Monday, 30 December 2019

इच्छा शक्ति से उत्कर्ष


मानसिक विकास से मेरा तात्पर्य उन असाधारण शक्तियों से है जो कभी कभी किसी मानव विशेष में उदय होकर उसके जीवन को विश्व के रंगमंच पर चमका दिया करती हैं। लोग देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उनकी समझ में भी नहीं आता कि उन्हीं से समान योग्यता रखने वाला एक साधारण व्यक्ति कैसे इस स्थिति तक पहुँच गया? उदाहरण के लिए हिटलर को ही ले लीजिये। एक साधारण स्थिति के निर्धन व्यक्ति का लड़का था। परिस्थितियाँ भी कोई विशेष अनुकूल न थीं फिर भी उसने अपने पराक्रम के बल पर एक बार संसार की ईंट-से-ईंट बजा दी । यूरोपीय ही क्यों प्रायः सभी छोटे बड़े देश इस हलचल में डगमगाने लगे थे। किसी को स्वप्न में भी विश्वास न था कि पददलित जर्मन राष्ट्र का एक व्यक्ति इस प्रकार एक भीषण ज्वालामुखी का रूप धारण कर विश्व के कोने कोने में आग उगलने लगेगा।

स्वयं अपने देश के इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएँ देखने को मिल सकती हैं। महाभारत में एकलव्य का चरित्र उल्लेखनीय है। एक साधारण भील के घर में जन्म लेकर उसने वाणविद्या में जो कौशल दिखलाया वह द्रोणाचार्य के हृदय को भी प्रभावित किये बिना न रह सका।

अब उपर्युक्त उदाहरणों में एकलव्य और हिटलर की महत्ता का क्या कारण हो सकता है। यदि कहा जाय “वंशपरम्परा” तो दोनों ही ऐसे साधारण परिवार में जन्मे थे जिनमें उत्पन्न व्यक्ति से कभी ऐसी आशा ही नहीं की जा सकती थी। शूद्र तो सामाजिक बन्धनों के अनुसार वाणविद्या के किसी प्रकार अधिकारी ही न थे। रहा वातावरण- वह भी इस प्रकार की महान विभूतियों को जन्म देने के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। कितने ही उसी श्रेणी के व्यक्ति उसी वातावरण में पलकर भी उनका अंशमात्र भी न हो सके। तब हमें मानना पड़ेगा कि इन दो के अतिरिक्त कोई और भी शक्ति है जो व्यक्ति के जीवन के निर्माण में सहायक होकर उसे सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ा सकती है।

इस पर अधिक प्रकाश डालने के लिए हम एकलव्य का ही जीवन लेते हैं। व्यक्ति की महत् की ओर बढ़ने की इच्छा स्वाभाविक होती है। कुछ अनायास ही स्वनिश्चित महत्तम लक्ष्य की ओर खिसके चले जाते हैं। कुछ अपने को असमर्थ मानकर उधर देखते भी नहीं और कुछ मार्ग की कठिनाइयों से हार मानकर बैठ रहते हैं। इनमें से प्रथम की सफलता तो अनिवार्य ही है और शेष सभी की यदि असम्भव कहा जाय तो कुछ अनुचित न होगा। कुरु और पाण्डु के पुत्रों को वाणविद्या का अभ्यास करते हुए देखकर वह भी उसी लालसा से प्रेरित हो उनके गुरु द्रोणाचार्य के पास जाता है शूद्रकुलोत्पन्न होने के कारण वह इसका अधिकारी नहीं समझा जाता। द्रोणाचार्य के इस अभिप्राय को जानकर वह अपना सा मुँह लेकर रह जाता है। पर उसकी वह लालसा इतनी तीव्र थी कि वह उसका दमन न कर सका। गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाकर वह एकान्त में जा वाणविद्या का अभ्यास करने लगा। उसका कौशल बढ़ते बढ़ते यहाँ तक जा पहुँचा कि पाण्डुनन्दन उसके समाने अपने को तुच्छ समझने लगे। गुरु अध्यक्षता में निरन्तर अभ्यास करते हुए भी वे अपने को इतना समर्थ न बना सके । इसका क्या कारण था? एकलव्य में कोई तो बात ऐसी अवश्य थी जो पाण्डुनन्दनों में न थी। इसे जानने के लिए हमें कोई विशेष परिश्रम करने की आवश्यकता न पड़ेगी। थोड़ा ही ध्यान देते ही हम देखेंगे कि एकलव्य जो चीज लेकर गुरु के पास गया था वह थी उसकी इच्छा । इच्छा के अतिरिक्त कोई भी दूसरी सुविधा उसके पास न थी। ‘इच्छा’ भी कोई साधारण इच्छा नहीं, जो जरा सी ठेस लगते ही अन्तरमुखी होकर सदा के लिए विलीन हो जाती, प्रत्युत वह तो उसका वह दुर्दमनीय रूप लेकर गया जो अपने प्रभाव से व्यक्ति को उसके स्वाभाविक पथ से हटाकर विशिष्ट की ओर ले जाती है। वह विवश हो जाता है। एकलव्य के जीवन में यह उसकी इसी ‘इच्छा’ शक्ति का प्रभाव था जो वह उन्नति के उस उच्चस्तर तक पहुँच सका। अपनी इसी शक्ति के बल पर उसने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। यही बात हम हिटलर के भी जीवन में पाते हैं। नेपोलियन के जीवन में भी यही बात थी और यदि कहा जाय कि संसार के प्रत्येक महापुरुष के जीवन में यही बात पायी जाती है तो अनुचित न होगा।

अब स्वाभाविक प्रश्न यह होता है कि यह शक्ति प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाती है या किसी किसी में? यदि प्रत्येक में पाई जाती है तो सभी में उसका उदय क्यों नहीं होता और यदि किसी किसी में तो उन विशेष व्यक्तियों को ही क्यों प्रकृति की यह सुविधा प्राप्त होती है?

मनोविज्ञान हमें बतलाता है कि हमारी सभी प्रवृत्तियाँ जन्म जात होती हैं। अनुकूल वातावरण पाकर कोई भी प्रवृत्ति जाग्रत हो सकती है। इस सिद्धान्त के अनुसार कोई नवीन प्रवृत्ति भले ही न उदय हो सके पर जाग्रत प्रवृत्ति को ‘इच्छाशक्ति’ के आधार पर किसी ओर भी मोड़ा जा सकता है। यह हम पहले ही कह आये हैं कि व्यक्ति की महत् की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है, इसी को यदि प्रबल इच्छा शक्ति का सहारा मिल जाय तो व्यक्ति किसी भी कार्य को करने में समर्थ हो सकता है। धीरे-2 परिवर्तित होते हुए उसकी प्रवृत्ति दूसरा ही रूप धारण कर लेती है। अब प्रश्न इस क्रमिक परिवर्तन के साथ-साथ प्रत्यावर्तन का है। किस प्रकार व्यक्ति इस शक्ति को अर्जित कर अपने लक्ष्यभेद तक पहुँच सकता है? इसका उत्तर पाने के लिए हमें ‘इच्छा’ का विश्लेषण करते हुए आगे बढ़ना होगा।

किसी भी दूसरी ओर अपनी शक्ति का अपव्यय करने का अर्थ होगा लक्ष्य से उतनी ही दूर पड़ जाना। उतनी वह शक्ति भी यदि इसी ओर लगा दी जाती तो सम्भवतः उस मार्ग में और अधिक आगे बढ़ा जा सकता था। अतः लक्ष्य को स्थिर कर लेने की अनन्तर आवश्यकता है एकाग्र निष्ठा और अध्यवसाय की। इतने में ही सब कुछ नहीं समझ लेना चाहिये। इनके अतिरिक्त सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मविश्वास की। जब तक आपको स्वयं अपनी शक्तियों पर विश्वास नहीं आप सभी कुछ भी करने में सफल नहीं हो सकते। इसके बिना ‘इच्छाशक्ति’ की वृद्धि असंभव ही समझिये। आप निश्चित समझिये कि जिस कार्य को आपने हाथ में लिया है आप उसे करने में पूर्ण समर्थ हैं। कोई भी बाधा, कोई भी कठिनाई आपको रोक न सकेगी। उसके विपरीत यदि आप प्रारम्भ में ही भयान्वित हों आत्मविश्वास को खो बैठे तो ‘हार’ निश्चित समझिये। कोई भी शक्ति आपको सफल होने में सहायता नहीं दे सकती। इतना जान लेने के बाद हम इस परिणाम पर पहुँचते है कि हम उक्त मानवीय गुणों का सहारा लेकर अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा बड़े से बड़ा कार्य करने में समर्थ हो सकते हैं।

अतः हम अन्त में इस निश्चय पर पहुँचते हैं कि व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में ‘इच्छाशक्ति’ का भी बहुत बड़ा हाथ है। इसके आधार पर बड़े बड़े असंभव कार्यों को भी संभव कर दिखलाया जा सकता है और दिखलाया जा रहा है। इसी की न्यूनता और अधिकता पर जीवन की सफलता की न्यूनता और अधिकता अवलम्बित है। वंशानुक्रम और वातावरण की सारी कमियों को व्यक्ति ‘इच्छाशक्ति’ के द्वारा प्राप्त कर लक्ष्य भेद की ओर अग्रसर हो सकता है।

Saturday, 7 December 2019

Delhi Unnao Hyderbad Ranchi Darbhanga

दिल्ली हो या हैदराबाद या उन्नाव या बक्सर हो या दरभंगा हो या सुपौल हो या राँची इस देश का कोई भी शहर/कस्बा/गांव बचा है क्या जहाँ से हम इस प्रकार की खबरें ना सुन पाए.... बलात्कारियों को फांसी कब?

एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं न्यायिक प्रक्रिया से मिलने वाली सजा और इंसाफ का पक्षधर हूं। लेकिन दरिंदगी की ऐसी घटनाओं को देखकर सिर्फ एक बेटी का बाप रह जाता हूँ। तब यही लगता है कि दरिंदों में खौफ के लिए कभी कभी एनकाउंटर भी ज़रूरी है। मैं जानता हूँ कि ये भावावेश है....दिमाग सोच सकता है तार्किक बातें लेकिन एक बेटी के बाप का दिमाग नही। हम सबको पता है कि एनकाउंटर कोई समाधान नहीं लेकिन जिस सिस्टम ने आज तक निर्भया को इंसाफ नहीं दिया वो आंध्र प्रदेश की बेटी को क्या देता? उन्नाव की बेटी को इंसाफ मिलेगा या नही वह भविष्य के गर्भ में है। एक बार हम उस बच्ची की जगह खुद को रखकर देखे...रूह कांप जाएगी...इतना बुरा लग रहा है की शब्द भी कम पड़ जा रहे है।

हैदराबाद का पुलिस एनकाउंटर और आम जनता को इससे मिलने वाली ख़ुशी सिर्फ और सिर्फ इस देश की न्यायिक व्यवस्था की हार और उस हारी हुई लचर व्यवस्था पर से उठ चुके जनता के विश्वास को दर्शाता है। क्या उन परिवारों का सामाजिक बहिष्कार होगा जिन्होंने अपने बलात्कारी बेटों को दंडित करने की बजाय साथ खड़े होकर उन्नाव की बेटी को ज़िंदा जलाया? संसद में बैठे वोट के ठेकादारों ने ना ही तब क़ानून बनाया न अब बनाएँगे ऐसा लगता है और वे अपने अपने वोटों की जरूरतों के हिसाब से अपना अपना बयान दे रहे है तो हमारी-आपकी सामाजिक ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन न्यायाधीश महोदय से भी अवश्य प्रश्न पूछे जाने चाहिए की जब उन्नाव की बेटी ने आशंका जाहिर की थी अपनी सुरक्षा को लेकर उसके बाद भी जमानत मंजूर हुई। उन पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही होनी चाहिए जिन्होंने इतने दिनों तक उस लड़की की शिकायत को एफआईआर तक नही लिखा। इस प्रकार की बातें सत्ता-व्यवस्था के प्रति जो अविश्वास दिखाता है वह हमारे न्यायपालिका के साथ साथ पूरे समाज के लिए भीषण अमंगलकारी है।

