Friday, 26 August 2016

इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत और श्रीनगर

तीन तावीज़ लेकर श्रीनगर पहुंचे माननीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह जी १) इंसानियत २) जम्हूरियत ३) कश्मीरियत। क्या इन तीन ताबिजो से श्रीनगर में छा गए भूतों से निज़ात मिल पायेगा? क्या कश्मीरियत का वाक़ई में भला होगा या सिर्फ श्रीनगर शहर में रहने वालों का भला होगा?

क्योंकि कश्मीर के अंदर गाँवों में रहने वाले तो आज तक वैसे ही जी रहे है जैसे ५० साल पहले जी रहे थे।

क्योंकि लद्दाख में रहने वालों की ज़िन्दगी में अमूमन कोई बदलाव नहीं आया पिछले ५० सालों में।


क्योंकि जम्मू के ग्रामीण इलाके में अभी तक वही हालात है जो ५० साल पहले थे।

क्योंकि कश्मीरी पंडितों ने ९० के दशक में अपना घर बार छोड़ा तो कही ना कही डर का माहौल भी एक वजह थी जो आजतक वजूद में है।

तो सवाल उठता है आखिर पिछले २५ सालों की सरकारों ने क्या किया है। क्या सरकारो ने अपनी सिर्फ सरकारे चलाई है उन फिरकापरस्त लोगो के साथ मिलकर तभी ऐसा कोई वाक्या नहीं हुआ? क्या किसी को पता है कश्मीर इससे लंबी कर्फ्यू को भी झेल चुका है जो तकरीबन ९० दिन की थी? क्या पिछली सरकारों ने कुछ और कमाल किया हुआ था जिसकी वजह से ऐसा कुछ नहीं हो रहा था? क्या वाक़ई में बीजेपी और पीडीपी की सरकार में आपस में तालमेल की कमी की वजह से ऐसा हो रहा है? या वाक़ई में बीजेपी कुछ और खेल रही है?

लेकिन हमारे तथाकथित बड़े पत्रकारों की रिपोर्टिंग से कुछ और समझ आ रहा है। वे या तो बरगला रहे है लोगो को, नहीं तो सही रिपोर्टिंग कर रहे है। लेकिन ऐसे बड़े कई पत्रकारो की झूठी रिपोर्टिंग भी पकड़ी गयी है जो किसी दूसरे देश की इमेज को कश्मीर की बताकर रिपोर्टिंग करते पकड़े गए है और सार्वजानिक तौर पर मांफी भी मांग चुके है।

तो आखिर ऐसा क्या हो रहा है जो यह थमने का नाम नहीं ले रही है? क्या हमारे राजनितिक नेतृत्व को यह पसंद नहीं की वहां अमन चैन लौट आये? क्या वहां की कुछ स्थानीय पार्टियां कुछ खेल खेल रही है? छोटी छोटी घटनाओं पर अपने अपने फायदे के हिसाब से घटनास्थल का दौरा करने वाली पार्टियों के नेता भी श्रीनगर क्यों नहीं जाते है लोगो को समझाने की आप जो कर रहे है वह जम्हूरियत का रास्ता नहीं है। वह कश्मीरियत का रास्ता भी नहीं है और इंसानियत का तो कतई नहीं है।

कही ना कही ऐसा लगता है जैसे हमें सोचना है कि हमें क्या करना चाहिए ऐसे हालातों में।

Tuesday, 16 August 2016

असली स्वतंत्रता या नकली स्वतंत्रता

Happy Independence Dayआज 15 अगस्त को हर कोई सोशल मीडिया पर अपनी अपनी देशभक्ति प्रदर्शित करने में लगा हुआ है अपने अपने तरीके से। हर किसी के प्रोफाइल को देखकर ऐसा लगता है जैसे अगर आज अँगरेज़ होते तो सोशल मीडिया के वीर उन्हें कुछ ही मिनटों में निकाल बाहर फेंकते।

क्या वाक़ई में यही स्वतंत्रता है?

हमे वाक़ई में स्वतंत्रता चाहिए तो हमें अपने अंदर कुछ बदलावों को तवज्जो देनी चाहिए ताकि हम बदल सके और अपने समाज के अंदर बदलाव ला सके और मेरे ख्याल से वाक़ई में वही स्वतंत्रता होगी। तो अब सवाल उठता है ऐसे कौन से बदलाव लाये जाये अपने अंदर ताकि हमें सच्ची स्वतंत्रता मिल सके।


मेरे ख्याल से निम्न बातो पर हम ख्याल रखे तो शायद हम सच्ची स्वतंत्रता को हासिल कर सकते है:

१) आप शिक्षित बनिए।
२) आप दूसरों को शिक्षित बनने के लिए प्रेरित कीजिये।
३) पानी का सदुपयोग करे, इसे बेवजह बर्बाद ना करे। जैसे कही टूटी से पानी टपक रहा हो तो आप उसको बंद कर सकते है। घर में पानी का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्वक करे।
4) घर में कूड़ेदान का प्रयोग करे और कूड़ा फेंकते वक़्त सही जगह का ध्यान रखे।
५) नदियों में पूजा सामग्री को प्रवाहित ना करे।
६) अपने आसपास के स्थानों को स्वच्छ रखने में मदद करे।
७) कभी भी राह चलते यहाँ वहाँ कूड़ा ना फेंके।
८) अपने बच्चों के अंदर स्वक्षता को लेकर जागरूकता फैलाये।
९) प्रकृति के सहायक बनने में सहायता करे।
१०) जितने बच्चे उतने पेड़ अवश्य लगाए।
११) बिजली का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्वक करे, जहाँ जरुरत हो वही जलाये।
१२) लोगो को उनके अधिकारों के बारे में बताये
इत्यादि।

ऐसे बहुतेरे उदहारण से हम अपने आप को साबित तो करेंगे ही की जिन्होंने अपने सीने पर गोली खाकर हमे इस बहुमूल्य आज़ादी दिलवाई है उनके प्रयासों को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

आइये हम सब मिलकर आज यह कसम ले हमसे अकेले जो हो पायेगा हमसब मिलकर करेंगे ताकि अपने आने वाले भविष्य को कुछ दे सके।

धन्यवाद।

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