP: Performance audit of Sarva Shiksha Abhiyan; content and process of school education to be reviewed to make it dynamic and stress-free; special attention will be given to differently-abled students; universal secondary school education with an emphasis on rural, tribal, and conflict areas; UGC will be restructured and transformed into a Higher Education Commission; autonomy with steps to ensure accountability for institutions of higher learning; revisit Apprenticeship Act to facilitate youth to earn while they learn.
Congress: New focus on secondary education to ensure universal enrolment, and reduce dropout rates in middle and secondary levels with a special emphasis on girls and those from minority communities; Rashtriya Uchhatar Shiksha Abhiyan to improve College and University infrastructure; open up higher education system to investment from India and abroad; independent regulatory mechanism to oversee state and private institutions to ensure standardization and quality of education; scale up skill development and training to open up new opportunities for upward economic mobility; completion of program to convert 200 existing educational institutions into community colleges; strengthen facilities for children with special needs.
AAP: State provision of equitable access to high quality of education for all children irrespective of their financial condition; special provisions for girls, first-generation learners, students from poor families and social disadvantaged communities; involvement of local community in the creation of a context-rooted curriculum and management of schools with accountability passed on to Gram/Mohalla Sabhas; Establish numerous world-class, public-funded institutions of higher education; recruitment of teachers will be done in a transparent manner, adequately compensated, continuously trained, and made more accountable; roll back the Four Year Undergraduate Program introduced in Delhi University; introduce numerous vocational training institutes throughout the country.

Healthcare
BJP: Will bring in ‘National Health Assurance Mission’ with a mandate for universal healthcare; will initiate the New Health Policy; set up AIIMS-like institute in every state; high priority will be given to address the shortfall of healthcare professionals; modernize government hospitals, upgrading infrastructure and installing latest medical technologies. Focus on rural healthcare delivery; utilize the ubiquitous platform of mobile phones for healthcare delivery and set up the ‘National eHealth Authority’ to leverage telemedicine and mobile healthcare for expanding reach and coverage; ensure a ‘Swachh Bharat’ by 2019 by creating an open defecation free India, setting up modern, scientific sewage and waste management systems, introducing Sanitation Ratings that measure and rank cities and towns on ‘sanitation,’ and make potable drinking water available to all.
Congress: Will bring into effect a Right to Health Act; raise healthcare spending to 3% of GDP; expand the Rashtriya Swasthya Bima Yojana, a cashless insurance scheme to include primary, secondary, as well as tertiary care; strengthen primary infrastructure; provide 5 state-of-the-art mobile health care vans in every district, equipped with x-ray and other equipment to provide health care checkups including, mammography, blood tests, etc..Launch focused intervention to improve the Child Sex Ratio, within an overall “National Strategy for Care and Protection of the Girl Child” from birth to adolescence; reduce the number of HIV infections and provide comprehensive care and support to all personals living with HIV/AIDS; provide a functional toilet in every school and every household; ensure effective implementation of all health-related initiatives by working to strengthen the primary health workforce; ensure universal coverage of routine immunization through campaigns and effective monitoring in districts throughout the country.
AAP: Introduce a comprehensive ‘Right to Healthcare’ legislation enabling access to high quality healthcare for all citizens; improve accountability of public health systems towards its users by decentralization of funds, functions and functionaries to the appropriate level of local government; guarantee that all essential drugs are available on a regular basis to public health facilities and made available free of cost to the people; improve the accountability of private healthcare providers and ensure that the government to honor their commitment to the aam aadmi subsidises it; greater public investment into research in Ayurveda, Yoga and Naturopathy, Unani, Siddha and Homeopathy.

