Saturday 17 August 2024

महिलाओं पर हिंसा: जिम्मेदार कौन?

 जिस तरीके से महिलाओं पर वीभत्स घटनाओं की संख्या बढ़ रही है ऐसा लगता है मेरी कलम लिखना तो चाहती है लेकिन कई बार उसके कदम रुक जाते है उसे लगता है लिख कर भी क्या फायदा लोग इसको अपने घर से संस्कारों की बात को लेकर जो बात होनी चाहिए वो करते नहीं ना ही उसके ऊपर किसी प्रकार की कोई भी अमल दिखाई पड़ती है और मुझे लगता है ऐसी घटनाओं के लिए हम खुद एक समाजिक प्राणी होने की वजह से भी इसके जिम्मेदार है कई लोगो को इस बात का बुरा लग सकता है क्योंकि सभी इस तरीके की घटनाओं में शामिल नहीं होते है लेकिन जो भी ऐसी घटनाओं को अंजाम देता है वह भी कही ना कही इसी समाज का हिस्सा है तो सवाल उठता है ऐसा वहशीपन कहाँ से आता है क्या इसे हम मानसिक बिमारी के रूप में देख सकते है तो अगर यह किसी भी प्रकार की मानसिक बिमारी से सम्बंधित है तो क्यों इसे हम बिमारी के तौर पर नहीं देखते है सरकार का पूरा अमला क्यों इस बात को मानने को तैयार नहीं होता है कि कही ना कही उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत इस समस्या के जड़ में है पिछले दिनों बिहार के एक सरकारी विद्यालय में एक बच्चे का देशी पिस्तौल के साथ पहुंचना क्या दर्शाता है क्या हमें समाज के रूप में इसपर सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। 

पश्चिम बंगाल की घटना का राष्ट्रीय मानचित्र पर आना और उसके बाद एक से एक कई वीभत्स घटनाओं का अलग अलग राज्यों से बाहर आना यह दर्शाता है कि हम भारतीय एक समाज के रूप में असफल होते चले जा रहे है। हम पहले जमाने के लोगों को "पुराने जमाने के लोग है" कहकर मुँह चिढ़ाते है लेकिन कभी ऐसा सोचा है इस प्रकार की वीभत्स घटनाओं का उस समय, समाज के तौर पर जगह नहीं हुआ करती थी। क्योंकि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों के लिए सिर्फ और सिर्फ एक सोच हुआ करती थी की ऐसे प्रवृति के लोग इस समाज में रहने लायक नहीं है। ऐसी घटनाओ में राजनीती भी एक महत्वपूर्ण हिंसा बनकर उभरा है समाज इसको माने या ना माने लोग आज अपने-अपने विचारधारा के राजनैतिक पार्टियों से समबन्धित राज्यों में होने वाली घटनाओं को कमतर करके आंकते है या तो अनदेखा करते है या वे कुछ बोलते ही नहीं है जबकि उसी तीव्रता में हुई दुसरी राज्यों में हुई घटनाओं पर वे मुखर होकर अपनी बातों को रखते है। जबकि एक आम जनमानस के तौर पर सिर्फ और सिर्फ ऐसी घटनाओ को मानवता पर हुआ हमला समझा जाना चाहिए। और इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम ही होगी, हम व्यक्तिगत तौर पर अगर ऐसी घटनाओं पर राजनैतिक विचारधारा के अनुकूल अपने रोष को प्रकट करेंगे तो वह दिन दूर नहीं किसी दिन यह हमारे अपने द्वार पर खड़ा होगा, हो सकता है हममें से किसी के अपने ऐसी घटनाओं के शिकार हो जाए तो तब भी क्या हम राजनैतिक विचारधारा के अनुकूल भर्त्सना करेंगे या चुप रहेंगे। 

सरकार कोई भी हो हमेशा हमारी और आपकी या यूं कह ले आम जनमानस की विचारधारा को प्रतिविम्बित करती है अगर इसके प्रति किसी भी राज्य की कोई भी सरकार ऐसा करने में विफल रहती है तो स्वाभाविक है वह हमारे ही चरित्र को उजागर करती है। इसका मतलब साफ़ है कि हमारी मानसिकता क्या है, हमारी सोच क्या है , हमारा समाज क्या चाहता है? मैं शुरू से ऐसी घटनाओं पर लिखता रहा हूँ जब भी मौक़ा मिलता है मैंने अपने कलम को रोक नहीं पाता हूँ एक बेटी के माता-पिता की इस विषम परिस्थिति को समझ सकता हूँ और मेरी संवेदना उन सभी परिवारों के साथ है जिन्होंने ऐसी वीभत्स घटनाओं को झेला है। मैं उनके दुःख तो नहीं बाँट सकता हूँ लेकिन ऐसे मौकों पर मैं अपनी कलम को रोक भी नहीं सकता हूँ। उन सभी बच्चीयों को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि जिन्होंने यह झेला है और सरकारों के कानो में खौलते तेल का काम किया है। सरकारें अपना काम करती रहेंगी उनके काम करने का अपना तरिका है वे अपने ही गति में चलती है लेकिन आज एक समाज के तौर पर उठ खड़े होने का समय आ गया है जिससे समाज में होने वाली ऐसी घटनाओं पर एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर आवाज़ उठाने की जिम्मेदार कोशिश होनी चाहिए। 

कैंडल मार्च या सरकारों को कोसने से हल नहीं निकलेगा, समय है हम सबको अपने बच्चों को एक ऐसा संस्कार परोसने कि जहाँ से वे किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना जीवन जीने का प्रयास करें। आज समाज में रंग, भाषा, प्रदेश, धर्म या जाति आधारित हो रही घटनाओं को समेटने के लिए भी कोई आगे नहीं आएगा हमें ही एक समाज के तौर पर इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, हमें अपने बेटों और बेटियों में फर्क अपने ही घर में सिखाना छोड़ना होगा, हम रंग भेद, भाषाई या जातिगत टिपण्णी को घर के अंदर इस कदर ले आये है कि यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है जिससे हमें खुद ही निपटना होगा। मैं इन बातों को विस्तार से यहाँ नहीं बोलूंगा वरना यह विषय से भटकाव की तरह हो जाएगा लेकिन सोचियेगा जरूर की आखिर ऐसा क्या है जो भी व्यक्ति ऐसी घटनाओं का जिम्मेदार होता है वह कहाँ से आता है, किस समाज से आता है?

ऐसी घटनाओं पर मेरे द्वारा लिखे गए विचारों को यहाँ पढ़ सकते है। 



©️✍️शशि धर कुमार 

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