हरियाणा और महासष्ट्र विधान सभा चुनावों आम आदमी का विचार
अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में आये हरियाणा और महाराष्ट्र के विधान सभा चुनावों के साथ साथ बांकी राज्यों में उपचुनावों के नतीजे के बाद एक आदमी क्या सोचता है वो मैं साझा करना चाहता हूँ:
१) आम लोगो को उनके हक़ से दूर नहीं रख सकते है और ना ही उन्हें नजर अंदाज कर सकते है।
२) भारत एक प्रजातंत्र है वोटर चेक एंड बैलेंस को हमेशा ध्यान में रखती है।
३) आपके काम को लेकर दावे और जमीन पर काम का चेहरा दोनों में फर्क होता है।
४) कितना भी राजनीती कर ले जातिगत राजनीती हावी हो ही जाता है।
५) कितना भी साफ़ सुथरा और मुद्दों की राजनीती करने की बात करते रहे आखिर में सरकार बनाने के लिए दागियो का दामन थामना राजनीती के दुसरे पहलु को भी दर्शाता है।
६) ख्याली पुलाव के बजाय धरती पर काम करना होगा। इस नतीजे को चेतावनी के तौर पर देख सकते है आप कितना भी ढोल पीटे, लोग क्या सोचते है यह मायने रखता है और अगर अब भी नहीं चेते तो कल आपकी जगह कोई और आएगा।
७) विपक्ष को नकारा बनाने वालो के लिए सन्देश है की वोटर खुद विपक्ष बनाने पर लगे हुआ चाहे कोई भी पार्टी कितना भी नकारा क्यों ना हो उसको भी मुंगेरी लाल के हसीं सपने देखने पर मजबूर कर सकती है। इसका मतलब साफ़ है जो दुसरे की हार पर अपनी जीत का झंडा फहराना चाहते है उनको भी कहा कि आप विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम रहे है।
८) एक और सन्देश भी साफ़ है उन मीडिया हाउस के लिए, जो चीख चीखकर एक ही तरफ ढोल पीटने में लगे हुए थे। ढोल कितना भी अच्छा क्यों ना हो दोनों तरफ पीटना पड़ता है ताकि मधुर ध्वनि के साथ साथ ढोल भी फटने से बचा जाय।
९) छोटी क्षेत्रीय पार्टियाँ अपने अपने पार्टी के अन्दर पुरे भारत में सबसे अच्छे लोकतंत्र वाली पार्टियाँ भी व्यक्ति केन्द्रित ही होता है।
१०) अगर त्रिशुंक विधानसभा हो तो हर एक निर्दलीय विधायक के लिए हर दिन धनतेरस वाली फीलिंग लाती है।
धन्यवाद!