ज़िंदा जली उन्नाव की बेटी ने अकेले दम नहीं तोड़ा है, उसके साथ-साथ हमारी तथाकथित संवेदनशीलता, हमारे संस्कार, हमारी न्यायपालिका, हमारी व्यवस्था और हमारी राजनैतिक इच्छाशक्ति ने भी दम तोड़ा है ज़मीन के नीचे धधक रही असंतोष व बेचैनी की इस आग को राजनैतिक हुक्मरानों ने नही समझा तो वह दिन दूर नही जब जनता आपसे सवाल नही पूछेगी। इस गुस्से में धधकता एक ऐसी ज्वाला है जो सबकुछ जला कर खाक कर सकता है।

यह हमारे समाज का एक ऐसा घिनौना चेहरा है जिसके हम भी कही ना कही भागीदार है। हमारा समाज अपने बच्चों को वह संस्कार नही दे पा रहा है जिसकी उन्हें जरूरत है। मुझे लगता है हम समाज के तौर पर फेल है क्योंकि हमारी ज़िम्मेदारी अपने बच्चों तक ही सीमित करके हमने समाज के विचार को खत्म कर दिया है। हम अपने पड़ोस के लोगो को नही पहचान पा रहे है क्योंकि दूसरे से हाल चाल पूछना भी दूसरे की ज़िंदगी मे दखल देना हो गया, उसी की वजह से हमारा समाज उसका फल भुगत रहा है। 

Thursday, 14 November 2019

Vashishtha Narayan Singh

सर्वप्रथम मैं बिहार के धुरंधर गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर श्रद्धांजलि प्रकट करता हूँ। 🙏 बिहार के धुरंधर गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह जी सिर्फ गणित के नही बिहार के साथ साथ पूरे गणित की दुनिया के लिए अमूल्य धरोहर थे। आज उनका इंतकाल पटना के पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में हुआ लेकिन इंतकाल के बाद भी उनके शव को गाँव तक ले जाने के लिए एक एम्बुलेंस मुहैया ना कराया जाना जहाँ PMCH के लिए शर्मनाक है साथ में बिहार की सरकार की संवेदनशीलता को भी कटघरे में खड़ा करती है। यह सरकारी विफलता की कहानी नही कहता है यह हमारे द्वारा चुनी गई सरकार एक सामान्य मनुष्य के प्रति कितनी संवेदनशील और व्यवहारिक है यह भी दर्शाता है। एक जनमानस होने के नाते ऐसी बातों का जवाब हमारे द्वारा चुनी हुई सरकारों से मांगा जाना चाहिए कि क्यों सरकार ऐसी किसी भी काम को पूरी संवेन्दनशीलता के साथ क्यो नही अपना फर्ज समझकर नही निभाती है। ऐसी वाक़यो पर सभी के द्वारा सरकारों से जवाब मांगा जाना चाहिए बिना किसी राजनीति के लेकिन राजनैतिक पार्टियां तो राजनैतिक पार्टियां ठहरी वे अगर राजनीति नही करेंगी तो कौन करेंगी। लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इतने बड़े गणितज्ञ का इंतकाल हुआ और किसी भी तथाकथित बड़े बड़े टीवी चैनल के बड़े बड़े एंकरो ने एक सहानुभूति के शब्द तक उजागर नही किये वे भला क्यों करेंगे उनकी टीआरपी तो तब बढ़ेगी जब वे आज उच्चतम न्यायालय के फैसले के लिए सरकार की पीठ ठोंकने में लगी हुई है। यह देश का दुर्भाग्य है कि हम वही देख रहे है जो हमे दिखाया जाता है हम अपने हिसाब से न्यूज़ चैनल पर छाए जाने वाले कंटेंट को प्रभावित नही कर पा रहे है। शायद आज भी हम सदियों पुराने जीवन को जी रहे है जिसपर किसी और का हक़ है और वही हमे पीछे से हांक रहा है। और हम उनके कहने से बढ़े जा रहे है। किसी भी क्षेत्र में हमे बताया जा रहा है कि हम क्या देखेंगे, हम क्या खाएंगे, कैसे रहेंगे हर बात पर सिर्फ चंद मुठ्ठी भर लोगो का चलता है और वही दुनिया भी चला रहे है। एक संवेदनशील व्यक्ति के होने के नाते अगर ऐसी बातें आपको प्रभावित नही करती है तो आप मानव नही हो सकते हाँ आप एक रोबोट जरूर हो सकते है क्योंकि आपके अंदर कोई संवेदना नही है। यह हमेशा याद रखिये जिस मुल्क में शिक्षा और शिक्षाविदों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है वह मुल्क कभी अपने आवाम के हक़ और हुकूक की बात नहीं कर सकता है। 😢 धन्यवाद शशि धर कुमार

Monday, 4 November 2019

इच्छा शक्ति से उत्कर्ष


मानसिक विकास से मेरा तात्पर्य उन असाधारण शक्तियों से है जो कभी कभी किसी मानव विशेष में उदय होकर उसके जीवन को विश्व के रंगमंच पर चमका दिया करती हैं। लोग देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उनकी समझ में भी नहीं आता कि उन्हीं से समान योग्यता रखने वाला एक साधारण व्यक्ति कैसे इस स्थिति तक पहुँच गया? उदाहरण के लिए हिटलर को ही ले लीजिये। एक साधारण स्थिति के निर्धन व्यक्ति का लड़का था। परिस्थितियाँ भी कोई विशेष अनुकूल न थीं फिर भी उसने अपने पराक्रम के बल पर एक बार संसार की ईंट-से-ईंट बजा दी । यूरोपीय ही क्यों प्रायः सभी छोटे बड़े देश इस हलचल में डगमगाने लगे थे। किसी को स्वप्न में भी विश्वास न था कि पददलित जर्मन राष्ट्र का एक व्यक्ति इस प्रकार एक भीषण ज्वालामुखी का रूप धारण कर विश्व के कोने कोने में आग उगलने लगेगा।

स्वयं अपने देश के इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएँ देखने को मिल सकती हैं। महाभारत में एकलव्य का चरित्र उल्लेखनीय है। एक साधारण भील के घर में जन्म लेकर उसने वाणविद्या में जो कौशल दिखलाया वह द्रोणाचार्य के हृदय को भी प्रभावित किये बिना न रह सका।

अब उपर्युक्त उदाहरणों में एकलव्य और हिटलर की महत्ता का क्या कारण हो सकता है। यदि कहा जाय “वंशपरम्परा” तो दोनों ही ऐसे साधारण परिवार में जन्मे थे जिनमें उत्पन्न व्यक्ति से कभी ऐसी आशा ही नहीं की जा सकती थी। शूद्र तो सामाजिक बन्धनों के अनुसार वाणविद्या के किसी प्रकार अधिकारी ही न थे। रहा वातावरण- वह भी इस प्रकार की महान विभूतियों को जन्म देने के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। कितने ही उसी श्रेणी के व्यक्ति उसी वातावरण में पलकर भी उनका अंशमात्र भी न हो सके। तब हमें मानना पड़ेगा कि इन दो के अतिरिक्त कोई और भी शक्ति है जो व्यक्ति के जीवन के निर्माण में सहायक होकर उसे सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ा सकती है।

इस पर अधिक प्रकाश डालने के लिए हम एकलव्य का ही जीवन लेते हैं। व्यक्ति की महत् की ओर बढ़ने की इच्छा स्वाभाविक होती है। कुछ अनायास ही स्वनिश्चित महत्तम लक्ष्य की ओर खिसके चले जाते हैं। कुछ अपने को असमर्थ मानकर उधर देखते भी नहीं और कुछ मार्ग की कठिनाइयों से हार मानकर बैठ रहते हैं। इनमें से प्रथम की सफलता तो अनिवार्य ही है और शेष सभी की यदि असम्भव कहा जाय तो कुछ अनुचित न होगा। कुरु और पाण्डु के पुत्रों को वाणविद्या का अभ्यास करते हुए देखकर वह भी उसी लालसा से प्रेरित हो उनके गुरु द्रोणाचार्य के पास जाता है शूद्रकुलोत्पन्न होने के कारण वह इसका अधिकारी नहीं समझा जाता। द्रोणाचार्य के इस अभिप्राय को जानकर वह अपना सा मुँह लेकर रह जाता है। पर उसकी वह लालसा इतनी तीव्र थी कि वह उसका दमन न कर सका। गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाकर वह एकान्त में जा वाणविद्या का अभ्यास करने लगा। उसका कौशल बढ़ते बढ़ते यहाँ तक जा पहुँचा कि पाण्डुनन्दन उसके समाने अपने को तुच्छ समझने लगे। गुरु अध्यक्षता में निरन्तर अभ्यास करते हुए भी वे अपने को इतना समर्थ न बना सके । इसका क्या कारण था

? एकलव्य में कोई तो बात ऐसी अवश्य थी जो पाण्डुनन्दनों में न थी। इसे जानने के लिए हमें कोई विशेष परिश्रम करने की आवश्यकता न पड़ेगी। थोड़ा ही ध्यान देते ही हम देखेंगे कि एकलव्य जो चीज लेकर गुरु के पास गया था वह थी उसकी इच्छा । इच्छा के अतिरिक्त कोई भी दूसरी सुविधा उसके पास न थी। ‘इच्छा’ भी कोई साधारण इच्छा नहीं, जो जरा सी ठेस लगते ही अन्तरमुखी होकर सदा के लिए विलीन हो जाती, प्रत्युत वह तो उसका वह दुर्दमनीय रूप लेकर गया जो अपने प्रभाव से व्यक्ति को उसके स्वाभाविक पथ से हटाकर विशिष्ट की ओर ले जाती है। वह विवश हो जाता है। एकलव्य के जीवन में यह उसकी इसी ‘इच्छा’ शक्ति का प्रभाव था जो वह उन्नति के उस उच्चस्तर तक पहुँच सका। अपनी इसी शक्ति के बल पर उसने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। यही बात हम हिटलर के भी जीवन में पाते हैं। नेपोलियन के जीवन में भी यही बात थी और यदि कहा जाय कि संसार के प्रत्येक महापुरुष के जीवन में यही बात पायी जाती है तो अनुचित न होगा।

अब स्वाभाविक प्रश्न यह होता है कि यह शक्ति प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाती है या किसी किसी में? यदि प्रत्येक में पाई जाती है तो सभी में उसका उदय क्यों नहीं होता और यदि किसी किसी में तो उन विशेष व्यक्तियों को ही क्यों प्रकृति की यह सुविधा प्राप्त होती है?

