इस उपन्यास का कथानक अंग देश के चम्पा के एक ग्राम के रहने वाले शिव का अपने पत्नी के प्रति प्रेम और बौद्ध भिक्खु बनने के बीच में जो मन में प्रश्न उठते है जिसके भँवर में उपन्यास के आखिरी हिस्से में ही बाहर आ पाता है। इसको पढ़ते हुए आपको लेखक अपनी लेखनी से बौद्धकालीन समाज में लेकर जाने में सफल होते है और आपको लगने लगता है कि आप भी उपन्यास के मुख्य पात्र शिव के साथ साथ चलते हुए चम्पा से चलते हुए बौद्ध संगीति के लिए वैशाली पहुँचते है और फिर वापस भी आते है। शिव एक ऐसा पात्र है जो अपनी पत्नी से बीस दिन के लिए बीस गाँठ के रूप में पत्नी को दिए अपने वचन को पूरा करने के लिए पूर्णतः समर्पित दिखता है। लेकिन उस समय की सामाजिक परिस्थिति जो एक आम इंसान को उस सामाजिक ढाँचे से बाहर निकलने को उद्देलित करता है कि कैसे वह इस सामाजिक बंधनो में जो भेदभाव है उससे निकलने को छटपटाता है यह दर्शाती है। इसी उहापोह की स्थिति से निकलने के लिए शिव बौद्ध भिक्खु होने का रास्ता चुनता है जहाँ किसी भी प्रकार का ना कोई सामाजिक बंधन है ना ही किसी प्रकार का अवांछित बंधन। इसी छटफटाहट से निकलने के लिए वह बौद्ध भिक्खु तो बन जाता है लेकिन उसका अपने पत्नी के प्रति प्रेम से वह बाहर नही निकल पाता है। जबतक आप किसी धर्म में है आपको किसी ना किसी प्रकार का ऐसा बंधन बाँधे रखता है जो है ही नही लेकिन कभी कभी आपको लगता है कि यह कैसा बंधन है जो ना चाहते हुए भी मानना पड़ता है और उसके मुताबिक चलना पड़ता है। मुझे लगता है यह उपन्यास कहानी के मुख्य पात्र शिव के अंदर भी इसी छटफटाहट का नतीजा है जिससे वह बाहर निकलना चाहता है।
वह उसी सामाजिक बंधन से निकलने के लिए रास्ते के बारे में सोचता है और इसके लिए पूरा प्रयास भी करता है लेकिन वह भिक्खु बनने के बाद भी एक सामाजिक बंधन जो उसका अपने पत्नी के प्रति है उससे नही निकल पा रहा है। और यह स्वाभाविक भी है की आप जिस समाज के साथ जीते है उसके आस पास बहुत सारी सामाजिक परिस्थितियाँ आपको अपने अंदर समाए रहती है। आप उससे बमुश्किल निकल पाते है।
लेखक का कहानी के प्रति बंधन यह बताता है कि एक सटीक कथानक कितनी ही पुरानी पृष्टभूमि हो लेकिन कहानी पाठकों को जोड़ने में सफल हो पाती है। एक साहित्य प्रेमी होने के नाते यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी बहुत ही सुंदर और सुव्यवस्थित तरीके से संजोया गया है जो आपको उस समयकाल के बारे में बहुत सी ऐसी बातों से अवगत कराता है जिसको जानने के लिए आपको इतिहास की किताबों को खंगालना पड़ता है।
एक बार फिर से लेखक महोदय का धन्यवाद।
शशि धर कुमार