Women Empowerment
BJP: Pass Women’s Reservation Bill; strict implementation of laws related to women, particularly those related to rape; introduce self-defense as part of the school curriculum; provide a fund for rehabilitation of rape victims; establish a welfare fund for acid attack victims; make police stations women friendly, and increase the number of women in police at different levels; set up a dedicated W-SME (Women Small and Medium Enterprises) cluster in every district.
Congress: Pass Women’s Reservation Bill; earmark 30% of all funds coming to local bodies for development of women and children; fast-track courts will be established with ‘in-camera’ proceedings facilities in State headquarters and regional centers, whose sole purpose will be to address crimes against women.25% of the total police officers, sub-inspectors and constables at every police station in the country will be women; increase the number of women police stations from 500 to 2000 within the next 5 years; “One-Stop Crisis Centre’s for women in all hospitals; work in conjunction with women self-help groups to distribute free sanitary napkins to adolescents.
AAP: Implement comprehensive and long-term public education programs to end the culture of gender-based discrimination and violence (via SMS, radio, and TV public service campaigns etc); zero tolerance approach towards sex selective abortion and work towards its complete elimination by strengthening and implementing legislation against its practice; ensure secure, dignified, remunerative employment for women. Equal pay for equal work in all sectors; work with state governments to provide comprehensive services to women who are victims of violent crimes right from helping them to fund and set up one-stop to establishment of fair fast track courts; support 33% reservation for women as well as the adoption of a Code of Conduct to end misogynist comments and behavior in the Lok Sabha; strengthen the autonomous functioning of the National and State Commissions for Women.

Minorities
BJP: Priority to Scheduled Castes (SC), scheduled Tribes (ST) and other backward classes (OBC) in public and private sector; introduce a Uniform Civil Code and a National Madrasa Modernization Program; introduce the Van Bandhu Kalyan Yojna at the national level to empower tribals.
Congress: Create a national consensus on affirmative action for SCs and STs in the private sector; prioritize the passing of the Communal Violence Bill; introduce legislation to provide reservation for backward minorities; bring a law to decriminalize consensual sexual relations between adults of the same sex.
AAP: Reservation should be religion-neutral; majorities who are minorities in other states should be treated as such; support existing constitutional provisions of reservations in higher education and government jobs; those who have already availed the benefits of reservation should be placed at the end of queue in order for it to go to those who are most needy; widespread public education to change the mindset of caste-based inequality and untouchability; neither majority beliefs nor minority rights should be used to justify practices, which are in violation of the basic rights and values for all men and women per the Indian Constitution.

Black Money
BJP: Plan to set up task force to bring back black money to India.
Congress: Set up special envoy to pursue black money.
AAP: Ensure the return of black money.

Financial Reforms
BJP: Strictly implement fiscal discipline, without compromising on funds availability for development work; undertake Banking reforms to enhance ease and access, as well as accountability.
Congress: Bring down fiscal deficit to 3% of GDP by 2016-2017; set up an independent National Fiscal Responsibility Council that will submit an annual report to the Parliament on the progress made in achieving fiscal commitments.
AAP: No concrete measures outlined by the Party.

Price Rise
BJP: Set up a price stabilization fund; Special Courts to stop hoarding and black marketing; simplify Food Corporation of India (FCI) into procurement, storage, and distribution for greater efficiency; evolve a single ‘National Agriculture Market’ and leverage technology to disseminate real-time data, especially to farmers – on production, prices, imports, stocks, and overall availability.
Congress: Reserve Bank of India (RBI) needs to strike a balance between price stability and growth while formulating monetary policy; continue to provide higher; minimum Support Prices to increase profitability of agriculture for farmers; expand the focus of the current food security schemes to include subsidized pulses and cooking oil for beneficiaries of Antyodaya Anna Yojana.
AAP: Stringent measures will be taken to prevent hoarding and profiteering in retail, wholesale businesses and in black marketing; corruption in ration shops and public distribution systems (PDS) will be brought to an end with the involvement of ‘mohalla sabhas’; direct transfer of ration materials to the families will be ensured and will include dal and oil in the PDS.

Foreign Direct Investment (FDI)
BJP: Opposed to FDI in retail but open to it in other sectors.
Congress: Open for Foreign Direct Investment in any sector.
AAP: Opposed to FDI in retail.

Job Creation & Economic Growth
BJP: Remove ‘policy paralysis’; focus on both job creation and entrepreneurship in rural and urban areas.
Congress: Outline a detailed ‘Jobs Agenda’ within 100 days of forming government that will create 10 crore new jobs and entrepreneurship opportunities for the youth; achieve 10% growth in the manufacturing sector and create 10 crore jobs in this sector alone within a decade under the ‘National Manufacturing Policy’ of the UPA.
AAP: Create employment and livelihood opportunities for young women and men in honest enterprises across agricultural, manufacturing, or services sector; focus on job creation by promoting honest enterprises, which will be achieved by reducing corruption, lowering compliance costs etc.