मनोविज्ञान हमें बतलाता है कि हमारी सभी प्रवृत्तियाँ जन्म जात होती हैं। अनुकूल वातावरण पाकर कोई भी प्रवृत्ति जाग्रत हो सकती है। इस सिद्धान्त के अनुसार कोई नवीन प्रवृत्ति भले ही न उदय हो सके पर जाग्रत प्रवृत्ति को ‘इच्छाशक्ति’ के आधार पर किसी ओर भी मोड़ा जा सकता है। यह हम पहले ही कह आये हैं कि व्यक्ति की महत् की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है, इसी को यदि प्रबल इच्छा शक्ति का सहारा मिल जाय तो व्यक्ति किसी भी कार्य को करने में समर्थ हो सकता है। धीरे-2 परिवर्तित होते हुए उसकी प्रवृत्ति दूसरा ही रूप धारण कर लेती है। अब प्रश्न इस क्रमिक परिवर्तन के साथ-साथ प्रत्यावर्तन का है। किस प्रकार व्यक्ति इस शक्ति को अर्जित कर अपने लक्ष्यभेद तक पहुँच सकता है? इसका उत्तर पाने के लिए हमें ‘इच्छा’ का विश्लेषण करते हुए आगे बढ़ना होगा।

किसी भी दूसरी ओर अपनी शक्ति का अपव्यय करने का अर्थ होगा लक्ष्य से उतनी ही दूर पड़ जाना। उतनी वह शक्ति भी यदि इसी ओर लगा दी जाती तो सम्भवतः उस मार्ग में और अधिक आगे बढ़ा जा सकता था। अतः लक्ष्य को स्थिर कर लेने की अनन्तर आवश्यकता है एकाग्र निष्ठा और अध्यवसाय की। इतने में ही सब कुछ नहीं समझ लेना चाहिये। इनके अतिरिक्त सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मविश्वास की। जब तक आपको स्वयं अपनी शक्तियों पर विश्वास नहीं आप सभी कुछ भी करने में सफल नहीं हो सकते। इसके बिना ‘इच्छाशक्ति’ की वृद्धि असंभव ही समझिये। आप निश्चित समझिये कि जिस कार्य को आपने हाथ में लिया है आप उसे करने में पूर्ण समर्थ हैं। कोई भी बाधा, कोई भी कठिनाई आपको रोक न सकेगी। उसके विपरीत यदि आप प्रारम्भ में ही भयान्वित हों आत्मविश्वास को खो बैठे तो ‘हार’ निश्चित समझिये। कोई भी शक्ति आपको सफल होने में सहायता नहीं दे सकती। इतना जान लेने के बाद हम इस परिणाम पर पहुँचते है कि हम उक्त मानवीय गुणों का सहारा लेकर अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा बड़े से बड़ा कार्य करने में समर्थ हो सकते हैं।

अतः हम अन्त में इस निश्चय पर पहुँचते हैं कि व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में ‘इच्छाशक्ति’ का भी बहुत बड़ा हाथ है। इसके आधार पर बड़े बड़े असंभव कार्यों को भी संभव कर दिखलाया जा सकता है और दिखलाया जा रहा है। इसी की न्यूनता और अधिकता पर जीवन की सफलता की न्यूनता और अधिकता अवलम्बित है। वंशानुक्रम और वातावरण की सारी कमियों को व्यक्ति ‘इच्छाशक्ति’ के द्वारा प्राप्त कर लक्ष्य भेद की ओर अग्रसर हो सकता है।

Saturday, 2 November 2019

Chhath Mahaparva

#छठपर्व मुझे व्यक्तिगत तौर पर बहुत पसंद है क्योंकि यह लोक आस्था का ही नही शुद्ध रूप से प्रकृति की महाउपासना का सबसे बड़ा महापर्व है जिसमें पूरी प्रकृति को सम्मिलित किया जाता है बिना किसी छलावे को सम्मिलित किये हुए।

यह एक ऐसा पर्व है आप इसमें अपने अहं को शामिल नही कर सकते है चाहे आप धन के किसी भी समुदाय से आते हो आप इस पर्व को करने में सक्षम है अगर नही है तो भी आप सहायता लेकर सकते है लोग करते भी है। 

यह एक ऐसा पर्व है जिसकी तैयारी पहले से नही कर सकते है क्योंकि इसमें आप कोई भी वस्तु उपयोग में नही ले सकते है जो सीधे प्रकृति प्रदत्त नही हो। जैसे खरना के प्रसाद खीर में किसी तरह का ड्राई फ्रूट्स का उपयोग नही होना। इस पर्व में प्रकृति प्रदत्त समय या ऋतु के अनुसार पाए जाने वाले वस्तुओं का सुप में प्रकृति का सबसे बड़ा आयाम सूर्य को उपासना के रूप में आह्वान करना ही इसकी महत्ता को साबित करता है। जैसे कच्चा अदरक या कच्चा हल्दी पत्तो वाला ऐसे कई वस्तु जो प्रकृति प्रदत्त है और ऋतु के अनुसार उपलब्ध होता है उसका भी सुप में उपयोग यह दर्शाता है कि हर एक वस्तु जो प्रकृति ने हमे उपलब्ध कराया है उसकी उपासना का समय है। उगते सूर्य को तो सभी समुदाय में पूजा जाता है लेकिन ढलते सूरज की उपासना यह दर्शाता है हम उस सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी कृतज्ञता दर्शाते हैं कि आप दिन भी हमारे लिए जले है और असंख्य जीवों को जीवन प्रदान किया है उसके लिए हम आपका आभार व्यक्त करते है।

एक बार फिर से सभी व्रतियों को प्रकृति की महाउपासना की शुभकामना और आशा है  आप सभी पूरे विश्व के मानव समुदाय के कल्याण की प्रार्थना कर हम सभी को अनुगृहीत करेंगे।

Friday, 25 October 2019

My Point on October 2019 Assembly Election

हरियाणा और महासष्ट्र विधान सभा चुनावों आम आदमी का विचार 

अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में आये हरियाणा और महाराष्ट्र के विधान सभा चुनावों के साथ साथ बांकी राज्यों में उपचुनावों  के नतीजे के बाद एक आदमी क्या सोचता है वो मैं साझा करना चाहता हूँ:
१) आम लोगो को उनके हक़ से दूर नहीं रख सकते है और ना ही उन्हें नजर अंदाज कर सकते है।
२) भारत एक प्रजातंत्र है वोटर चेक एंड बैलेंस को हमेशा ध्यान में रखती है।
३) आपके काम को लेकर दावे और जमीन पर काम का चेहरा दोनों में फर्क होता है।
४) कितना भी राजनीती कर ले जातिगत राजनीती हावी हो ही जाता है।
५) कितना भी साफ़ सुथरा और मुद्दों की राजनीती करने की बात करते रहे आखिर में सरकार बनाने के लिए दागियो का दामन थामना राजनीती के दुसरे पहलु को भी दर्शाता है।
६) ख्याली पुलाव के बजाय धरती पर काम करना होगा। इस नतीजे को चेतावनी के तौर पर देख सकते है आप  कितना भी ढोल पीटे, लोग क्या सोचते है यह मायने रखता है और अगर अब भी नहीं चेते तो कल आपकी जगह कोई और आएगा।
७) विपक्ष को नकारा बनाने वालो के लिए सन्देश है की वोटर खुद विपक्ष बनाने पर लगे हुआ चाहे कोई भी पार्टी कितना भी नकारा क्यों ना हो उसको भी मुंगेरी लाल के हसीं सपने देखने पर मजबूर कर सकती है। इसका मतलब साफ़ है जो दुसरे की हार पर अपनी जीत का झंडा फहराना चाहते है उनको भी कहा कि आप विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम रहे है।
८) एक और सन्देश भी साफ़ है उन मीडिया हाउस के लिए, जो चीख चीखकर एक ही तरफ ढोल पीटने में लगे हुए थे। ढोल कितना भी अच्छा क्यों ना हो दोनों तरफ पीटना पड़ता है ताकि मधुर ध्वनि के साथ साथ ढोल भी फटने से बचा जाय।      
९) छोटी क्षेत्रीय पार्टियाँ अपने अपने पार्टी के अन्दर पुरे भारत में सबसे अच्छे लोकतंत्र वाली पार्टियाँ भी व्यक्ति केन्द्रित ही होता है।
१०) अगर त्रिशुंक विधानसभा हो तो हर एक निर्दलीय विधायक के लिए हर दिन धनतेरस वाली फीलिंग लाती है। 

धन्यवाद!

Friday, 4 October 2019

सर्वांगीण उन्नति की ओर...

अनावश्यक, अनुपयोगी, अवाँछनीय, आवश्यकताओं को लोग बढ़ाते जा रहे हैं। इन बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है। अधिक धन कमाने के लिए अधिक परिश्रम, अधिक चिन्ता और अधिक अनीति बरतनी पड़ती है। ईमानदारी और उचित मार्ग से मनुष्य एक सीमित मर्यादा में पैसा कमा सकता है। उससे इतना ही हो सकता है कि जीवन का साधारण क्रम यथावत् चल सके। अन्न, वस्त्र, घर, शिक्षा, आतिथ्य आदि की आवश्यकताओं भर के लिए आसानी से कमाया जा सकता है, पर इन बढ़ी हुई अनन्त आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे हो?

हमने अनावश्यक जरूरतों को अन्धाधुन्ध बढ़ा लिया है। फैशन के नाम पर अनेकों विलासिता की चीजें खरीदी जाती हैं इंग्लैण्ड के ठंडे प्रदेश में जिन चीजों की जरूरत पड़ती थी वे फैशन के नाम पर हमारे गर्म देश में भी व्यवहृत होती हैं। सादा के स्थान पर भड़कदार, कम मूल्य वाली के स्थान पर अधिक मूल्य वाली खरीदना आज एक बड़प्पन का चिह्न समझा जाता है। शारीरिक श्रम करके पैसे बचा लेना असभ्यता का चिह्न समझा जाता है। इस प्रकार आकर्षक वस्तुओं की तड़क भड़क की ओर आकर्षित होने के कारण अधिक पैसे कमाने की जरूरत पड़ती है।

विवाह शादियों में, मृतभोजों तथा अन्य उत्सवों पर अनावश्यक खर्च किये जाते हैं। अपने को अमीर साबित करने के लिए फिजूल खर्ची का आश्रय लिया जाता है। जो जितनी बेपरवाही से जितना अधिक पैसा खर्च कर सकता है वह उतना ही बड़ा अमीर समझा जाता है। विवाह शादी के समय ऐसी बेरहमी के साथ पैसा लुटाया जाता है जिससे अनेकों व्यक्ति सदा के लिए कर्जदार ओर दीन हीन बन जाते हैं। जिनके पास लुटाने को, दहेज देने को धन नहीं उनकी सन्तान का उचित विवाह होना कठिन हो जाता है। समाज में वे ही प्रतिष्ठित और बड़े समझे जाते हैं, जिनके पास अधिक धन है।

आज के मनुष्य का दृष्टि कोण अर्थप्रधान हो गया है। उसे सर्वोपरि वस्तु धन प्रतीत होता है और उसे कमाने के लिए बेतरह चिपटा हुआ है। इस मृग तृष्णा में सफलता सबको नहीं मिल सकती। जो अधिक सक्षम, क्रिया कुशल, अवसरवादी एवं उचित अनुचित का भेद न करने वाले होते हैं वे ही चन्द लोग बाजी मार ले जाते हैं। शेष को जी तोड़ प्रयत्न करते हुए भी असफल ही रहना पड़ता है। कारण यह है कि परमात्मा ने धन उतनी मात्रा में पैदा किया है जिससे समान रूप से सबकी साधारण आवश्यकताएं पूरी हो सकें। छीना झपटी में कुछ आदमी अधिक ले भागें तो शेष को अभावग्रस्त रहना पड़ेगा। उनमें से कुछ के पास कामचलाऊ चीजें होंगी तो कुछ बहुत दीन दरिद्र रहेंगे। यह हो नहीं सकता कि सब लोग अमीर बन जावें।

आज गरीब भिखमंगे से लेकर, लक्षाधीश धन कुबेर तक, ब्रह्मचारी से लेकर संन्यासी तक लोगों की वृत्तियाँ धन संचय की ओर लगी हुई हैं। जब कोई एक उद्देश्य, प्रधान हो जाता है तो और सब बातें गौण हो जाती हैं। आज जन साधारण का मस्तिष्क, देश, जाति, धर्म, सेवा, स्वास्थ्य, कला, संगीत, साहित्य, संगठन, सुरक्षा, सुसन्तति, मैत्री, यात्रा, मनोरंजन आदि की ओर से हट गया है और धन की तृष्णा में लगा हुआ है। इतना होने पर भी धनवान तो कोई विरला ही बन पाता है पर इन, जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकताओं से सबको वंचित रहना पड़ता है।

अब से पचास चालीस वर्ष पहले के समय पर हम दृष्टिपात करते है तो मालूम पड़ता है कि उस समय लोगों की दिनचर्या में धन कमाने के लिए जितना स्थान रहता था-उससे अधिक समय वे अन्यान्य बातों में खर्च किया करते थे। मनोरंजन खेल, संगीत, रामायण पढ़ना, किस्से कहानियाँ, पंचायतें, पैदल तीर्थ यात्राएं, सत्संग, परोपकार आदि के बहुत कार्यक्रम रहते थे। बालकों का बचपन-खेलकूद और स्वतंत्रता की एक मधुर स्मृति के रूप में उन्हें जीवन भर याद रहता था। पर आज तो विचित्र दशा है। छोटे बालक, प्रकृति माता की गोदी में खेलने से वंचित करके स्कूलों के जेलखाने में इस आशा से बन्द कर दिये जाते हैं कि बड़े होने पर वे नौकरी चाकरी करके कुछ अधिक धन कमा सकेंगे। लोग इन सब कामों की ओर से सामाजिक सहचर्य की दिशा से मुँह मोड़ कर बड़े रूखे, नीरस, स्वार्थी, एकाकी, वेमुरब्बत होते जाते हैं। जिसे देखो वही कहता है-“मुझे फुरसत नहीं?” भला इतने समय में करते क्या हो? शब्दों के हेर फेर से एक ही उत्तर मिलेगा-धन कमाने की योजना में लगा हुआ हूँ।

