आजादी का अमृत महोत्सव
आज १५ अगस्त को देश का हर नागरिक अपनी अपनी देशभक्ति प्रदर्शित करना चाहता है। हर किसी के सोशल मीडिया के प्रोफाइल को देखकर ऐसा लगता है जैसे अगर आज अँगरेज़ होते तो सोशल मीडिया के वीर उन्हें कुछ ही मिनटों में देश से बाहर भगा देते। आज देश आजादी का ७५वां साल मना रहा है और हम विश्व में तीसरे और चौथे स्थान पर अपने अर्थव्यवस्था को देखना चाहते है।
क्या वाक़ई में यही स्वतंत्रता है जिसकी चाहत में अनेक वीर बलिदानियों
ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था? आज हम
कितने ऐसे बलिदानियों को जानते है जिन्होंने अपने खून से इस आजादी के तिरंगे के लिए ना जाने कहाँ कहाँ भटके और किन किन हालातो में रातें गुजारी?
आज़ादी के ७५ सालो बाद भी
भले देश ने चांद की उचाईयों को नाप लिया हो। भले ही देश ने परमाणु सम्पन्न देश
होने का गौरव हासिल किया हो। भले ही देश आज पूरे दुनिया मे कंप्यूटर के बेहतरीन
दिमागों के लिए दंभ भरता हो। भले ही हमे संविधान ने बोलने की आज़ादी दी हुई हो
लेकिन उस बोलने की आज़ादी में शब्दों को सूंघने का प्रयास बारंबार नही होता है।
हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जब तक इस देश का कोई भी बच्चा फुटपाथ पर
सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी बच्चा ट्रैफिक पर भीख
मांगता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक एक भी बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहता
है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है जबतक इस देश का एक भी नागरिक भूखा सोता है। हमारी आज़ादी
तबतक बेमानी है जबतक एक भी व्यक्ति खुले में सोता है। हमारी आज़ादी तबतक बेमानी है
जबतक इस देश का एक भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित रह जाता है। आगर इस देश का एक भी
बच्चा जो इन मौलिक अधिकारों से किसी भी प्रकार वंचित है तो देश स्वतंत्र है या
नहीं इसपर मंथन करने की आवश्यकता है।
क्या हम व्यक्तिगत तौर पर किसी भी प्रकार अपने सरकार या समाज की
मदद कर सकते है। उसके लिए हमें अपनी अपनी व्यक्तिगत/सामाजिक ज़िम्मेदारियों का
निर्वाह करना पड़ेगा। तभी हम अपने देश को विकासशील से विकसित की तरफ ले जाने में
सहायक सिद्ध हो सकते है। हमे वाक़ई में स्वतंत्रता चाहिए तो हमें अपने अंदर ही कुछ
बदलावों पर बात करनी पड़ेगी और अपने समाज के अंदर बदलाव ला सके और मेरे ख्याल से
वाक़ई में वही स्वतंत्रता होगी।
सोचना आपको है कि आप सिर्फ वही सोच रहे है जो आपको सोचने को मजबूर किया
जा रहा है चाहे राजनैतिक पार्टियाँ हो या एक समुदाय विशेष या एक वर्ग विशेष
बुद्धिजीवी द्वारा इत्यादि। मैं यह नहीं कहता हूँ की उपरोक्त बातें कुछ दिन या कुछ
सालों में बदल जायेगा इसके लिए सालों लगेंगे जिसके लिए हमे सतत ईमानदार प्रयास
करते रहने होंगे।
सोचना आपको है अगर आप नही सोच सकते तो आप राष्ट्रीय मिठाई जलेबी का
लुत्फ लीजिए तथा एक सिनेमा देखते हुए अपनी छुट्टी का आनंद लीजिए।
एक बार फिर से पूरे देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक
शुभकामनाएं।
धन्यवाद।
@शशि धर कुमार