Friday, 6 November 2020

बिहार का चुनावी दंगल

 बिहार में आजकल बिहार विधानसभा के लिए चुनावी प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुँच चुकी है जिसके तहत ७ नवंबर को आखिरी दौर का मतदान सम्पन्न होगी। बिहार के सभी राजनैतिक पार्टियां अपनी अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने में लगी है की हम ही १० नवंबर को सरकार बनाएंगे। लेकिन यह एक यक्ष प्रश्न है की किस पार्टी का मुख्यमंत्री होगा। बात मुख्यमंत्री या किसी पार्टी के चुनाव जीतने की नहीं है बात है की बिहार कब और कैसे जीतेगा। आजकल जो राजनैतिक पार्टियां जिस तरीके से काम करती है मुझे व्यक्तिगत तौर पर उम्मीद कम ही है की बिहार जीत पायेगा। इस चुनावी परिचर्चा में एक बात तो इस बार सकारात्मक देखने को मिली के कम से कम सभी पार्टियां बिहारी को तवज्जो दे रही है ये अलग बात है की १० नवंबर के बाद भी ढाक के तीन पात वाली कहानी होने वाली है।

लेकिन यह सोचकर की कुछ नहीं बदलने वाला है वोट नहीं देना सही चुनाव नहीं होगा सही चुनाव तब होगा जब अपने वोट की ताकत से यह बताया जाय की लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है और वही रहेगा।  आप कितना भी ५ साल इतरां  ले लेकिन आपकी स्थिति की समीक्षा जनता के हाथ में ही है कल आप अर्श में थे आज फर्श पर हो सकते है।  कहते है जनता सब जानती है लेकिन मुझे लगता है जबतक जनता सवाल नहीं पूछेगी तबतक जनता सब कुछ नहीं जानती है कुछ ही बात जानती है और उसी के ऊपर अपने वोट को लेकर चुनाव करती है की किस पार्टी को देना है किस पार्टी को नहीं।  

चुनाव भविष्य को लेकर किया गया ऐसा फैसला होता है जिसमे आप अपने हाथो से अपना भविष्य किसी और अनजान व्यक्ति के हाथो में देते है तो चुनावी प्रक्रिया में मतदान सोच समझकर करना जरुरी है।  जो १८ साल का मतदाता है वह अपना  भविष्य अपने मत द्वारा फैसला करता है और जिसके बच्चे छोटे है वे अपने बच्चो के भविष्य के लिए मत द्वारा फैसला करता है तो मतदान हमेशा सोच समझकर उमीदवार को करना चाहिए ना की किसी पार्टी को, मेरा यह व्यक्तिगत विचार है हो सकता है पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओ के यह बात सही मालूम ना पड़ती हो। लेकिन  जब भी आप पार्टी आधारित उमीदवार को चुनते है तो वह आपकी मज़बूरी को समझता है और उसे लगता है इस बार यहाँ से जीत गए अगली बार कही और से चुनाव लड़ लेंगे क्या फर्क पड़ता है।  ऐसे उमीदवार को आपकी समसयाओ से कोई फर्क नहीं पड़ता है।  ऐसे लोगो का काम सिर्फ राजनीती को शक्ति और पैसे को सामंजस्य के रूप में तलाशने का एक जरिया भर है।  

तो चुनाव सोच समझकर करे ताकि आपका भविष्य में सुधार हो सके आप सवाल कर सके ताकि आपका विधायक आपके प्रति जिम्मेदारी महसूस कर सके। मतदान अवश्य करे अगर आपको कोई भी उमीदवार पसंद नहीं भी हो तो आज आपके हाथ में NOTA  का ऑप्शन चुनाव आयोग ने रखा है आप बताये इनमे से कोई भी उमीदवार आपकी कसौटी पर खड़ा नहीं उतरता है।  

Sunday, 18 October 2020

राजनीति और मध्यम वर्ग

आजकल जो भारत में हो रहा है ऐसा लगता है लोग अपने आपको बचाने में लगे हुए है। आप लिस्ट कीजिये ऐसे लोगों को कौन किस बात पर विरोध कर रहा है अंदाजा लग जायेगा। मैं बारंबार कहता रहा हूँ हर बात का विरोध संभव नही खासकर आज के जमाने मे क्योंकि आपकी कही हर बात लोगों तक चाहे तोड़-मरोड़कर पहुँचे या अक्षरसः लेकिन बात मिनटों में लाखों तक पहुँचती है। इसीलिए किसी भी बात का प्रभाव कितनी तीव्र गति से जनमानस पर पड़ता है कैसे लोगो प्रतिउत्तर में जवाब देते है इसका जीता जागता उदाहरण हाल में एक ज्वैलरी से संबंधित विज्ञापन का हाल देखकर अंदाजा लाग्या जा सकता है।