इस लाभ प्रधान मनोवृत्ति ने हमारा कितना सत्यानाश किया है इसकी ओर आँख उठाकर देखने की किसी को फुरसत नहीं। स्वास्थ्य चौपट हो रहे हैं, बीमारियाँ घर करती जा रही हैं,आयु घटती जा रही है, इन्द्रियाँ समय से पहले जवाब दे जाती हैं, चिन्ता हर वक्त सिर पर सवार रहती है, रात को पूरी नींद नहीं आती, चित्त अशान्त रहता है, कोई सच्चा मित्र नहीं जिसके आगे हृदय खोल कर रख सकें, चापलूस, खुदगर्ज, लुटेरे और बदमाश दोस्तों का भेष बना कर चारों ओर मंडराते हैं, स्त्री पुरुषों में एक दूसरे के प्रति प्राण देने की आत्मीयता नहीं, सन्तान की शिक्षा दीक्षा का कोई ठिकाना नहीं, अयोग्य लोगों के सहचर्य से उनकी आदतें बिगड़ती जा रही हैं। परिवार में मनोमालिन्य रहता है। मस्तिष्क में नाना प्रकार के भ्रम, जंजाल, अज्ञान अन्धविश्वास घुसे हुए हैं, चित्त में अहंकार, अनुदारता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, असंयम का डेरा पड़ा हुआ है, समाज से श्रद्धा सहयोग और सहानुभूति की प्राण वायु नहीं मिलती, मनोरंजन के बिना हृदय की कली मुर्झा गई है। धर्म, त्याग, सेवा, परोपकार, सत्संग, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान के बिना आत्मा मुरझाई हुई पड़ी है। इस प्रकार जीवन की सभी दिशाएं अस्त व्यस्त हो जाती हैं, चारों ओर भयंकर आरण्य में निशाचर विचरण करते दिखाई पड़ते हैं। हर मार्ग में कूड़ा करकट झाड़ झंखाड़ पड़े दीखते हैं। कारण स्पष्ट है-मनुष्य ने धन की दिशा में इतनी प्रवृत्ति बढ़ाई है कि केवल उसी का उसे ध्यान रहा है और शेष सब ओर से उसने चित्त हटा लिया है। जिस दिशा में प्रयत्न न हो, रुचि न हो, आकाँक्षा न हो, उस दिशा में प्रतिकूल परिस्थितियों का ही विनिर्मित होना संभव है। उत्तम तो वही क्षेत्र बनता है जिस ओर मनुष्य श्रम और रुचि का आयोजन करता है।

अब से थोड़े समय पूर्व लोगों के पास अधिक धन न होता था, वे साधारण रीति से गुजारा करते थे, पर उनका जीवन सर्वांगीण सुख से परिपूर्ण होता था। वे थोड़ा धन कमाते थे पर एक एक पाई को उपयोगी कार्यों में खर्च करके उससे पूरा लाभ उठाते थे। आज अपेक्षाकृत अधिक धन कमाया जाता है पर उसे इस प्रकार खर्च किया जाता है कि उससे अनेकों शारीरिक एवं मानसिक दोष दुर्गुण उपज पड़ते हैं और क्लेश कलह की अभिवृद्धि होती है। सुख की उन्नति की आशा से-सब कुछ दाव पर लगाकर आज मनुष्य धन कमाने की दिशा में बढ़ रहा है पर उसे दुख और अवनति ही हाथ लगती है।

गृहस्थ संचालन के लिए धन कमाना आवश्यक है, इसके लिए शक्ति अनुसार सभी प्रयत्न करते हैं और करना भी चाहिए। क्योंकि भोजन, वस्त्र, गृह, शिक्षा, आतिथ्य, आपत्ति आदि के लिए धन आवश्यक है। पर जितनी वास्तविक आवश्यकता है उसे तो परिवार के सदस्य मिल जुल कर आसानी से कमा सकते है। दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं-हाय हाय तो मनुष्य धनवान बनने के लिए किया करता है। इस परिग्रह वृत्ति ने हमारे जीवन को एकाँगी, विशृंखलित एवं जर्जरीभूत कर दिया है। रोटी को हम नहीं खाते, रोटी हमें खाये जा रही है।

हमारा व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन बुरी दशा में है। उसमें अगणित दोषों का समावेश हो गया है। इसे सुधारने और संभलने के लिए हमारी अधिक से अधिक शक्तियाँ लगने की आवश्यकता है, यदि इस ओर ध्यान न दिया गया तो हम सब निकट भविष्य में ऐसे गहरे गड्ढे में गिरेंगे कि उठना कठिन हो जायगा। चारों ओर से विपत्ति के बादल आ रहे है, यदि आत्म रक्षा का प्रयत्न न किया गया तो यह धन, जिसकी तृष्णा से सिर उठाने के लिए फुरसत नहीं, यही एक भारी विपत्ति बन जायगा।

खुदगर्जियों को छोड़िये, “अपने मतलब से मतलब” रखने की नीति से मुँह मोड़िए, धनी बनने की नहीं-महान् बनने की महत्वाकाँक्षाएं कीजिए, आवश्यकताएं घटाइए, जोड़ने के लिए नहीं जरूरत पूरी करने के लिए कमाइए, शेष समय और शक्ति को सर्वांगीण उन्नति के पथ पर लगने दीजिए। संचय का भौतिक आदर्श-परिश्रमी सभ्यता का है, भारतीय आदर्श त्याग प्रधान है, इसमें अपरिग्रह का महत्व है, जो जितना संयमी है, जितना संतोषी है वह उतना ही महान बताया गया है। क्योंकि जो निजी आवश्यकताओं से शक्ति को बचा लेगा वही तो परमार्थ में लगा सकेगा। हम मानते हैं कि जीवन विकास के लिए पर्याप्त साधन सामग्री मनुष्य के पास होनी चाहिए। पर वह तो योग्यता और शक्ति की वृद्धि के साथ साथ प्राप्त होती है। आज लोग योग्यताओं को, शक्तियों को बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न नहीं करते वरन् जो कुछ लंगड़ी लूली शक्ति है उसको धन की मृगतृष्णा पर स्वाहा किये दे रहे हैं। नगण्य, लंगड़ी लूली शक्तियों से अधिक धन कमाया जाना असंभव है। ऐसे लोगों के लिए तो बेईमानी ही अधिक धन कमाने का एक मात्र साधन होता है।

आइए, मनुष्य जीवन का वास्तविक आनन्द उठाने की दिशा में प्रगति करें। धन लालसा के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठें, अपनी आवश्यकताओं को कम करें और जो शक्ति बचे उसे शारीरिक, सामाजिक एवं आत्मिक सम्पदाओं की वृद्धि में लगावें, उस के द्वारा ही सर्वांगीण सुख शान्ति का आस्वादन किया जा सकेगा।

Monday, 9 September 2019

Chandryaan-2

चन्द्रयान-2 मिशन के विक्रम लैंडर का चंद्रमा के सतह से 2.1 किमी पहले संपर्क क्या टूटा हमारे ही देश के कुछ राजनैतिक पार्टी के लोग, कुछ तथाकथित पत्रकार, कुछ तथाकथित समाजसेवी इस बात का जश्न मनाने में लग गए। जबकि सबको जिसने भी इस मिशन के बारे में जाना सबको पता था कि ऑर्बिटर जो इस मिशन का 95% हिस्सा है सफलतापूर्वक अपने कक्षा में स्थापित हो गया है और यह अगले एक साल तक अपना काम करेगा और अगर इसरो प्रमुख की बात माने तो इसके पास 7 साल तक कि ऊर्जा है जो इसको चलायमान रखेगा लेकिन जिसको असफलता ढूँढना है वो वही ढूंढेंगे। मुझे आजतक समझ नही आया कि ऐसा आपके अंदर क्या होता है कि आप देश से पहले अपने स्वार्थों को ऊपर रखते है अपने विरोध को सर्वोपरि रख पाते है। ऐसा क्या है कि हमारे देश के भीतर ही ऐसा लगता है एक दूसरा देश रहता है जो हमारी असफलताओं पर जश्न मनाता है, खुश होता है। क्या ऐसे लोगो से नही पूछा जाना चाहिए कि आप कैसे अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु पर उन्हें गाली देते हैं, अपने ही प्रधानमंत्री की मृत्यु के लिए ट्विटर पर ऊपर वाले से कामना करते हुए नजर आते हैं, क्रिकेट मैच में पाकिस्तान से भारत की हार पर पटाखे छोड़ते हुए नजर आते हैं। क्या यही वे लोग नही है जो पुलवामा जैसी नृशंस घटना पर भी जश्न मनाते नजर आते हैं तो क्यो ना आपको देशद्रोही कहा जाय ऐसा कौन से देश का देशवासी है जो अपने ही देश के सेना के बलिदान पर जश्न मनाता हो। हमारा दुर्भाग्य यह है कि हम इन्हें पहचान तो रहे है लेकिन नही पहचानने का नाटक कर रहे है या ऐसे ही किसी नकली विदेशी नशे की लत में हम इसे देख नही पा रहे है या फिर शायद देखना नही चाहते है। मैंने पहले भी कहा है विरोध सिर्फ विरोध करने के लिए सही नही हो सकता है अगर किसी भी काम मे दिक्कत है तो उसके बारे में चर्चा या बहस किया जा सकता है लेकिन अंध विरोध सही नही लगता।

लेकिन क्या चंद्रयान-2 वाकई में फेल हुआ है? शायद नही क्योंकि चंद्रमा के जिस ध्रुव के बारे किसी भी देश ने हिम्मत नही दिखाई उस छोर पर चंद्रयान भेजने का जज्बा ही उसको कामयाब बनाता है। लेकिन अगर आप कहे तकनीकी तौर पर तो भी उसे पास ही बताएंगे क्योंकि ऑर्बिटर के अपने कक्षा में सही सलामत स्थापित होने पर इसरो 95% सफल है। जबकि 8 सितंबर को ही इसरो प्रमुख ने कहा कि विक्रम लैंडर का पता लगा लिया गया है और उससे संपर्क स्थापित करने की कोशिश की जाएगी।

सोहन लाल द्विवेदी के शब्दों में:
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

तो जो करने से डरेंगे वे कुछ नही कर पाएंगे जिनको कुछ करना है वे चुप भी नही बैठेंगे। जो करेंगे नही उन्हें पता कैसे चलेगा कि असफलता किस चिड़िया का नाम है और जो करेंगे वे उसी असफलता में सफलता का मंत्र ढूंढेंगे। आज चंद्रमा की धरती पर हम नही जा पाए लेकिन आज ना कल तो हम वही होंगे जब भी होंगे तब वहाँ लैंड करने वाले उसी विक्रम लैंडर को वहाँ पाने के बाद गौरवान्वित होंगे।

चन्द्रमा का क्या है, मामा है हमारे आज ना कल हम पहुंचेंगे ही कौन सा मामा अपने भांजे भांजियों से और कितना दूर रह सकता है। प्रख्यात कवि कुमार विश्वास के शब्दों में "हमारे महारथी आकाश का गूढ़ चक्र जल्दी ही भेदेंगें ! वादा चंदा मामा, जल्दी वापस आएँगे भाँजे-भाँजियां"।

हमारी यह असफलता क्षणिक है। विज्ञान में असफलता बहुत कुछ सीखा जाती है क्योंकि वहाँ असफलता का कारण पूछने का जज्बा होता है जो आपको लगातार संघर्ष करते रहने को प्रेरित करता है कि आप जबतक उस शिखर तक नही पहुंचते तबतक आप चुपचाप नही बैठ सकते है। यह कोई क्रिकेट नही, हॉकी है जहाँ लगातार गेंद के साथ चलने वाला ही 90 मिनट के अथक प्रयास से जीत हासिल करता है। अभी तो शुरुआत है आगे आगे देखो होता है क्या। तो ऐसी छोटी मोटी असफलताओं पर जश्न मनाने वालों ऐसे ही जलते रहो और देश तुम्हे जलाने में कोई कोर कसर नही छोड़ने वाला है। देश का बच्चा बच्चा इस बात का गवाह है हमने पहले भी जयचंदो को झेला है आगे भी झेल जाएंगे।

आखिर में भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री के शब्दों को दोहराना चाहूँगा "सरकारें आएगी जाएगी सत्ता आती है जाती है मगर यह देश अजर अमर रहने वाला है आओ मिलकर इस देश के लिए काम करें"।

धन्यवाद।
जय इसरो। जय भारत।

Tuesday, 3 September 2019

Importance of Motivation


Inspiration is the word gotten from the word 'thought process' which means needs, wants, needs or drives inside the people. It is the way toward invigorating individuals to activities to achieve the objectives. 



