Wednesday 24 March 2021

बिहारियों की हिंदी

हिंदी एक भाषा है परंतु बिहारी कोई भाषा नही। बिहारियों की हिन्दी बोलने के तरीके हमेशा से सवालों के घेरे में रहे है और उसके ख़ूब मज़े भी लिए जाते रहे  हैं कि उनमें हर शब्द पुल्लिंग ही होता है मतलब उनके शब्दों में स्त्रीलिंग का उच्चारण नही होता। इसीलिए उसके शब्दो मे 'स' ही है, 'ड़' नहीं है, 'ण' का उच्चारण नहीं आता। लोग जिस बिहारी भाषा को हिन्दी समझते हैं उनसे पूछे कि आखिर हिन्दी भाषा क्या है? सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ बोली जाने वाली भाषा या क्या आज शुद्ध हिंदी बोली जाती है या कुछ और।

क्या बंगाली के 'स' को 'श' कहने पर भी हिन्दी का उच्चारण उपयुक्त हिंदी का उच्चारण होता है या उसमें भी दोष होता है? या बंगाली में वही उच्चारण है? या फिर बंगाली भाषा में वही उच्चारण होता है? या बंगाली में ऐसा कोई दोष नहीं होता है। 

ये बिहार की अपनी हिंदी है जिसका अपना व्याकरण है जो कही लिखा तो नही या जिसमें लिंग का लोप हो। क्या अंग्रेज़ी वालों को किसी ने पूछा कि 'आप' और 'तुम, दोनों के लिए ही सिर्फ 'यू' ही क्यों होता है? स्पेनिश सुनकर कभी किसी ने कहा कि ये सही फ़्रेंच नहीं है या फ्रेंच सुनकर कहा हो कि यह सही स्पेनिश नही।

बिहार के लोग जिस भाषा का प्रयोग बिहार में करते हैं उसमें 'श' और 'ष' के उच्चारण की जगह 'स' बोलते हैं, ड़ को र, ण को न बोलते हैं और जिसमें लिंग का अभाव होता है। ऐसा लोग बहुतायत में बोलते है इसी वजह से ऐसा लगता है की बिहारियों को हिंदी बोलनी नहीं आती है। 

लेखनी में अगर किसी प्रकार के संवाद लिखे जाएँगे तो उसे परिष्कृत करके सुधारने से आप पात्र की मौलिकता के साथ खेल रहे होंगे। अगर पात्र बिहार का है तो उसकी भाषा से वो बिहारी लगना चाहिए वरना वो तो किसी दूर ग्रह का प्राणी मात्र लगेगा जबकि कथानक आपका बिहार की पृष्ठभूमि है। जैसे रेणु जी कथानक के पात्रों का संवाद आप सीमांचल से बाहर भी नही ले जा पाएंगे अगर ले गए तो कथा की खूशबू ही समाप्त होती हुई दिखेगी।

कहने को तो फिर दिल्ली, राजस्थान, बंगाल गुजरात, महाराष्ट्र या उत्तर पूर्व के राज्यों की हिन्दी भी गलत कही जा सकती है। जैसा कि कहा जाता है कि गरीब के कान का सोना भी पीतल कह दिया जाता है। बिहार के लोग जब 'हिन्दी' (जिसको ज्यादातर लोग हिंदी मानते है) भाषा बोलते हैं तो वो दरअसल अपनी क्षेत्रीय (भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, ठेठी आदि) के शब्दों को हिन्दी में मिश्रण के साथ बोलते हैं।

ये एक अलग भाषा है, इसकी सुंदरता इसकी तथाकथित अशुद्धता में ही है जिससे आपको तुरंत यह ज्ञान हो जाता है कि एक बिहारी अपनी बात कह रहा है। कल्पना कीजिये अगर बिहारियों ने भी अक्षरशः वही बोलना शुरू कर दिया तो क्या आप पहचान पाएंगे कि कौन बोल रहा है। मुझे लगता है इसे अशुद्ध हिन्दी कहना मूर्खता है।

धन्यवाद।

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