ऐसा
लगता है बिहार कभी भी नकारात्मक खबरों से बाहर ही नहीं आ पायेगा कभी चमकी बुखार से
सेकड़ो मासूमों की मौत तो कभी मुजफ्फरपुर शेल्टर हाउस जैसा दर्दनाक वाक़या और अब बाढ़
की विभीषिका और अगर गहरे से सोचा जाय तो हर इस तरह की खबर सिर्फ और सिर्फ प्रशासन
की अकर्मण्यता और अक्षमता दर्शाती है अगर हम सही वक्त पर सही तरीके से तैयारी करे
तो हम इस तरह की घटनाओं में होने वाली क्षति को कम जरुर कर सकते है।
बिहार
के उत्तरी हिस्सों और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बारिश शुरू होते ही कई नदियों
का जलस्तर बढ़ना हर बार की तरह आम बात है। राज्य के कम से कम पंद्रह से सत्रह
जिलों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इसी बीच राज्य के कई स्थानों पर रेल
पटरी तथा सड़को पर पानी चढ़ जाने से रेल तथा सड़क यातायात बाधित हुआ है। राज्य में
भारी बारिश कोसी और सीमांचल के क्षेत्रों में तबाही लेकर आई है। कोसी के जलस्तर
में लगातार वृद्घि से कई क्षेत्रों में बाढ़ का पानी घुस गया है। नेपाल में वीरपुर
बैराज और गंडक बैराज के आस पास के तराई इलाको में भारी वर्षा से लगातार जलस्तर
बढ़ने से अनियंत्रित स्थिति से निपटने के लिए लगातार पानी छोड़ा जा रहा है जिसकी वजह
से पुरे मिथिलांचल और सीमांचल में भयानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो गयी है।
बिहार
के पश्चिम चंपारण में गंडक, मधुबनी जिले में कमला नदी, कटिहार में महानदी, पुर्णिया में सौरा नदी के जलस्तर के बढ़ने से नदी के आसपास रहने वालो
के अलावे जो भी क्षेत्र इन नदियों से प्रभावित होती है सबके जनजीवन को अस्त-व्यस्त
कर दिया।
उत्तर
बिहार की लगभग सभी नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही हैं। जान, माल, फसल,
मवेशी
का लगातार नुकसान हो रहा है। लोग त्राहिमाम कर रहे है जिनको जहाँ मौका मिल रहा है
पलायन कर रहे है और ऐसा लगता है की लोग अब भाग्य भरोसे ही अपने आप को छोड़ रखा है
क्योंकि ऐसी ही सामानांतर स्थिति २०१७ में भी हुई थी जब कोशी ने अपना बीभत्स रूप
दिखाया था तब पुरे उत्तर बिहार में अरबो रुपैये की क्षति हुई थी। यह क्षति बार बार
होगी और प्रशासन मुक्दार्शंक बनकर इस स्थिति को हर वर्ष इसी तरह देखकर आहे भरेगा
और समय गुजर जाएगी फिर ढाक के तीन पात ना तो किसी को उस आखिरी व्यक्ति से मतलब है
जिसने अपना एक एक तिनका तिनका जोड़कर अपना आशियाना बनाया और देखते देखते कोशी, महानदी, कमला, गंडक, सौरा ने अपने अन्दर समा लिया और बाढ़
जाते ही हर व्यक्ति का खुद से जद्दोजहद शुरू हो जाएगी घर संवारे, बच्चो को पढाए, खेती करे, बिटिया की शादी की चिंता करे। लेकिन
यही बिहारी संस्कृति है रुकना नहीं, थकना नहीं, चलते
जाना है।
हर
वर्ष बाढ़ राहत व बचाव, तटबंध
निर्माण, पुनर्वास के नाम पर अरबों का खर्च ऐसा
लगता है सारे अधिकारी इसी समय की प्रतीक्षा में हो को बाढ़ आये और कुछ कमाई हो जाय
क्योकि आखिरी व्यक्ति तक तो राहत पहुँच नहीं पा रही है जहाँ पहुँच भी रही है वहां
सिर्फ खानापूर्ति हो रहा है। प्रशासन अब प्रकृति को दोषी ठहराएगा और सरकार हवाई
सर्वेक्षणों के भरोसे केंद्र सरकार के सामने हाथ फैलाएगी लेकिन जैसा गांधी जी ने
कहा था कोई भी काम यह सोचकर करो की क्या तुम्हारा वह काम अंतिम व्यक्ति तक
पहुंचेगा या नहीं। लेकिन कुछ खबरे भी आई की कुछ जगहों पर एक समुदाय विशेष के लोग
चूहे पकड़ कर अपना पेट भरते है और गाँव से १ किमी की दुरी पर प्रखंड विकास पदाधिकारी
तक यह खबर नहीं होती है। यह है प्रशासन, तो सवाल उठता है पटना में बैठे उच्च अधिकारी तक जो ३०० किमी दूर है
वहां तक कैसे बात पहुंचेगी। ऐसा भी अखबारों में आया की कुछ बड़े अधिकारी प्रखंड तक
गए और जन प्रतिनिधि तक की बात उन्होंने नहीं सुनी सबसे निचे स्तर का जनप्रतिनिधि
मुखिया की बात प्रशासनिक अधिकारी ऐसे वक्त में नहीं सुनेंगे तो जन प्रतिनिधि चुनने
का क्या मतलब रह जाता है।
आखिर
ऐसे त्राशदी से कैसे निपटा जाये:
१) बाढ़ प्रबंधन निति की समीक्षा हो।
२) तटबंधो की समीक्षा हो।
३) नदियों में जो हर साल गाद जमा होने से नदियों
के पानी ग्रहण की क्षमता कम हुई है ऐसे में नदियों के मिटटी को उठाकर आसपास बन रहे
राज्य/केंद्रीय सड़को में भरा जाय।
४) नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में गंभीरता
पूर्वक विचार करना चाहिए।
५) छोटी छोटी नदिया जो लगभग मृतप्राय हो चुकी है
उसके उद्धार के बारे में सरकार विचार करे।
६) नदियों और सड़को के आस पास पेड़ लगाने के
कार्यक्रम को व्यापक रूप से चलाना चाहिए।
७) तटबंधो के आस पास हो रहे खेती पर लगातार नजर
बनाये रखनी चाहिए ताकि पानी का रास्ता बना रहे।
८) नदियों के आस पास जो लोग अतिक्रमण के नाम पर
बस जाते है उसपर सख्ती से निपटना चाहिए।
९) लोगो को पानी के संग्रहण के बचाव के लिए
जागरुक करना चाहिए।
१०) सड़को के किनारे बने गड्डों को भरकर खेती की
जाती है उसके ऊपर भी सख्ती से निपटने की निति होनी चाहिए।
धन्यवाद
शशि
धर कुमार