लोग ब खुद यह फैसला करते है उनके लिए क्या अच्छा है क्या खराब है उसपर तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देता है वह पहले की तरह रात 9 बजे न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम या उनके पसंदीदा अखबार की सुबह की संपादकीय में क्या लिखा जाएगा उसका इंतजार नही करता है। अब वो जमाना नही रहा जब परंपरागत मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है आज की तारीख में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सोशल मीडिया हो गया है क्योंकि यहाँ हर व्यक्ति अपने हिसाब से अपनी संपादकीय लिख रहा है। अपनी बात करना चाहता है अपने क्षेत्र के बारे में बात करना चाहता है। अपने नेता के बारे में बात करना चाहता है कि उसका नेता कैसा हो उसे अपने नेता से क्या क्या अपेक्षा है।

इसी सोशल मीडिया की वजह से लोग अलग अलग विचारधाराओं के बारे में जानते है अगर उन्हें किसी की बात में संदेह नजर आता है तो वह उसपर रिसर्च करता है फिर फैसला लेता है कि फलां व्यक्ति का यह कहना कितना जायज है। अब किसी ने किसी की भी महापुरुष के किसी वकतव्य को अगर अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर पेश करता है तो वह तुरंत उसी का रिफरेन्स उठाकर सामने रख देता है। और आपने सालों पहले क्या कहा था किसी भी मुद्दे पर वह भी उसके हाथ मे मौजूद है।

अभी तक जितनी बातें ऊपर कही है ऐसा लगता है सोशल मीडिया में सबकुछ सही है होता है ऐसा नही है कुछ गलत लोग इसका गलत तरीके से भी इस्तेमाल करते है जैसे फेक न्यूज़ अगर एक बड़े ग्रुप द्वारा फैलाया जाता है वह भी उतनी ही तेजी से फैलता है और वह बड़ा असर डालती है समाज पर खासकर सामाजिक मुद्दों को लेकर भले उनके लिए बाद में सार्वजनिक तौर पर माफ़ी क्यों ना माँगनी पड़ी हो। बस हम सबको मिलकर सोचना है कि सोशल मीडिया पर वोकल किस तरह का होना है।

हाँ मैंने बात शुरू की थी लोग चुप क्यों है क्यों नही लोग देश के मुद्दे पर भी उतने ही वोकल दिखते है जितने सामाजिक मुद्दों को लेकर। लेकिन जो वर्ग चुप है वह इसीलिए नही बोल पा रहा है क्योंकि उसे अपने और अपने परिवार की चिंता है। एक निरपराध कार्टून बनाने वाला इसी देश मे गिरफ्तार किया जाता है वही एक व्यक्ति पर लगे अपराध को एक तरह से लोकतंत्र के इसी चौथे के एक वर्ग द्वारा उसका महिमामंडन किया जाता है दूसरे वर्ग को किसी राजनैतिक पार्टी का पिछलग्गू कहा जाता है । इसीलिए आम मध्यमवर्ग चुप है क्योंकि वह इस खेल को जानता है और समझता है उसे अपने परिवार की चिंता है। यह वही वर्ग है जो चुपचाप अपना ITR समय से पहले इसी डर से भरता है कि कल उसे नोटिस ना आ जाये। उसे अपनी चिंता इसीलिए करनी पड़ती है क्योंकि उसके लिए जब उसके साथ अन्याय होगा कोई खड़ा नही होगा चाहे वह नेता हो या कोई बुद्धिजीवी जबतक उसे आपकी जरूरत है आपके बारे में अपने अपने दोस्ताना व्यवहार वाले वर्ग के साथ आपकी बातों को उठाएंगे लेकिन जैसे ही उनका उल्लू सीधा हो जाएगा वह आपको दूध में पड़े मख्खी की तरह निकाल फेकेगा। इस चुप्पी साधे वर्ग को हमेशा राजनीति कुछ इस प्रकार दिखती है:
दोस्ती हो या दुश्मनी सलामी दूर से अच्छी लगती हैं,
राजनीति में कोई सगा नहीं ये बात भी सच्ची लगती है।


