अगस्त सन 42 का महान विप्लव पढ़ने के बाद पता चला कि आजादी की कीमत क्या थी। वैसे तो पूरे किताब में पूरे भारत का संदर्भ है लेकिन बिहारी होने के नाते संयुक्त प्रान्त, बिहार और ओडिशा पढ़ने के बाद दिल अंदर तक रो पड़ा। क्या वाकई में जिस आजादी को किताबों में हमे पढ़ाया जाता है उससे हमारी पीढ़ी या आने वाली पीढ़ी को आजादी की कीमत पता चलेगी। शायद नही।
कल हमनें बिहार के पहले सपूत जिनको फांसी पर चढ़ाया गया था भागलपुर केंद्रीय कारागार में अमर शहीद रामफल मंडल जी के बारे में उनके लेखक से ही उनकी बात रखी थी। और लोगो को पता भी नही है तो गलतियाँ हमारी भी थी हमने लोगो तक जानकारी नही पहुंचाई।
वापस आते है आजादी वाले बिंदु पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ अगर कोई उस किताब को पढ़ेगा और अगर उसके अंदर थोड़ी सी भी संवेदना है तो आपके आँखों मे आँसू अवश्य आएगा।
आजादी की कीमत बलात्कार, हत्या, जबरन उठाना, नंगा करके नुकीली वस्तु पर बैठा देना, सामूहिक हत्या, 1 साल के बच्चों तक की हत्या, 3 साल तक के बच्चों तक को जेल, औरतों को नंगा करके सामूहिक रूप से जलील करना जैसी जघन्य अपराध की श्रेणी में आने वाली घटनाएं जिसकी कीमत पर आजादी मिली। आप अपराध सोचिये और उसी तरह का अपराध आजादी के दीवानों के साथ किया गया था। उसी क्रम में सीतामढ़ी वाली घटना का जिक्र है। और भी कई जिलों के बारे में चर्चा किया गया है। सन 1942 में कोई ऐसा जिला नही था जिसपर सामूहिक रूप से जुर्माना ना ठोका गया हो जैसे पटना पर 3 लाख, शाहाबाद जिले पर 70 हजार, मुंगेर पर 1 लाख 97 हजार, गया जिले पर 3 लाख 53 हजार, भागलपुर जिले पर 2 लाख 50 हजार का जुर्माना लगाया था।
लेकिन क्या आज हम उस आजादी की कीमत समझ पाए है। बहुत कठीन कीमत चुकाई गयी थी। नई पीढी के लिए ऐसी इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है ताकि हम उस असहनीय कष्ट से प्राप्त आजादी के बारे में समझ सके।
धन्यवाद
शशि धर कुमार