Wednesday, 19 October 2016

​देशभक्ति या कुछ और...

देशभक्ति एक ऐसा शब्द है आज की तारीख में आपने अगर बोल दिया तो आप भक्त कहलायेंगे ना की देशभक्त।
 तो देशभक्त के मायने क्या है क्या उसको किसी दायरे में बाँधा जा सकता है। शायद नहीं क्योंकि देशभक्ति कोई चीज नहीं जिसको किसी राजनितिक पार्टी की दूकान से ख़रीदा जा सके, लेकिन ऐसा भी नहीं जिसे किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ाया जा सके। तो आखिर इसका पैमाना क्या हो कैसे पता चले की कौन देशभक्त है कौन नहीं। 

देशभक्ति एक ऐसा जज्बा है जो आपके सामने झंडे के आते ही आपके अंदर से आवाज़ निकलनी चाहिये ना की किसी के कहने पर। देशभक्ति ऐसा जज्बा है जो राष्ट्रगान बजते ही आपके अंदर से आवाज़ आनी चाहिये ना की किसी के कहने पर। देशभक्ति ऐसा जज्बा है जब देश के ऊपर किसी बाहरी शक्तियों द्वारा हमला करने या हमला होने की स्थिति में अंदर से आवाज़ निकलनी चाहिए। देशभक्ति एक ऐसा जज्बा है जो सैनिको के कुछ अच्छे काम करने को लेकर आपके अंदर पैदा उत्साह को देशभक्ति के साथ जोड़कर देख सकते है। तबतक जबतक आप ऐसे किसी भी सैनिक कार्यवाही को बिना किसी लेकिन किन्तु परंतु के बिना इसको राष्ट्र के साथ जोड़कर देखते है। जैसे ही आप इसको किन्तु परंतु के साथ जोड़ते है फिर आपको खुद सोचना पड़ेगा की आप क्या चाहते है। सीमा पर सैनिक है तभी आप सुरक्षित है यह ध्यान रखना आवश्यक है। ऐसा नहीं है अगर आपके अंदर कोई ऐसा है जो आपको अंदर से कमजोर कर रहा है कोशिश कर रहा जो किसी भी तरह से सामाजिक ताना- बाना को क्षति पहुंचाने की कोशिश करता है तब आप अगर उसमें किन्तु परंतु लगाते है तो वह फिर सोचने के काबिल है। 

कहने का मतलब साफ है की ऐसा कोई भी काम जो समाजहित में या देशहित में है या उस फैसले से समाज पर असर पड़ने वाला है या समाज की भलाई होने वाली है उसके ऊपर ऊँगली उठाना एक तरह से आपको अपने ऊपर सोचने की जरुरत है। किसी एक व्यक्ति का विरोध करने के लिए सिर्फ किसी भी काम का विरोध करना देशहित के फैसलों पर कतई सही नहीं है।

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