अगर आप 90 के दशक के है और बिहार में पैदा हुए है तो काफी दिलचस्प हो जाता है की आप उससे पीछा छुड़ा पाए। अगर आपके मन में उस दशक के बारे में किसी भी प्रकार का प्रश्न है तो यह सीरीज आपको अवश्य देखनी चाहिए यह आपके दिमाग में चल रहे कई प्रश्नों का उत्तर दे सकती है बशर्ते आपने उस दशक के बारे में पहले से अपनी कोई राय ना बना ली हो। शुरुआत के दो एपिसोड में ही आपको पता चल जाता है बिहार में जो आज की राजनैतिक पृष्ठभूमि है वो ऐसा क्यों है। इसमें आपको सत्ता के लिए एक वर्ग का संघर्ष और दूसरे वर्ग का सत्ता का अपने हाथों से फिसलने ना देने की कवायद। आखिरी एपिसोड में भी आपको कई ऐसे खुलासे देखने को मिलेंगे जो आपने शायद ही सुना हो। कई भारतीय मीडिया ने इसे 3.5/5 स्टार दिए है लेकिन IMDB ने 7.5/10 स्टार दिए है लेकिन मेरे हिसाब से 4.5/5 स्टार पाने के लायक है क्योंकि सीरीज देखने के बाद आपको लगेगा की बिहार की पृष्ठभूमि और किरदार के डायलॉग पर कितनी मेहनत की गयी है। एक एक डायलॉग आपको उस समय के करीब ले जायेगा। निर्देशक ने जिस तरह से घटनाओ को जोड़ने की कोशिश की है वो बिहार की पूरी पृष्ठभूमि कहता है।
बिहार को राजनीति की पाठशाला कहा जाता है। जातीय समीकरण समझने हो, राजनीतिक पैंतरे सीखने हों, या देश के असल मुद्दों पर ज्ञान चाहिए हो, तो बस बिहार चले जाइए, आपके ज्ञानचक्षु ना खुल जाए तो बेकार है। वैसे भी बिहार की राजनीति के कई अध्याय हैं जिन्होंने ना सिर्फ बिहार को बदल कर रख दिया बल्कि देश की राजनीति पर भी अपना गहरा असर छोड़ा।
“महारानी” 1990 के दशक के बिहार में स्थापित एक राजनीती और राजनैतिक घटनाक्रम को लेकर बुनी गयी है ऐसी कहानी है जो अपने जातिगत गणित, पारंपरिक क्षत्रपों और उभरती आवाज के साथ शुरू होती है। भले निर्देशक ने डिस्क्लेमर में यह कहा हो की यह एक काल्पनिक कथा है लेकिन पहले एपिसोड से आपको पता चल जाता है की कहानी किसके बारे में है।
कई सालों बाद बिहार में पिछड़ी जाति का कोई मुख्यमंत्री बना है। नाम है भीमा भारती और काम-पिछड़ों को बिहार की राजनीति में सबसे ऊपर ले आना, उन्हें ऊंची जाति वालों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सिखाना। लेकिन राजनीति का ही खेल है कि सत्ता संभालते ही भीमा भारती पर जानलेवा हमला हो जाता है। गोली मारी जाती है, किसने मारी पता नहीं चलता। संकट काफी बड़ा है, सरकार अभी-अभी बनी है, राजा ही घायल हो गया है, ऐसे में बिहार जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। पार्टी में नेता कई हैं, सीएम बनने के सपने भी भुनाए जा रहे हैं, लेकिन भीमा भारती का दिमाग घोड़े से भी तेज चलता है। अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं को छोड़ पत्नी रानी भारती को सीएम बनवा देते हैं। फंडा सिंपल है, कागज पर मुख्यमंत्री रानी रहेंगी, लेकिन सत्ता भीमा ही चलाएंगे। क्या एक अशिक्षित महिला रानी भारती जो एक गृहिणी हैं और बिहार के मुख्यमंत्री भीमा की पत्नी हैं इन सब राजनैतिक दावपेंच से अपने आपको बचा पाती है।
भीमा भारती इतना बड़ा दांव तो चल दिया, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को ही नाराज कर गए। पार्टी के अंदर ही फूट पड़ गई और कई नेता अपने ही राजा को सबक सिखाने के चक्कर में पड़ गए। लेकिन बिहार की पहली महिला सीएम बनीं रानी भारती ने भी तेवर दिखाने शुरू किए। अपने ही 'साहेब' (बिहार में कई पत्नियां अपने पति को साहेब कहती हैं) के खिलाफ जाने की हिम्मत दिखाने लगीं। कभी मंत्रियों का मंत्रालय बदल दिया, किसी को बर्खास्त कर दिया, इनक्वायरी बैठा दी। सबकुछ होता रहा और भीमा भारती एक घायल राजा की तरह बस देखते रहे। यही है महारानी की कहानी जिसमें राजनीति है, राजनीतिक दांव-पेंच हैं और सत्ता में बने रहने की हर मुमकिन कोशिश।
डायलॉग जो पसंद आ सकते है
- हुमा कुरैशी का एक डायलॉग है- "हमसे 50 लीटर दूध दूहा लो, 500 गोबर का गोइठा बना लो पर एक दिन में इतना फाइल पर अंगूठा लगाना, ना.. हमसे ना हो पाएगा।"
- जूनियर पुलिस अफ़सर पिछड़ी जाति के अपने सीनियर पुलिस अधिकारी से कहता है- सरकार भले आप लोगों का है, सिस्टम हमारे हाथ में है।
- सीएम आवास में घुसते हुए नेता कहता है- यह सीएम हाउस है या तबेला?
- भीमा का सहयोगी मिश्रा उनके प्रतिद्वंद्वियों को 'आपदा में अवसर' तलाशने का ताना मारता है।
‘महारानी’ देखने के बाद कई जगह ऐसा महसूस होता है कि इसके लेखन में कमी रह गई। रानी की जिंदगी में अचानक तेजी से उतार-चढ़ाव आते हैं जो काफी तेज लगते है। एपिसोड 4 में अचानक से एक 'घोटाला' दिखाया जाता है। पांचवें एपिसोड में एक 'बाबा' आ जा जाता है। हर एपिसोड अपने आप में एक अलग थलग दीखता है।