In the work objective setting the mental elements invigorating the individuals' conduct can be –
·        desire for money
·        success
·        recognition
·        job-satisfaction
·        team work, etc

One of the most significant elements of the board is to make readiness among the representatives to perform in the best of their capacities. Accordingly the job of a pioneer is to excite enthusiasm for execution of workers in their occupations. The procedure of inspiration comprises of three phases:-
·        A felt need or drive
·        An upgrade wherein needs must be stirred
·        At the point when necessities are fulfilled, the fulfillment or achievement of objectives.
Along these lines, we can say that inspiration is a mental wonder which means needs and needs of the people must be handled by surrounding a motivating force plan.

Inspiration is a significant for an association in view of the accompanying advantages it gives:
1. Puts human resources into action
Each worry requires physical, budgetary and HR to achieve the objectives. It is through inspiration that the HR can be used by utilizing it. This should be possible by structure readiness in representatives to work. This will help the endeavor in verifying most ideal use of assets.

2. Improves level of efficiency of employees
The degree of a subordinate or a worker does not just rely on his capabilities and capacities. For getting best of his work execution, the hole among capacity and eagerness must be filled which aides in improving the degree of execution of subordinates. This will result into-
a. Increase in profitability,
b. Reducing cost of tasks, and
c. Improving by and large proficiency.

3. Leads to achievement of organizational goals
The objectives of an endeavor can be accomplished just when the accompanying elements happen:-
a. There is most ideal use of assets,
b. There is a co-usable workplace,
c. The workers are objective coordinated and they act in a purpose way,
d. Goals can be accomplished if co-appointment and co-activity happens at the same time which can be adequately done through inspiration.

4. Builds friendly relationship
Inspiration is a significant factor which brings workers fulfillment. This should be possible by keeping into psyche and encircling a motivation plan to assist the representatives. This could start the accompanying things:
a. Monetary and non-financial motivators,
b. Promotion open doors for workers,
c. Disincentives for wasteful workers.
So as to manufacture a heartfelt, well-disposed climate in a worry, the above advances ought to be taken by a director. This would help in:
iv. Effective co-activity which brings strength,
v. Industrial contest and distress in representatives will lessen,
vi. The representatives will be versatile to the progressions and there will be no protection from the change,
vii. This will help in giving a smooth and sound worry in which individual interests will concur with the authoritative interests,
viii. This will bring about benefit boost through expanded profitability.

5. Leads to stability of work force
Dependability of workforce is significant from the perspective of notoriety and generosity of a worry. The representatives can stay faithful to the endeavor just when they have a sentiment of investment in the administration. The abilities and effectiveness of workers will consistently be of preferred position to representatives just as workers. This will prompt a decent open picture in the market which will pull in equipped and qualified individuals into a worry. As it is stated, "Old is gold" which gets the job done with the job of inspiration here, the more seasoned the individuals, more the experience and their alteration into a worry which can be of advantage to the endeavor.
From the above dialog, we can say that inspiration is an inward inclination which can be seen distinctly by director since he is in close contact with the workers. Needs, needs and wants are between related and they are the main impetus to act. These requirements can be comprehended by the chief and he can outline inspiration designs as needs be. We can say that inspiration in this manner is a ceaseless procedure since inspiration procedure depends on requirements which are boundless. The procedure must be proceeded all through.
We can condense by saying that inspiration is significant both to an individual and a business. Inspiration is essential to a person as:
1. Motivation will enable him to accomplish his own objectives.
2. If an individual is persuaded, he will have work fulfillment.
3. Motivation will help in self-improvement of person.
4. An individual would consistently pick up by working with a dynamic group.
So also, inspiration is imperative to a business as:
1. The progressively propelled the workers are, the more enabled the group is.
2. The more is the collaboration and individual representative commitment, increasingly productive and effective is the business.
3. During time of corrections, there will be greater flexibility and inventiveness.
4. Motivation will prompt an idealistic and testing frame of mind at work spot.

Friday, 9 August 2019

I am Kashmir....

मैं जम्मू और कश्मीर हूँ कुछ लोग मुझे दुनिया का स्वर्ग कहते है तो कुछ मानवता का दोजख कहते है लेकिन मेरी खूबसूरती को देखना हो तो मुझे नजदीक से देखना पड़ेगा। वैसे मेरे अन्दर तीन अलग अलग प्रक्षेत्र है और तीनो प्रक्षेत्रो में अलग अलग समुदाय बहुतायत में है जैसे लद्दाख में बोद्ध है तो कश्मीर में इस्लाम को मानने वाले बहुतायत में, तो जम्मू क्षेत्र में हिन्दुओ का बोलबाला है। पिछले ७० सालों से मुझे भारतीय गणराज्य द्वारा प्रदत्त धारा ३७० जो मुझे भारतीय गणराज्य में रहते हुए भी मुझे स्वायतता प्रदान किये हुए था उसे भारतीय संसद द्वारा मानसून सत्र २०१९ में प्रस्ताव पारित कर हटा दिया गया। जहां पूरे देश में इसे एक त्योहार की तरह देखा जा रहा है वहीं कोई कहता है कश्मीर/घाटी के लोगो को बात नहीं सुनी। कुछ कश्मीरी हिन्दू के लिए ये बहुत संवेदना से भरा हुआ एक जीता-जागता सपना पूरे होने जैसा है। पर कुछ कश्मीरी हिन्दुओ के अन्दर अब भी अंदर की टीस जैसे कहीं अटक-सी गई लगती है जैसे ऐसा लगता है कुछ है जो अब भी चुभ सा रहा है। शायद यह कि इस समय उन्हें वहां उनके अपने कश्मीर में होना चाहिए था। उन्हें उनके अपनों की राख में झुलसती वह १९८९ का मंजर याद आ रही है जो कश्मीर में उस समय चल रहे बुरे हालात को रोकने के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे।

कुछ मुख्य पार्टी के नेताओ के घड़ियाली आंसू इस बात का सुबूत बन गए कि इतिहास को जाहिल बनाने में इनके जैसे नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं आज भी इस असमंजस में हूं कि भारत के इतिहास में हुए विभाजन और कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन की जवाबदेही किसकी है? अपनी कुर्सी सेंकने वाले पत्रकारों की,या वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं की, या स्वार्थ की चादर बिछाकर सोने वाले कुछ मतलबी कश्मीरियों की, या जिन्होंने  27 साल से अन्धकार के चादर की तरह छाये आतंकवाद के मुद्दे पर कभी प्रश्न नहीं उठाया? इसीलिए आज दुख होता है कि मेरी क्या गलती जो मुझे सजा भुगतनी पड़ी।

मैंने सब कुछ देर से समझा और जाना। गुस्सा था चिढ़ थी कि अपने ही मंदिर/मस्जिद में अपने ही लोगो के खिलाफ लोगो की साजिस के तहत अपने ही लोगो की बली दी। मुझे गुस्सा आता है कि अपने कश्मीर में ही जब मुझे पत्थर मारा गया तो मेरी चीख क्यों नहीं निकली? कितना छोटा और लाचार बना दिया गया मुझे। मेरी तड़प और मेरी चीख पर हथौड़ा मारा गया, क्योंकि मैंने कश्मीर को संजोए रखने का प्रयास किया। आखिर क्यों, मेरी क्या गलती थी?

जो भी धारा ३७० को वापस लाने के लिए इतने आतुर हैं क्या वे इसका अर्थ भी समझते है या कुछ लोगो के बहकावे में आकर सिर्फ बोलना चाहते है या वे सिर्फ कश्मीर पर राज करना चाहते हैं। वे कश्मीर से इश्क़ नहीं करते, वो इश्क वो जूनून तो हमारे ही अंदर है जो सिर्फ कश्मीर में नहीं लददाख या जम्मू प्रक्षेत्र के लोगो के आँखों में झांककर देखना पड़ेगा की क्या वे भी वही चाहते है जो घाटी के 2-४ जिलो के लोग चाहते है। शायद नहीं क्योंकि धारा ३७० हटने के बाद तो लद्दाख प्रक्षेत्र में जश्न का माहौल है वही जम्मू के लोग खुश है की वे भी अब विकास की राह में सौतेलापन नहीं झेलेंगे।

मुझे किसी से नफरत नहीं है पर ऐसा लगता है मैं वह कश्मीर नहीं जो आजादी के पहले थी। क्या कोई मुझे वही कश्मीर लौटा पायेगा? क्या कोई मेरे मुरझाए चिनार पर पानी की छींटे छिड़केगा?  मैं सरकार के इस फैसले के समर्थन में हूं क्योंकि मुझे पता है मेरे बच्चो को शिक्षा का अधिकार नहीं, मुझे साफ़ सफाई रखने वालो को वो हक नहीं जो भारतीय गणराज्य के बांकी राज्यों में उन्हें उपलब्ध है, मेरे विकास की तस्वीर बनाने वालो के पास वो अधिकार  नहीं जिसके बल पर वे मुझे खुबसूरत और बांकी देशो के साथ जोड़े रखने में सहायक हो, जनता के चुने हुए रहनुमा होने के बाद भी कुछ क्षेत्रो में विकास की बयार नहीं बह पायी क्यों नहीं, बांकी राज्यों में जो कानून है वो यहाँ भी लागू होने में रोड़ा डालते है, क्यों यहाँ के बुजुर्गो पर वह नियम लागू नहीं जो बांकी राज्यों में लागू होता है, क्यों यहाँ की बेटियों के साथ बांकी राज्यों जैसा अधिकार नहीं है।

जहाँ ७० सालों से धारा ३७० के साथ जिया है अगले कुछ साल इसके बिना जीकर देखते है क्या पता जो रोज मेरे सीने पर मेरे किसी ना किसी अपने का खून बहता है वो बंद हो जाए तो मैं फिर से दुनिया का जन्नत हो जाउंगी। फिर से मेरे यहाँ लोग सैर सपाटे के लिए आएंगे लोग खुशहाल जीवन जियेंगे यही तो मैं चाहती हूँ। मैं ही कश्मीर हूँ।

Friday, 2 August 2019

कोशी की विभीषिका और सरकारी तंत्र

कोशी के बारे में बचपन में पढ़ा था कि "कोशी को बिहार का शोक" कहा जाता है लेकिन शायद बचपन में इसके मायने नही पता थे इसीलिए नही की तब कोशी में बाढ़ नही आती थी बल्कि इसीलिए की वह बाढ़ तबाही का मंजर आज जो लेकर आती है तब लेकर नहीं आती थी। आज हर वर्ष कोशी अपने साथ कुछ ऐसा मंजर लेकर आती है जिसे देखकर एक संवेदनशील व्यक्ति की रूह जरूर कांप जाती है। हर बार की भांति इस बार भी कोशी अपने पानी के तेज बहाव के साथ साथ कुछ रूह कँपाने वाली मंजर भी लायी जिससे पूरा मिथिलांचल और सीमांचल प्रभावित हुआ। लेकिन इस बार मधुबनी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित रहा जिसके कुछ चलचित्र/चित्र देखकर अंदर तक कंपन होने लगी। लेकिन लोग भी क्या करे यही उनका भविष्य है और कोशी माता का प्रकोप किसी ना किसी को तो झेलना पड़ेगा और हर बार यही सोचकर कि कोशी माता कुपित है और हम उन्हें मनाने में लगा जाते है और संयोग देखिये देर सवेर कोशी माता मान भी जाती है भले वे किसी का पूरा संसार अपने अंदर समा गई हो लेकिन जीवन इसी में खुश हो जाता है कि बांकी लोग सुरक्षित है।

