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Tuesday, 2 August 2022

Jayanti [Movie]

आज किसी भी महापुरुषों की जयंती धूमधाम से मनाते देखता हूँ तो यकीन मानिये मुझे अंदर से एक बात हमेशा कचोटती है की ये जो कार्यकर्त्ता है जो काफी जोश में होते है ऐसी जयंती समारोहों को मनाते वक़्त वे वाकई में उन महापुरुषों के बारे में कुछ जानते भी है कुछ पढ़ा भी है या यूं ही पकी पकाई बातों को सुनकर हमेशा जोश में भरे रहते है।

आज मैं जयंती नामक मूवी के बारे में बात कर रहा हूँ जो इस वस्तु स्थिति को भली भांति दर्शाता भी और आपके अंदर के इंसान को यह समझने को मजबूर करता है की तरक्की सिर्फ जयंती पर फूल माला या मिठाई बांटने या उनके फोटो के आगे मिठाई चढ़ाने से नहीं होती है उन्हें पढ़ने से होती है। अगर आप सामाजिक रूप से एक समाज को समृद्ध देखना चाहते है तो ऐसे कार्यकर्ताओं को समझने के लिए यह मूवी सार्थक साबित हो सकती है की आप उनके गुस्से को गलत रास्ते से निकालकर सही रास्ते में कैसे ला सकते है और किसी समाज को ऊपर उठाने के लिए किस तरीके के प्रयास किये जाने चाहिए।

मैंने कुछ दिनों पहले एक पोस्ट लिखा था की हमें युवाओं के ऊर्जा को कैसे सकारात्मक रूप से उपयोग करने के बार में बात करना चाहिए यह मूवी वास्तव में यही कार्य करती है। सिर्फ हम ही इस बात से दुःखी नहीं की हमारे युवाओं की ऊर्जा गलत तरीके से गलत लोग इस्तेमाल करते है उसका सही समय पर पर सही दिशा में कैसे उपयोग हो यह समझना बहुत जरुरी है। इस मूवी को आप उसी कड़ी में एक पत्थर समझ सकते है। और मैं उन सभी से इस मूवी को देखने का आग्रह करूंगा क्योंकि सिर्फ असवर्णो के युवा ही इस भटकाव में नहीं जी रहे है वे सभी जी रहे है जो आज बेरोजगार है और वे ऐसा क्यों है कैसे है इसके पीछे की क्या वजह है यह सब आप इस मूवी में देख सकते है। वस्तुतः यह मूवी मराठी में बनी है लेकिन आज आप OTT प्लेटफॉर्म पर हिंदी या अंग्रेजी में भी देख पाएंगे।

मूवी में निर्देशक की पकड़ लाजवाब दिखाई पड़ती है और पूरी मूवी एक लय में दिखाई भी पड़ती है कही कही पर मूवी थोड़ी से हल्की दिखाई पड़ती है लेकिन निर्देशक ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की अगले ही क्षण मूवी फर्राटे से दौड़ती हुयी नजर आती है। इस मूवी को मैं पुरुष प्रधान समाज का आईना ही कहूंगा लेकिन एक ऐसा समय आता है जब नायिका अपने छोटे से वक्तव्य से सबकुछ बदल तो नहीं देती है, आम हिंदी सिनेमा की तरह, लेकिन उसके उस डायलॉग से नायक का किरदार एक नये रूप में समाज में जीने के बारे में सोचने को मजबूर जरूर होता है, नायक ने अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है ऐसा लगता है वह इस किरदार के लिए पैदा हुआ हो। मूवी का नाम अपने आपको सार्थक साबित करता है इससे दोनों तरह के दर्शक सिनेमा घर में आये होंगे जो इनकी खिलाफत करते होंगे वे तो आये ही होंगे जो चाहने वाले होंगे वे भी आये होंगे।

मुझे लगता है यह मूवी इस तरीके की सर्वश्रेष्ठ मूवी में से एक हो सकती है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस तरीके के विषयों पर मूवी बनाना नहीं चाहेगा खासकर बॉलीवुड से तो आप कतई इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते है वे सिर्फ एक ही तरीके की मूवी बना सकते है जो सिर्फ नाम के सुपर हिट हो सकते है जो समाज में ऐसा कोई सन्देश नहीं दे पाते है की वे समाज का पुर्णतः चित्रण करता हो या इस देश के गुणगान करता हो। मेरे इस वक्तव्य से कई लोग इत्तफ़ाक़ नहीं रखेंगे लेकिन उनकी चिंता करना मेरा काम नहीं है वे सिर्फ अपनी कहानी कहने का दम रखते है समाज के कटु सन्देश के बारे में वे बात नहीं करते है उन्हें जहाँ लगता है उनकी जमीन ख़िसक सकती है वे उन मुद्दों से दूर ही रहना पसंद करते है भले वे दशकों से राजनैतिक पार्टियों के पीछे घूम रहे हो, खैर ये उनकी बात है आते है मूवी पर। इस मूवी में आप यह देख पाएंगे की सिस्टम तो भ्रष्ट है ही साथ में आज के युवाओ को अपने भ्रष्टाचार में उन्हें कैसे सम्मिलित किया जा सकता है वे अच्छी तरह से समझ चुके है। हमारा पूरा युवा कैसे कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र है जिसमें एक गरीब और ईमानदार तथा शिक्षित युवा भी इस कीचड़ से निकल नहीं पाता है तो अशिक्षितों की बात ही अलग है। लेकिन आखिर में जब वह वही युवा एक बार अपने हक़ के बारे में जान जाता है और उसके बारे में पढ़ना शुरू करता है और लोगो को जागरूक करता है तो उसे कोई भी नहीं रोक पाता है। बस उस युवा के अंदर के जमीर को जगाने की जरूरत है।