Agriculture:
BJP: The party says it will waive agricultural loans to farming community. It will set up a commission to study the entire gamut of farmers' loans and come up with an actionable solution to the deepening crisis within six months. To set a maximum ceiling of 4 per cent interest for agricultural loans to farmers from banks. BJP to introduce a pension scheme for aged and helpless farmers.
Congress: The party says it will expand schemes for improving well-being of farmers and their families. In addition to continuing the program that were launched over the past five years, the party promises that every small and marginal farmer in the country will have access to bank credit at lower rates of interest. Congress will implement comprehensive crop insurance schemes. The Congress says it is committed to ensuring that farmers get, at a very minimum, market rates for the land that is acquired for industrial projects.
AAP: Affordable institutional credit to all, especially tenant and women framers and not just landowning farmers; reducing the cost of cultivation by promoting and incentivizing low input cost methods and diversification of income generating activities including agro-processing, livestock, value addition and agriculture-related services.

Tuesday, 8 May 2012

Satyamev Jayate

The wait is over! Satyamev Jayate finally takes off. But, has the show lived up to the hype it has created so far? Well, Aamir Khan is surely in a win–win situation that way because the show is apt for the thick skinned Indian audience that usually is insensitive to such important topics, unless a superstar spoon feeds them. It's definitely a show with immense national appeal, pan India. By choosing a hard hitting topic for its first episode-female foeticide. The first episode dealt with female foeticide, which is a basic socially concerning topic. In fact, quite similarly, reality shows like Crime Patrol or Bhanwar have turned out to be successful in staging the emotions perfectly on small screen.
But, difference surely lies in the treatment. The superstar anchor excels at maintaining the suspense element throughout the show. He, like a true entertainer builds a plot that gets intriguing with every passing moment. Like for instance, the idea of introducing the topic, without giving a hint about what will follow next is very commendable. The surprises are followed by tremendous shock value, which take the show to another level.
Have you ever really felt what it feels like when a strong current of emotions gushes down your veins and creates a lump in your throat and leaves your eyes moist! Have you ever been able to look beyond what your eyes show? If not then follow ‘Satyamev Jayate’.

http://www.youtube.com/watch?v=u1vASMbEEQc

Aamir Khan has done it. The perfectionist has indeed proved why he is called so! The magnanimous personality has struck gold with his debut TV show ‘Satyamev Jayate’ that promises to unearth the human in you. The show is not about TRPs and a rat race that believes in slinging mud at rivals. It’s a sincere effort that makes people hope and gives people the courage to stand up against the unsocial.
If the show becomes repetitive in terms of content, it may lose on to the loyal audience in the weeks to come. What adds to the misery is the question- whether the audience will continue to be receptive towards such hard-hitting shows, when they like to relax on weekends? So, if you want to awaken your conscience then follow Aamir, place your right hand on your heart and say ‘Satyamev Jayate’.
It would be unfair to compare Aamir Khan with other film stars who have hosted the TV shows in the past, as the concept of this show is completely different. Yes, the show is definitely highlighting the most serious issues that are bothering the country, but the question is what the outcome is?
Is this show money making scheme or it really has the potential to help the country in its own little way! Overall, Satyamev Jayate is a like old wine in a new bottle, but with Aamir Khan as its USP, it has a tremendous potential to create a stir all over.
We shall wait and watch.

Sunday, 18 March 2012

Budget 2012

On 16th Honourable Finance Minister Mr. Pranab Mukherjee has been presented the Union budget of India on Parliament for UPA government for straight 7th times house.

Congress always emphasis on the word their election symbol is always with general people. This budget shows that they don’t have anything in mind to develop the people of India by anyhow. They want to keep focus on those thing how we can keep those illiterate people as illiterate that means they don’t want to develop the mindset of Indian People. This is very ridiculous that how they can think so much cheap.

This is the reflection of Assembly election in UP, if they won in UP than they can think some bigger package for UP, some good package to Indian Farmer to keep in mind UP. They have always in mind that they have 3 more years to face general election of India. So they don’t fear to take some bold decision in context of raising the Sales Taxes in 2%. It makes costlier all essential commodities. Because it will always summed up with all things which needs carrier.