बाढ़ की आपदा लाखों लोगों के घरों में तबाही  लेकर आता हैं हर साल लगभग एक से डेढ़ महीना तक लाखों लोगों का चीत्कार एवं वेदना से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल के लोग परेशान रहते हैं। फसलें तबाह हो जाती हैं, फूस और कच्चे मकानो के साथ पक्के मकानों को भी भारी क्षति होती है जो पानी के तेज बहाव के सामने आते है वैसे घर भी या तो पूर्णतः अस्तित्वहीन हो जाते है या दरक जाते हैं । इसी क्रम में बुजुर्गों और बच्चों की कई मौतें हो जाती हैं। कुछ एक तो पानी में बहकर कहाँ से कहाँ चले जातें हैं पता भी नही चलता, कहने का मतलब यह है कि हर ओर तबाही का मंजर दिखता है। गाँव की ज्यादातर आबादी तो गरीब और कच्चे मकानों में रहते है जो प्रतिदिन मजदूरी करते है तो उनके घर चूल्हा जलता है। ऐसे में इतने लंबे समय तक रहने वाली बाढ़ से निपटने के लिए उनके पास सरकारी अनाज दुकान का ही भरोसा होता है। ऐसे बाढ़ के समय वे भी सही से काम नही कर पाती है क्योंकि ना तो सड़क दिखता है और ना जाने कौन सी सड़क टूटी हुई हो। सरकारी नाव तो बामुश्किल मिलता है और मिलता भी है तो उसपर चढ़ने के लिए पैसे चाहिए। क्योंकि बाढ़ के समय तो हर किसी को अपना पेट भरना है।

नियमानुसार बाढ़ पीड़ितों के अनुदान के लिए सरकारी तौर पर सब कुछ नियम के किताबो पर लिखा होता है। ऐसे में सरकारी तंत्र इनसे निपटने की टोली बनाकर नाटकीय ढोंग करते हुए हमेशा दिखाई दे जाएंगे। कुछ अपवाद स्वरूप भी हो सकते है जो वाकई में दिल से काम करते है और जहाँ रहेंगे गरीबों के लिए ही काम करेंगे। 

बाढ़ आता है पहले खेत खलिहान डूबता है फिर सड़क, फिर दरवाजा, फिर आंगन, फिर घर भी डूबने लगता है जैसे जैसे घर के अंदर पानी बढ़ता जाता है वैसे वैसे जमा पूँजी धीरे धीरे डूबती रहती है। फिर लोग भागते हैं एक फेहरिस्त लिए सरकारी दरवाजो पर की एक किलो चूड़ा, थोड़ा गुड़, मोमबत्ती, माचिस, खिचड़ी और नाव के लिए। लेकिन समस्याओं के इतनी बड़ी सूची में आपदा के समय दी जाने वाली वस्तुओं की भाड़ी कमी गरीबों में अफ़रातफ़री का माहौल पैदा होता है।

यही है हर बार आने वाली कोशी की विभीषिका का प्रकोप और उससे निपटते लोगो की भागदौड़ के बीच सरकारी तंत्र और उसके अन्दर फलते फूलते राजनेता से लेकर मुखिया तक की कहानी।

Thursday, 18 July 2019

बिहार में बाढ़ की विपदा

ऐसा लगता है बिहार कभी भी नकारात्मक खबरों से बाहर ही नहीं आ पायेगा कभी चमकी बुखार से सेकड़ो मासूमों की मौत तो कभी मुजफ्फरपुर शेल्टर हाउस जैसा दर्दनाक वाक़या और अब बाढ़ की विभीषिका और अगर गहरे से सोचा जाय तो हर इस तरह की खबर सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की अकर्मण्यता और अक्षमता दर्शाती है अगर हम सही वक्त पर सही तरीके से तैयारी करे तो हम इस तरह की घटनाओं में होने वाली क्षति को कम जरुर कर सकते है।  

बिहार के उत्तरी हिस्सों और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बारिश शुरू होते ही कई नदियों का जलस्तर बढ़ना हर बार की तरह आम बात है। राज्य के कम से कम पंद्रह से सत्रह जिलों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इसी बीच राज्य के कई स्थानों पर रेल पटरी तथा सड़को पर पानी चढ़ जाने से रेल तथा सड़क यातायात बाधित हुआ है। राज्य में भारी बारिश कोसी और सीमांचल के क्षेत्रों में तबाही लेकर आई है। कोसी के जलस्तर में लगातार वृद्घि से कई क्षेत्रों में बाढ़ का पानी घुस गया है। नेपाल में वीरपुर बैराज और गंडक बैराज के आस पास के तराई इलाको में भारी वर्षा से लगातार जलस्तर बढ़ने से अनियंत्रित स्थिति से निपटने के लिए लगातार पानी छोड़ा जा रहा है जिसकी वजह से पुरे मिथिलांचल और सीमांचल में भयानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो गयी है।

बिहार के पश्चिम चंपारण में गंडक, मधुबनी जिले में कमला नदी, कटिहार में महानदी, पुर्णिया में सौरा नदी के जलस्तर के बढ़ने से नदी के आसपास रहने वालो के अलावे जो भी क्षेत्र इन नदियों से प्रभावित होती है सबके जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।

उत्तर बिहार की लगभग सभी नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही हैं। जान, माल, फसल, मवेशी का लगातार नुकसान हो रहा है। लोग त्राहिमाम कर रहे है जिनको जहाँ मौका मिल रहा है पलायन कर रहे है और ऐसा लगता है की लोग अब भाग्य भरोसे ही अपने आप को छोड़ रखा है क्योंकि ऐसी ही सामानांतर स्थिति २०१७ में भी हुई थी जब कोशी ने अपना बीभत्स रूप दिखाया था तब पुरे उत्तर बिहार में अरबो रुपैये की क्षति हुई थी। यह क्षति बार बार होगी और प्रशासन मुक्दार्शंक बनकर इस स्थिति को हर वर्ष इसी तरह देखकर आहे भरेगा और समय गुजर जाएगी फिर ढाक के तीन पात ना तो किसी को उस आखिरी व्यक्ति से मतलब है जिसने अपना एक एक तिनका तिनका जोड़कर अपना आशियाना बनाया और देखते देखते कोशी, महानदी, कमला, गंडक, सौरा ने अपने अन्दर समा लिया और बाढ़ जाते ही हर व्यक्ति का खुद से जद्दोजहद शुरू हो जाएगी घर संवारे, बच्चो को पढाए, खेती करे, बिटिया की शादी की चिंता करे। लेकिन यही बिहारी संस्कृति है रुकना नहीं, थकना नहीं, चलते जाना है। 

हर वर्ष बाढ़ राहत व बचाव, तटबंध निर्माण, पुनर्वास के नाम पर अरबों का खर्च ऐसा लगता है सारे अधिकारी इसी समय की प्रतीक्षा में हो को बाढ़ आये और कुछ कमाई हो जाय क्योकि आखिरी व्यक्ति तक तो राहत पहुँच नहीं पा रही है जहाँ पहुँच भी रही है वहां सिर्फ खानापूर्ति हो रहा है। प्रशासन अब प्रकृति को दोषी ठहराएगा और सरकार हवाई सर्वेक्षणों के भरोसे केंद्र सरकार के सामने हाथ फैलाएगी लेकिन जैसा गांधी जी ने कहा था कोई भी काम यह सोचकर करो की क्या तुम्हारा वह काम अंतिम व्यक्ति तक पहुंचेगा या नहीं। लेकिन कुछ खबरे भी आई की कुछ जगहों पर एक समुदाय विशेष के लोग चूहे पकड़ कर अपना पेट भरते है और गाँव से १ किमी की दुरी पर प्रखंड विकास पदाधिकारी तक यह खबर नहीं होती है। यह है प्रशासन, तो सवाल उठता है पटना में बैठे उच्च अधिकारी तक जो ३०० किमी दूर है वहां तक कैसे बात पहुंचेगी। ऐसा भी अखबारों में आया की कुछ बड़े अधिकारी प्रखंड तक गए और जन प्रतिनिधि तक की बात उन्होंने नहीं सुनी सबसे निचे स्तर का जनप्रतिनिधि मुखिया की बात प्रशासनिक अधिकारी ऐसे वक्त में नहीं सुनेंगे तो जन प्रतिनिधि चुनने का क्या मतलब रह जाता है।

आखिर ऐसे त्राशदी से कैसे निपटा जाये:
१)     बाढ़ प्रबंधन निति की समीक्षा हो।
२)     तटबंधो की समीक्षा हो।
३)     नदियों में जो हर साल गाद जमा होने से नदियों के पानी ग्रहण की क्षमता कम हुई है ऐसे में नदियों के मिटटी को उठाकर आसपास बन रहे राज्य/केंद्रीय सड़को में भरा जाय।
४)     नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।
५)     छोटी छोटी नदिया जो लगभग मृतप्राय हो चुकी है उसके उद्धार के बारे में सरकार विचार करे।
६)     नदियों और सड़को के आस पास पेड़ लगाने के कार्यक्रम को व्यापक रूप से चलाना चाहिए।
७)     तटबंधो के आस पास हो रहे खेती पर लगातार नजर बनाये रखनी चाहिए ताकि पानी का रास्ता बना रहे।
८)     नदियों के आस पास जो लोग अतिक्रमण के नाम पर बस जाते है उसपर सख्ती से निपटना चाहिए।
९)     लोगो को पानी के संग्रहण के बचाव के लिए जागरुक करना चाहिए।
१०)    सड़को के किनारे बने गड्डों को भरकर खेती की जाती है उसके ऊपर भी सख्ती से निपटने की निति होनी चाहिए।

धन्यवाद
शशि धर कुमार

Saturday, 22 June 2019

मुज़फ़्फ़रपुर एक घटना या सरकारी उदासीनता

बड़े दुःख की बात है हम 21वी सदी में है और चांद पर पैर रखने वाले है। लेकिन जो भविष्य है, आज भी बेमौत मर रहे है किस वजह से वह भी एक मामूली सा बुखार से जिसकी रोकथाम में अहम योगदान जागरूकता का भी हो सकता है। हर वर्ष जब एक ही समय में सालों से यह दस्तक दे और सरकारों को यह भी पता हो कि इसकी जागरूकता से इसपर काबू किया जा सकता है फिर सरकारे ऐसा लगता है सोई रहती है इस तरह के किसी बड़ी घटना के घटने के इंतजार में।

हम सभी को पता है कि कुपोषित और कमज़ोर शरीर में बीमारियों का आक्रमण आसानी से होता है। दो भोजन के बीच 4 घंटे से अधिक के गैप से कमज़ोर शरीर और अधिक कमज़ोर हो जाता है। ऐसे में इस तरह के बुखार आने की सम्भावना बढ़ जाती है। "इसके आक्रमण से 4-6 घंटे में सर में एक द्रव्य जमा होने लगता है जिससे मस्तिष्क पर प्रेशर बढ़ता है और वहाँ से होने वाला सारे शरीर का कंट्रोल बंद होने लगता है।" यह किसी रिपोर्ट में पढ़ा था।

शरीर में बुखार से पहले सोडियम कम होता है। नमक में सोडीयम है और चीनी में शुगर जो घरेलू ओआरएस का घोल है जो वास्तव में यही घरेलू और प्राथमिक उपचार है। ऐसे में यदि किसी भी बुखार पीड़ित को प्रारम्भिक उपचार मिले तो वो या तो ठीक हो जाएगा या फिर अस्पताल ले जाने तक वह जीवन से लड़ता हुआ पायेगा।

