Wednesday 16 August 2017

वास्तविक स्वतंत्रता या क्षद्म आज़ादी

स्वतंत्रता दिवस की सभी को शुभकामना!

आज की दिन 1947 की मध्य रात्रि को जब भारत आज़ाद हुआ था तो कितने बलिदानियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए हुए यज्ञ में अपनी अपनी आहुति दी थी इसका अंदाज़ा हमे नही हो सकता है क्योंकि हम स्वतंत्र भारत मे पैदा हुए बांस की कलम से लिखना शुरू कर आज पार्कर तक पहुंच गए। गिल्ली डंडा खेलते हुए आज कंप्यूटर पर हाई फाई गेम खेल लेते है। हमे आज़ादी और गुलामी में फर्क कहाँ पता। क्योंकि हम आजाद भारत में पैदा हुए ना। तो क्या आज के दिन का हमारे लिए कोई मायने नही रखता है। आज़ादी के 70 सालो बाद भी भले देश ने चांद की उचाईयों को आत्मसात किया हो। भले ही देश ने परमाणु सम्पन्न देश होने का गौरव हासिल किया हो। भले ही देश आज पूरे दुनिया मे कंप्यूटर के बेहतरीन दिमागों को एक्सपोर्ट करता हो। भले ही हमे संविधान ने बोलने की आज़ादी दी हुई हो लेकिन उस बोलने की आज़ादी में शब्दों को सूंघने का प्रयास बारंबार नही होता है, और लेकिन क्या हम उस बोलने की आज़ादी का दुरुपयोग करते हुए नज़र नही आते है।

भले ही देश हर पल आगे बढ़ने का दंभ भरता हो। लेकिन वाकई में क्या हमारा देश आजाद है या हम आजाद है?

वैसे तो भारत आज़ाद है लेकिन हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जब तक इस देश का कोई भी बच्चा फुटपाथ पर सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी बच्चा ट्रैफिक पर भीख मांगता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक एक भी बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी नागरिक भूखा सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक एक भी व्यक्ति खुले में सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित रह जाता है।

इसका हल क्या है क्या उपरोक्त सभी चीजों का हल निकालने की ज़िम्मेदारी से छुटकारा दिलाना सरकार का काम है शायद नही। तो क्या हम व्यक्तिगत तौर पर हम किसी भी प्रकार अपने सरकार या समाज की मदद कर सकते है। उसके लिए हमें अपनी अपनी व्यक्तिगत/सामाजिक ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ेगा। तभी हम अपने देश को विकासशील से विकसित की तरफ ले जाने में सहायक सिद्ध हो सकते है।

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