Everywhere they can rise anything from 0.01% to 2-3% they rise to make the money to implement much awaited Food Security Bill i.e. dream of Honourable UPA chairperson Mrs. Gandhi. This is ridiculous they are making the plan, but never see the future of India. What happen to NREGA, there are lot of corruption news are coming around the country. What about the NRHM scam, politicians are making money in the name of implementing these Plans in their respective states. There are no matter where they are from it means which states. They all have some most corrupted people in their respective states and they always tried to keep their CM’s on their toe. Mr Akhilesh Yadav, youngest chief minister of UP include Mr Raja Bhaiya in their team of ministers. When He sacked Mr DP Yadav everyone thinking that he has courage to clean up the politics of SP, but what happen.

So come to the point, what about the Union Budget 2012. Mr Mukherjee fully focussed on everywhere he can make money to get the rid of fiscal deficit that is going up and up year by year. But we will see what happen is there any progress to decrease the fiscal deficit. They have nothing to do special I know but whenever if general people is talking about the Direct Taxes, there is nothing he has done, but if we go through with Indirect Taxes - Mr Mukherjee has all eyes and keep everything should be higher than last year. If any finance minster reshuffling anything into Direct Tax than everyone will know. But if FM making reshuffle into Indirect Tax than very less people will know how they are going to pay to government and by which way. But Indirect Tax is the area where any government making money to run their annual budge smoothly.

If finance advisory committee proposes the increase the Income Tax slab to Rs. 3 Lacs and Investment upto Rs 3.2 Lacs than why not he think about this. He just increase Rs. 20,000 only. What he thinks this the money that general people can save or this can help by any way to any of those general people whose annual income is just Rs 3.6 Lacs or more. If we can calculate by deducting Rs 2 Lacs from Rs 3.6 Lacs, he will have Rs 1.4 Lacs in which he will save Rs 1 Lac by investing in different sector, Now he has Rs 6,000 to pay tax that will be 10% of Rs. 60,000.

Monday, 12 March 2012

Rahul Dravid or The Wall or Jammy or Mr. Dependable

Known as 'the Wall' due to his ability to bat for long, Rahul Dravid has been the batting mainstay of Indian Test Team since he first arrived at the international scene in 1996. Dravid is regarded as one of the most technically sound batsmen of his time. He holds the record of being the only batsman to score a century in all ten Test playing nations. Dravid made his Test debut against England at Lords in June 1996 and scored 95. He is the third batsman to score more than 12,000 runs in Test cricket. Dravid has been involved in more than 80 century partnerships and stitched 19 century partnerships with Sachin Tendulkar - a world record. Dravid was awarded the ICC Player of the Year and the Test Player of the Year in 2004.

India's batting great Rahul Dravid, who bid adieu to international cricket on Friday, holds 30th position in the rating list for the all-time best in the Test cricket. The 39-year-old Karnataka batsman spent a total of 35 Tests and 226 days at the top, with the highest-rating of 892 which he achieved in March 2005, an ICC release stated. Among India batsmen, only Sunil Gavaskar (916) and Sachin Tendulkar (898) have achieved higher career ratings than Dravid. Dravid was also the first recipient of the ICC Test Player of the Year and the ICC Cricketer of the Year (the Sir Garfield Sobers Trophy) awards, presented in 2004 in London.

Rahul Dravid was not just a cricketer. He was a true ambassador, who presented himself in the most appropriate manner on and off the cricket field. Never involved in any controversy whatsoever, Dravid ensured cricket firmly retained its tag of 'Gentleman's game'. Cricket fans is seen shaking hands with Indian player Rahul Dravid after his shoot for music channel MTV in Bombay June 23, 2004. Dravid was voted by Indian youth as the MTV Youth Icon of the Year 2004, in a field of nominees comprising of leading Indian personalities from various fields, like films, science, fashion, sports and business.

After 16 years of steadfast service 'The Wall' has finally toppled. Rahul Dravid was one of cricket’s finest batsmen and one of a few Indian players no selector seemed able to drop. But dignity could have been his middle name and sensing he’d begun to overstay his welcome Dravid has retired from international cricket.  For those who love cricket the game, as opposed to cricket the enterprise, he will be missed, for his kind of cricketer, on and off the field, is becoming rarer. A man for whom technique mattered, he knew that batting not based on a sturdy defence was to dabble with chance. Like Glenn Turner before him, he learnt to keep the good balls out before risking glory through boundaries, though those glories did come as 13,288 Test runs and 10,889 one-day international runs attest.

