Monday, 15 April 2019

बिहार में जातिगत राजनीति और उसका दुष्परिणाम

जब आप बिहार से होते है और आप उस दौर में विद्यालय जाते है जब बिहार की धरती अपने विद्यालयों के लिए सबसे बुरे दौर से गुजर रहा हो। जिनको लोग गरीबो का मसीहा कहते नही थकते है यहाँ तक कि एक तथाकथित जिसको हाल के कुछ वर्षों में मीडिया ने बिहार का मसीहा या आने वाला कल घोषित किया हुआ है उनके पैरों पर गिर पड़े सार्वजनिक तौर पर। जिनको बिहार में घोटालो का मसीहा कहा जाता है। लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा है आजकल वे चुनावी मैदान में है तो प्रचार के दौरान वे सिर्फ व्यक्तिगत लांक्षण लगा रहे कोई ऐसी बात नही बता रहे जिससे यह पता लगे कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में से एक पूर्व छात्र नेता और पीएचडी धारक होने के नाते उनके पास कुछ ऐसी योजना है जिससे अपने समाज का पिछड़ापन दूर हो।

आप उस दौर में भी वहाँ से निकल सामाजिक रूप से अगर आप अपनी पहचान बनाते है तो यह सिर्फ एक आपके अकेले की जद्दोजहद नही रही होगी आपके साथ साथ आपके माता पिता आपके भाई बंधु सबो का हाथ रहा होगा लेकिन सोचने वाली बात यह है यह कितनो को नसीब हो पाया। अगर आप गौर करेंगे तो ऐसे लोग अपना मुकाम बना पाए जिनके या तो माता पिता पढ़े लिखे थे या जिनके माता पिता कही ना कही सरकारी नौकरी कर रहे थे। जिनको यह भली भांति पता थी बच्चों को शिक्षा देना ही एकमात्र लक्ष्य है और उनको उन्होंने निभाया भी। खैर मैं यह कहना चाहता हूँ कि हम जिस बिहार से आते है उसका अतीत कितना ही गौरवशाली क्यों ना हो लेकिन आज अगर सबसे ज्यादा जात पात पर राजनीति होती है हमारे बिहार में सबसे ज्यादा। किसी भी पार्टी को उठाकर देख लीजिए जहाँ जिस प्रकार का जातीय समीकरण बनता है उसी प्रकार से सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे है। हम उस दौर की बात करते है जब तथाकथित मसीहा जिन्होंने वाकई में बिहार की राजनीति को एक अलग नजरिये से देखने के लिए मजबूर किया जिसकी शायद जरूरत भी थी लेकिन एक समय बाद जब जरूरतों को अपने लिए उपयोग करने लग जाते है तो आपकी स्थिति खराब नही बदतर होने लगती है क्योंकि राजनीति सेवा करने के लिए होती है जबतक आप लोगो के बारे में सोचेंगे तबतक आपकी राजनीति जिंदा है नही तो सिर्फ आप एक मसीहा बन एक कोने में बैठे रहेंगे। ऐसा नही है कि यह बिहार की ही कहानी है आप उदाहरण के तौर पे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी एक परिवार को क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में देखा जाता है। अगर वे है तो उन्होंने कुछ किया होगा तभी वे क्षत्रप है भी लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा है एक समय के बाद आपको राजनीति में बदलाव के साथ साथ सेवा भाव को भी आगे करना होता है तभी आप आगे भी सफल कहलायेंगे।

बिहार की राजनीति को देखकर दुख होता है जिस राजनीति की वजह से बिहार शब्द को एक अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया गया था लेकिन आज भी जो बड़े बड़े विश्वविद्यालयो में पढ़ाने वाले लोग इस तरह की राजनीति को बढ़ावा देकर अपनी अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए है। आम जनमानस के बारे में कोई नही सोचना चाहता है कि वाकई में गरीबी कैसे हटेगी, कैसे शिक्षा को सुदृढ़ किया जाए, कैसे किसानों की हालातों पर चर्चा कर उसके लिए कुछ ऐसे सुझाव सरकार को सुझाये जिससे सरकार करने को मजबूर हो। लेकिन बुद्धिजीवी अपने अपने हिसाब समर्थन या विरोध करने में लगे हुए है।

आइये मिलकर संकल्प ले वोट को अपना अधिकार को उनके पक्ष में करेंगे जो इन सबसे ऊपर उठकर काम की बात करेगा। आपको सोचना होगा कि आखिरकार आपके बच्चे कहाँ किस तरह के समाज मे सांस लेने वाले है।

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