इस देश मे दो वर्ग सुरक्षित महसूस करता रहा है हमेशा जिसके लिए कार्यपालिका हमेशा खड़ी रहती है वह है गरीब और दूसरा धनाढ्य जिसके चलते पूरी अर्थव्यवस्था चलती है। इसीलिए यह आम मध्यम वर्ग चुप रहता है। फर्क नही पड़ता है यह देश किस राजनीति पार्टी का है उसे इतना पता है यह देश इतना आजाद मुखर नही हुआ कि एक आम मध्यमवर्ग की बात को सुनी जाय और उसे अमल में लाने के बारे में सोचा जाय। यही वजह है जब चुनाव होता है तो सबसे पहले यही वर्ग चुनाव में वोट डालने से कतराता है। हर जगह यही वर्ग अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है। इस वर्ग से साल में एक बार इनसे राय ली जाती है जब बजट संसद में पेश किया जाता है कि यह आम मध्यम वर्ग के लिए बजट कैसा है वह क्या सोचता है उसके बाद साल के 364 दिन वह अपने अपने परिवार को ऊपर उठाने की जद्दोजहद में लगा हुआ रहता है वह क्या प्रतिक्रिया देगा किसी भी बात पर। उसके लिए ना तो बुद्धिजीवी खड़ा होता है ना उसके लिए किसी अर्थशास्त्री के कॉलम में उसके लिए जगह बन पाती है ना ही राजनेताओं के वोट बैंक में वह शामिल होता है ना ही किसी सरकार के उत्थान किये जाने वाले लिस्ट में शामिल होता है।

आखिर में दो लाइन लिखकर अपनी बात खत्म करना चाहूँगा।
भारतीय राजनीति ,एक नए मोड़ में
कौन कितना गिरे,सब लगे होड़ में

धन्यवाद।
नोट: सर्वाधिकार सुरक्षित। अगर अच्छी लगी हो तो जरूर शेयर करे।

Saturday, 16 May 2020

आजादी की कीमत सन 42 के आजादी के विप्लव

अगस्त सन 42 का महान विप्लव पढ़ने के बाद पता चला कि आजादी की कीमत क्या थी। वैसे तो पूरे किताब में पूरे भारत का संदर्भ है लेकिन बिहारी होने के नाते संयुक्त प्रान्त, बिहार और ओडिशा पढ़ने के बाद दिल अंदर तक रो पड़ा। क्या वाकई में जिस आजादी को किताबों में हमे पढ़ाया जाता है उससे हमारी पीढ़ी या आने वाली पीढ़ी को आजादी की कीमत पता चलेगी। शायद नही।

कल हमनें बिहार के पहले सपूत जिनको फांसी पर चढ़ाया गया था भागलपुर केंद्रीय कारागार में अमर शहीद रामफल मंडल जी के बारे में उनके लेखक से ही उनकी बात रखी थी। और लोगो को पता भी नही है तो गलतियाँ हमारी भी थी हमने लोगो तक जानकारी नही पहुंचाई।

वापस आते है आजादी वाले बिंदु पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ अगर कोई उस किताब को पढ़ेगा और अगर उसके अंदर थोड़ी सी भी संवेदना है तो आपके आँखों मे आँसू अवश्य आएगा। 

आजादी की कीमत बलात्कार, हत्या, जबरन उठाना, नंगा करके नुकीली वस्तु पर बैठा देना, सामूहिक हत्या, 1 साल के बच्चों तक की हत्या, 3 साल तक के बच्चों तक को जेल, औरतों को नंगा करके सामूहिक रूप से जलील करना जैसी जघन्य अपराध की श्रेणी में आने वाली घटनाएं जिसकी कीमत पर आजादी मिली। आप अपराध सोचिये और उसी तरह का अपराध आजादी के दीवानों के साथ किया गया था। उसी क्रम में सीतामढ़ी वाली घटना का जिक्र है। और भी कई जिलों के बारे में चर्चा किया गया है। सन 1942 में कोई ऐसा जिला नही था जिसपर सामूहिक रूप से जुर्माना ना ठोका गया हो जैसे पटना पर 3 लाख, शाहाबाद जिले पर 70 हजार, मुंगेर पर 1 लाख 97 हजार, गया जिले पर 3 लाख 53 हजार, भागलपुर जिले पर 2 लाख 50 हजार का जुर्माना लगाया था। 

