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Friday, 2 August 2019

कोशी की विभीषिका और सरकारी तंत्र

कोशी के बारे में बचपन में पढ़ा था कि "कोशी को बिहार का शोक" कहा जाता है लेकिन शायद बचपन में इसके मायने नही पता थे इसीलिए नही की तब कोशी में बाढ़ नही आती थी बल्कि इसीलिए की वह बाढ़ तबाही का मंजर आज जो लेकर आती है तब लेकर नहीं आती थी। आज हर वर्ष कोशी अपने साथ कुछ ऐसा मंजर लेकर आती है जिसे देखकर एक संवेदनशील व्यक्ति की रूह जरूर कांप जाती है। हर बार की भांति इस बार भी कोशी अपने पानी के तेज बहाव के साथ साथ कुछ रूह कँपाने वाली मंजर भी लायी जिससे पूरा मिथिलांचल और सीमांचल प्रभावित हुआ। लेकिन इस बार मधुबनी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित रहा जिसके कुछ चलचित्र/चित्र देखकर अंदर तक कंपन होने लगी। लेकिन लोग भी क्या करे यही उनका भविष्य है और कोशी माता का प्रकोप किसी ना किसी को तो झेलना पड़ेगा और हर बार यही सोचकर कि कोशी माता कुपित है और हम उन्हें मनाने में लगा जाते है और संयोग देखिये देर सवेर कोशी माता मान भी जाती है भले वे किसी का पूरा संसार अपने अंदर समा गई हो लेकिन जीवन इसी में खुश हो जाता है कि बांकी लोग सुरक्षित है।

बाढ़ की आपदा लाखों लोगों के घरों में तबाही  लेकर आता हैं हर साल लगभग एक से डेढ़ महीना तक लाखों लोगों का चीत्कार एवं वेदना से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल के लोग परेशान रहते हैं। फसलें तबाह हो जाती हैं, फूस और कच्चे मकानो के साथ पक्के मकानों को भी भारी क्षति होती है जो पानी के तेज बहाव के सामने आते है वैसे घर भी या तो पूर्णतः अस्तित्वहीन हो जाते है या दरक जाते हैं । इसी क्रम में बुजुर्गों और बच्चों की कई मौतें हो जाती हैं। कुछ एक तो पानी में बहकर कहाँ से कहाँ चले जातें हैं पता भी नही चलता, कहने का मतलब यह है कि हर ओर तबाही का मंजर दिखता है। गाँव की ज्यादातर आबादी तो गरीब और कच्चे मकानों में रहते है जो प्रतिदिन मजदूरी करते है तो उनके घर चूल्हा जलता है। ऐसे में इतने लंबे समय तक रहने वाली बाढ़ से निपटने के लिए उनके पास सरकारी अनाज दुकान का ही भरोसा होता है। ऐसे बाढ़ के समय वे भी सही से काम नही कर पाती है क्योंकि ना तो सड़क दिखता है और ना जाने कौन सी सड़क टूटी हुई हो। सरकारी नाव तो बामुश्किल मिलता है और मिलता भी है तो उसपर चढ़ने के लिए पैसे चाहिए। क्योंकि बाढ़ के समय तो हर किसी को अपना पेट भरना है।

नियमानुसार बाढ़ पीड़ितों के अनुदान के लिए सरकारी तौर पर सब कुछ नियम के किताबो पर लिखा होता है। ऐसे में सरकारी तंत्र इनसे निपटने की टोली बनाकर नाटकीय ढोंग करते हुए हमेशा दिखाई दे जाएंगे। कुछ अपवाद स्वरूप भी हो सकते है जो वाकई में दिल से काम करते है और जहाँ रहेंगे गरीबों के लिए ही काम करेंगे। 

बाढ़ आता है पहले खेत खलिहान डूबता है फिर सड़क, फिर दरवाजा, फिर आंगन, फिर घर भी डूबने लगता है जैसे जैसे घर के अंदर पानी बढ़ता जाता है वैसे वैसे जमा पूँजी धीरे धीरे डूबती रहती है। फिर लोग भागते हैं एक फेहरिस्त लिए सरकारी दरवाजो पर की एक किलो चूड़ा, थोड़ा गुड़, मोमबत्ती, माचिस, खिचड़ी और नाव के लिए। लेकिन समस्याओं के इतनी बड़ी सूची में आपदा के समय दी जाने वाली वस्तुओं की भाड़ी कमी गरीबों में अफ़रातफ़री का माहौल पैदा होता है।

यही है हर बार आने वाली कोशी की विभीषिका का प्रकोप और उससे निपटते लोगो की भागदौड़ के बीच सरकारी तंत्र और उसके अन्दर फलते फूलते राजनेता से लेकर मुखिया तक की कहानी।

Friday, 20 November 2009

How Indian Govt will listen you........

How Indian Govt will listen you........

On 18th November 2009 the western UP's farmers are in Delhi for protest against the Centre’s freeze on the base sugarcane price.For three hours, they ran riot in the heart of the city, Connaught Place — damaging public property, looting shops and teasing women, with cops watching.Hundreds of protesters allegedly vandalized public property, looted shops at Janpath and attacked vehicles. Shopkeepers said some of them sat down on the footpaths to drink liquor and teased girls on the arterial stretches of CP.

Look how these people have damages the public property and realize yourself that it is right or not......







I am not against to any protest but that should not belongs to any damages of public property.

On 19th November, The Lok Sabha was adjourned until noon on Friday after opposition members disrupted the proceedings demanding a better deal for sugarcane farmers and our law makers gets 3 days to sit at their residence without any work because next day is saturday and after that sunday. They don't realize how much money are expenses for their session in parliament.  And we people always thinks after damaging these public property that those property are belongs to government not ours.

Think once again who is the government is this we or someone who come from the land of God. Are we than stop these kind of protest, please try to keep this clean and not a problem.

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