If his deportment at the crease was exemplary and an example to others, so too was the way he engaged off the field. It is easy to lose perspective when one is lauded for simply breathing, as great cricketers in India are, but Dravid, now 39, neither milked nor scoffed at the idolatry. It won him enormous respect wherever he went, not something readily associated with many of today’s sportsmen.

With Sachin Tendulkar in the team, he wasn’t quite the best Indian batsmen of his era but he probably would have been in any other. Unlike Tendulkar or Virender Sehwag, though, he could have come from a time not his own. You only needed to apply a sepia wash to photos of him batting with his cap and neckerchief affixed to be transported back to the age of Vijay Merchant or Lala Armanath. Dravid was timeless but always with glorious timing.

His Test debut was at Lord’s in 1996, his first big game being umpire Dicky Bird’s last. Bird famously wept during the match as Dravid might after being dismissed for 95. His moniker of 'The Wall', one he never encouraged as it suggested his batting lacked elegance, hadn’t been constructed by then but its foundations were surely laid after he’d struck just six fours from the 363 balls he’d faced.

That innings helped to save India’s hide but the best knock I saw him play, also against England, was the 148 he made in the third Test at Headingley in 2002. In the kind conditions that English seam bowlers used to fantasise about - greenish pitch with thick, dark clouds hemming everyone in - he and Tendulkar, who made 193, gave a batting master class when the ball should not have been at their beckoning. Sourav Ganguly also made a century but England’s bowlers were so demoralised by the time he came in to join Tendulkar that it was a formality as India’s eventual victory was too, by an innings and 46 runs.

He was centre stage too in India’s extraordinary win over Steve Waugh’s Australia in 2001 Kolkata Test. His 180, made in concert with VVS Laxman’s double hundred, allowed India, who were in any case following-on, to turn a match that had looked lost completely on its head. The ensuing victory exposed a rare vulnerability in the Aussies and India won the next Test as well to take the series 2-1.

He batted well against England last summer, making three typically determined hundreds as his team were whitewashed from their perch as the world’s No 1 Test side. His batting, based on silky wrists and wondrous powers of concentration, hasn’t been so flash since and while his run of low scores against Australia is not in itself a reason to retire, their manner, after being bowled six times in eight innings, probably was.

As news of his retirement sunk in, Sunil Gavaskar, another great Indian batsman, called him a terrific role model saying that while youngsters look up to Tendulkar in awe, they could actually be Dravid, providing they were prepared to work hard enough.

My own thoughts are that he epitomised perfectly the phrase “Grace under fire,” Ernest Hemingway’s description of courage. Whatever challenge Dravid was presented with, at least on the pitch, he faced it with the kind of unruffled integrity that makes his next choice in life almost as interesting as his last one.

Monday, 5 September 2011

Happy Teacher’s Day

The great philosopher, Dr S. Radhakrishnan said that a university is what its teachers make it. In the ancient universities in India, the teachers or professors as they are called today were treated with great respect though, unlike at present, they did not get good pay and perks.

Teacher's Day in India is celebrated every year on 5th September, ever since 1962. The day commemorates the birthday of Dr Sarvepalli Radhakhrishnan, a philosopher and a teacher par excellence, and also the first Vice President of India and the second President of India. Some students approached him to celebrate his birthday and he asked them to honor their teachers instead. Dr Radhakhrishnan believed that "teachers should be the best minds in the country". Whether that is true or not in modern India is a contentious issue. Every day millions of parents hand over their children to teachers to mould and shape as they see fit. The authority and power invested in the teacher is immense. Do they measure up to that responsibility? Does the system encourage for the "best minds in the country" to enter the profession of teaching? These are difficult questions with no clear answers. But what is clear is the role of the teacher and the potential in that responsibility. And who can articulate that better than a life long teacher?

I congratulate all my teachers who shaped me from childhood on the occasion of Teacher’s Day. I respect each and every one who contributed in my life from all aspects. Happy Teacher's Day to all teachers in world and hope they will give their best result to make the society more civilized.

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हां भइया, जीवन है ये! - मुंशीप्रेमचंद को समर्पित!

शीर्षक: हां भइया, जीवन है ये! हां भइया, जीवन है ये — ना कोई मेले की चकाचौंध, ना छप्पन भोग, बस आधी रोटी, और फटी धोती का संजोग। टूटे खपरैल में...