लेकिन क्या आज हम उस आजादी की कीमत समझ पाए है। बहुत कठीन कीमत चुकाई गयी थी। नई पीढी के लिए ऐसी इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है ताकि हम उस असहनीय कष्ट से प्राप्त आजादी के बारे में  समझ सके।

धन्यवाद
शशि धर कुमार

Friday, 28 February 2020

चिड़चिड़ापन-एक अभिशाप


मानव स्वभाव के दुर्गुणों में चिड़चिड़ापन आन्तरिक मन की दुर्बलता का सूचक है। सहिष्णुता के अभाव में मनुष्य बात बात में चिढ़ने लगता है, नाक भौं सिकोड़ता है, प्रायः गाली गलौज देता है। मानसिक दुर्बलता के कारण वह समझता है कि दूसरे उसे जान बूझकर परेशान करना चाहते हैं, उसके दुर्गुणों को देखते है, उनका मजाक उड़ाते हैं। किसी पुरानी कटु अनुभूति के फलस्वरूप वह अत्यधिक संवेदनशील हो उठता है और उसकी भावना ग्रन्थियाँ उसकी गाली गलोज या बेढंगे व्यापारों में प्रकट होती हैं।

चिड़चिड़ेपन के रोगी में चिंता तथा शक शुवे की आदत प्रधान है। कभी-2 शारीरिक कमजोरी के कारण, कब्ज, परिश्रम से थकान, सिरदर्द, नपुँसकता के कारण आदमी तिनक उठता है। अपनी कठिनाइयों तथा समस्याओं को उद्दीप्त होकर देखते देखते उसे गहरी निराशा हो जाती है। चिड़चिड़ापन एक पेचीदा मानसिक रोग है। अतः प्रारम्भ से ही इसके विषय में हमें सावधान रहना चाहिए।

जिस व्यक्ति में चिड़चिड़ेपन की आदत है, वह सदा दूसरों के दोष ढूंढ़ता रहता है। वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की दृष्टि में तो बुरा होता ही है, स्वयं भी एक अव्यक्त मानसिक उद्वेग का शिकार रहता है। उसके मन में एक प्रकार का संघर्ष चला करता है। वह भ्रमित कल्पनाओं का शिकार रहता है। उसके संशय ज्ञान तन्तुओं पर तनाव डालते हैं। भ्रम बढ़ता रहता है और वह मन ही मन ईर्ष्या की अग्नि में दग्ध होता रहता है। वह क्रोधित, भ्रान्त, दुःखी सा नजर आता है। तनिक सी बात में उसकी उद्विग्नता का पारावार नहीं रहता। गुप्त मन पर प्रारंभ में जैसे संस्कार जम जाते हैं, उनके फलस्वरूप ऐसा होता है। यह आदत से पड़ने वाला एक संस्कार है।

रोग से मुक्ति के साधन
मन में दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि चिड़चिड़ापन बुरा है। हम उसे अपने स्वभाव में से निकालना चाहते हैं। हम दूसरों के बोलने, हंसने, मजाक, या कामों से नहीं चिढ़ेंगे। हम उनकी परवा न करेंगे। अपने स्वभाव में मृदुता लायेंगे, सरल बनेंगे, सहिष्णु बनेंगे।

मनुष्य के मन में सत तथा असत् दोनों प्रकार के विचारों का क्रम चला करता है। हमें अपने दुर्बल विचारों के प्रति बड़ा सतर्क रहना चाहिए। जब कोई चिंता, या निराशाजनक बात मन में आवे, आप उसके प्रतिकूल भावना का उद्रेक कीजिये। चिड़चिड़ेपन के दमन के लिए मृदुता, प्रसन्नता, सहानुभूति की भावना अत्यन्त लाभदायक है। प्रबलता से मन में शुभ संकल्प जाग्रत कीजिए।

जब कभी आपको क्रोध आवे तो आप मन ही मन कहिए, “दूसरों से गलती हो ही जाती है। मुझे दूसरों की गलतियों पर क्रुद्ध नहीं होना चाहिए। यदि दूसरे गलती करते हैं, तो उसका यह मतलब नहीं कि मैं और भी बड़ी गलती कर उसका प्रतिशोध लूँ। मैं शुभ संकल्प वाला साधक हूँ। शुभ संकल्प के फलित होने के लिए उद्विग्न मन होना उचित नहीं। हम सहिष्णु बनेंगे। दूसरे स्वयं अपनी गलती का अनुभव करेंगे। हम धैर्य धारण करें।”

