सुकमा में हुए नक्सली घटना में शहीद हुए हमारे सैनिको को श्रद्धांजलि।
ऐसा लगता यह सरकार सिर्फ कड़ी निंदा के लिए जानी जाएगी और वह किसी भी तरह की निंदा की बात की करेगी जैसे कठोर निंदा, घोर निंदा या कड़ी निंदा। पहले भी ऐसा होता रहा है। पहले की सरकारें भी ऐसी ही कड़ी निंदा करती रही है। अगर सरकार चाहे तो कुछ भी हो सकता है, क्योंकि नक्सली बहुल इलाकों में केंद्र और राज्य सरकारें अगर तालमेल बिठाकर चले तो ऐसी घटनाएं कभी हो ही नहीं। लेकिन ऐसा लगता है राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियाँ है जिसके चलते वे भी कोई कड़ा कदम नही उठाते है और किसी को ठेस ना पहुंचे उसके बाद यह कहना चाहूँगा की वे ऐसा चाहते है कि होते रहे और उनकी दुकानें चलती रहे। सरकारें आती जाती है लेकिन ऐसा लगता है की सरकारी कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिससे वहाँ पर बैठने वालों का चरित्र वैसा ही हो जाता है जैसा एक निवर्तमान मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि इस कुर्सी में ही कुछ ऐसा है जिसपर बैठते ही लोग एक ही तरीके से व्यवहार करने लग जाते है।
सही कहा था किसी ने, सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन यह मुल्क मेरे बाद भी रहेगा और मेरे कई पुस्तों के बाद भी रहना चाहिए। आइए सब मिलकर आवाज उठाएं की अब सरकारों को आम जनता की भावनाओं से खिलवाड़ ना करके उनकी भावनाओं के साथ न्याय करना चाहिए। हम गूंगी बहरी सरकार को जगा सकते है। हमे अपनी आवाज उन तक पहुंचानी है ताकि सरकारी तंत्र में बैठे लोग यह समझे कि हमारी भावनाएं क्या है और हम क्या चाहते है। हम एक एक कर मारे जा रहे है और हम इंतज़ार कर रहे ही कि कोई ऐसी घटना हो जिससे सारा संसार हमारी काबिलियत पर उंगली उठाने लग जाये।
उठो जागो और बता दो हम क्या चाहते है और ऐसे हैवानियत के पुजारियों को जो खाद पानी शहरों में बैठकर दे रहे है उन्हें भी हमारी आवाज सुननी होगी कि वे सिर्फ एकतरफ़ा बाते नही कर सकते है। वे सिर्फ यहां पर एसी कमरों में बैठकर गरीबों के हितों की बात ना करे। हमने गरीबी देखी है और अगर वाकई में देखनी है तो चले हमारे साथ हम दिखाएंगे की गरीबी क्या होती है। फिर देखते है किस तरह के गरीबों के हितों की बात करते है। ब्रांडेड कुर्ता, जीन्स और चप्पलें पहनने वाले गरीबो के हितों की बात करते है। खोखली मानसिकता के पुजारी ये सिर्फ हल्ला कर सकते है और कुछ नही।
धन्यवाद।
जयहिन्द, जय भारत।
नोट: यह पोस्ट राजनीति से प्रेरित नही इसीलिए अगर किन्ही को राजनीतिक कमेंट करना है तो वे ना करे।
Tuesday, 25 April 2017
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