Saturday, 20 February 2016

JNU के माननीय सदस्यों से अपील

StandWithJNU कुछ लोग इस शब्द को लगता है फैशन स्टेटमेंट की तरह लेने लगे है, वैसे ही जैसे कुछ पत्रकार यह कहने लगे है मैं देशद्रोही हूँ। ऐसे शब्दों का चुनाव करने वालो को देखकर ऐसा लगता है जैसे एक ऐसे मुद्दे को भटकाने की कोशिश में लगे है जो वाकई में एक सभ्य समाज के लिए खतरनाक है। अंग्रेजी में पढ़ने और लिखने वाले अपने को छोड़कर किसी और की बुद्धिमत्ता को कमतर आंकते है या उन्हें किसी खास एक पार्टी के विचारधारा से मिलाकर देखते है।

JNU को भारत में सर्वश्रेष्ठ भारत के विद्यार्थियों ने बनाया और इसमें किसी एक व्यक्ति का योगदान नहीं माना जा सकता है और यह एक दिन की मेंहनत नहीं है।

JNU एक विश्वविद्यालय ही नही है, यह एक जज्बा है, यह एक परंपरा है, यह एक शान है, जो कभी भी एक झटके में खत्म नहीं हो सकता है। यह जैसे आपकी शान है हमारी भी शान है और हम भी गर्व से कहते है, JNU हमारे देश में है। लेकिन जो अभद्र भाषा का उपयोग किया गया देश के लिए क्या वह सही है।


मेरे कुछ व्यक्तिगत सवाल है जो मेरे मन में उमड़ घुमड़ रहे है। कृपया कर सीधा उत्तर दे, ना की किसने किया क्या, क्या नहीं किया। कोई पोलिटिकल करेक्ट जवाब नही चाहिए। अगर आप जवाब देते है तो ठीक है नहीं देते है तो भी ठीक है चुनाव आपका है:
1) क्या भारत की बर्बादी का नारा लगाना सही है?
2) क्या कश्मीर लड़ के लेंगे का नारा लगाना सही है?
3) क्या इंडिया गो बैक का नारा लगाना सही है?
4) क्या संविधान के प्रति सम्मान व्यक्त करके सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बोलना सही है?
5) क्या भारत में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाना सही है?
6) क्या भारत के संविधान को गाली देना सही है?
7) क्या भारत के संविधान के खिलाफ बोलना सही है?
8) क्या भारत की सेना के खिलाफ बोलना सही है?
9) क्या विचार का विरोध करते-करते व्यक्ति विशेष् का विरोध करना सही है?
10) क्या भारत सरकार की खिलाफत करते-करते उसी भारत सरकार के सब्सिडी पर विश्वविद्यालय में पढ़ना सही है?

आप भले सरकार की खिलाफत करे आपको हक़ है लेकिन आप सोचियेगा आप ऐसी हरकते कर भारत की जनता तक क्या सन्देश पहुँचाना चाहते है।

आप कहते है कुछ एक लोगो की गलत हरकतों की सजा एक संस्थान नहीं भुगत सकता। आप कहते है कुछ एक लोगो की वजह से पुरे संस्थान को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। एकदम सही बात है। लेकिन कुछ ऐसे लोग पनपे कैसे आप जैसे बुद्दिजीवियों के बीच, आपको ही सोचना होगा। और इस गंदगी को साफ़ भी आप सबको मिल के करना होगा, क्योंकि अगर एक दुश्मन हो तो उसे सजा देकर ख़त्म किया जा सकता है लेकिन ऐसा लगता है यह शारीरिक दुश्मन नहीं है यह वैचारिक दुश्मन है। और वैचारिक दुश्मनी विचार से ही ख़त्म हो सकता है। और आप माने या माने लेकिन यह एक दिन की बात नहीं है क्योंकि विचार कभी एक दिन में तैयार नहीं होता है इसमें बरसों लगता है।

अगर आपलोग सही में JNU को बचाना चाहते है तो अंदर हो रही ऐसी हरकतों पर लगाम लगाये। क्योंकि यह आपका कर्त्तव्य भी है और साथ में आपका धर्म भी है।

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