यह समस्या क्या और कितनी बड़ी है, हम इसमें कितना योगदान दे सकते हैं यह सोचने के साथ साथ सहायता करने की भी जरूरत है। सवाल उठता है की हमें करना क्या चाहिए? सबसे पहले तो अभी चल रहे सारे प्रयास जारी रहना चाहिए चाहे वो सरकारी हो गैर सरकारी हो। हमें यह मानकर चलना चाहिए की हर घर सेवा पहुँचाना सम्भव नहीं है लेकिन सरकारी मदद की दरकार अवश्य है जिसके बिना यह संभव नही। ऐसे मामलों में जागरूकता बढ़ा रही संस्थाएँ सबसे अधिक कारगर होंगी जो ऐसे मामलों में सबसे बड़ी वजह भी होती है तो हमे लोगों में बीमारी और उससे बचने की सूचना पहुँचा कर जागरूकता बढ़ाना चाहिए। हम लोगों को बताएँ की नमक और चीनी नामक रामबाण इलाज उनके घर में ही है। वो बच्चों के खाने के बीच अधिक समय का गैप न दें। खुली और साफ़ हवा देकर या गिली पट्टी कर बुखार को बढ़ने से रोके। साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखते हुए मरीज़ को जल्द से जल्द अस्पताल ले जाएँ। जगह जगह पर्चे बाँट कर या लगाकर भी ऐसा कर सकते है। छोटे माइक लेकर लोगों को जमा कर उन्हें रिकॉर्डिंग सुना सकते हैं या नुक्कड़ सभा कर जागरूकता फैला सकते हैं।

ऐसे में यह भी ध्यान रहे की हम कोई ग़लत सूचना न फैलाएँ। UNICEF की टीम वहाँ काम कर रही है और वे लोग 2012 से ही इस पर काम भी कर रहे हैं। तकनीकी बातें वे बेहतर समझते है।

शुरुआती दौर में सोने के बाद प्रशासन अब क्रियाशील हुए है इसकी कई वजहें हैं जैसे सवयंसेवी संस्थाओं, सरकार और मीडिया का दबाव। प्रशासन को सहयोग करना सभी स्वयंसेवी संस्थाओं का काम है और वो कर भी रहे हैं।

हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए की सीमित संसाधनों के रहते अचानक से आये महामारी को सम्भालना आसान नहीं। याद करिये जब अचानक से दिल्ली में डेंगू और चिकुनगुनिया के मामले बढ़ने लगते है तब यही विश्वस्तरीय दिल्ली उसको संभालने में नाकाम दिखने लगती है। सरकारों द्वारा संसाधन को जनसंख्या के अनुपात में नही बढ़ाने और कारगर तरीके से काम नही करने का दोषी अवश्य ठहराए जाने चाहिए। ये ग़लत समय और मौका होगा की डॉक्टर या अस्पताल पर सवाल उठाने का, क्योंकि उन्हें जो मिलता है उसी संसाधनों में काम करने होते है यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि एक ही समय हर वर्ष एक तरीके से आपदा एक ही क्षेत्र के आस पास दस्तक दे तो यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि इसके बारे में जनता के बीच जागरूकता फैलाये और अस्पताल में उसी तरीके से तैयारी किये जाय। मेरी समझ से डॉक्टरों को दोषी ठहराने से हम उनकी कार्यक्षमता को और कम करेंगे। हमें उन पत्रकारों की भी भर्त्सना करनी चाहिए जो बिना ICU में जाने की तैयारी किये बिना माइक लेकर डॉक्टरों से सवाल करते है। उन्हें डॉक्टरों से सवाल के विपरीत अस्पताल प्रशासन या सरकारी तंत्र से ये बाते पूछनी चाहिए। इसको पत्रकारिता तो नही ही कहेंगे यह कुछ लोगो के लिए साहसिक काम लग सकता है लेकिन यह उससे बड़ा मूर्खतापूर्ण कार्य भी है।

हम सरकारों से सवाल तभी पूछते है जब ऐसी घटनाएं होती है। चाहे मुजफ्फपुर में AES (Acute Encephalitis Syndrome) से हो रही मौते हो या गोरखपुर में हो रही मौते हो या दिल्ली जैसे शहर में डेंगू या चिकुनगुनिया से हो रही मौते हो। हम कुछ दिनों बाद सब कुछ भुल जाते है तो सरकारे भी भूल जाती है। जबकि यह सारे मुद्दे तबतक जीवित रहने चाहिए जबतक इसका पूर्णरूपेण समाधान ना हो जाये। यह सारे मुद्दे कही ना कही स्वास्थ्य, पर्यावरण और कुपोषण से जुड़े मुद्दे है जो हमारे चुनावो में ये मुद्दे नही होते है। अब समय आ गया है कि ऐसे मुद्दे उठाए जाएं और बार बार उठाये जाय।

Thursday, 13 June 2019

Multi Level Marketing

Is Multi Level Marketing (MLM) for You?

Who doesn't care for the idea of having a couple of additional bucks available? The majority of us attempt to consider elective techniques other than our employments and calling to gain some additional cash so as to have the option to understand our since quite a while ago esteemed objectives and wishes. This happens to the vast majority of us. While some who have an eye for numbers will in general float towards financial exchanges, many consider taking up a moment occupation and work increasingly number of hours. At that point there are the individuals who take up MLM movement and focus on structure a system dependent on their family, companions, contacts, partners and others.

Despite the fact that there are a few alternatives that one can consider as extra or substitute work, it is imperative to give every one of the business thoughts an intensive idea to check whether it suits you in all regards and in the event that you will most likely be fruitful in the equivalent. After all everyone won't be fit to a wide range of business or deals and bad habit e-versa.

Almost certainly, you will be welcome to a gathering or one of your companions or colleagues will drop in with an arrangement to meet you and discussion about the MLM opportunity.

A glance at the promoting plan, selling ideas and the salary creating plan will leave you overpowered with such a large number of inquiries. You will normally think about whether MLM truly works and if there is such an extensive amount cash to be made as appeared in the arrangement. You will ponder about the item and develop such a large number of inquiries in your psyche. You will likewise think about whether you can truly make this work and last yet not the least you will ponder with respect to what your companions and partners will consider you. Now you are probably going to be under slight strain to join as a merchant as your support would catch up with you. You are presently required to take a choice. Be that as it may, at that point how would you approach deciding regarding whether you need to begin with MLM or not?

On the off chance that the above sounds commonplace, there is no compelling reason to freeze. Continuously recall that the chance to join the MLM system will dependably be accessible and there is no requirement for you to seize it before being readied and prepared for it. In the event that you do happen to take it up and find that you aren't prepared to take it ahead, no issues. You won't lose anything in light of the fact that the business opportunity doesn't cost you any venture.

The main purpose of thought of joining a MLM system must be YOU. You should plunk down and thoroughly consider the whole proposition to perceive how you are most appropriate to take this up. Does it oblige your long haul targets that you have for yourself? Do you have that sort of time and vitality to concentrate on enlisting and building distributer arranges reliably over some stretch of time? Is it true that you will make penance of your time with your family, social exercises just as your own opportunity to put into this business? Shouldn't something be said about selling aptitudes? Do you have great relational abilities and do you like moving toward known and obscure individuals and discussing MLM business coordinate with them? Every one of these inquiries would need to be replied by only you.

As the colloquialism goes, No Pain No Gain. Along these lines MLM can be an extraordinary open door for you to fabricate another pay age stream gave you have the vitality, center, range of abilities and frame of mind to deal with this idea for a significant lot. It calls for adjusting your life, your needs and duties alongside taking up and start another and extra vocation with MLM selling.

Inspirational Challenges

Inspiration is by all accounts a straightforward capacity of the executives in books, yet practically speaking it is all the more testing.

The reasons for motivation being challenging job are as follows:
One of the principle reasons of inspiration being a difficult activity is because of the evolving workforce. The representatives become a piece of their association with different needs and desires. Various workers have various convictions, demeanor's, qualities, foundations and thinking. Be that as it may, every one of the associations don't know about the decent variety in their workforce and in this way don't know and clear about various methods for rousing their differing workforce.

Workers intentions can't be seen, they must be assumed. Assume, there are two representatives in a group demonstrating differing execution notwithstanding being of same age gathering, having same instructive capabilities and same work involvement. The reason being what rouses one representative may not appear to be inspiring to other.

Inspiration of representatives ends up testing particularly when the associations have impressively changed the activity job of the workers, or have reduced the progressive system dimensions of chain of command, or have tossed out countless representatives for the sake of down-measuring or right-estimating. Certain organizations have employed and fire and paying for execution techniques almost surrendering persuasive endeavors. These methodologies are ineffective in causing a person to overextend himself.

The vivacious idea of necessities likewise posture challenge to an administrator in persuading his subordinates. This is on the grounds that a worker at one point of time has various needs and desires. Likewise, these necessities and desires continue changing and may likewise conflict with one another. For example the representatives who invest additional energy at work for gathering their requirements for achievement may find that the additional time gone through by them conflict with their social needs and with the requirement for connection.

Monday, 20 May 2019

How do payment gateways work technically?

1. Payment Gateway Process How do payment gateways work technically?
2. e-Commerce Transaction
3. Online Payment Process
4. Payment Gateway Process
5. A payment gateway is a merchant service provided by an e-commerce application service provider that authorizes credit card or direct payments processing for e-businesses, online retailers, bricks and clicks, or traditional brick and mortar. The payment gateway may be provided by a bank to its customers but can be provided by a specialized financial service provider as a separate service such as a payment service provider. A payment gateway facilitates a payment transaction by the transfer of information between a payment portal and the front end processor or acquiring bank.
6. A Payment Gateway is a middle-man that securely takes money from your customers and sends it to your bank account. Payment Gateway is a processor that helps in authenticating and authorizing transactions between your customer and your bank. The payment gateway process starts with a customer placing an order from a payment gateway-enabled seller/merchant.
7. e-Commerce/Online Shopping
8. e-Commerce/Online Shopping
9. When a customer orders a product from a payment gateway-enabled merchant, the payment gateway performs a variety of tasks to process the transaction:
• Buyer selects the product, clicks on BUY Button initiating the payment from the merchant's website where user info is collected
• This info is sent to the payment gateway / payment aggregator
• Payment aggregator collects card info in a secure server and passes this through its Acquiring Bank (Payment aggregator's bank) to the Card networks like VISA, MasterCard
• The Card Network checks with the Issuing bank (Customer Bank) whether the transaction can be authenticated or not.
10. POS Transaction
11. Debit/Credit Card Transaction
12. If everything is correct here, consumer a/c or card is debited by the Issuing bank:
• Issuer bank sends confirmation to the card network
• This is further notified to the acquiring bank and then to the payment aggregator
• Payment aggregator now send a confirmation to the Merchant, who further informs the consumer
• The consumer also gets notified by his bank (issuing bank) about the transaction
13. shashidharkumar.in


How do payment gateways work technically? https://youtu.be/Ev2ZdQJPqAc Payment Gateway Process #PaymentGateway

Indian Democracy or Indian Election 2019

Democracyभारत पर्व मतलब भारतीय लोकसभा चुनाव मे अगले पांच साल कौन सरकार भारत से जुड़े मुद्दों को दशा और दिशा दिखाएगी यह आने वाले 23 मई को पता चल जाएगा।

भारतवासियों ने अच्छे से वोट कर यह बता दिया कि यह उनकी सरकार होगी। भले हो सकता है लोग नतीजे आने के बाद EVM, चुनाव आयोग, बेमतलब के मुद्दे, पुरानी सरकारों के मुद्दे, हिन्दू मुस्लिम इत्यादि जिनका आम जनों के जेहन में कही कही तक नही रहा। उनके दिमाग मे अगर कोई मुद्दा रहा तो उनके जीवन मे क्या बदलाव हुआ, उनके आस पास क्या बदलाव हुए, उनके लिए भविष्य में कौन अच्छा काम करेगा, कौन विकाष करेगा, कौन स्वार्थ सिद्धि को बढ़ावा देगा यही कुछ मुद्दे उनके दिमाग मे रहे और इसी बात पर लोगो ने वोट भी किया।

चाहे सरकार जिसकी बने एक बात तो तय है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की बार फिर से जीत होगी। फिर चाहे विभिन्न तरह के पत्रकारों ने चाहे वे प्रिंट से हो या डिजिटल से या टीवी से हो, सभी ने अपने अपने पक्ष को दिखाया भी, सुनाया भी और पढ़ाया भी भले उनको लगता हो वे निष्पक्षता से मुद्दों को पक्ष बनाया है लेकिन इस बार जो भी थोड़े जागरूक रहे जिन्होंने इन पत्रकारों और एंकरों को सुना है देखा है उनको पता है वे किस पक्ष के निष्पक्ष पत्रकार रहे है और है भी। कुछ पत्रकारों को जब इंटरव्यू विलंब से मिला तो उन्होंने यह कहकर खिंचाई की उन्होंने मुश्किल सवाल नही किये लेकिन जब अपनी बारी आई तो उनका भी वही हुआ जैसा बांकियों का हुआ। तो अब वो जमाना नही रहा कि आप कोई बात अपने सुविधानुसार कहकर छुप जाएंगे, आपकी कही हर वह बात जिनके बारे में लोगो को लगता है आप बाद में मुकर जाएंगे, वे स्क्रीनशॉट हो या कैप्चर कर किसी ना किसी तरीके से रखकर आपके दोहरे रवैए को लोगो के सामने लाकर आपको शर्मिन्दा करेंगे लेकिन कुछ ऐसे लोग है जो अपने सुविधानुसार समय और किसके लिए काम कर रहे है वे अपना पक्ष निष्पक्षता से रखने का ढोंग करते है।