जितना ही आप विचारों को ऊपर लिखित भावनाओं पर एकाग्र करेंगे, उतना ही बल आपको मिलेगा। पुनः पुनः दृढ़ता से उन में रमण करने से स्वभाव बदल जायगा, प्रकृति मधुर बन जायगी। आवेश को रोकने से मन को बल मिलेगा।

अपने दैनिक व्यवहार में प्रेमी, सहानुभूतिपूर्ण, सौम्य और प्रसन्नमुद्रा से काम लीजिये। इस मधुर स्वभाव का प्रभाव आपके कुटुम्ब तथा समाज पर बहुत अच्छा पड़ेगा। सुख−शांति से जीवन व्यतीत करने के लिए मिष्ट भाषी और मधुर स्वभाव सर्वोत्तम तत्व हैं। मधुरता का प्रवाह तुम्हारे इर्द गिर्द वातावरण में फैल जायगा। चिड़चिड़ा होना आपकी एक बड़ी कमजोरी है, मधुरता से, सरसता और प्रसन्नता से उसे ठीक कर लीजिये। ऐसे मधुर वचन बोलिये कि छोटे बच्चे आपकी ओर आकर्षित होकर चले आयें, पत्नी प्रसन्न हो उठे, नौकर भी प्रसन्नता से आपकी आज्ञा बजा लायें। संकल्प की दृढ़ता, आवेश को रोकने तथा मधुर आदर्श सामने रखने से निश्चय ही आप चिड़चिड़ेपन से छुटकारा पा सकेंगे।

Thursday, 30 January 2020

खुदा की राह पर


दुनिया में दो तरह के मनुष्य होते आये हैं। एक वे जो अपनी राह पर संसार में-चलते हैं और दूसरे वे जो प्रेम पथ के पथिक बन प्रभु की राह में चलते हैं। अपनी राह में चलने वाले ऐश व आराम तलब होते हैं और उनका ध्येय साँसारिक आराम की खोज ही में अपने अमूल्य जीवन को बिता देना है। पर जो खुदा की राह पर चलते हैं उन्हें पग पग पर विघ्नों का सामना करना पड़ता है। लोग इन्हें निखट्ट और अकर्मण्य कहा करते हैं पर उस पथिक को इन बातों को अनसुनी कर आगे बढ़ना पड़ता है। अगर वे लोगों की परवाह करने लगे वे न घर के रहे और न बाहर के।

हाँ तो खुदा की राह में चलने वाले प्रेम पथ के पथिक को धैर्यपूर्वक जो भी विपत्तियाँ सामने आवें उनको सहन करना पड़ेगा। अगर बीच में हिमालय भी आ पड़े तो उसको भी हंसते 2 पार करना पड़ेगा। गरज कि उसे किसी हालत में पीछे पैर नहीं देना होगा। सम्भव है आगे बढ़ने का रास्ता दिखाई न दे पर इससे खौफ खाने की कोई बात नहीं। प्रेम के मार्ग में तो काँटे मिलते ही हैं। इश्क के रास्ते में तो रोड़े अटकाये जाते ही हैं पर प्रेमी इन अड़चनों से नहीं घबड़ाता। आशिक इन तकलीफों में विचलित नहीं होता। भला जिसने अपने सर को ऊखल के हवाले कर दिया है वह मूसल की चोट से कब तक डरता रहेगा।

खुदा की राह कठिन तो अवश्य है पर दुःसाध्य नहीं है। अगर दृढ़ संकल्प से इस रास्ते में कदम बढ़ाया जाये तो एक न एक दिन प्रीतम के दरबार में पहुँच ही जाता है। माशूक का दीदार हो ही जाता है। प्रीतम के प्रेम का पुजारी अपने प्रीतम से कब तक अलग रखा जा सकता है? भला अग्नि की गरमी को आग से कब तक अलग किया जा सकता है। चन्द्रमा से चाँदनी की चोरी और सूर्य से धूप की चोरी के कितने दिन तक सम्भव है? जिसके हृदय में प्रीतम के मिलने की आग धधक रही है और उससे मिलने के लिये उसकी राह में चल पड़ा है उसको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। कोई भी शक्ति उसको उस पथ से गुमराह नहीं कर सकती। वह अपने विचार में अटल है। संकल्प कच्चा धागा नहीं। वह इस बात को जानता है- कि अगर वह एक डग आगे बढ़ेगा तो परमात्मा दो डग उसको अपने प्रभू के महल तक पहुँचा देगा। उसे मालूम है कि इसी रास्ते से बड़े लोग गये हैं। और उसे भी मार्ग का अनुसरण करना चाहिये।

