
उनके प्रखर वक्ता होने के कई प्रमाण है जो उन्हें ऐसा साबित करते है जैसे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर पुरे विश्व में अपना लोहा मनवाया हो या संसद में विश्वास मत के दौरान जवाब देते हुए यह कहना की "सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए...इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए....", यह साबित करता है उनकी देश के प्रति प्यार को। जो भी उनको करीब से जानते है सबका कहना है उनके लिए सर्वप्रथम देश है उसके बाद कुछ और चाहे वह अपनी पार्टी की सरकार हो या पार्टी। १० बार लोकसभा के सांसद और 2 बार राज्यसभा के सांसद उनकी जनता के बीच लोकप्रियता को दर्शाता है। उसके बाद भी उनके पास कोई अकूत संपत्ति नहीं है उनकी सार्वजानिक जीवन में इमानदारी को दर्शाता है। हमारे समय के बच्चे जिन्होंने गलियों में लाउडस्पीकर पर सांसद और विधायक के चुनाव का प्रचार देखा है जहाँ नेताओ को नेता मतलब बईमान कहकर पुकारा जाता था और अटल जी का नाम आते ही कीचड़ में कमल को खिलने वाला बताकर उनकी सत्यनिष्ठा और इमानदारी की दुहाई दी जाती रही है। तो उनकी शख्सियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही कारण है की १७ अगस्त २०१८ को उनकी आखिरी यात्रा में शामिल लोगो के हुजूम से साबित होता है इतनी लोकप्रियता इनसे पहले अगर किसी नेता के लिए दिल्ली की सड़को पर देखा गया तो वे राजीव गाँधी जी थे।
आज उनको अंतिम श्रधांजलि के फुल अर्पित करते विपक्षी दलो के नेताओ को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था की ये वही अटल जी जो भाजपा से प्रधानमन्त्री चुने गए थे। जिससे उनकी सार्वभौमिकता सभी राजनैतिक दलों में साबित करता है। शायद उनकी सभी पार्टियों में लोकप्रियता का इस वजह से भी थी क्योंकि वे बड़ी से बड़ी बात बड़ी आसानी से चुटकियों में हास्य स्वरुप में कह डालते थे। अगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखना हो तो कारगिल युद्ध के समय उनकी एक प्रेस वार्ता को देखकर उनके भावो को पढ़ा जा सकता है। एक य्युग पुरुष को कैसे कुछ शब्दों में बांधा जा सकता है वे अटल है अमर है अजर है। उनकी वाकपटुता को उनके ही एक वक्तव्य से जाना जा सकता है की "मैं पत्रकार होना चाहता था, बन गया प्रधानमंत्री, आजकल पत्रकार मेरी हालत खराब कर रहे हैं, मैं बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मैं पहले यह कर चुका हूं..."। वो भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री हुए जिन्होंने ५ वर्ष कर कार्यकाल पूरा किया और देश को कांग्रेस के आगे भी भारत का भविष्य देखने का सपना दिखाया। एक शिखर राजनैतिक पुरुष जिन्होंने भारत को विश्व पटल पर लाने में प्रमुखता से भूमिका निभाई उनकी दरियादिली इस बात से साबित होती है की लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल युद्ध में मुशर्रफ का हाथ होने के बाद भी उन्होंने मुशर्रफ से आगरा में शिखर वार्ता किया वे सिर्फ दरियादिल ही नहीं थे। वे मजबूत इच्छाशक्ति के साथ साथ मजबूत शख्सियत के भी धनी व्यक्ति थे क्योंकि उनके द्वारा 13 महीने की सरकार रहते १९९८ में पोखरण में परमाणु परिक्षण कर अपनी दृढ इच्छाशक्ति दिखाई।
एक ऐसी शख्सियत जो एक ओजस्वी कवि, एक संवेदनशील व्यक्ति तथा एक वक्ता जो अपनी वाणी से किसी का भी दिल जीत लेने की क्षमता रखता हो, उनकी जिंदगी अपने आप में एक ग्रंथ है आप चाहे तो उनकी जिंदगी का कोई भी हिस्सा एक अध्याय समझ कर पढ़ लीजिये आपको कुछ ना कुछ अवश्य मिलेगा सिखने को।
श्रधांजली देने की एक छोटी सी कोशिश ऐसे शख्स को जो खुद कलम का सिपाही हो और वाकपटुता में माहिर हो।
अगर कुछ गलती हुई हो तो माफ़ी चाहता हूँ।
धन्यवाद।।।