लेकिन अफ़सोस की हमारे समाज के सामाजिक कर्ता इस और से मुँह मोड़ बैठे है क्योंकि उन्हें भी अपने भविष्य की चिंता ज्यादा है। अगर इन ऊर्जावान युवाओं का जमीर जाग गया तो फिर उनके पीछे पीछे कौन चलेगा, उनका झंडा कौन उठाएगा। मैं सभी युवाओं से आग्रह करना चाहता हूँ की उठो आज तुम्हारे अंदर शक्ति है जागो और कुछ आगे के भविष्य के बारे में सोचो वरना एक समय ऐसा आएगा जब तुम्हारे पास ना तो संसाधन होंगे ना ही यह ऊर्जा फिर क्या करेंगे आप किसके सहारे जीवन जियेंगे। फिर यही लोग जो आपको कहते रहते है तुम्हारे बिना हम कुछ भी नहीं तो कल उनका काम निकल जाने के बाद आपको दूध में से मक्खी समझकर निकाल फेकेंगे। यही आप मूवी में भी देख सकते है। इस मूवी को IMDb पर ८.2/१० रेटिंग मिली है जो आम सुपर हिट बॉलीवुड मूवी से बढ़िया है।

धन्यवाद।
शशि धर कुमार

✍️सर्वाधिकार सुरक्षित 

Sunday, 7 November 2021

Jai Bhim (Movie)


आज भी कई लोग है जिन्हें उनके हिस्से का न्याय या तो नही मिलता है या इतनी देर हो जाती है कि उस न्याय का कोई महत्व नही रह जाता है। जैसा उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है न्याय मिलने की देरी तो न्याय नही मिल पाने के बराबर है।


जी आज मैं जय भीम नामक मूवी के बारे में बात कर रहा हूँ जो इस वस्तु स्थिति को भली भांति दर्शाता भी और आपके अंदर के मानवता को भी झकझोरने का प्रयास करता है। अगर आप संवेदनशील है तो यह मूवी आपको अंदर तक झकझोर देगी। हाँ मेरे कई जानने वाले इस मूवी को इसीलिए नही देखेंगे क्योंकि इसका टाइटल उनकी विचारधारा को अच्छा नही लगेगा। यह अलग बात है कि वे उसी भीम के बनाये संविधान की दुहाई देते जरूर मिल जाएंगे। लेकिन मैं यकीन दिलाता हूँ यह मूवी एक मिल का पत्थर साबित होने जा रही है क्योंकि इस मूवी ने हमारी लचर न्याय व्यवस्था जो नीचे से शुरू होकर ऊपर जाती है उसपर करारा प्रहार करती है।

मूवी में निर्देशक की पकड़ लाजवाब दिखाई पड़ती है और पूरी मूवी एक लय में दिखाई पड़ती है कही भी मूवी आपको ना तो ज्यादा धीमा या ज्यादा तेज नजर आएगी। संगनी का किरदार ऐसा किरदार है जो कइयों को प्रेरणा देगी, नायक ने अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है ऐसा लगता है वह इसी किरदार के लिए बना हो, लेकिन संगनी का किरदार तो वाकई में हर लिहाज से 5 में से 5 अंक पाने लायक है हर पल वह इतनी सशक्त नजर आयी है कि आप उसके बिना इस मूवी की कल्पना नही कर सकते है और मूवी भी उसके आस पास ही घूमती है। लेकिन मुझे नाम से थोड़ा ताज्जुब हुआ कि ऐसा नाम चुनने के पीछे की वजह क्या हो सकती है। लेकिन इस नाम से कई दर्शक जो उन्हें देखने का सोच रहे होंगे वे नही देखेंगे। यह मूवी अंबेडकर पर नही बल्कि दलितों पर अत्यचार को लेकर है।

खैर आते है मूवी पर मुझे लगता है यह मूवी अबतक की सर्वश्रेष्ठ मूवी में से एक हो सकती है। सिर्फ इसीलिए नही की यह दलितों पर बनी मूवी है बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह हमारे न्याय व्यवस्था में बैठे लोगों के चरित्र पर सवाल उठाता है कि हमारा सिस्टम किस कदर भ्रष्ट और सड़ा हुआ नजर आता है जिसमे लगता है सब कुछ, कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र है जिसमें एक गरीब और ईमानदार व्यक्ति के लिए जीने की मुक्कमल और आसान रास्ता भी नही छोड़ता की वह अपने हिस्से का कष्टमय जीवन भी पूरी ईमानदारी या अपने पूरे सम्मान के साथ जी सके। ऐसी कई मूवी आपने देखी होगी लेकिन यह मूवी आपको याद दिलाता है कि एक आम आदमी कितना कमज़ोर है इस भ्रष्ट सिस्टम के आगे उसकी एक नही चलती है जब जैसे चाहे सिस्टम उसको चलने को मजबूर कर देता है लेकिन यह मूवी संगनी के किरदार को देखते हुए एहसास दिलाता है की सिस्टम चाहे कितना भी भ्रष्ट या सड़ा गला हो गया हो लेकिन उसके कोने के एक हिस्से में कुछ ईमानदार लोग है जो आपके साथ हुए अन्याय को लेकर आगे आपके साथ कि लड़ाई लड़ने को तैयार रहता है।

सिस्टम लोगों से मिलकर बना है वह भी इसी समाज का हिस्सा है बस कोशिश होनी चाहिए कि जब भी सिस्टम में कुछ भी गलत होता देखे आप न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान रखते हुए उसके साथ चलते हुए अपनी बात हमेशा उठाए यही इस मूवी का मूल उद्देश्य है।

धन्यवाद। जय भीम।

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