ऐसे व्यक्तियों के लिये समुद्र गो-खुर के समान हो जाता है, अग्नि अपनी दाहक शक्ति छोड़ देती है, हिमालय राह दे देता है और शत्रु भी मित्र सा बर्ताव करने लगता है। उसके लिये सारा संसार ही कुटुम्ब हो जाता है। वह जहाँ निकल जाता है वहाँ शीतल, मन्द सुगन्ध हवा चलने लगती है। उसकी जहाँ 2 पदधूलि पहुँचती है वह स्थान तीर्थ बन जाता है। पशु पक्षी भय त्याग उसके इर्द गिर्द चक्कर काटने लगते हैं और उसके बदन से अपनी खुजलाहट मिटाते हैं

कोई विरला ही माई का लाल इस रास्ते में चलता है और चल कर भी वापस नहीं लौटता। होता तो यह है कि कुछ अभागे इस रास्ते चलने को राजी भी होते हैं तो जहाँ दिक्कतों को सामना करना पड़ा बस फौरन वापस चले आते हैं। थोड़ी दूर जरूर तरह-2 के विघ्न बाधायें हैं पर आगे चलकर तो रास्ता बिलकुल सहल और राजकीय पथ के समान है। भला कहीं खुदा की राह में भी दुःख हो सकता है।

Wednesday, 1 January 2020

Happy New Year 2020

दुनिया फेसबुक या किसी भी सोशल मीडिया से एकदम अलग है। दुनिया वैसी नही है जैसी फेसबुक या किसी न्यूज़ चैनल में दिखाई जाती है। है कुछ लोग जो सोशल मीडिया पर अपना मुँह छुपाकर धर्म की आड़ लेकर बहुत सारी गलत और अफवाह फैलाते है उन्हें यह पता होता उनका चेहरा किसी को पता तो चलेगा नही लेकिन उनकी अफवाह फैल जरूर जाएगी। क्योंकि उन्हें यह भी पता है कि है बहुत सारे लोग जो फेसबुक या व्हाट्सएप या ट्वीटर पर कुछ भी शेयर कर दो उन्हें सही ही लगता है।

हमारे पड़ोस में कोई नही जिन्हें हम यह कहे कि हम तुमसे वह सामान इसीलिए नही खरीदेंगे क्योंकि तुम हमारे मजहब के नही हो। हम तुमसे वह सेवाएं नही लेंगे क्योंकि तुम फलां मजहब के मानने वाले हो। मैं नही कहता कि हर मजहब में हर कोई एक सा ही है लेकिन हर धर्म प्यार जरूर बाँटना सिखाता है लेकिन कुछ लोगों के कहने और लिखने से हम जरूर प्रभावित होते है लेकिन उस प्रभाव को जमीन पर तौलकर जरूर देखा जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर पहुंचते ही ऐसा लगता है अब तो दुनिया ख़त्म होने ही वाली है और हमारे आस पास सबकुछ जलकर खाक ही होने वाला है और हम कुछ दिनों के मेहमान है।

मैंने पहले भी कहा है कि ऐसा नही है कि समाज मे कुछ गलत नही होता है लेकिन अगर 95% वाले बहुसंख्यक शांति के साथ सबके साथ मिलकर जीना चाहते है तो ये 5% वाले अल्पसंख्यक के चक्कर में हम अपनी वास्तविक पहचान क्यों बिगाड़ने पर लगे हुए है। लेकिन गलत को हमेशा गलत कहने का जज़्बा होना चाहिए यह तभी संभव है जब आप जाति धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता के नजरिये से सोच पाएंगे। हमारी पढ़ाई किस काम की जब हम हर बात को एक मजहब या एक जाति या एक सम्प्रदाय के नजरिये से देखना शुरू करे। हमारी पढ़ाई का मतलब तो तब सार्थक होगा जब हम किसी भी बात को एक सामान्य नागरिक या एक सामान्य श्रोता या उस बात की तह तक पहुँचने के लिए हर संभव सामान्य ज्ञान या सामान्य तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल करे।

आइये नए साल में यह सोचना शुरू करे कि चाहे कोई, जो भी नफरत फैलाने की कोशिश करेगा उससे हम दूर रहेंगे। नही तो कम से कम उसके विचार को अपने दिमाग पर हावी होने नही देंगे।

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