भारतीय लोकतंत्र में भारी मत से लोगो का इस पर्व में शामिल होना इसकी मजबूती को दर्शाता है और समय के साथ साथ इसमे लोगो की आस्था भी बढ़ी है। क्योंकि पहले कुछ लोग राजनीति को गंदा कहते थे लेकिन उसको कुछ हद तक अब कुछ अच्छे और नौजवान लोगो के आने राजनीति के प्रति लोगो मे जागरूकता के साथ इस सोच में भी बदलाव आयी है। भारत को अपने अपने क्षेत्र में से प्रसिद्धि दिलाने वाले प्रसिद्ध लोगो का अलग अलग पार्टी के साथ सक्रिय चुनाव में भागीदारी से हमारे लोकतंत्र को मजबूती मिली है।

इस सफलता के लिये चुनाव आयोग को साधुवाद लेकिन कुछ पहलू है जिसपर अभी भी चुनाव आयोग को ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे:
१) वोट प्रतिशत कैसे बढ़े?
२) अच्छे उम्मीदवारों को तरजीह देने के उपाय?
३) चुनावी खर्चो पर कैसे लगाम लगे?
४) क्या चुनाव लड़ने के अधिकतम उम्र पर किसी तरह की पाबंदी लगाई जा सकती है?
५) क्या एक उम्मीदवार को दो अलग अलग जगह से लड़ने पर प्रतिबंधित किया जा सकता है?
६) क्या कही से भी अपने क्षेत्र के उम्मीदवार को वोट डालने की कोई प्रक्रिया शुरू की जा सकती है?
७) क्या वोटर कार्ड को आधार के साथ लिंक कर इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है?
८) क्या विधान सभा और लोक सभा का चुनाव एक साथ हो सकता है?
९) क्या वोटर को पोर्टेबिलिटी का ऑप्शन दिया जा सकता है जब चाहे जहाँ वे रह रहे है अपना वोट ट्रांसफर करा सके?
१०) क्या कोई अपने परिवार के किसी सदस्य को अपने वोट के लिए अधिकृत कर सकता है?

#लोकतंत्र #भारत_पर्व #लोकसभा_चुनाव

Monday, 15 April 2019

बिहार में जातिगत राजनीति और उसका दुष्परिणाम

जब आप बिहार से होते है और आप उस दौर में विद्यालय जाते है जब बिहार की धरती अपने विद्यालयों के लिए सबसे बुरे दौर से गुजर रहा हो। जिनको लोग गरीबो का मसीहा कहते नही थकते है यहाँ तक कि एक तथाकथित जिसको हाल के कुछ वर्षों में मीडिया ने बिहार का मसीहा या आने वाला कल घोषित किया हुआ है उनके पैरों पर गिर पड़े सार्वजनिक तौर पर। जिनको बिहार में घोटालो का मसीहा कहा जाता है। लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा है आजकल वे चुनावी मैदान में है तो प्रचार के दौरान वे सिर्फ व्यक्तिगत लांक्षण लगा रहे कोई ऐसी बात नही बता रहे जिससे यह पता लगे कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में से एक पूर्व छात्र नेता और पीएचडी धारक होने के नाते उनके पास कुछ ऐसी योजना है जिससे अपने समाज का पिछड़ापन दूर हो।

आप उस दौर में भी वहाँ से निकल सामाजिक रूप से अगर आप अपनी पहचान बनाते है तो यह सिर्फ एक आपके अकेले की जद्दोजहद नही रही होगी आपके साथ साथ आपके माता पिता आपके भाई बंधु सबो का हाथ रहा होगा लेकिन सोचने वाली बात यह है यह कितनो को नसीब हो पाया। अगर आप गौर करेंगे तो ऐसे लोग अपना मुकाम बना पाए जिनके या तो माता पिता पढ़े लिखे थे या जिनके माता पिता कही ना कही सरकारी नौकरी कर रहे थे। जिनको यह भली भांति पता थी बच्चों को शिक्षा देना ही एकमात्र लक्ष्य है और उनको उन्होंने निभाया भी। खैर मैं यह कहना चाहता हूँ कि हम जिस बिहार से आते है उसका अतीत कितना ही गौरवशाली क्यों ना हो लेकिन आज अगर सबसे ज्यादा जात पात पर राजनीति होती है हमारे बिहार में सबसे ज्यादा। किसी भी पार्टी को उठाकर देख लीजिए जहाँ जिस प्रकार का जातीय समीकरण बनता है उसी प्रकार से सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे है। हम उस दौर की बात करते है जब तथाकथित मसीहा जिन्होंने वाकई में बिहार की राजनीति को एक अलग नजरिये से देखने के लिए मजबूर किया जिसकी शायद जरूरत भी थी लेकिन एक समय बाद जब जरूरतों को अपने लिए उपयोग करने लग जाते है तो आपकी स्थिति खराब नही बदतर होने लगती है क्योंकि राजनीति सेवा करने के लिए होती है जबतक आप लोगो के बारे में सोचेंगे तबतक आपकी राजनीति जिंदा है नही तो सिर्फ आप एक मसीहा बन एक कोने में बैठे रहेंगे। ऐसा नही है कि यह बिहार की ही कहानी है आप उदाहरण के तौर पे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी एक परिवार को क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में देखा जाता है। अगर वे है तो उन्होंने कुछ किया होगा तभी वे क्षत्रप है भी लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा है एक समय के बाद आपको राजनीति में बदलाव के साथ साथ सेवा भाव को भी आगे करना होता है तभी आप आगे भी सफल कहलायेंगे।

बिहार की राजनीति को देखकर दुख होता है जिस राजनीति की वजह से बिहार शब्द को एक अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया गया था लेकिन आज भी जो बड़े बड़े विश्वविद्यालयो में पढ़ाने वाले लोग इस तरह की राजनीति को बढ़ावा देकर अपनी अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए है। आम जनमानस के बारे में कोई नही सोचना चाहता है कि वाकई में गरीबी कैसे हटेगी, कैसे शिक्षा को सुदृढ़ किया जाए, कैसे किसानों की हालातों पर चर्चा कर उसके लिए कुछ ऐसे सुझाव सरकार को सुझाये जिससे सरकार करने को मजबूर हो। लेकिन बुद्धिजीवी अपने अपने हिसाब समर्थन या विरोध करने में लगे हुए है।

आइये मिलकर संकल्प ले वोट को अपना अधिकार को उनके पक्ष में करेंगे जो इन सबसे ऊपर उठकर काम की बात करेगा। आपको सोचना होगा कि आखिरकार आपके बच्चे कहाँ किस तरह के समाज मे सांस लेने वाले है।

Saturday, 13 April 2019

व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व

व्यक्ति का समाज के प्रति वही दायित्व है जो अंगों का सम्पूर्ण शरीर के प्रति। यदि शरीर के विविध अंग किसी प्रकार स्वार्थी अथवा आत्मास्तित्व तक ही सीमित हो जायें तो निश्चय ही सारे शरीर के लिए एक खतरा पैदा हो जाए। सबसे पहले भोजन मुँह में आता है। यदि मुँह स्वार्थी बन कर उस भोजन को अपने तक ही सीमित रख कर उसका स्वाद लेता रहे और जब इच्छा हो उसे थूक कर फेंक दे, तो उसके इस स्वार्थ का परिणाम बड़ा भयंकर होगा। जब मुँह का चबाया हुआ भोजन पेट को न जाएगा तो कहाँ से उसका रस बनेगा और कहाँ से रक्त माँस, मज्जा आदि? इस क्रिया के बन्द हो जाने पर शरीर के दूसरे अंगों और अवयवों को तत्व मिलना बन्द हो जाएगा। वे क्षीण और निर्बल होने लगेंगे और धीरे-धीरे पूरी तरह अस्वस्थ होकर सदा-सर्वदा के लिए निर्जीव हो जायेंगे। पूरा शरीर टूट जाएगा और शीघ्र ही जीवन हीन होकर मिट्टी में मिल जाएगा। यह सब अनर्थ, एक मुँह के स्वार्थ-परायण हो जाने से घटित होगा।

व्यक्ति की स्वार्थपरता सामाजिक जीवन के लिए विष के समान घातक है। जो व्यक्ति सामूहिक दृष्टि से न सोच कर केवल अपने स्वार्थ, अपने व्यक्तिवाद में लगे रहते हैं, वे सम्पूर्ण समाज को एक प्रकार से विष देने का पाप करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा कभी भी शांत और सुखी नहीं रह सकती। शीघ्र ही उसका लोक तो बिगड़ ही जाता है, परलोक बिगड़ने की भूमिका भी तैयार हो जाती है। समाज में व्यक्तिगत भाव का कोई स्थान नहीं है। जिसने शक्ति, समृद्धि, सम्पन्नता अथवा पद प्रतिष्ठा के क्षेत्र में उन्नति तो कर ली है, किन्तु अपनी इन सारी उपलब्धियों को रखता अपने तक ही सीमित है, किसी भी रूप में समाज को उसका लाभ नहीं पहुँचता तो उसकी सारी उपलब्धियां, समृद्धियाँ और सफलताएँ हेय हैं। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति का कोई विवेकशील व्यक्ति तो आदर की दृष्टि से देखेगा नहीं, मूढ़ और मतिमन्द लोग भले ही उसको आदर, सम्मान देते रहें।
यदि देश का युवा जागरूक बनेगा तो देश को आगे बढने से कोई रोक नहीं सकता। समुदाय के विकास में भी युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शासन द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जो विकास का अध्याय लिखने का प्रयास हैं, वह तभी सम्भव हैं जब युवा ऐसे हितग्राहियों तक इन योजनाओं को लेकर जाए जिन्हें इनकी जानकारी नहीं मिल पाती है। युवाओं में नेतृत्व के गुण होना आवश्यक है और वे प्रशिक्षण के माध्यम से वे नेतृत्व के गुण सिखेंगे जिसका लाभ समाज को और देश को प्राप्त होगा। जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए और उस लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से जुटना चाहिए। हम तभी सामाजिक नेता बन सकते हैं जब हमारे मन में समाज के प्रति कुछ करने का भाव हो। युवा देश की ताकत है तथा इस ताकत का यदि सदुपयोग किया जाये तो देश की दिशा और दशा बदल सकती है। देश के विकास में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो तभी देश आगे बढ सकता है।

यह आम धारणा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को न्याय नहीं मिलता तथा पैसे वाले ही न्याय प्राप्त कर पाते हैं यह धारणा सही नहीं है। देश में राष्ट्रीय स्तर से लेकर तहसील स्तर तक विधिक सेवा प्राधिकरण बना हुआ है जिसके माध्यम से गरीबों को भी नि:शुल्क विधिक सेवा मिल सकती है तथा वे भी न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारी युवाओं को गांव तक पहुंचाना चाहिए ताकि ऐसे लोग भी इस सेवा का लाभ प्राप्त कर सकें जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है। व्यवसाय बारे में हमारा नजरिया सकारात्मक होना चाहिए तो हम हर क्षेत्र में आगे बढ सकते हैं व्यवसाय में भी नजरिया बहुत महत्वपूर्ण हैं। असफलताऐं हमें बहुत कुछ सिखाती और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। सोशल मीडिया ने देश में क्रांति ला दी है यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो इसका काफी लाभ भी हो सकता हैं वहीं इसका दुरूपयोग करने का दुष्परिणाम भी भुगतना पडता है। युवाओं को इसके सम्बंध में जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे इस नई तकनीक से वाकिफ होकर इसका लाभ प्राप्त कर सकें।

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